दिनकर की कविता के दर्पण में हम अपना अवलोकन करें-रामाशीष सिंह।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सरस्वती साहित्य संगम सीवान के तत्वाधान में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पावन जयंती के शुभ अवसर पर काव्य गोष्ठी एवं वर्तमान परिवेश में राष्ट्रकवि दिनकर की उपाध्यता पर एक संगोष्ठी का आयोजन नगर स्थित वी.एम. उच्च विद्यालय के सभागार में 23 सितंबर 2023 दिन शनिवार को किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संगठन प्रभारी रामाशीष सिंह जी ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि भारत का प्रबुद्ध वर्ग विश्वविद्यालय व महाविद्यालय के बाहर है। भारत की शिक्षा अपने प्रतीक, प्रतिमान से हट गई है। हम ऐसे स्नातक पैदा कर रहे है जो कलम और कुदाल से वंचित हैं। दिनकर केवल लेखक और कवि ही नहीं थे,वे लोक कवि थे इसलिए वह आज भी पूजनीय है,क्योंकि दिनकर मस्तिष्क और हृदय को एक साथ लेकर लिखते थे।

हमारी संस्कृति में वसुधैव कुटुंबकम राष्ट्रवाद का विस्तार है,जैसे धरती का घूर्णन करना राष्ट्रवाद है वहीं धरती द्वारा सूरज का चक्कर लगाना अंतरराष्ट्रीयवाद है। दिनकर के द्वारा उर्वशी लिखने के कारण कम्युनिस्ट उन्हें प्रतिगामी कहते थे। भारत की समस्याओं का समाधान महाभारत महाकाव्य में है इसलिए दिनकर कुरुक्षेत्र, परशुराम की प्रतीक्षा, रश्मिरथी जैसी रचनाओं को लिखकर कालजयी हो गए। हमारे यहां अहिंसा नीति होनी चाहिए,लेकिन अहिंसा से हमें क्लीव भी नहीं होना चाहिए।
“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”यह दिनकर की उपादेयता है। भारत के शास्त्र व वांग्मय का सम्मान नहीं हो रहा है इसलिए भारतवर्ष प्रखरता से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। जबकि दिनकर के कविता के दर्पण में हमें अपना अवलोकन करना चाहिए।

सरस्वती साहित्य संगम व कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉ. सुशील पाण्डेय ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि सरस्वती साहित्य संगम साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के रूप में 2013 से प्रदीप्त है। पंडित सियारमण त्रिपाठी, प्रो. रामचंद्र सिंह, स्वर्गीय प्रचंड मिश्रा द्वारा स्थापित यह संस्था साहित्य व संस्कृति को समर्पित है। जिसे ललन मिश्र, स्वर्गीय ब्रजदेव सिंह यादव, सुभाषकर पाण्डेय, नागेंद्र मिश्र, कमर शिवानी जैसे विद्वत मनिषयों का समय-समय पर आशीर्वाद प्राप्त होता रहा है। इस पावन अवसर पर दिनकर जी की कविताओं की दो पंक्तियों से उनके सम्मान में कहना चाहूंगी कि-
“तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं सम्मान बतलाके-
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना कर्तव्य दिखलाकर।”

कार्यक्रम में संस्था के संस्थापक सदस्य पंडित सियारमण त्रिपाठी ने कहा की दिनकर हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि है। हिंदी साहित्य को हम वाद में नहीं बांट सकते है। साहित्यकार का कोई वाद नहीं होता, दिनकर जी का फलक विस्तृत है। संस्कृत के चार अध्याय, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रश्मिरथी, हुंकार जैसी कालजयी रचनायें साहित्य को अवदान है।

कार्यक्रम में सर्वप्रथम दिनकर जी के तैल चित्र पर मल्यार्पण एवं दीप प्रचलित कर संगोष्ठी का शुभारंभ किया गया। सभी आगत अतिथियों को अंगवस्त्र व पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया। मंच का सफल संचालन सेवानिवृत शिक्षक ललन मिश्र ने किया जबकि प्रो. रामचंद्र सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि 1961 में मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह महाविद्यालय में दिनकर जी का आगमन हुआ था और उसकी संस्मरण आज तक हमारे मस्तिष्क में आनंदित है। समारोह के मुख्य वक्ता रामाशीष सिंह दिनकर जी के हुंकार हैं।

इस अवसर पर आरती आलोक वर्मा और विजय लक्ष्मी जी ने अपनी कविताओं से सभी को मंत्र मुग्ध किया जबकि कार्यक्रम में दारोगा राय महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रचार्य डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर सभी को भाव विभोर कर दिया।

इस अवसर पर ओमप्रकाश, गणेश दत्त पाठक, पंडित रंगनाथ उपाध्याय, राम प्रेम शंकर सिंह, प्रो. बी.के.तिवारी, प्रो. उदय शंकर पाण्डेय, डॉ. अशोक प्रियंवद, डॉ. विजय कुमार पाण्डेय, डॉ. सुभाष चंद्र यादव, डॉ.राकेश कुमार तिवारी,डॉ.शंकर पाण्डेय,तृप्ति रक्षा,डॉ. जितेंद्र नाथ सिंह, प्रो. रविंद्र नाथ पाठक, डॉ. सुधीर कुमार सिंह, मनोज कुमार वर्मा, डॉ. अमित कुमार वर्मा ‘मुन्नू’ नवीन सिंह परमार, सुभाषकर पाण्डेय, बृजमोहन रस्तोगी, अनिल कुमार श्रीवास्तव, केशव पाठक, शिवाजी पाण्डेय, मनोरंजन सिंह, मुरारी सिंह, अक्ष्यवर पाण्डेय, शर्मानंद राम, धनंजय सिंह, भाजपा नेता सहित सैकड़ो की संख्या में प्रबुद्ध जन उपस्थित रहे।

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