मणिपुर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 3 महिला जजों की कमेटी बनाई
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मणिपुर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 7 अगस्त को फिर सुनवाई हुई। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के 3 जजों की कमेटी मणिपुर में जाकर राहत और पुनर्वास का काम देखेगी। कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसी कोशिशें की जानी चाहिए, ताकि राज्य के लोगों में विश्वास और कानून के शासन में भरोसा लौट सके। वहीं, राज्य के हालात की जानकारी देने मणिपुर के DGP राजीव सिंह कोर्ट पहुंचे। उन्होंने प्रशासन के उठाए कदमों के बारे में बताया।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस रहीं गीता मित्तल कमेटी की हेड होंगी। कमेटी की दो अन्य सदस्य जस्टिस (रिटायर्ड) शालिनी पी जोशी और जस्टिस (रिटायर्ड) आशा मेनन होंगी। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल (AG) आर वेंकटरमणी ने कहा कि मणिपुर की मौजूदा स्थिति नाजुक है। बाहर से जांच होना लोगों में विश्वास पैदा नहीं करेगा। सरकार स्थिति को संभालने के लिए परिपक्व तरीके से डील कर रही है। मणिपुर में एक आर्टिफिशियल सिचुएशन बनाई गई है, जिससे बताया जा रहा है कि सरकार कुछ नहीं कर रही। यह बहुत उलझाऊ स्थिति है।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने ये भी निर्देश दिया कि मणिपुर हिंसा मामले में सीबीआई जांच की निगरानी महाराष्ट्र के पूर्व डीजीपी दत्तात्रेय पडसालगीकर करेंगे।
बेंच कितनी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही, सीबीआई की क्या मांग है?
मणिपुर हिंसा मामले में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही है। केंद्र का कहना है कि 6,523 एफआईआर में से 11 महिलाओं और बच्चों की हिंसा से जुड़ी हैं। इनकी जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए। एजेंसी भी 11 मामलों की जांच की मांग कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच मणिपुर हिंसा से जुड़ी 10 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
42 SIT हिंसा के मामलों की जांच करेंगी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मणिपुर में हिंसा से जुड़े मामलों की 42 स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (SIT) जांच करेंगी। इन केसों को अभी तक सीबीआई को ट्रांसफर नहीं किया गया है। इन SIT के काम को डीआईजी रैंक का अफसर निगरानी करेगा। ये अफसर मणिपुर के बाहर के होंगे। डीआईजी रैंक का एक अफसर 6 SIT की निगरानी करेगा। इन SIT की जिले के आधार पर नियुक्ति होगी।
कोर्ट रूम में 7 अगस्त को हुई
- वकील वृंदा ग्रोवर- दो महिलाओं को पीटा गया। उन्हें मरा मान लिया गया था। इसके बाद उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया। यहां रिपोर्ट में बताया गया कि सामान्य चोटें थीं। आईपीसी की धारा 166ए के तहत कोई एफआईआर नहीं की गई। इसके तहत पब्लिक सर्वेंट्स (लोकसेवकों) के एक्शन न लेने पर अकाउंटेबिलिटी तय होती है।
- वकील इंदिरा जय सिंह- मणिपुर में झड़प जारी है। मेरा केस जांच और अपराध की रोकथाम को लेकर है। मैं एक जॉइंट स्टेटमेंट पढ़ूंगी। जो मेरे, वृंदा ग्रोवर, मिस शोभा और मि. पाशा की तरफ से है।
- वकील इंदिरा जय सिंह- तीन अप्रोच हो सकती हैं। कोर्ट की तरफ से एक हाईपॉवर्ड कमीशन भेजा जाए। इसमें तीन रिटायर्ड तीन महिला जज हों। ये कोर्ट की आंखें और कान रहेंगी। असल में राज्य में हिंसा 3 मई को शुरू हुई, 4 को नहीं।
- वकील इंदिरा जय सिंह- 2012 के निर्भया केस में हमने देखा था कि पुलिस अपनी ड्यूटी नहीं कर रही थी। 2012 में संशोधन के तहत आईपीसी में धारा 166ए जोड़ी गई। इसके तहत जो पुलिसवाले अपनी ड्यूटी नहीं करेंगे, उन्हें सजा दी जाएगी। हम इस धारा को लागू करने के लिए कह रहे हैं। देश में लिंचिंग के मामले सामने आने पर भी मुद्दा उठा था। तब कोर्ट ने प्रिवेंटिव मेजर्स (निवारक उपाय) की बात कही थी।
- सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े- दो जगह गतिरोध है- एनएच-2 और जिरिबाम। यदि इन गतिरोधों को हटा लिया जाए तो काफी तनाव खत्म हो जाएगा।
मणिपुर में फौजियों का आई कार्ड चेक कर रहीं मैतेई महिलाएं
उधर, राजधानी इंफाल में आने वाले सभी रास्तों को मैतेई महिलाओं के संगठन मेइरा पाइबी ने रोक दिया है। इन्होंने हर रास्ते की एंट्री पर चेक पॉइंट बनाए हैं। ये महिलाएं सेना और केंद्रीय सुरक्षा बलों की गाड़ियों को रोककर फौजियों के आई-कार्ड चेक कर रही हैं।
इंफाल में लगभग 500 महिलाओं की भीड़ ने कॉर्प्स ऑफ मिलिट्री पुलिस (CMP) के काफिले को रोक दिया। उनका आरोप था कि काफिले में कुकी समुदाय के फौजी हैं। महिलाओं ने जवानों के नाम और राज्य पूछकर उनसे आधार कार्ड की मांग की। सैन्य अफसरों ने आपत्ति भी जताई, लेकिन काफिले को लौटना पड़ा।
1 अगस्त को सुनवाई में ये हुआ था…
मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने के केस में मंगलवार यानी 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच को सुस्त बताया। कोर्ट ने कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था बिल्कुल ध्वस्त हो चुकी है।
लाइव लॉ के मुताबिक कोर्ट ने हैरानी जताई कि राज्य की जातीय हिंसा में लगभग 3 महीने तक FIR ही दर्ज नहीं की गई। बाद में जब 6000 से ज्यादा FIR हुईं तो इनमें 7 गिरफ्तारियां की गईं। इस पर केंद्र ने बताया कि 7 तो केवल वायरल वीडियो मामले में की गई हैं। अभी तक कुल 250 लोगों को अरेस्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर DGP को कोर्ट में हाजिर होकर इन सभी सवालों का जवाब देने का निर्देश दिया था।
ITLF के नेता अमित शाह से मिलेंगे
इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) का प्रतिनिधिमंडल 8 अगस्त को गृह मंत्री अमित शाह से मिलेगा। इन लोगों की शाह से 5 मांगें हैं, जिसमें एक अलग राजनीतिक प्रशासन और चुराचांदपुर में कुकी-जो समुदाय के लिए सामुदायिक कब्रिस्तान शामिल हैं। फोरम के सेक्रेटरी मुआन तोम्बिंग के मुताबिक, हम एक प्रशासन चाहते हैं, जो मणिपुर से अलग हो। अभी कुकी-जो समुदाय के लोग शवों को इंफाल में दफना रहे हैं। चुराचांदपुर में कब्रिस्तान बनने के बाद बॉडीज को वहां ले जाया जाएगा।
तोम्बिंग ने ये भी कहा कि चुराचांदपुर के कब्रिस्तान को कानूनी होना चाहिए। मैतेई स्टेट फोर्सेस को पहाड़ी जिलों में तैनात नहीं किया जाना चाहिए। ये कुकी-जो समुदाय की सुरक्षा के लिहाज से अच्छा नहीं है।
पुलिस की रिपोर्ट में पीड़ित महिलाओं के नाम, कोर्ट ने शेयर करने से मना किया
निर्वस्त्र वीडियो मामले में कोर्ट में लगाई गई पिटीशन में पीड़ित महिलाओं की पहचान जाहिर नहीं की गई है। उन्हें X और Y नाम से संबोधित किया गया है।
वहीं, इस मामले में पुलिस की रिपोर्ट में पीड़ित महिलाओं के नाम हैं। याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने कहा था कि यह कानून के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इस रिपोर्ट को किसी से शेयर ना करें। मीडिया को ना दें, वरना पीड़ितों के नाम सामने आ जाएंगे।
1. केंद्र ने कहा था- सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हो तो ऐतराज नहीं
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 31 जुलाई को कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट यह मामला देखता है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है। एक याचिकाकर्ता ने अपनी दलील में कुकी समुदाय का जिक्र किया था। इस पर केंद्र ने कहा- किसी भी समुदाय का नाम इस तरह से लिया जाना सही नहीं है। सांप्रदायिक तनाव को हवा नहीं दी जानी चाहिए।
2. पीड़ित महिलाओं ने कहा- CBI इस मामले की जांच ना करे
पीड़ित महिलाओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा- ऐसे कई वाकये हुए हैं। हम CBI जांच के खिलाफ हैं। हम चाहते हैं कि एक स्वतंत्र एजेंसी इसकी जांच करे। लॉ ऑफिसर या अटॉर्नी जनरल निगरानी कैसे करेंगे और क्या निगरानी करेंगे? और अगर कोई पक्षपात हुआ तो?
3. कुकी समुदाय ने कहा- SIT इसकी जांच करे, रिटायर्ड DGP शामिल हों
कुकी समुदाय की ओर से वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्वेज ने CBI जांच का विरोध किया और कहा कि इस मामले की जांच SIT और रिटायर्ड DGP से कराई जाए। इसमें मणिपुर के किसी आर्मी अफसर को ना शामिल किया जाए।
4. हिंसा पीड़ित सभी महिलाओं की ओर से याचिकाकर्ता बोलीं- हाई पावर कमेटी बने
वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह ने 31 जुलाई को कहा था- रेप विक्टिम इस बारे में बात नहीं कर रही हैं। वो अभी तक अपने दुख से बाहर नहीं आ पाई हैं। सबसे जरूरी चीज भरोसा पैदा करना है। CBI जांच शुरू करती है तो अभी हम यह नहीं जानते हैं कि महिलाएं सामने आएंगी।
महिलाएं पुलिस की बजाय महिलाओं से ही बात करने में ज्यादा सहज महसूस करेंगीं। इसके लिए एक हाईपावर कमेटी बनाई जाए और उसमें ऐसी महिलाओं को शामिल किया जाए, जिन्हें ऐसे मामलों का अनुभव हो।
मणिपुर हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा मौतें
मणिपुर हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें 3-5 मई के बीच 59 लोग, 27 से 29 मई के बीच 28 लोग और 13 जून को 9 लोगों की हत्या हुई थी। 16 जुलाई से लेकर 27 जुलाई तक हिंसा नहीं हुई थी।
कुकी पार्टी ने बीरेन सरकार से समर्थन वापस लिया
कुकी पीपुल्स अलायंस ने रविवार को मणिपुर की बीरेन सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान किया है। कुकी पीपुल्स अलायंस का कहना है कि राज्य सरकार कुकी हितों की रक्षा करने में विफल रही है। इस पार्टी के 2 विधायक हैं। 60 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के 37 विधायक हैं।
मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नगा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।
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