चीन द्वारा जारी मानक मानचित्र का क्या तात्पर्य है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

चीन की सरकार ने हाल ही में विवादित क्षेत्रों पर अपने क्षेत्रीय दावों की पुष्टि करते हुए “स्टैंडर्ड मैप ऑफ चाइना’ का 2023 संस्करण जारी किया।

  • यह मानचित्र चीन के “राष्ट्रीय मानचित्रण जागरूकता प्रचार सप्ताह” के अनुरूप है, जो सटीक और सुसंगत मानचित्रण के महत्त्व पर ज़ोर देता है।

नए मानचित्र में क्या हैं चीनी दावे?

  • क्षेत्रीय दावे:
    • मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन के हिस्से के रूप में दर्शाया गया है।
      • ये दावे लंबे समय से चीन और भारत के बीच विवाद का मुद्दा रहे हैं।
    • मानचित्र में “नाइन-डैश लाइन” भी शामिल है, जो एक विवादास्पद सीमांकन है, यह पूरे दक्षिण चीन सागर को कवर करती है और इस रणनीतिक समुद्री क्षेत्र पर बीजिंग के दावों को रेखांकित करती है।
    • मानचित्र में दसवीं-डैश लाइन को भी दर्शाया गया है जो ताइवान द्वीप पर बीजिंग के दावों को रेखांकित करती है।
  • स्थानों का नाम बदलना:
    • चीन का नया मानचित्र जारी करना उसकी पिछली कार्रवाइयों के अनुरूप है, जैसे कि अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नामों को मानकीकृत करना, जिसमें राज्य की राजधानी के करीब के क्षेत्र भी शामिल हैं।
  • डिजिटल मैपिंग:
    • भौतिक मानचित्र के अलावा चीन स्थान-आधारित सेवाओं, सटीक कृषि, प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था और इंटेलिजेंट कनेक्टेड व्हीकल सहित विभिन्न अनुप्रयोगों हेतु डिजिटल मानचित्र जारी करने के लिये तैयार है।

भारत-चीन के बीच सीमा विवाद का मुद्दा

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत-चीन सीमा विवाद 3,488 किलोमीटर की साझा सीमा पर लंबे समय से चले आ रहे और जटिल क्षेत्रीय विवादों को संदर्भित करता है।
    • विवाद के मुख्य क्षेत्र पश्चिमी क्षेत्र में स्थित अक्साई चिन और पूर्वी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश हैं।
      • अक्साई चिन: चीन, अक्साई चिन को अपने शिनजियांग क्षेत्र के हिस्से के रूप में दावा करता है, जबकि भारत इसे अपने केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा मानता है। यह क्षेत्र चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के निकट होने और सैन्य मार्ग के रूप में इसकी क्षमता के कारण रणनीतिक महत्त्व रखता है।
      • अरुणाचल प्रदेश: चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश राज्य पर दावा करता है और इसे “दक्षिण तिब्बत” कहता है। भारत इस क्षेत्र को पूर्वोत्तर राज्य के रूप में प्रशासित करता है तथा अपने क्षेत्र का अभिन्न अंग मानता है।
  • कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं: भारत और चीन के बीच सीमा स्पष्ट रूप से सीमांकित नहीं है और कुछ हिस्सों पर कोई पारस्परिक रूप से सहमत वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) नहीं है।
    • 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद LAC अस्तित्व में आई।
    • भारत-चीन सीमा को तीन सेक्टरों में बाँटा गया है।
      • पश्चिमी क्षेत्र: लद्दाख
      • मध्य क्षेत्र: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
      • पूर्वी क्षेत्र: अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम

  • सैन्य गतिरोध:
    • 1962 का भारत-चीन युद्ध: सीमा विवाद के कारण कई सैन्य गतिरोध और झड़पें हुईं, जिनमें 1962 का भारत-चीन युद्ध भी शामिल है। दोनों देशों ने सीमा पर शांति बनाए रखने के उद्देश्य से विभिन्न समझौतों और प्रोटोकॉल के साथ तनाव को प्रबंधित करने के प्रयास किये हैं।
    • हालिया झड़पें: संघर्ष की सबसे गंभीर हालिया घटनाएँ वर्ष 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी और वर्ष 2022 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुई थीं।
      • पर्यवेक्षक इस बात से सहमत हैं कि सीमा के दोनों ओर वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर वर्ष 2013 के बाद से गंभीर सैन्य टकराव की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

सीमा विवाद निपटान तंत्र:

  • वर्ष 1914 का शिमला समझौता: तिब्बत और पूर्वोत्तर भारत के बीच सीमा का सीमांकन करने के लिये वर्ष 1914 में शिमला में तीनों- तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था।
    • चर्चा के बाद समझौते पर ब्रिटिश भारत और तिब्बत द्वारा हस्ताक्षर किये गए जबकि चीनी अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षर नहीं किये गए। वर्तमान में भारत इसे मान्यता देता है लेकिन चीन ने शिमला समझौते और मैकमोहन रेखा दोनों को अस्वीकार कर दिया है।
  • वर्ष 1954 का पंचशील समझौता: पंचशील सिद्धांत ने स्पष्ट रूप से ‘एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने’ की इच्छा का संकेत दिया।
  • शांति और स्थिरता बनाए रखने पर समझौता:
    • इस पर वर्ष 1993 में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें बल के प्रयोग को त्यागने, LAC की मान्यता और बातचीत के माध्यम से सीमा मुद्दे के समाधान का आह्वान किया गया था।
  • LAC के सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली उपायों पर समझौता:
    • इस पर वर्ष 1996 में हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें LAC पर असहमति के समाधान के लिये गैर-आक्रामकता, बड़े सैन्य आंदोलनों की पूर्व सूचना और मानचित्रों के आदान-प्रदान करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी।
  • सीमा रक्षा सहयोग समझौता:
    • डेपसांग घाटी की घटना के बाद वर्ष 2013 में इस पर हस्ताक्षर किये गए थे।

चीन के नए मानचित्र का भारत पर प्रभाव:

  • प्रादेशिक दावा:
    • विवादित क्षेत्रों को अपने आधिकारिक मानचित्र में शामिल करके चीन अपने क्षेत्रीय दावों को मज़बूत कर रहा है, अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है और सीमा विवाद को बढ़ा रहा है।
  • राजनयिक तनाव:
    • चीन की हरकतों से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव पैदा हो सकता है। भारत ने लगातार चीन के क्षेत्रीय दावों को खारिज़ किया है और संभवतः अपने स्वयं के दावों की पुष्टि के साथ जवाब देगा।
  • द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव:
    • यह भारत-चीन संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है, जिससे व्यापार, निवेश और लोगों के बीच आदान-प्रदान सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग प्रभावित हो सकता है।
  • क्षेत्रीय संतुलन:
    • सीमा विवाद का व्यापक क्षेत्रीय शक्ति संतुलन पर प्रभाव पड़ता है। यह चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये अन्य देशों और क्षेत्रीय समूहों के साथ भारत के रणनीतिक संरेखण को प्रभावित कर सकता है।

भारत को चीन की प्रादेशिक और क्षेत्रीय मुखरता से कैसे निपटना चाहिये?

  • कूटनीति और संवाद:
    • भारत-चीन सीमा मामलों पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता और परामर्श एवं समन्वय कार्य तंत्र (WMCC) जैसे स्थापित तंत्रों के माध्यम से चीन के साथ राजनयिक वार्ता में संलग्न रहने की आवश्यकता है।
    • शांतिपूर्ण समाधान, द्विपक्षीय समझौतों का पालन और सीमा पर शांति तथा स्थिरता बनाए रखने के महत्त्व पर ज़ोर देना चाहिये।
  • सीमा पर अवसंरचना की मज़बूत करना:
    • भारतीय बलों के लिये गतिशीलता और प्रतिक्रिया क्षमताओं को बढ़ाने के लिये सड़कों, पुलों, हवाई पट्टियों और संचार नेटवर्क सहित सीमा अवसंरचना में बेहतरी के लिये निवेश करना चाहिये।
    • सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों और आपूर्ति की तेज़ी से तैनाती सुनिश्चित करने के लिये लॉजिस्टिक्स हब एवं अग्रवर्ती अड्‍डा (Forward Base) विकसित करना चाहिये।
  • सैन्य तैयारी बढ़ाना:
    • सीमा क्षेत्र में प्रभावी ढंग से निगरानी करने और किसी भी घटना को लेकर प्रतिक्रिया देने के लिये उन्नत उपकरणों, प्रौद्योगिकी और निगरानी क्षमताओं में निवेश करना चाहिये ताकि सशस्त्र बलों को मज़बूत बनाया जा सके
    • सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के प्रशिक्षण और तत्परता को बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • क्षेत्रीय एवं वैश्विक भागीदारी:
    • समान विचारधारा वाले उन देशों और क्षेत्रीय संगठनों के साथ साझेदारी को दृढ़ करना चाहिये जो क्षेत्रीय विवादों में चीन की मुखरता के बारे में चिंता साझा करते हैं।
    • गुप्त जानकारी साझा करने, संयुक्त सैन्य अभ्यास और क्षेत्रीय चुनौतियों को लेकर समन्वित प्रतिक्रियाओं पर सहयोग करना चाहिये।
  • आर्थिक एवं व्यापारिक उपाय:
    • चीन पर निर्भरता कम करने और आर्थिक लचीलापन बढ़ाने के लिये आर्थिक क्षेत्र में विविधता लानी चाहिये।
    • उन देशों के साथ व्यापार समझौतों और साझेदारी के बारे का पता लगाना चाहिये जो वैकल्पिक बाज़ार एवं निवेश के अवसर प्रदान कर सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंच:
    • अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों और सिद्धांतों पर आधारित शांतिपूर्ण समाधान के लिये समर्थन जुटाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सीमा मुद्दों को उठाना चाहिये।
    • क्षेत्रीय अखंडता और विवाद समाधान तंत्र से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों एवं सिद्धांतों को कायम रखना चाहिये।
    • सीमा मुद्दे पर भारत का पक्ष प्रस्तुत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानूनी विशेषज्ञों के साथ जुड़ाव जारी रखना चाहिये।

निष्कर्ष:

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