जय-जयकार के साथ कहा पुराने संसद भवन को अलविदा
PM मोदी ने संसद कवर करने वाले पत्रकारों की प्रशंसा की
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
केंद्र सरकार द्वारा बुलाए गए संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र का आगाज 18 सितंबर (आज) पुराने संसद भवन में हुआ। इसमें पीएम मोदी के संबोधन के साथ 75 सालों के संसद के सफर पर भी चर्चा की गई। पुराने संसद भवन के बारे में बात करते हुए पीएम मोदी ने तमाम यादों को ताजा किया। बता दें कि संसद की आगे कार्यवाही 19 सितंबर (मंगलवार) से नई पार्लियामेंट बिल्डिंग में होगी।
पीएम मोदी ने की पुराने संसद भवन में आखिरी भाषण
पुराने संसद भवन को विदाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 52 मिनट की आखिरी स्पीच दी। इस दौरान उन्होंने देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों को याद किया। पीएम मोदी ने सभी प्रधानमंत्रियों का बखान करते पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, पी वी नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी सहित अन्य नेताओं का जिक्र किया।
पुरानी संसद की ”उपलब्धियां, अनुभव, यादें और सीख” पर बोले पीएम
इसके साथ ही लोकसभा में “संविधान सभा से शुरू हुई 75 साल की संसदीय यात्रा” पर चर्चा करते हुए पीएम ने लोकसभा को मनमोहन सिंह सरकार के दौरान ‘वोट के बदले नकद’ घोटाला भी याद दिलाया। साथ ही उन्होंने पुरानी संसद में ”उपलब्धियां, अनुभव, यादें और सीख” विषय पर चर्चा करते हुए कई बातें रखी है।
पीएम मोदी ने वाजपेयी सरकार के पलों को याद करते हुए कहा कि जब वाजपेयी के समय में उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ के तीन नए राज्य बनाए गए थे तो हर जगह जश्न का मौहाल था, लेकिन साथ ही इस बात पर उन्होंने अफसोस भी जताया कि आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना बनाए जाने से दोनों राज्यों में केवल कड़वाहट और खून-खराबा हुआ।
पुरानी संसद को विदाई देते वक्त भावुक हुए पीएम मोदी
पुरानी संसद को विदाई देते वक्त पीएम मोदी भावुक हो गए। उन्होंने अपनी स्पीच के दौरान कहा, ”इस इमारत को विदाई देना बहुत भावुक क्षण है। जैसे ही हम इस इमारत को छोड़ेंगे, हमारा मन कई भावनाओं और यादों से भर जाएगा।”
पीएम ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की बहादुरी को किया याद
अपने 52 मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की बहादुरी को याद किया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश साम्राज्य को नींद से जगाने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने संसद में बम फेंके थे। उस बम की गूंज आज भी उन लोगों की रातों की नींद हराम कर देती है, जो इस देश का भला नहीं चाहते हैं।”
मोदी ने कहा कि इसी संसद में पंडित नेहरू ने आधी रात को अपना ”नियति से साक्षात्कार” भाषण दिया था और उनके शब्द आज भी सभी को प्रेरित करते हैं। इसी सदन में, अटलजी के शब्द ‘सरकारें आएंगी, जाएंगी; पार्टियाँ बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए’ की गूंज आज भी इस सदन में जारी है।
पीएम मोदी ने पत्रकारों को किया याद
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में उन पत्रकारों को भी याद किया, जिन्होंने संसद कवर कई सालों तक संसद कवर किया। पीएम मोदी ने कहा,”देश में ऐसे पत्रकार जिन्होंने संसद को कवर किया, शायद उनके नाम जाने नहीं जाते होंगे लेकिन उनको कोई भूल नहीं सकता है। सिर्फ खबरों के लिए ही नहीं, भारत की इस विकास यात्रा को संसद भवन से समझने के लिए उन्होंने अपनी शक्ति खपा दी।
संसद के जीवंत साक्षी रहे कई पत्रकार: पीएम मोदी
पीएम मोदी ने आगे कहा,”आज जब हम इस सदन को छोड़ रहे हैं, तब मैं उन पत्रकार मित्रों को भी याद करना चाहता हूं, जिन्होंने पूरा जीवन संसद के काम को रिपोर्ट करने में लगा दिया। एक प्रकार से वे जीवंत साक्षी रहे हैं। उन्होंने पल-पल की जानकारी देश तक पहुंचाईं।”पीएम ने कहा,”एक प्रकार से जैसी ताकत यहां की दीवारों की रही है, वैसा ही दर्पण उनकी कलम में रहा है और उस कलम ने देश के अंदर संसद के प्रति, संसद के सदस्यों के प्रति एक अहोभाव जगाया है।पीएम मोदी ने आगे कहा कि पत्रकारों का सामर्थ्य था कि वह अंदर की जानकारी लोगों तक पहुंचाते थे और अंदर के अंदर की भी जानकारी लोगों तक पहुंचाते थे। गौरतलब है कि ये बात सुनकर संसद में मौजूद ज्यादातर सांसद के चेहरे पर हंसी आ गई।
पहली बार जब संसद आए पीएम मोदी…
पीएम मोदी ने संसद में पहली बार दाखिल होने वाले उस पल को याद करते हुए कहा,”जब मैंने पहली बार एक सांसद के रूप में इस भवन में प्रवेश किया, तो सहज रूप से मैंने इस सदन के द्वार पर अपना शीश झुकाकर, इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन करते हुए यहां कदम रखा था। वो पल मेरे लिए भावनाओं से भरा हुआ था।”
पीएम मोदी ने पुराने संसद को बताया तीर्थक्षेत्र
प्रधानमंत्री ने पुराने संसद को याद करते हुए कहा,”हमारे शास्त्रों में माना गया है कि किसी एक स्थान पर अनेक बार जब एक ही लय में उच्चारण होता है तो वह तपोभूमि बन जाता है। नाद की ताकत होती है, जो स्थान को सिद्ध स्थान में परिवर्तित कर देती है।
उन्होंने आगे कहा,”मैं मानता हूं कि इस सदन में 7,500 प्रतिनिधियों की जो वाणी यहां गूंजी है, उसने इसे तीर्थक्षेत्र बना दिया है। उन्होंने आगे कहा कि लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति आज से 50 साल बाद जब यहां देखने के लिए भी आएगा तो उसे उस गूंज की अनुभति होगी कि कभी भारत की आत्मा की आवाज यहां गूंजती थी।”
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