G20 शिखर सम्मेलन में भारत की जनजातीय शिल्प कौशल का प्रदर्शन
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
18वें G20 शिखर सम्मेलन में भारत की समृद्ध जनजातीय विरासत और शिल्प कौशल का उल्लेखनीय प्रदर्शन किया गया, जिसे ट्राइफेड (ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया), जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा चुना गया और प्रदर्शित किया गया था।
G20 शिखर सम्मेलन में TRIFED द्वारा प्रदर्शित कलाकृतियाँ और उत्पाद:
- लोंगपी पॉटरी:
- मणिपुर के लोंगपी गाँव की तांगखुल नगा जनजाति इस असाधारण मिट्टी के बर्तन/मृदभांड शैली का अभ्यास करती है।
- लोंगपी मिट्टी के बर्तन दिखने में अलग होते हैं क्योंकि इनके निर्माण में कुम्हार के चाक का उपयोग नहीं किया जाता है; हर चीज़ हाथ से बनी होती है।
- विशिष्ट ग्रे-ब्लैक कुकिंग पाॅट्स, स्टाउट केटल, विचित्र कटोरे आदि लोंगपी के ट्रेडमार्क उत्पाद हैं, लेकिन अब उत्पाद शृंखला का विस्तार करने के साथ-साथ मौजूदा मिट्टी के बर्तनों को सुशोभित करने के लिये नए डिज़ाइन भी शामिल किये जा रहे हैं।
- छत्तीसगढ़ की पवन बाँसुरी:
- छत्तीसगढ़ में बस्तर की गोंड जनजाति द्वारा तैयार की गई ‘सुलूर’ बाँस की पवन बाँसुरी एक अनूठी संगीतीय वाद्य यंत्र है।
- पारंपरिक बाँसुरी के विपरीत इसमें एक-हाथ के घुमाव के माध्यम से धुन पैदा की जाती है। इसके शिल्प कौशल में मछली के प्रतीकों, ज्यामितीय रेखाओं और त्रिकोणों के साथ सावधानीपूर्वक बाँस चयन, होल ड्रिलिंग व सतह पर नक्काशी शामिल है।
- संगीत से परे ‘सुलूर’ विभिन्न उपयोगितावादी उद्देश्यों को पूरा करता है, जनजातीय पुरुष इसका इस्तेमाल पशुओं को भगाने अथवा दूर करने और जंगलों में मवेशियों का रास्ता दिखाने में मदद के लिये करते हैं।
- यह कलात्मकता और कार्यक्षमता का एक सामंजस्यपूर्ण संगम है, जो गोंड जनजाति के विशिष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है।
- छत्तीसगढ़ में बस्तर की गोंड जनजाति द्वारा तैयार की गई ‘सुलूर’ बाँस की पवन बाँसुरी एक अनूठी संगीतीय वाद्य यंत्र है।
- गोंड पेंटिंग्स:
- गोंड पेंटिंग्स प्रकृति तथा परंपरा से उनके गहरे संबंध को दर्शाती हैं।
- वे डॉट्स से शुरू करते हैं, इमेज वॉल्यूम की गणना करते हैं, जिसे वे जीवंत रंगों से भरे बाहरी आकार बनाने के लिये जोड़ते हैं।
- ये कलाकृतियाँ उनके सामाजिक परिवेश से गहराई से जुड़ी हैं तथा जनजाति की कलात्मक प्रतिभा के प्रमाण के रूप में स्वयं को व्यक्त करती हैं।
- गुजरात हैंगिंग्स:
- गुजरात के दाहोद में भील और पटेलिया जनजाति द्वारा तैयार गुजराती वॉल हैंगिंग्स, जिसे दीवार के आकर्षण के लिये बहुत पसंद किया जाता है, एक प्राचीन गुजरात कला रूप से आई है।
- इन हैगिंग्स में शुरू में गुड़िया और सूती कपड़े तथा रिसाइकल्ड मैटेरियल से निर्मित पालना जैसा घोंसला बनाना वाले पक्षी होते थे।
- हैंगिंग में अब दर्पण का काम, ज़री, पत्थर और मोती शामिल हैं, जो परंपरा को संरक्षित करते हुए समकालीन फैशन के अनुरूप विकसित किये गए हैं।
- भेड़ ऊन के स्टोल:
- इसे हिमाचल प्रदेश/जम्मू-कश्मीर के बोध, भूटिया और गुज्जर बकरवाल जनजातियों द्वारा तैयार किया गया।
- वे जैकेट, शॉल तथा स्टोल सहित विभिन्न वस्त्र बनाने के लिये भेड़ के ऊन का उपयोग करते हैं।
- मूल रूप से सफेद, काले और भूरे रंग की मोनोक्रोमैटिक योजनाओं की विशेषता, जनजातीय शिल्प कौशल की दुनिया एक बदलाव ला रही है।
- इसे हिमाचल प्रदेश/जम्मू-कश्मीर के बोध, भूटिया और गुज्जर बकरवाल जनजातियों द्वारा तैयार किया गया।
- राजस्थान कलात्मकता का प्रदर्शन:
- मोज़ेक लैंप:
- यह मोज़ेक कला शैली को दर्शाता करता है, जिसे सावधानीपूर्वक लैंप शेड्स और कैंडल होल्डर में तैयार किया जाता है। जब इसे रोशन किया जाता है, तो यह रंगों की बहुरूपकता दर्शाता है, जिससे हर स्थान प्रकाशमय हो जाता है।
- मोज़ेक लैंप:
- अम्बाबाड़ी मेटलवर्क:
- यह मीना जनजाति द्वारा तैयार किया गया है तथा इसमें एनेमिलिंग भी शामिल है, यह सावधानीपूर्वक की जाने वाली प्रक्रिया है जो धातु की सज्जा को बढ़ाती है।
- वर्तमान में यह सोने के साथ- साथ चांदी और तांबे जैसी धातुओं तक विस्तृत है।
- यह मीना जनजाति द्वारा तैयार किया गया है तथा इसमें एनेमिलिंग भी शामिल है, यह सावधानीपूर्वक की जाने वाली प्रक्रिया है जो धातु की सज्जा को बढ़ाती है।
- मीनाकारी शिल्प:
- मीनाकारी शिल्प में धातु की सतहों को रंगीन खनिज पदार्थों से सजाया जाता है, यह परंपरा असाधारण कौशल को दर्शाती है, जो मुगलों द्वारा शुरू की गई थी।
- इसके लिये असाधारण कौशल की आवश्यकता होती है क्योंकि धातु पर बारीक डिज़ाइन उकेरे जाते हैं, जिससे मीनाकारी के रंगों के लिये खाँचे बनते हैं।
- मीनाकारी शिल्प में धातु की सतहों को रंगीन खनिज पदार्थों से सजाया जाता है, यह परंपरा असाधारण कौशल को दर्शाती है, जो मुगलों द्वारा शुरू की गई थी।
भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ (Tribal Cooperative Marketing Development Federation of India- TRIFED):
- TRIFED वर्ष 1987 में अस्तित्व में आया। यह जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कार्य करने वाला एक राष्ट्रीय स्तर का शीर्ष संगठन है।
- TRIFED का उद्देश्य धातु शिल्प, जनजातीय वस्त्र, मिट्टी के बर्तन और जनजातीय चित्रकला जैसे जनजातीय उत्पादों के विपणन, विकास के माध्यम से देश में जनजातीय लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास करना है, जिन पर बड़े पैमाने पर जनजातीय लोग अपनी आय के लिये निर्भर हैं।
- TRIFED जनजातियों के लिये उनके उत्पाद की बिक्री हेतु एक सुविधा प्रदाता और सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करता है।
- TRIFED के दृष्टिकोण का उद्देश्य जनजातीय लोगों को ज्ञान, उपकरण और सूचना के भंडार के साथ सशक्त बनाना है ताकि वे अपने कार्यों को अधिक व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक तरीके से कर सकें।
- इसमें जनजातीय लोगों को संवेदनशील बनाने, स्वयं सहायता समूहों (SHG) के गठन और उन्हें किसी विशेष गतिविधि के लिये प्रशिक्षण प्रदान करने के माध्यम से क्षमता निर्माण भी शामिल है।
- TRIFED का प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है और देश के विभिन्न स्थानों पर इसके 13 क्षेत्रीय कार्यालयों का एक नेटवर्क है।
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