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विश्व हाथी दिवस के अवसर पर हाथियों के संरक्षण का क्या महत्त्व है? - श्रीनारद मीडिया

विश्व हाथी दिवस के अवसर पर हाथियों के संरक्षण का क्या महत्त्व है?

विश्व हाथी दिवस के अवसर पर हाथियों के संरक्षण का क्या महत्त्व है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विश्व हाथी दिवस के अवसर पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन तथा श्रम एवं रोज़गार मंत्री ने भारत में हाथियों के संरक्षण की दिशा में की गई विभिन्न पहलों तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।

विश्व हाथी दिवस:

  • परिचय:
    • 12 अगस्त को विश्व स्तर पर मनाया जाने वाला विश्व हाथी दिवस एक विशिष्ट उत्सव है, जिसका उद्देश्य हाथियों से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनकी सुरक्षा तथा संरक्षण की दिशा में कार्य करना है।
    • यह दिवस हाथियों के आवास स्थल की क्षति, हाथी दाँत के अवैध व्यापार, मानव-हाथी संघर्ष तथा संवर्द्धित संरक्षण प्रयासों की अनिवार्यता के साथ-साथ हाथियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं के समाधान पर ज़ोर देने के लिये एक एकीकृत मंच प्रदान करता है।
  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • विश्व हाथी दिवस अभियान की शुरुआत वर्ष 2012 में अफ्रीकी और एशियाई हाथियों को लेकर चिंता उत्पन्न करने वाली स्थितियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये की गई थी।
      • इस अभियान का उद्देश्य पशुओं हेतु एक शोषणमुक्त और उचित देखभाल हेतु एक स्थायी वातावरण का निर्माण करना है।
    • विश्व हाथी दिवस की परिकल्पना एलीफेंट रीइंट्रोडक्शन फाउंडेशन और फिल्म निर्माता पेट्रीसिया सिम्स एवं माइकल क्लार्क द्वारा की गई थी तथा आधिकारिक तौर पर वर्ष 2012 में इसकी शुरुआत की गई।
      • पेट्रीसिया सिम्स ने वर्ष 2012 में वर्ल्ड एलीफेंट सोसाइटी नामक एक संगठन की स्थापना की।
        • यह संगठन हाथियों के सामने आने वाले खतरों और विश्व स्तर पर उनकी सुरक्षा की अनिवार्यता के बारे में जागरूकता पैदा करने का कार्य करता है।

हाथियों से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • हाथी भारत का प्राकृतिक विरासत पशु है।
    • हाथियों का संबंध “कीस्टोन प्रजाति” से है, वे वन पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन और स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • हाथियों की असाधारण बुद्धिमत्ता उनकी सबसे प्रमुख विशेषता है, इनका मस्तिष्क स्थल पर पाए जाने वाले किसी भी पशु के मस्तिष्क के आकार की तुलना में सबसे बड़ा होता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान और महत्त्व:
    • हाथी भोजन की खोज में काफी दूर तक विचरण करने के मामले में सबसे अग्रणी हैं, वे प्रतिदिन बड़ी मात्रा में वनस्पतियों को खाते हैं और इनके इस विचरण की प्रक्रिया में वनस्पतीय पादपों के बीज भी इधर-उधर फैलते जाते हैं।
      • उदाहरण के लिये हाथी जहाँ-जहाँ से गुज़रते हैं वहाँ पेड़ों के बीच साफ जगह और खाली स्थान बनता जाता है जिससे सूरज की रोशनी नए पौधों तक पहुँचती है जो पौधों के बढ़ने तथा जंगल के प्राकृतिक रूप से विकसित होने में मदद करती है।
    • एशियाई क्षेत्र की घनी वनस्पति को आकार देने में भी हाथियों का बड़ा योगदान है।
    • सतह पर जल न मिलने पर हाथी जल की तलाश में निकल पड़ते हैं, इससे उनके साथ-साथ अन्य प्राणियों के लिये भी जल की खोज आसान हो जाती है।
  • भारत में हाथी:
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट की वर्ष 2017 की गणना के अनुसार, भारत में सबसे अधिक जंगली एशियाई हाथी पाए जाते हैं, जिनकी अनुमानित संख्या 29,964 है।
      • यह इस प्रजाति की वैश्विक आबादी का लगभग 60% है।
    • कर्नाटक में हाथियों की संख्या सबसे अधिक है, इसके बाद असम और केरल का स्थान है।
  • संरक्षण स्थिति:
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट:
      • अफ्रीकी वन हाथी (लोक्सोडोंटा साइक्लोटिस)- गंभीर रूप से लुप्तप्राय
      • अफ्रीकी सवाना हाथी (लोक्सोडोंटा अफ़्रीकाना)- लुप्तप्राय
      • एशियाई हाथी (एलिफस मैक्सिमस)- लुप्तप्राय
    • प्रवासी प्रजातियों का सम्मेलन (CMS):
      • अफ्रीकी वन हाथी: परिशिष्ट II
      • एशियाई हाथी: परिशिष्ट I
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
    • वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES):
      • अफ्रीकी सवाना हाथी: परिशिष्ट II
      • एशियाई हाथी: परिशिष्ट I

हाथियों के संरक्षण की दिशा में भारत की पहलें और उपलब्धियाँ:

  • हाथी-मानव संघर्ष का समाधान करना:
    • संघर्षों को कम करने के लिये 40 से अधिक हाथी गलियारों और 88 वन्यजीव क्रॉसिंग की स्थापना।
    • 17,000 वर्ग किमी. से अधिक के संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास बफर ज़ोन का निर्माण।
  • हाथी परियोजना:
    • यह परियोजना वर्ष 1992 में शुरू की गई, जिसमें संपूर्ण भारत के 23 राज्य शामिल थे।
    • इससे जंगली हाथियों की स्थिति में सुधार हुआ, इनकी संख्या वर्ष 1992 के लगभग 25,000 से बढ़कर वर्ष 2021 में लगभग 30,000 हो गई।
  • हाथी अभयारण्य:
    • लगभग 80,777 वर्ग किमी. में 33 हाथी अभयारण्य की स्थापना।
    • ये अभयारण्य जंगली हाथियों की आबादी और उनके आवासों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • मानव-हाथी संघर्ष का प्रबंधन:
    • संघर्ष की स्थितियों से निपटने के लिये विभिन्न राज्यों में त्वरित प्रतिक्रिया टीमें तैनात की गईं।
    • मानव-हाथी संघर्ष की घटनाओं में कमी लाने के लिये पर्यावरण-अनुकूल उपायों के कार्यान्वयन हेतु देश में हाथियों के निवास स्थान से गुज़रने वाले रेलवे नेटवर्क के लगभग 110 महत्त्वपूर्ण हिस्सों की पहचान की गई है।
      • इन स्थानों पर अंडरपास का निर्माण, टकराव से बचने हेतु लोको पायलटों के लिये दृश्यता बढ़ाने हेतु पटरियों के किनारे की वनस्पति को साफ करना, रैंप की व्यवस्था करना और अन्य उपाय किये जाएंगे।
  • सामुदायिक भागीदारी और सशक्तीकरण:
    • हाथी संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये गज यात्रा कार्यक्रम और गज शिल्पी पहल में लोगों को शामिल किया गया।
  • अनुकरणीय प्रयासों को मान्यता:
    • गज गौरव सम्मान हाथी संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये व्यक्तियों और संगठनों को पुरस्कृत किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौते और प्रोटोकॉल:
    • CITES के अंतर्गत कॉन्फ्रेंस ऑफ  पार्टीज़  जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भागीदारी।
    • हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (MIKE) कार्यक्रम– माइक कार्यक्रम की स्थापना CITES द्वारा वर्ष 1997 में पार्टियों के दसवें सम्मेलन में अपनाए गए संकल्प 10.10 द्वारा की गई थी।
  • MIKE कार्यक्रम दक्षिण एशिया में वर्ष 2003 में निम्नलिखित उद्देश्य के साथ  शुरू किया गया:
    • हाथी रेंज वाले राज्यों को उचित प्रबंधन और प्रवर्तन निर्णय लेने के लिये आवश्यक जानकारी प्रदान करना तथा हाथी आबादी के दीर्घकालिक प्रबंधन के लिये रेंज राज्यों के भीतर संस्थागत क्षमता का निर्माण करना।
  • भारत में MIKE साइट्स:
    • चिरांग-रिपु हाथी अभयारण्य (असम)
    • देवमाली हाथी अभयारण्य (अरुणाचल प्रदेश)
    • दिहिंग पटकाई हाथी अभयारण्य (असम)
    • गारो हिल्स हाथी अभयारण्य (मेघालय)
    • पूर्वी डुआर्स हाथी अभयारण्य (पश्चिम बंगाल)
    • मयूरभंज हाथी अभयारण्य (ओडिशा)
    • शिवालिक हाथी अभयारण्य (उत्तराखंड)
    • मैसूर हाथी अभयारण्य (कर्नाटक)
    • नीलगिरि हाथी अभयारण्य (तमिलनाडु)
    • वायनाड हाथी अभयारण्य (केरल)
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