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राष्ट्रपति मुर्मू और पीएम मोदी ने देशवासियों को कृष्ण जन्मोत्सव की बधाई दी - श्रीनारद मीडिया

राष्ट्रपति मुर्मू और पीएम मोदी ने देशवासियों को कृष्ण जन्मोत्सव की बधाई दी

राष्ट्रपति मुर्मू और पीएम मोदी ने देशवासियों को कृष्ण जन्मोत्सव की बधाई दी

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पूरे देश में जन्माष्टमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिए भक्त सुबह से ही लाइनों में लगे हुए हैं। कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा से लेकर देशभर के इस्कॉन मंदिरों में ठाकुर जी की मंगला और तुलसी आरती शुरू हो गई है। इस बीच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देशवासियों को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं दी हैं।

उन्होंने एक्स पर ट्वीट करके कहा, “मैं सभी देशवासियों को जन्माष्टमी के पावन पर्व की बधाई देती हूं। जन्माष्टमी का त्योहार हमें भगवान श्रीकृष्ण के गीता के उपदेश को समझने, अमल में लाने और निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देता है। भगवान श्रीकृष्ण ने पूरी मानवता को धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। आइए, इस शुभ अवसर पर हम जन-कल्याण की भावना के साथ आगे बढ़ें और अपने समाज और राष्ट्र को समृद्ध बनाएं।”

पीएम मोदी ने बधाई दी

इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देशवासियों को जन्माष्टमी की बधाई दी है। उन्होंने एक्स पर कहा, “जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई। श्रद्धा और भक्ति का यह पावन अवसर मेरे सभी परिवारजनों के जीवन में नई ऊर्जा और नए उत्साह का संचार करे, यही कामना है। जय श्रीकृष्ण!”

कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; “सेंटर आफ ग्रेविटेशन’, कशिश का केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस पर सारी चीजें खिंचती हों। जो चुंबक का काम करे। प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है, क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्र है। वह “सेंटर आफ ग्रेविटेशन’ है जिस पर सब चीजें खिंचती हैं और आकृष्ट होती हैं।

शरीर खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है, परिवार खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है, समाज खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है, जगत खिंचकर उसके आसपास निर्मित होता है। वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्र है, आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आसपास सब घटित होता है। तो जब भी कोई व्यक्ति जन्मता है, एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है। वह जो बिंदु है आत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है, और उसके बाद सब चीजें उसके आसपास निर्मित होनी शुरू होती हैं। उस कृष्ण-बिंदु के आसपास “क्रिस्टलाइजेशन’ शुरू होता है और व्यक्तित्व निर्मित होते हैं। इसलिए कृष्ण का जन्म एक व्यक्ति-विशेष का जन्मपात्र नहीं है, बल्कि व्यक्तिमात्र का जन्म है।

अंधेरे का, कारागृह का, मृत्यु के भय का अर्थ है। लेकिन, हमने कृष्ण के साथ उसे क्यों जोड़ा होगा? मैं यह नहीं कह रहा हूं कि जो कृष्ण की जिंदगी में घटना घटी होगी कारागृह में वह नहीं घटी है। मैं यह भी नहीं कह रहा हूं कि वह बंधन में पैदा हुए होंगे, वे नहीं हुए हैं। मैं इतना ही कह रहा हूं कि वे बंधन में पैदा हुए हों या न हुए हों, वे कारागृह में जन्मे हों या न जन्मे हों, लेकिन कृष्ण जैसा व्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण के व्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जो कि प्रत्येक आत्मा के जन्म के साथ समाहित है।

ध्यान रहे, महापुरुषों की कथाएं जन्म की हमसे उल्टी चलती हैं। साधारण आदमी के जीवन की कथा जन्म से शुरू होती है और मृत्यु पर पूरी होती है। उसकी कथा में एक “सिक्वेंस’ होता है, जन्म से लेकर मृत्यु तक। महापुरुषों की कथाएं फिर से “रिट्रास्पेक्टिवली’ लिखी जाती हैं। महापुरुष पहचान में आते हैं बाद में। और उनकी जन्म की कथाएं फिर बाद में लिखी जाती हैं। कृष्ण जैसा आदमी जब हमें दिखाई पड़ता है तब तो पैदा होने के बहुत बाद दिखाई पड़ता है।

वर्षों बीत गए होते हैं उसे पैदा हुए। जब वह हमें दिखाई पड़ता है तब वह कोई चालीस-पचास साल की यात्रा कर चुका होता है। फिर इस महिमावान, इस अदभुत व्यक्ति के आसपास कथा निर्मित होती है। फिर हम चुनाव करते हैं इसकी जिंदगी का, फिर हम “रीइंटरप्रीट’ करते हैं, फिर से व्याख्याएं शुरू होती हैं। फिर से हम इसके पिछले जीवन में से घटनाएं चुनते हैं, घटनाओं का अर्थ देते हैं। इसलिए मैं आप से कहूं कि महापुरुषों की जिंदगी कभी भी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा काव्यात्मक हो जाती है। पीछे लौटकर निर्मित होती है।

पीछे लौटकर जब हम देखते हज तो हर चीज प्रतीक हो जाती है और दूसरे अर्थ ले लेती है। जो अर्थ घटित हुए क्षण में कभी भी न रहे होंगे। और फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों की जिंदगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी बार-बार लिखती है। हजारों लोग लिखते हैं। जब हजारों लोग लिखते हैं तो हजार व्याख्याएं होती चली जाती हैं।

फिर धीरे-धीरे कृष्ण की जिंदगी किसी व्यक्ति की जिंदगी नहीं रह जाती। कृष्ण एक संस्था हो जाते हैं, एक “इंस्टीटयूशन’ हो जाते हैं। फिर वे समस्त जन्मों के सारभूत हो जाते हैं। फिर मनुष्य मात्र के जन्म की कथा उनके जन्म की कथा हो जाती है। इसलिए व्यक्तिवाची अर्थों में मैं कोई मूल्य नहीं मानता हूं। कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति रह ही नहीं जाते। वे हमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे “कलेक्टिव माइंड’ के प्रतीक हो जाते हैं। और हमारे चित्त ने जितने भी जन्म देखे हैं वे सब उनमें समाहित हो जाते हैं।

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