अश्लील गायन के विरुद्ध हमें आंदोलन छेड़ना होगा–नीतू कुमारी नूतन

अश्लील गायन के विरुद्ध हमें आंदोलन छेड़ना होगा–नीतू कुमारी नूतन

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी, बिहार के चाणक्य परिसर स्थित राजकुमार शुक्ल सभागार में हिंदी विभाग द्वारा भोजपुरी लोकगीतों के विविध रूप विषय पर परिचर्चा- सह- कार्यशाला का आयोजन मंगलवार को किया गया।
कार्यक्रम के संरक्षक और भाषा एवं मानविकी भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रो.प्रसून दत्त सिंह ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि लोक विधाएं हमारी संस्कृति और परंपरा की संवाहिका के रूप में कार्य करती हैं। लोक से ही शास्त्र की निर्मिति होती है। वही साहित्यकार संसार में स्थापित हुआ है जो लोक से गहरे जुड़ा रहा है। लोक की सारी विधाएं मार्मिक होती है, यह हमारे जीवन को प्रेरित करती हैं।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारी सुप्रसिद्ध लोक गायिका और चम्पारण की बेटी डॉ. नीतू कुमारी नूतन ने कहा कि हमें अपने धरोहरों को संजो कर रखना चाहिए। हमारे समाज में उपस्थित कई प्रकार की लोकविधाएं हैं जो हमारे अद्भुत परंपराओं को प्रदर्शित करती हैं, लेकिन आज ये लुप्त होते जा रहे हैं।

संगीत की उत्पत्ति लोकायन से हुई है। हमारे संस्कार समाज में ही पनपते है। संस्कार गीत अपने आप में शक्ति हैं जो माताएं बहने समाज में कार्य करती हैं वहीं से ये निकलकर सामने आए है। लोकगीत संबंधों का आदान-प्रदान है, इसमें प्यार की बीज बोया जाता है। इससे संस्कार पनपते हैं, ये संस्कार हमारे अंदर ईश्वरीय तत्व को भरते हैं जिससे हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। आज भोजपुरी में अश्लील गायन चल रहा है जो भोजपुरी की छवि को विकृत कर रहा है। इसके विरुद्ध हमें आंदोलन छेड़ना होगा।

कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि जो तत्व शास्त्र से छूट जाते हैं, लोक उनकी पूर्ति करता है । लोक और शास्त्र भारत के संदर्भ शास्त्र से लोक समृद्ध होता है और शास्त्र लोक में उतरकर लोक को मूल्यवान बनाता है।

समारोह में विषय प्रवेश करते हुए हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा ने कहा कि मागधी अपभ्रंश से भोजपुरी का विकास हुआ, हिंदी का प्रारंभिक सहित्य भोजपुरी का भी अपना साहित्य है। संतों के साहित्य में कूट-कूट भोजपुरी साहित्य भरा हुआ है। भोजपुरी तीव्र गति से बढ़ता हुआ साहित्य बोली-बनी है, इसमें कई विद्वानों ने अपना अप्रतिम योगदान दिया है। मानव जीवन की सहज अनुभूतियां लोकगीत में है, विशेष तौर पर स्त्रियों की जीवनानुभवों को भोजपुरी में विशेष स्थान दिया है।

कार्यक्रम में सर्वप्रथम सभी गणमान्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर समारोह का शुभारंभ किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ. नीतू कुमारी नूतन ने लोक विधाओं के विभिन्न रूपों जैसे सोहर, खेलौना, बधईया, मुनडन, झूला,चैता-चैतई, विवाह के गीत, पहपट, होली के गीत, ऋतु के गीत, परीक्षावन, कन्यादान संझा-पराती, कठघोडवा, कोहबर विदाई के गीत गुनगुना कर सभी को अपनी संस्कार संस्कृति पर झूमने हेतु मजबूर कर दिया।

कार्यक्रम का सफल संचालन शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने किया।जबकि कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी ने अपने प्रभावशाली उद्बोधन में किया। कार्यक्रम में संस्कृत के विभागाध्यक्ष डॉ. श्याम कुमार झा, हिन्दी की सहायक आचार्य डॉ. आशा मीणा, संस्कृत के सहायक आचार्य डॉ. विश्वेश वाग्मी, जंतु विज्ञान के सहायक आचार्य डॉ. अमित रंजन, पीटीआई के पत्रकार व संस्कृतिकर्मी श्री संजय पांडे तथा क्षितिज के समन्वयक डॉ.विनय कुमार सिंह विशेष रूप से उपस्थित रहे।

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