सितंबर के आखिरी रविवार को क्यों मनाया जाता है विश्व मूक बधिर दिवस?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पूरी दुनिया में विश्व बधिर दिवस यानी की वर्ल्ड डेफ डे मनाया जाता है। यह दिन बधिर और कम सुनने वाले लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों और मुद्दों के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। वर्ल्ड डेफ डे खासतौर पर बधिर लोगों की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का जश्न मनाने के लिए है। इस दिन सांकेतिक भाषा को बढ़ावा देने और उन्हें समाज में समान अवसर दिलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है।
विश्व बधिर दिवस?
पहली बार द वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ ने साल 1958 में विश्व बधिर दिवस मनाया था। यह एक ग्लोबल एनजीओ है। जिसका मकसद बधिर समुदाय के अधिकारों को आगे बढ़ाने के साथ ही उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाना शामिल है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, विश्व बधिर दिवस ग्रानविले रिचर्ड सेमुर रेडमंड के सम्मान में मनाया जाता है। साल 1871 में रिचर्ड सेमुर रेडमंड का जन्म फिलाडेल्फिया में हुआ था। वह छोटी उम्र में ही सुनने की क्षमता खो चुके थे।
ग्रानविले ने बधिर होने के बाद भी प्रतिष्ठित कैलिफोर्निया स्कूल ऑफ डिजाइन में पेंटिंग, मूकाभिनय और चित्रकारी की पढ़ाई की। फिर साल 1905 में वह एक लैंडस्केप पेंटर के तौर पर काफी फेमस हो गए थे। बता दें कि इस साल यानी की 2023 में विश्व बधिर दिवस की 72वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है।
हर साल सितंबर के आखिरी रविवार को विश्व बधिर दिवस मनाया जाता है। ऐसे में इस बार यह दिन 24 सितंबर 2023 को मनाया जा रहा है।
विश्व बधिर दिवस का महत्व
वर्ल्ड डेफ डे को मनाने का मुख्य उद्देश्य बधिर समुदाय के आम जीवन में आने वाली चुनौतियों की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करना है। क्योंकि सुनने में असमर्थ लोगों को समाज में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार आदि के अवसरों में अपनी पहुंच बनाने में परेशानी होती है। ऐसे में वर्ल्ड डे डीफ के दिन लोगों को सांकेतिक भाषा के महत्व को उजागर करने पर जोर देता है।