क्या भाजपा को बिहार में नीतीश कुमार की मौजूदगी से मजबूती मिल सकती है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
नीतीश कुमार ना सिर्फ इस कार्यक्रम में शामिल हुए बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात की जो तस्वीरें आई हैं, उसमें दोनों नेता बेहद सहज दिखाई दे रहे हैं और ऐसा लग ही नहीं रहा है कि दोनों के रास्ते अलग-अलग है।
इंडिया गठबंधन में असहज
बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में असहज है? क्या नीतीश कुमार को वह भाव नहीं मिल रहा है जिसके वे हकदार हैं? इसमें कोई दो राय नहीं है कि नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास सबसे पहले शुरू किया। इसी कड़ी में उन्होंने पटना में बड़ी बैठक भी की। हालांकि, इसके बाद बेंगलुरु और मुंबई के बैठक में जो कुछ भी हुआ, उससे ऐसा लगा कि विपक्षी गठबंधन को कांग्रेस ने पूरी तरीके से हाईजैक कर लिया है। इंडिया नाम को लेकर भी नीतीश कुमार सहज नहीं थे। सूत्रों ने बताया कि उन्होंने इस पर अपनी सहमति नहीं दी थी। बावजूद इसके विपक्षी दलों की ओर से गठबंधन का नाम इंडिया रखा गया। बेंगलुरु बैठक के बाद नीतीश कुमार गठबंधन में तो है लेकिन खुद को अलग-थलग भी महसूस कर रहे हैं।
दिया संदेश
यही कारण है कि नीतीश कुमार ने रात्रि भोज में शामिल होकर इंडिया गठबंधन और खास करके कांग्रेस पर दबाव बनाने की शुरुआत कर दी है। नीतीश कुमार इस बात के संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके लिए अभी भी विकल्प खुले हुए हैं। ऐसा इसलिए माना जा सकता है क्योंकि इंडिया में होने के बावजूद भी जब द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बनी थीं, शपथ ग्रहण में शामिल नहीं हुए थे। इतना ही नहीं, रामनाथ कोविंद के विदाई के दौरान जो रात्रि भोज रखा गया था उसमें भी वह शामिल नहीं हुए थे। नीतीश उन कार्यक्रमों से पिछले 1 सालों से लगातार दूरी बनाकर रख रहे हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी होती थी। लेकिन जी-20 की बैठक के दौरान नीतीश कुमार की उपलब्धता ने कहीं ना कहीं विपक्षी दलों की बेचैनियों को बढ़ा सकता है।
लालू यादव से भी नहीं मिला सहयोग
नीतीश कुमार को लालू यादव से भी सहयोग की उम्मीद थी लेकिन अब उन्हें ऐसा लगता है कि लालू यादव और कांग्रेस ने आपस में मिलकर उनका खेल बिगाड़ दिया है। नीतीश कुमार इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि मुंबई में संयोजक का ऐलान हो सकता है। इसमें नीतीश कुमार का ही नाम सबसे आगे चल रहा था। हालांकि लालू यादव ने उससे पहले ही इस बात की घोषणा कर दी कि विपक्षी गठबंधन में एक नहीं तीन चार संयोजक बनाए जा सकते हैं। यह कहीं ना कहीं नीतीश कुमार की उम्मीदों पर बड़ा प्रहार था। नीतीश कुमार को भी इस बात की उम्मीद है कि अगर वे संयोजक बन जाते हैं तो राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद तो बढेगा ही, अगर विपक्षी दल सरकार बनाने की स्थिति में आता है तो वह इस रेस में आगे बने भी रह सकते हैं।
यही कारण है कि नीतीश ने अब इंडिया गठबंधन को अलग तरीके से अपना संदेश दे दिया है। उन्होंने साफ तौर पर बता दिया है कि विपक्षी गठबंधन में उन्हें दरकिनार ना किया जाए वरना उनके लिए विकल्प खुले हुए हैं। बिहार में भाजपा के लिए भी नीतीश कुमार से गठबंधन मजबूरी है। भले ही भाजपा लगातार इस बात का दावा करती रही है कि नीतीश कुमार के लिए उसके दरवाजे बंद हो चुके हैं लेकिन कहीं ना कहीं पार्टी 2024 चुनाव को लेकर जो रणनीति बना रही है उसमें बिहार में नीतीश कुमार की मौजूदगी से उसे मजबूती मिल सकती है जैसा कि 2019 में हुआ था।
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