भारत की वैश्विक स्थिति पर सामाजिक-आर्थिक संकेतकों का प्रभाव
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत ने ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ विषय के तहत नई दिल्ली में 18वें G20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की।
- भारत ने वर्ष 2024 की G20 अध्यक्षता ब्राज़ील को सौंप दी है , इसलिये अन्य G20 सदस्यों की तुलना में ब्राज़ील के सामाजिक-आर्थिक प्रदर्शन का आकलन करना महत्त्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से, हाल ही में कई सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में भारत ने अपने G20 प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में खराब प्रदर्शन किया है।
G20 सदस्यों की तुलना में विभिन्न मैट्रिक्स पर भारत की प्रगति:
- प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP):
- प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद किसी देश की अर्थव्यवस्था में यहाँ के उत्पादकों द्वारा जोड़े गए सकल मूल्य को मिड-इयर जनसंख्या से भाग दिये जाने के बाद प्राप्त मान को कहा जाता है।
- वर्ष 1970 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 111.97 अमेरिकी डॉलर के साथ, विश्लेषण किये गए 19 देशों में से भारत 18वें स्थान पर था (रूस को छोड़कर)।
- वर्ष 2022 तक भारत की प्रति व्यक्ति GDP बढ़कर 2,388.62 अमेरिकी डॉलर हो गई, लेकिन यह 19 देशों में सबसे निम्न स्थान पर रही।
- मानव विकास सूचकांक (HDI):
- HDI एक समग्र सूचकांक है जो चार संकेतकों को ध्यान में रखते हुए मानव विकास में औसत उपलब्धि को मापता है:
- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (सतत् विकास लक्ष्य 3)
- स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष (सतत् विकास लक्ष्य 4.3)
- स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष (सतत् विकास लक्ष्य 4.4)
- सकल राष्ट्रीय आय (GNI) (सतत् विकास लक्ष्य 8.5)
- HDI को 0 (सबसे खराब) से 1 (सर्वोत्तम) के पैमाने पर मापा जाता है। वर्ष 1990 और वर्ष 2021 के दौरान 19 देशों (यूरोपीय संघ (EU) को छोड़कर) के HDI की तुलना की गई जिसमें भारत का HDI वर्ष 1990 के 0.43 से बढ़कर वर्ष 2021 में 0.63 हो गया है, जो जीवन प्रत्याशा, शिक्षा तथा जीवन स्तर में प्रगति को दर्शाता है।
- हालाँकि पूर्ण रूप से प्रगति के बावजूद भारत इस सूची में सबसे निम्न स्तर पर है।
- HDI एक समग्र सूचकांक है जो चार संकेतकों को ध्यान में रखते हुए मानव विकास में औसत उपलब्धि को मापता है:
- स्वास्थ्य मैट्रिक्स:
- जीवन प्रत्याशा:
- भारत की औसत जीवन प्रत्याशा वर्ष 1990 के 45.22 वर्ष से बढ़कर वर्ष 2021 में 67.24 वर्ष हो गई है, जिसने दक्षिण अफ्रीका को पीछे छोड़ दिया है लेकिन अभी भी चीन से पीछे है।
- शिशु मृत्यु दर:
- वर्ष 1990 में भारत 88.8 की शिशु मृत्यु दर के साथ सबसे अंतिम स्थान पर था। वर्ष 2021 तक यह दर सुधरकर 25.5 हो गई, लेकिन भारत 20 अन्य क्षेत्रों में 19वें स्थान पर रहा।
- जीवन प्रत्याशा:
- श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR):
- 20 क्षेत्रों में 15 वर्ष से अधिक आयु के LFPR की तुलना वर्ष 1990 और 2021-22 के बीच की गई।
- वर्ष 1990 में 54.2% के LFPR के साथ भारत इटली (49.7%) और सऊदी अरब (53.3%) से ऊपर 18वें स्थान पर था।
- हालाँकि 2021-22 तक भारत 49.5% LFPR के साथ केवल इटली से आगे रहते हुए गिरकर 19वें स्थान पर पहुँच गया।
- 20 क्षेत्रों में 15 वर्ष से अधिक आयु के LFPR की तुलना वर्ष 1990 और 2021-22 के बीच की गई।
- संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी:
- वर्ष 1998 और 2022 के बीच 19 देशों(सऊदी अरब को छोड़कर) की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी की तुलना की गई।
- भारत की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी वर्ष 1998 के 8.1% से बढ़कर 2022 में 14.9% हो गई।
- हालाँकि अन्य G20 देशों और EU की तुलना में भारत की रैंक वर्ष 1998 में 15वें स्थान से घटकर वर्ष 2022 में 18वें स्थान पर आ गई, जो जापान से थोड़ा आगे है।
- वर्ष 1998 और 2022 के बीच 19 देशों(सऊदी अरब को छोड़कर) की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी की तुलना की गई।
- पर्यावरणीय प्रदर्शन:
- भारत ने पिछले तीन दशकों में कार्बन उत्सर्जन पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाया है और लगातार 20 देशों में सबसे कम उत्सर्जक के रूप में रैंकिंग प्रदान की गई है।
- हालाँकि पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में भारत की प्रगति अपेक्षाकृत धीमी रही है, वर्ष 2015 में नवीकरणीय ऊर्जा से केवल 5.36% विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया गया, जिससे भारत 20 देशों में 13वें स्थान पर है।
- भारत ने पिछले तीन दशकों में कार्बन उत्सर्जन पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाया है और लगातार 20 देशों में सबसे कम उत्सर्जक के रूप में रैंकिंग प्रदान की गई है।
आगे की राह
- भारत को उन नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो सुनिश्चित यह करें कि आर्थिक विकास समाज के सभी वर्गों तक पहुँचे। हाशिये पर रहने वाले समुदायों, ग्रामीण विकास और कौशल वृद्धि कार्यक्रमों के लिये लक्षित हस्तक्षेप आय असमानताओं को समाप्त करने में मदद कर सकते हैं।
- नीतियों में विशेष रूप से युवाओं के लिये अधिक रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। उद्यमिता को प्रोत्साहित करने से बेरोज़गारी कम हो सकती है, समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
- भारत को मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण और स्वच्छता अवसंरचना में निवेश सहित लक्षित स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेपों के माध्यम से शिशु मृत्यु दर को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- कार्यबल और नेतृत्व भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी सहित लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करना आवश्यक है।
- पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में तेज़ी लाने के साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिये।
- अधिक महिलाओं को राजनीति और नेतृत्व की भूमिकाओं के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
- भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को मज़बूत करना और सभी स्तरों पर नैतिक शासन को बढ़ावा देना चाहिये।
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