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भारत में OBC आरक्षण का ऐतिहासिक विकास क्या है? - श्रीनारद मीडिया

भारत में OBC आरक्षण का ऐतिहासिक विकास क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

न्यायमूर्ति जी. रोहिणी की अध्यक्षता वाले आयोग ने लगभग छह वर्ष बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जातियों के उप-वर्गीकरण के लिये लंबे समय से प्रतीक्षित रिपोर्ट सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को सौंप दी है।

  • हालाँकि सिफारिशों का विवरण अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है और उम्मीद है कि सरकार किसी भी कार्यान्वयन से पूर्व रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करेगी।

रोहिणी आयोग के बारे में:

  • परिचय:
    • इस आयोग का गठन 2 अक्तूबर , 2017 को संविधान के अनुच्छेद 340 (पिछड़े वर्गों की स्थितियों की जाँच के लिये आयोग नियुक्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति) के तहत किया गया था।
  • संदर्भ शर्तें: 
    • केंद्रीय सूची में सूचीबद्ध OBC के बीच लाभ के असमान वितरण की जाँच करना।
    • OBC के भीतर उप-वर्गीकरण के लिये एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ मापदंडों का प्रस्ताव करना।
    • संबंधित जातियों अथवा समुदायों को उनकी संबंधित उप-श्रेणियों में पहचानना एवं वर्गीकृत करना।
    • OBC की केंद्रीय सूची में प्रविष्टियों का अध्ययन करना, साथ ही पुनरावृत्ति, अस्पष्टता, विसंगतियों एवं वर्तनी अथवा प्रतिलेखन में त्रुटियों के लिये सुधार की सिफारिश करना।

OBC के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता:

  • OBC को केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण मिलता है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि केवल कुछ प्रमुख जाति समूहों को ही इस कोटा से लाभ मिलता है।
  • वर्ष 2018 में आयोग ने पिछले वर्षों में 1.3 लाख केंद्रीय सरकारी नौकरियों और केंद्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में OBC प्रवेश के डेटा का विश्लेषण किया था जिससे पता चला कि 97% लाभ केवल 25% OBC जातियों को मिला है।
  • लगभग 983 OBC समुदायों (कुल का 37%) का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में शून्य प्रतिनिधित्व था, जो उप-वर्गीकरण की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • उप-वर्गीकरण का उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से कम प्रतिनिधित्व वाले और वंचित OBC समुदायों के लिये अधिक अवसर प्रदान करने हेतु 27% आरक्षण के भीतर कोटा प्रदान करना  है।

भारत में OBC आरक्षण की स्थिति का ऐतिहासिक विकास:

  • यह यात्रा वर्ष 1953 में कालेलकर आयोग की स्थापना के साथ शुरू हुई, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SC) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) से परे पिछड़े वर्गों को मान्यता देने का पहला उदाहरण पेश किया।
  • वर्ष 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में OBC आबादी 52% होने का अनुमान लगाया गया था और 1,257 समुदायों को पिछड़े वर्ग के रूप में पहचाना गया था।
    • असमानता को दूर करने के लिये इसने मौजूदा कोटा (जो पहले केवल SC/ST के लिये लागू था) को 22.5% से बढ़ाकर 49.5% करने का सुझाव दिया, जिसमें OBC को शामिल करने के लिये आरक्षण का विस्तार किया गया।
    • इन सिफारिशों के बाद केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 16(4) के तहत OBC के लिये केंद्रीय सिविल सेवा में 27% सीटें आरक्षित करते हुए आरक्षण नीति लागू की।
      • यह नीति अनुच्छेद 15(4) के तहत केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में भी लागू की गई थी।
  • वर्ष 2008 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह सुनिश्चित करते हुए कि ये लाभ सबसे वंचित लोगों तक पहुँचे, हस्तक्षेप किया और केंद्र सरकार को OBC के बीच “क्रीमी लेयर (Creamy Layer)” (उन्नत वर्गों) को आरक्षण नीति के  लाभ से बाहर करने का निर्देश दिया।
  • वर्ष 2018 में 102वें संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes- NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।

 

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