विश्व स्तनपान सप्ताह- मां का दूध विकल्प नही बल्कि संकल्प थीम की शत प्रतिशत सफ़लता को लेकर एक दिवसीय कार्यशाला का किया गया आयोजन:

विश्व स्तनपान सप्ताह- मां का दूध विकल्प नही बल्कि संकल्प थीम की शत प्रतिशत सफ़लता को लेकर एक दिवसीय कार्यशाला का किया गया आयोजन:

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बच्चों के लिए मां का दूध श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि जीवन रक्षक:

नवजात शिशुओं के रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि के लिए नियमित रूप से स्तनपान कराना जरूरी: शिशु रोग विशेषज्ञ

दूध पिलाने वाली 72% माताओं को बीमारी का खतरा कम: यूनिसेफ

श्रीनारद मीडिया, पूर्णिया,  (बिहाार):

विश्व स्तनपान सप्ताह (01 से 07) की शत प्रतिशत सफ़लता को लेकर राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय सह अस्पताल परिसर स्थित सभागार में सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी की अध्यक्षता में “मां का दूध विकल्प नही बल्कि संकल्प” थीम के तहत  एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी, जीएमसीएच के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष  डॉ प्रेम प्रकाश, डीपीएम सोरेंद्र कुमार दास, डीसीएम संजय कुमार दिनकर, डीपीसी डॉ सुधांशु शेखर, पिरामल स्वास्थ्य के डीटीएल आलोक पटनायक, आकांक्षी जिला कार्यक्रम अधिकारी संजीव सिंह, यूनिसेफ की ओर से राष्ट्रीय पोषण अभियान के जिला समन्वयक देवाशीष घोष,
सिफार के धर्मेंद्र रस्तोगी, पीरामल के सनत गुहा, जियाउद्दीन, नम्रता सिन्हा के अलावा जिले के सभी आरएमएनसीएच और आईसीडीएस के प्रखंड समन्वयक सहित कई अन्य अधिकारी कर्मी उपस्थित थे।

 

बच्चों के लिए मां का दूध श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि जीवन रक्षक:
सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी ने कहा कि नवजात शिशु अपनी मां का दूध पीकर सदैव स्वस्थ्य रहता है। बता दें कि मां का दूध जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त मात्रा में पीने के लिए नहीं मिलता  उनको बचपन में शुरू होने वाली मधुमेह की बीमारी अत्यधिक होती है। साथ ही बुद्धि का विकास उन बच्चों में दूध पीने वाले बच्चों की अपेक्षाकृत कम होता है। अगर बच्चा समय से पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। इसलिए मां का दूध छह से आठ महीने तक बच्चे के लिए श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि जीवन रक्षक भी होता है।

 

नवजात शिशुओं की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि के लिए नियमित रूप से स्तनपान कराना जरूरी: डॉ प्रेम प्रकाश
राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय सह अस्पताल के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ प्रेम प्रकाश ने कहा कि जन्म के पहले घंटे में स्तनपान शुरू करने वाले नवजात शिशुओं में मृत्यु की संभावना लगभग 20 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इसके साथ ही पहले छह महीने तक केवल स्तनपान करने वाले शिशुओं में डायरिया एवं निमोनिया से होने वाली मृत्यु की संभावना 11 से 15 प्रतिशत तक कम हो जाती है। स्तनपान करने वाले शिशुओं का समुचित ढंग से शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है एवं वयस्क होने पर उसमें गैर संचारी (एनसीडी) बीमारियों के होने की भी संभावना बहुत कम होती है। इसके साथ ही स्तनपान कराने वाली माताओं में स्तन एवं ओवरी कैंसर होने का खतरा भी नहीं होता है।

दूध पिलाने वाली 72% माताओं को बीमारी का खतरा कम: यूनिसेफ
यूनिसेफ के जिला पोषण अभियान के जिला समन्वयक देवाशीष घोष ने कहा कि मां का दूध नवजात शिशुओं के लिए अमृत समान होता है। क्योंकि जन्म से लेकर छह माह तक यदि एक नवजात शिशु को मां का दूध पिलाया जाए तो मां को 72 प्रतिशत स्वास्थ से संबंधित किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं होती है। साथ ही 28 प्रतिशत स्तन कैंसर (ब्रेस्ट कैंसर) में कमी और 30 प्रतिशत मधुमेह में भी कमी आती है। जो मां अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं तो उसमें से 17 प्रतिशत महिलाओं में हार्ट अटैक का खतरा कम होता है। साथ ही 10 प्रतिशत अन्य रोगों में भी कमी आती है। वहीं 50 प्रतिशत महिलाओं को थायराइड से बचाव हो सकता है।

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