भारत में सांप्रदायिक हिंसा का क्या कारण है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सांप्रदायिक हिंसा सामूहिक हिंसा का एक रूप है जिसमें भिन्न-भिन्न धार्मिक, जातीय, भाषाई या क्षेत्रीय पहचान से संबंधित समूहों के बीच झड़पें शामिल होती हैं।

भारत में सांप्रदायिक हिंसा को प्रायः हिंदू-मुस्लिम संघर्ष के संदर्भ में देखा जाता है, लेकिन इसमें सिख, ईसाई, बौद्ध, दलित और आदिवासी जैसे अन्य समूह भी शामिल हो सकते हैं।

भारतीय दंड संहिता (IPC) सांप्रदायिक हिंसा को किसी भी ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित करती है जो धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देता है और सद्भावना बनाए रखने के प्रतिकूल कार्य करता है।

भारत में सांप्रदायिक हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है, जो पूर्व-औपनिवेशिक और औपनिवेशिक काल से चला आ रहा है। स्वतंत्रता के बाद के युग में भी सांप्रदायिक हिंसा ने भारत के लिये समस्या बनाए रखी है। वर्ष 1921 का मोपला विद्रोह, 1946 का नोआखली दंगा, 1947 का विभाजन दंगा, 1992 का बाबरी मस्जिद विध्वंस और हाल ही में मणिपुर हिंसा तथा नूह में फैली हिंसा सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के उदाहरण के रूप में देखे जा सकते हैं।

सांप्रदायिक हिंसा प्रायः राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक कारकों से उत्प्रेरित होती है जैसे चुनाव, धार्मिक त्योहार, गोरक्षा, धर्मांतरण, अंतर-धार्मिक विवाह, भूमि विवाद, प्रवास, मीडिया प्रोपेगेंडा, हेट स्पीच आदि।

सांप्रदायिक हिंसा का भारत के लोकतंत्र, पंथनिरपेक्षता, मानवाधिकार, सामाजिक सद्भाव, राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास के लिये गंभीर निहितार्थ हैं।

भारत में सांप्रदायिक हिंसा के प्रमुख कारण:  

  • राजनीतिक कारण: 
    • चुनावी लाभ या वैचारिक एजेंडे के लिये सांप्रदायिक भावनाओं की लामबंदी करने में राजनीतिक दलों और नेताओं की भूमिका।
    • बाँटो और राज करो (divide and rule) की रणनीति के रूप में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का उपयोग।
    • सांप्रदायिक संघर्षों को रोकने या हल करने में राजनीतिक संस्थानों और तंत्रों की विफलता। सांप्रदायिक हिंसा के अपराधियों के लिये जवाबदेही की कमी और दंड से मुक्ति।
  • सामाजिक कारण: 
    • विभिन्न समुदायों के प्रति गहरी जड़ें जमा चुके पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों का अस्तित्व। 
      • अंतर-सामुदायिक संवाद और भरोसे की कमी।
    • चरमपंथी समूहों और संगठनों का प्रभाव जो सांप्रदायिक घृणा और हिंसा फैलाते हैं।
    • सांप्रदायिक उद्देश्यों के लिये धार्मिक प्रतीकों और भावनाओं से खिलवाड़।
  • आर्थिक कारण: 
    • विभिन्न समुदायों के बीच दुर्लभ संसाधनों और अवसरों के लिये प्रतिस्पर्द्धा। 
    • हाशिये पर रहने वाले समूहों के बीच सापेक्षिक अभाव या भेदभाव की धारणा।
    • पारंपरिक आजीविका एवं पहचान पर वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण का प्रभाव।
  • सांस्कृतिक कारक: 
    • विभिन्न समुदायों के बीच मूल्यों और जीवनशैली का टकराव। सांस्कृतिक विविधता और बहुलवाद (pluralism) का क्षरण।
    • रूढ़िवाद को धर्मनिरपेक्षता और उदारवाद द्वारा दी गई चुनौती। सांस्कृतिक विरासत और पवित्र स्थलों का विनियोग या अपमान। 
  • शिक्षा और जागरूकता का अभाव: 
    • भ्रामक सूचनाओं का आसानी से प्रसार हो सकता है, ये अविश्वास और गलतफहमी को गहरा कर सकती हैं और अंततः सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में योगदान दे सकती हैं।

भारत में सांप्रदायिक हिंसा के प्रभाव:  

  • मानव जीवन की हानि: 
    • सांप्रदायिक हिंसा के सबसे विनाशकारी परिणामों में से एक है मानव जीवन की हानि। व्यक्ति, परिवार और संपूर्ण समुदाय ऐसी हत्याओं से टूट जाते हैं और ये ऐसे घाव छोड़ जाते हैं जो पीढ़ियों तक बने रहते हैं।
  • संपत्ति का विनाश: 
    • सांप्रदायिक हिंसा घरों, व्यवसायों और पूजा स्थलों के विनाश का कारण बनती है।
    • इस विनाश से होने वाली आर्थिक क्षति बहुत अधिक भी हो सकती है, जो व्यक्तियों और समुदायों की आजीविका को प्रभावित कर सकती है।
  • सामाजिक विघटन: 
    • विभिन्न समुदायों के बीच सामाजिक संसंजन, सहिष्णुता, एकजुटता आदि का टूटना या कमज़ोर पड़ना।
      • विश्वास और एकता का वह ताना-बाना जो समाज को एक साथ बांध कर रखता है, प्रायः सांप्रदायिक हिंसा से टूट जाता है।
    • जो समुदाय कभी सद्भाव में रहते रहे थे, वे स्वयं को धार्मिक आधार पर विभाजित पाते हैं, जिससे वे बंधन नष्ट हो जाते हैं जो उन्हें एक साथ बांधे रखते हैं। 
  • आर्थिक आघात: 
    • सांप्रदायिक हिंसा के महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। संसाधनों और धन का विचलन या बर्बादी इसका एक प्रमुख प्रभाव है। 
    • निवेशक हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में निवेश करने से संकोच रख सकते हैं, आर्थिक गतिविधियाँ बाधित हो सकती हैं और विकासात्मक परियोजनाएँ पटरी से उतर सकती हैं, जिससे प्रगति और विकास की गति मंद पड़ सकती है।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव:
    • सांप्रदायिक हिंसा से होने वाला मानसिक आघात शारीरिक क्षति से कहीं अधिक व्यापक होता है। 
    • उत्तरजीवी (Survivors) प्रायः मनोवैज्ञानिक संकट, दुश्चिंता और अवसाद का अनुभव करते हैं, जिससे उनकी समग्र सेहत और पूर्णता से जीवन जीने की क्षमता प्रभावित होती है।
  • राजनीतिक प्रभाव: 
    • भारत में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, कानून का शासन, न्याय आदि का क्षरण या उनका कमज़ोर पड़ना। राजनीतिक संस्थानों और अभिकर्ताओं की वैधता एवं विश्वसनीयता की हानि।
    • राजनीतिक प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, संरक्षण, हिंसा आदि में वृद्धि। तानशाही, लोकलुभावनवाद, उग्र राष्ट्रवाद, सांप्रदायिकता आदि का उदय या पुनरुत्थान।
  • सुरक्षा पर प्रभाव: 
    • राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा या चुनौती।
    • सांप्रदायिक झगड़ों में बाहरी तत्त्वों या शक्तियों की भागीदारी या हस्तक्षेप।
    • सांप्रदायिक हिंसा का सीमाओं के पार प्रसार या वृद्धि।
      • सांप्रदायिक हिंसा और हिंसा के अन्य रूपों—जैसे आतंकवाद, विद्रोह, उग्रवाद आदि के बीच संबंध या सांठगांठ। हथियारों और विस्फोटकों का प्रसार या दुरुपयोग। 

सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिये संभावित समाधान:  

  • सुदृढ़ कानूनी ढाँचा: 
    • विभिन्न समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा करने वाले कानूनों और नीतियों का अधिनियमन या प्रवर्तन। 
    • हेट स्पीच, घृणापूर्ण अपराध, सांप्रदायिक दंगों आदि की रोकथाम या निषेध। सांप्रदायिक हिंसा के अपराधियों या इसे भड़काने वालों पर मुक़दमा चलाना और उन्हें दंडित करना।
    • सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों या उत्तरजीवियों के लिये न्याय या राहत का प्रावधान या मुआवज़ा। 
  • संस्थागत तंत्र को सुदृढ़ करना: 
    • सांप्रदायिक मुद्दों को हल करने वाले राजनीतिक संस्थानों और तंत्रों को सुदृढ़ करना या उनमें सुधार लाना।
    • सांप्रदायिक हिंसा की निगरानी या जाँच करने वाले स्वतंत्र या निष्पक्ष निकायों या एजेंसियों की स्थापना और उनका सशक्तीकरण। 
    • शासन में पारदर्शिता, ज़िम्मेदारी, जवाबदेही और समावेशिता को बढ़ावा देना।
  • शैक्षिक सुधार: 
    • पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों का विकास या संशोधन जो विभिन्न समुदायों के बीच शांति, सहिष्णुता, सम्मान और विविधता की संस्कृति को बढ़ावा देते हों। 
    • सांप्रदायिक सद्भाव और सह-अस्तित्व पर शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों, मीडिया आदि का प्रशिक्षण या संवेदीकरण। अंतर-सामुदायिक संवाद और आदान-प्रदान के अवसरों का निर्माण या विस्तार करना।
  • सामाजिक सुधार: 
    • विभिन्न समुदायों के बीच सामाजिक पूंजी और विश्वास का निर्माण या पुनर्निर्माण करना। सांप्रदायिक सद्भाव और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिये गैर-सरकारी संगठनों, धार्मिक नेताओं, महिला समूहों, युवा समूहों आदि नागरिक समाज के अभिकर्ताओं की लामबंदी या भागीदारी।
    • भारत के समाज और संस्कृति में विभिन्न समुदायों के योगदान एवं उपलब्धियों को चिह्नित करना या उनके प्रति सम्मान-भाव प्रकट करना।
  • आर्थिक उपाय: 
    • विभिन्न समुदायों के बीच आर्थिक स्थितियों और अवसरों का सुधार या पुनर्वितरण।
    • हाशिये पर स्थित समूहों के बीच गरीबी, असमानता, भेदभाव आदि का उन्मूलन करना।
    • विभिन्न समुदायों के बीच आर्थिक सहयोग और सहकार्यता को सुगम बनाना या उन्हें एकीकृत करना।
  • सांस्कृतिक उपाय: 
    • भारत में सांस्कृतिक विविधता और बहुलवाद का संरक्षण या पुनर्स्थापना। विभिन्न समुदायों की सांस्कृतिक विरासत और पवित्र स्थलों का संरक्षण या संवर्द्धन। 
    • विभिन्न समुदायों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और नवाचार को प्रोत्साहन देना या उनकी सराहना करना।
  • समुदाय की संलग्नता: 
    • स्थानीय सामुदायिक नेता, धार्मिक हस्तियाँ और नागरिक समाज संगठन अंतर-धार्मिक संवाद एवं समझ को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
    • ज़मीनी स्तर के प्रयास धार्मिक मतभेदों से परे संबंधों को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • मीडिया की ज़िम्मेदारी: 
    • मीडिया आउटलेट्स की ज़िम्मेदारी है कि वे सांप्रदायिक तनाव को भड़काने वाले सनसनीखेज और पक्षपातपूर्ण कवरेज से बचते हुए निष्पक्षता और उत्तरदायित्व से रिपोर्टिंग करें। 

आगे की राह: 

  • सामाजिक संसंजन या एकता को बढ़ावा देना: 
    • धार्मिक संबद्धताओं से परे एक मज़बूत राष्ट्रीय पहचान के निर्माण की दिशा में प्रयास किये जाने चाहिये।
    • सांस्कृतिक विविधता का उत्सव मनाने और एकता की भावना को बढ़ावा देने से सांप्रदायिक विभाजन को दूर करने में मदद मिल सकती है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण: 
    • अवसरों तक समान पहुँच सुनिश्चित करने वाली नीतियों के माध्यम से आर्थिक असमानताओं को हल करने से वंचना या हाशिये पर स्थित होने की भावनाओं को कम किया जा सकता है और अधिक समावेशी समाज का निर्माण किया जा सकता है।
  • युवा संलग्नता: 

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