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भारतीय अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय घाटे का क्या प्रभाव है? - श्रीनारद मीडिया

भारतीय अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय घाटे का क्या प्रभाव है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

2023-24 के शुरूआती चार महीनों में केंद्र का राजकोषीय घाटा पूरे वर्ष के लक्ष्य के 33.9% तक पहुँच गया।

  • केंद्रीय बजट में, सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 5.9% तक लाने का अनुमान व्यक्त किया है।
  • वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.4% था जबकि पहले इसका अनुमान 6.71% व्यक्त किया गया था।

राजकोषीय घाटा:

  • परिचय: 
    • राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और उसके कुल राजस्व (उधार को छोड़कर) के बीच का अंतर है।
    • यह एक संकेतक है जो दर्शाता है कि सरकार को अपने कार्यों को वित्तपोषित करने के लिये किस सीमा तक उधार लेना चाहिये और इसे देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • उच्च और निम्न FD: 
    • उच्च राजकोषीय घाटे से मुद्रास्फीतिमुद्रा का अवमूल्यन और ऋण बोझ में वृद्धि हो सकती है।
    • जबकि निम्न राजकोषीय घाटे को राजकोषीय अनुशासन और स्वस्थ अर्थव्यवस्था के सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जाता है।
  • राजकोषीय घाटे के सकारात्मक पहलू:
    • सरकारी व्यय में वृद्धि: राजकोषीय घाटा सरकार को सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचे और अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर व्यय बढ़ाने में सक्षम बनाता है जो आर्थिक विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
    • सार्वजनिक निवेश का वित्तपोषण: सरकार राजकोषीय घाटे के माध्यम से बुनियादी ढाँचा/अवसंरचनात्मक परियोजनाओं जैसे दीर्घकालिक निवेश का वित्तपोषण कर सकती है।
    • रोज़गार सृजन: सरकारी व्यय बढ़ने से रोज़गार सृजन हो सकता है, जो बेरोज़गारी को कम करने तथा जीवन स्तर को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
  • राजकोषीय घाटे के नकारात्मक पहलू:
    • बढे हुए कर्ज़ का बोझ: लगातार उच्च राजकोषीय घाटा सरकारी ऋण में वृद्धि को दर्शाता है, जो भविष्य की पीढ़ियों पर कर्ज़ चुकाने का दबाव डालता है।
    • मुद्रास्फीति का दबाव: बड़े राजकोषीय घाटे से धन की आपूर्ति में वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे सामान्य जन की क्रय शक्ति क्षमता कम हो जाती है।
    • निजी निवेश में कमी: सरकार को राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये भारी उधार लेना पड़ सकता है, जिससे ब्याज दरों में वृद्धि हो सकती है और निजी क्षेत्र के लिये ऋण प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है, इस प्रकार निजी निवेश बाहर हो सकता है।
    • भुगतान संतुलन की समस्या: यदि कोई देश बड़े राजकोषीय घाटे की स्थिति से गुज़र रहा है, तो उसे विदेशी स्रोतों से उधार लेना पड़ सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ सकती है और भुगतान संतुलन पर दबाव पड़ सकता है।
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