चुनावों में कुल मतदान बढ़ाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया जा रहा है?

चुनावों में कुल मतदान बढ़ाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया जा रहा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वर्ष 2009 में मतदान प्रतिशत 58% रहा था, जो वर्ष 2014 में बढ़कर 66.4% और वर्ष 2019 में 67.6% हो गया। ECI अब इसे 70% से आगे ले जाने की उम्मीद कर रहा है।

निर्वाचन आयोग की टर्नआउट कार्यान्वयन योजना (TIP):

  • यह वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिये एक लक्षित मतदाता पहुँच पहल (targeted voter outreach initiative) है। TIP का लक्ष्य चार प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर मतदान प्रतिशत को 70% से आगे ले जाना है:
    • मतदाता पंजीकरण: मतदाता सूची (electoral rolls) और दूरस्थ मतदान (remote voting) का एक कठोर पुनरीक्षण, जो लाखों आंतरिक प्रवासियों को सशक्त बना सकता है।
    • मतदाता जागरूकता: एक व्यापक मतदाता शिक्षा अभियान जिसमें चुनावी भागीदारी के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, जैसे कि पंजीकरण कैसे करें, सत्यापन कैसे करें, मतदान कैसे करें और किसी भी मुद्दे या शिकायत की रिपोर्ट कैसे करें।
    • मतदाता सुविधा: एक उपयोगकर्ता-अनुकूल और सुलभ ICT प्लेटफॉर्म जो मतदाताओं को विभिन्न सेवाएँ और सूचना प्रदान करता है, जैसे ऑनलाइन पंजीकरण, मतदान केंद्र का स्थान, मतदाता हेल्पलाइन आदि।
    • मतदाता प्रतिक्रिया: एक प्रतिक्रिया या फीडबैक तंत्र जो चुनावी प्रक्रियाओं और परिणामों के विभिन्न पहलुओं पर मतदाताओं, चुनाव अधिकारियों, नागरिक समाज संगठनों और मीडिया से डेटा एवं अंतर्दृष्टि एकत्र करता है।
  • यह 10 बड़े राज्यों और लगभग 250 निर्वाचन क्षेत्रों पर केंद्रित है जहाँ कुल मतदान वर्ष 2019 के राष्ट्रीय औसत से कम या कुछ अधिक था।
  • यह ज़िला निर्वाचन अधिकारियों (DEOs) को संलग्न करता है जो कम कुल मतदान के कारणों पर विचार करते हैं और स्थानीय कारणों को संबोधित करते हैं।
  • यह मतदाताओं की उदासीनता को संबोधित करने और युवा एवं शहरी मतदाताओं जैसे उदासीन समूहों को संलग्न करने के लिये विशिष्ट संचार प्रयासों की आवश्यकता पर भी बल देता है।
  • यह कम मतदान वाले बूथों की व्यापक प्रोफाइलिंग और प्रत्येक बूथ की अनूठी विशेषताओं के अनुरूप समाधान को संलग्न करता है।

भारत में कुल मतदान बढ़ाने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ:

  • मतदाता उदासीनता: मतदान योग्य भारतीय आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा राजनीति और चुनावों के प्रति उदासीनता या अरुचि रखता है।
    • भारत के शहरी नागरिकों पर प्रायः यह आरोप लगाया जाता है कि वे चुनावी प्रक्रिया में तमाशबीन बने रहते हैं – वे इसमें दिलचस्पी तो रखते हैं, लेकिन इससे संलग्न नहीं होते।
    • कथित भ्रष्टाचार, निर्वाचित अधिकारियों की ओर से जवाबदेही की कमी और राजनीतिक व्यवस्था से मोहभंग के कारण वे मतदान के प्रति उत्साह नहीं रखते।
  • लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियाँ: भारत का विशाल भौगोलिक विस्तार और विविध आबादी यह सुनिश्चित करने में लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियाँ पेश करती हैं कि सभी योग्य मतदाता आसानी से मतदान केंद्रों तक पहुँच सकें।
  • जागरूकता और साक्षरता की कमी: कई योग्य मतदाताओं में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, मतदान के महत्त्व, उनके अधिकारों और चुनावी प्रक्रिया के बारे में जागरूकता की कमी पाई जाती है।
    • कुछ क्षेत्रों में उच्च निरक्षरता दर के कारण मतदाताओं के लिये उम्मीदवारों, उनके घोषणापत्रों और सही तरीके से मत डालने के तरीके को समझना कठिन हो जाता है।
  • असुविधाजनक चुनाव तिथियाँ: चुनाव प्रायः असुविधाजनक समय के दौरान आयोजित होते हैं, जैसे कि चरम मौसमी दशाएँ, त्यौहार या कृषि फसल का मौसम, जो मतदाता को मतदान के लिये हतोत्साहित कर सकता है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: कुछ क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी मुद्दे मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर जाने से अवरुद्ध कर सकते हैं, विशेष रूप से तनावपूर्ण अवधि के दौरान अथवा संघर्ष या विद्रोह से प्रभावित क्षेत्रों में।
    • इसके अतिरिक्त, कुछ क्षेत्रों में मतदाता दमन की घटनाएँ, जैसे धमकी देना और हिंसा, कुल मतदान को हतोत्साहित करती हैं।
  • प्रवासन: भारत में लाखों आंतरिक प्रवासियों को अपनी अस्थायी प्रकृति और अपने मतदाता पंजीकरण को अद्यतन कराने में निहित कठिनाइयों के कारण मतदान में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • प्रौद्योगिकीय चुनौतियाँ: जबकि प्रौद्योगिकी मतदाता पंजीकरण की सुविधा प्रदान कर सकती है और चुनावी प्रक्रिया में सुधार कर सकती है, प्रौद्योगिकी तक पहुँच से संबंधित चुनौतियाँ और डिजिटल सुरक्षा के बारे में व्याप्त चिंताएँ इसे अपनाने में बाधक बन सकती हैं।
  • राजनीतिक दल और उम्मीदवार: राजनीतिक दल और उम्मीदवार हमेशा उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में सफल नहीं होते जो मतदाताओं की आकांक्षाओं के अनुरूप हों, जिससे मतदाताओं में अरुचि उत्पन्न होती है।
  • मतदाता पहचान: जाली पहचान पत्र और धोखाधड़ी को रोकते हुए पात्र मतदाताओं की सटीक पहचान सुनिश्चित करना एक जटिल कार्य है। योग्य मतदाताओं का सूची से अपवर्जन भी कम कुल मतदान का कारण बनता है।

उच्च कुल मतदान के लाभ:

  • सरकार की वैधता में वृद्धि: जब अधिक लोग मतदान करते हैं, तो चुनाव परिणाम पूरी आबादी की इच्छा को बेहतर ढंग से प्रकट करते हैं। निर्वाचित प्रतिनिधियों को शासन करने का एक अधिक मज़बूत जनादेश प्राप्त होता है और इससे सरकार की वैधता बढ़ जाती है।
  • जवाबदेही की वृद्धि: जब अधिक लोग मतदान करते हैं तो निर्वाचित अधिकारी मतदाताओं के प्रति अधिक जवाबदेह बनते हैं। राजनेताओं की अपने मतदाताओं की आवश्यकताओं और चिंताओं के प्रति उत्तरदायी बनने की अधिक संभावना उत्पन्न होती है जब उन्हें पता होता है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा निर्वाचन प्रक्रिया से संलग्न है और उस पर नज़र रख रहा है।
  • राजनीतिक स्थिरता: जब अधिक लोग मतदान करते हैं तो विवादास्पद या विवादित चुनावों की संभावना कम हो जाती है, जिससे राजनीतिक स्थिरता की वृद्धि होती है। जब चुनावों को निष्पक्ष और समावेशी के रूप में देखा जाता है तो इससे विरोध, अशांति या सरकार की वैधता को चुनौती देने की संभावना कम हो जाती है।
    • इसके अलावा, जब अधिक लोग मतदान करते हैं तो नीतियों में आबादी की व्यापक सहमति प्रतिबिंबित होने की संभावना बढ़ जाती है।
    • निर्वाचित अधिकारी विभिन्न हितों को संतुलित करने वाली नीतियों को आगे बढ़ाने की अधिक संभावना रखते हैं, जब वे जानते हैं कि उन्हें बड़े और अधिक विविध मतदाताओं को आकर्षित करने की आवश्यकता है।
  • नागरिक संलग्नता: जब अधिक लोग मतदान करते हैं तो नागरिक संलग्नता और नागरिक कर्तव्य की भावना को बढ़ावा मिलता है। जो लोग चुनाव में भाग लेते हैं, उनके नागरिक जीवन के अन्य पहलुओं, जैसे सामुदायिक संगठनों और स्थानीय सरकारी गतिविधियों में शामिल होने की भी अधिक संभावना होती है।
  • सूचित निर्णयन: जब अधिक लोग मतदान करते हैं तो उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को सार्थक बहसों से संलग्न होने और स्पष्ट नीति प्रस्ताव प्रदान करने के लिये अधिक प्रोत्साहन प्राप्त होता है। जब मतदाताओं की गुणवत्तापूर्ण सूचना और सुदृढ़ बहस तक पहुँच होती है तो उनके द्वारा सूचित निर्णय लेने की संभावना भी बढ़ जाती है।
  • चरमपंथ में कमी: जब अधिक लोग मतदान करते हैं तो चरमपंथी या सीमांत समूहों का प्रभाव कम हो जाता है। नरमपंथी उम्मीदवार और नीतियाँ आबादी के व्यापक वर्ग को आकर्षित करते हैं, इसलिये जब अधिक लोग मतदान करते हैं तो यह समग्र राजनीतिक आख्यान को नरमपंथी (moderate) बना सकता है।
  • विविधतापूर्ण प्रतिनिधित्व: जब अधिक लोग मतदान करते हैं तो निर्वाचकों के बीच विविधता बढ़ जाती है, जिसमें अधिक महिलाएँ, जातीय अल्पसंख्यक और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोग शामिल होते हैं। यह विविधता ऐसी नीतियों को आगे बढ़ा सकती है जो अधिक समावेशी होंगी और आबादी की आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करेंगी।

भारत में कुल मतदान बढ़ाने के लिये उठाए गये कदम: 

  • मतदाता शिक्षा: यह देखते हुए कि भारत ने अपेक्षाकृत देरी से मतदाता शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया है, इस क्षेत्र में निरंतर और गहन प्रयास किया जाना महत्त्वपूर्ण है। मतदाता शिक्षा अभियानों को नागरिकों को मतदान के महत्त्व, चुनावी प्रक्रिया और शासन पर उनके मतों के प्रभाव के बारे में सूचित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • ये अभियान टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया और सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों सहित विभिन्न माध्यमों से चलाये जा सकते हैं।
  • मतदाता सूची का पुनरीक्षण: मतदाता सूची का नियमित और कठोर पुनरीक्षण, विशेष रूप से चुनाव के आसपास, किया जाना आवश्यक है। मतदाता सूची से मृत, अनुपस्थित या डुप्लिकेट नामों को हटाना और योग्य नागरिकों को जोड़ना यह सुनिश्चित करता है कि मतदाता आधार जनसंख्या को सटीक रूप से दर्शाता है। प्रौद्योगिकी इस प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
  • मतदान की अभिगम्यता और सुगमता: मतदान केंद्रों की भौतिक पहुँच से संबंधित मुद्दों को संबोधित कर, प्रतीक्षा समय को कम कर और नागरिकों के लिये मतदान प्रक्रिया को अधिक सुविधाजनक बनाकर मतदान की सुगमता में सुधार किया जाना चाहिये। प्रौद्योगिकी के उपयोग से भी मतदान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने में मदद मिल सकती है।
  • दूरस्थ मतदान/रिमोट वोटिंग: उन आंतरिक प्रवासियों को सशक्त बनाने के लिये रिमोट वोटिंग विकल्पों को लागू करना जो मतदान के लिये लॉजिस्टिक्स और वित्तीय बाधाओं का सामना करते हैं। यह भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में विशेष रूप से लाभप्रद सिद्ध होगा।
    • इसे साकार करने के लिये राजनीतिक सहमति और सुरक्षित एवं अभिगम्य रिमोट वोटिंग प्रौद्योगिकी में निवेश करना आवश्यक है।
  • एक राष्ट्र – एक चुनाव: एक राष्ट्र – एक चुनाव (One Nation One Election) के संदर्भ में उल्लेख किया गया है कि चुनावों की आवृत्ति को कम कर मतदाताओं की थकान को दूर करने से मतदाताओं के उत्साह को बनाए रखने में मदद मिल सकती है। चुनावों को सुव्यवस्थित करने से मतदाताओं की अधिक केंद्रित और संलग्न भागीदारी प्राप्त हो सकती है।
  • अभियान की गुणवत्ता: चुनाव अभियानों को अधिक आकर्षक और सूचनापूर्ण बनाने के लिये उनकी गुणवत्ता बढ़ाई जानी चाहिये।
    • राजनीतिक दलों को मतदाताओं को प्रेरित करने के लिये आकर्षक एजेंडे और उम्मीदवार पेश करने चाहिये। इसमें वाद-विवाद, ‘टाउन हॉल’ (स्थानीय चुनावी बैठकें) और गंभीर मुद्दों पर चर्चा करना शामिल हो सकता है।
  • जवाबदेही को बढ़ावा देना: निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाए रखने के लिये उच्च कुल मतदान के महत्त्व पर बल दिया जाए। नागरिकों को यह समझने के लिये प्रोत्साहित करें कि उनके मत निर्वाचित अधिकारियों के प्रदर्शन और देश के समग्र शासन पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं।
  • युवा संलग्नता: युवा संलग्नता को लक्षित करें और युवा मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करें। छात्रों को उनके मतदान अधिकारों और उत्तरदायित्वों के बारे में शिक्षित करने के लिये स्कूल-कॉलेजों को संलग्न करें।
  • सामुदायिक लामबंदी: सामुदायिक नेताओं और संगठनों को अपने समुदायों के भीतर मतदाताओं को लामबंध करने में भूमिका निभाने हेतु प्रोत्साहित करें। मतदान प्रतिशत बढ़ाने में ज़मीनी स्तर के प्रयास विशेष रूप से प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं।

निष्कर्ष 

भारत सहित विश्व के लगभग आधे देश 60-79% कुल मतदान के दायरे में आते हैं। एक ऐसे समय में जब भारत ने स्वयं को एक प्रमुख आर्थिक एवं कूटनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में तेज़ी से प्रगति की है, उसे उन देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल होने की भी आकांक्षा करनी चाहिये जहाँ लोकतांत्रिक चुनावों में 80% मतदान होता है।

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