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भारत के पक्षियों की स्थिति रिपोर्ट 2023 क्यों महत्वपूर्ण है?

भारत के पक्षियों की स्थिति रिपोर्ट 2023 क्यों महत्वपूर्ण है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स (State of India’s Birds- SoIB), अर्थात् भारत पक्षी स्थिति रिपोर्ट 2023 जारी की गई है, इसमें कुछ पक्षी प्रजातियों के अच्छे तरह विकसित होने और कई पक्षी प्रजातियों में पर्याप्त गिरावट को दर्शाया गया है।

  • SoIB 2023 बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS), वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) और ज़ूलॉज़िकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) सहित 13 सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों का अपनी तरह का पहला सहयोगात्मक प्रयास है। उक्त संगठनों व निकायों के साथ  वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI), वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (WWF-इंडिया) आदि भारत में नियमित रूप से पाए जाने वाली पक्षी प्रजातियों की समग्र संरक्षण स्थिति का मूल्यांकन करते हैं।
  • यह रिपोर्ट लगभग 30,000 पक्षी विज्ञानियों द्वारा एकत्र किये गए आँकड़ों पर आधारित है।
  • इस रिपोर्ट में पक्षियों की आबादी का आकलन करने के लिये तीन प्राथमिक सूचकांकों को आधार बनाया गया है:
    • दीर्घकालिक रुझान (30 वर्षों में परिवर्तन)
    • वर्तमान वार्षिक प्रवृत्ति (पिछले सात वर्षों में परिवर्तन)
    • भारतीय वितरण क्षेत्र का आकार
      • 942 पक्षी प्रजातियों के मूल्यांकन से पता चला है कि उनमें से कई प्रजातियों में सटीक दीर्घकालिक या अल्पकालिक रुझान निर्धारित नहीं किये जा सके हैं
  • स्थिति:
    • चिह्नित दीर्घकालिक रुझानों वाली 338 प्रजातियों में से 60% प्रजातियों में गिरावट देखी गई है, 29% प्रजातियाँ स्थिर हैं तथा 11% में वृद्धि देखी गई है।
    • निर्धारित वर्तमान वार्षिक रुझान वाली 359 प्रजातियों में से 39% घट रही हैं, 18% तेज़ी से घट रही हैं, 53% स्थिर हैं और 8% बढ़ रही हैं।
  • सकारात्मक रुझान: पक्षियों की प्रजातियों में वृद्धि:
    • सामान्य गिरावट के बावजूद कुछ पक्षी प्रजातियों में कुछ सकारात्मक रुझान देखे गए हैं।
    • उदाहरण के लिये भारतीय मोर जो भारत का राष्ट्रीय पक्षी है, बहुतायत और विस्तार दोनों मामले में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है।
      • इस प्रजाति ने अपनी सीमा को नए प्राकृतिक वास में विस्तारित किया है, जिनमें उच्च तुंग वाले हिमालयी क्षेत्र और पश्चिमी घाट के वर्षावन शामिल हैं।
    • एशियन कोयल, हाउस क्रो, रॉक पिजन और एलेक्जेंड्रिन पैराकीट (Alexandrine Parakeet) को भी उन प्रजातियों के रूप में उजागर किया गया है जिन्होंने वर्ष 2000 के बाद से उल्लेखनीय वृद्धि की है।
  • विशिष्ट पक्षी प्रजाति:
    • पक्षी प्रजातियाँ जो “विशिष्ट” हैं- आर्द्रभूमि, वर्षावनों और घास के मैदानों जैसे संकीर्ण आवासों तक ही सीमित हैं, जबकि इन प्रजातियों के विपरीत वृक्षारोपण और कृषि क्षेत्रों जैसे व्यापक आवासों में निवास करने वाली प्रजातियाँ तेज़ी से घट रही हैं।
    • “सामान्य पक्षी प्रजाति” जो कई प्रकार के आवासों में रहने में सक्षम हैं, एक समूह के रूप में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
      • “हालाँकि, विशिष्ट प्रजाति के पक्षियों को सामान्य प्रजाति के पक्षियों की तुलना में अधिक खतरा है।
      • घास के मैदानों में वास करने वाले विशेष पक्षियों में 50% से अधिक की गिरावट आई है।
    • वनों में वास करने वाले पक्षियों में भी सामान्य पक्षियों  की तुलना में अधिक गिरावट आई है, जो प्राकृतिक वन आवासों को संरक्षित करने की आवश्यकता को दर्शाता है ताकि वे विशिष्ट प्रजाति के पक्षियों को को आवास प्रदान कर सकें।
  • प्रवासी और निवासी पक्षी:
    • प्रवासी पक्षियों, विशेष रूप से यूरेशिया और आर्कटिक से लंबी दूरी के प्रवासी पक्षियों में 50% से अधिक की सार्थक कमी देखी गई है, साथ ही कम दूरी के प्रवासी पक्षियों की संख्या में भी कमी आई है।
    • आर्कटिक में प्रजनन करने वाले तटीय पक्षी विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, जिनमें लगभग 80% की कमी आई है।
    • इसके विपरीत एक समूह के रूप में निवासी प्रजाति पक्षी अधिक स्थिर बने हुए हैं।
  • पक्षियों के आहार और संख्या में गिरावट का पैटर्न:
    • पक्षियों की आहार संबंधी आवश्यकताओं में भी प्रचुरता देखी गई है। कशेरुक और मांसाहार खाने वाले पक्षियों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट आई है।
      • डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) से दूषित शवों को खाने से गिद्ध लगभग विलुप्त होने की अवस्था में थे।
    • सफेद पूँछ वाले गिद्धों, भारतीय गिद्धों और लाल सिर वाले गिद्धों को सबसे अधिक दीर्घकालिक गिरावट (क्रमशः 98%, 95% और 91%) का सामना करना पड़ा है।
  • स्थानिक पक्षियों और जलपक्षियों की आबादी में गिरावट:
    • पश्चिमी घाट और श्रीलंका जैवविविधता हॉटस्पॉट के लिये अद्वितीय स्थानिक प्रजातियों में तेज़ी से गिरावट आई है।
      • भारत की 232 स्थानिक प्रजातियों में से कई प्रजातियों का आवास स्थान वर्षावन हैं और उनकी गिरावट आवास संरक्षण के बारे में चिंता पैदा करती है।
    • बत्तख, निवासी और प्रवासी दोनों की संख्या कम हो रही है, बेयर पोचार्ड, कॉमन पोचार्ड और अंडमान टील जैसी कुछ प्रजातियाँ विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
    • नदियों पर कई प्रकार के दबावों के कारण नदी के किनारे रेतीले घोंसले बनाने वाले पक्षियों की संख्या में भी गिरावट आक रही है। 
  • प्रमुख खतरे:
    • रिपोर्ट में वन क्षरण, शहरीकरण और ऊर्जा अवसंरचना सहित कई प्रमुख खतरों पर प्रकाश डाला गया है, जिनका सामना देश भर में पक्षी प्रजातियों को करना पड़ रहा है।
    • निमेसुलाइड जैसी पशु चिकित्सा दवाओं सहित पर्यावरण प्रदूषक अभी भी भारत में गिद्ध आबादी के लिये खतरा हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव (जैसे प्रवासी प्रजातियों पर) पक्षी रोग और अवैध शिकार तथा व्यापार भी प्रमुख खतरों में से हैं।
  • अन्य प्रजातियाँ:
    • लंबी अवधि में सारस क्रेन की आबादी में तेज़ी से गिरावट आई है और यह जारी है।
    • कठफोड़वा की 11 प्रजातियों, जिनके लिये स्पष्ट दीर्घकालिक रुझान प्राप्त किये जा सकते हैं, में से  सात स्थिर दिखाई देती हैं, जबकि दो की आबादी घट रही हैं, और दो के मामले में तेज़ी से गिरावट आ रही है।
      • पीले मुकुट वाले कठफोड़वा (Yellow-Crowned Woodpecker), जो व्यापक रूप से काँटेदार और झाड़ियों वाले जंगलों में रहते हैं, की संख्या में पिछले तीन दशकों में 70% से अधिक की गिरावट आई है।
    • जबकि विश्व भर में सभी बस्टर्ड में से आधे खतरे में हैं, भारत में प्रजनन करने वाली तीन प्रजातियाँ- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरिकन और बंगाल फ्लोरिकन सबसे अधिक असुरक्षित पाई गई हैं।

सिफारिशें:

  • पक्षियों के विशिष्ट समूहों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये रिपोर्ट में पाया गया कि घास के मैदान संबंधी विशिष्ट प्रजातियों की संख्या में 50% से अधिक की गिरावट आई है, जो घास के मैदान के पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और रखरखाव के महत्त्व को दर्शाता है।
  • पक्षियों की आबादी में छोटे पैमाने पर होने वाले बदलावों को समझने के लिये लंबे समय तक पक्षियों की आबादी की व्यवस्थित निगरानी करना महत्त्वपूर्ण है।
  • गिरावट या वृद्धि के पीछे के कारणों को समझने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता स्पष्ट होती जा रही है।
  • रिपोर्ट के निष्कर्ष पक्षियों की आबादी में गिरावट को रोकने और एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने के लिये आवास संरक्षण, प्रदूषण को संबोधित करने तथा पक्षियों की आहार आवश्यकताओं को समझने के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों की व्यवहार्य आबादी सुनिश्चित करने के लिये संभावित कदम: 

  • पर्यावास संरक्षण और पुनरुद्धार:
    • जंगलों, आर्द्रभूमियों, घास के मैदानों और तटीय क्षेत्रों जैसे प्राकृतिक आवासों की रक्षा तथा संरक्षण करना, जो पक्षियों के घोंसले, भोजन एवं प्रजनन के लिये आवश्यक हैं।
    • देशी वनस्पति लगाकर और पक्षियों की आबादी के लिये खतरा पैदा करने वाली आक्रामक प्रजातियों को हटाकर नष्ट हुए आवासों को पुनर्स्थापित करना।
  • संरक्षित क्षेत्र और रिज़र्व:
    • संरक्षित क्षेत्रों और वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना व प्रबंधन करना जहाँ पक्षी मानवीय हस्तक्षेप के बिना रह सकें।
    • इन क्षेत्रों में आवास विनाश और गड़बड़ी को रोकने के लिये नियम और दिशा-निर्देश लागू करना।
  • प्रदूषण कम करना:
    • वायु और जल प्रदूषण सहित प्रदूषण स्रोतों को नियंत्रित करना, जो पक्षियों की आबादी को सीधे या उनके खाद्य स्रोतों के संदूषण के माध्यम से नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण को कम करने के लिये स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देना।
  • जलवायु परिवर्तन को कम करना:
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके और टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन का समाधान करना।
    • आवास गलियारों का समर्थन करना जो पक्षियों को स्थानांतरित करने और बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने की अनुमति देते हैं।
  • मानवीय हस्तक्षेप को सीमित करना:
    • घोंसले बनाने और भोजन प्रदान करने वाली जगहों पर विशेष रूप से प्रजनन के मौसम के दौरान गड़बड़ी को कम करने के महत्त्व के बारे में जनता को शिक्षित करना।
    • मानवीय हस्तक्षेप को कम करने के लिये संवेदनशील पक्षी आवासों के आसपास बफर ज़ोन स्थापित करना।

विभिन्न पक्षी प्रजातियों की सुरक्षा के लिये किये गए उपाय:

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