बदलती विश्व व्यवस्था और भारत की G20 से उम्मीदें!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दिल्ली में आयोजित G20 बैठक में भारत ने आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की और बाधाओं के बावजूद इस स्तर के आयोजन के अनुरूप एक सर्वसम्मत घोषणा प्रस्तुत करने में सफल रहा। रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा एजेंडे में शामिल लगभग सौ मुद्दों पर सहमति का निर्माण कर सकना कोई मामूली उपलब्धि नहीं मानी जा सकती। कुल मिलाकर, दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के प्राप्त परिणाम व्यापक वैश्विक समुदाय की आशाओं और इच्छाओं को प्रतिबिंबित करते प्रतीत होते हैं।

आतंकवाद की निंदा से लेकर जलवायु के मुद्दों तक, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने से लेकर सतत विकास के लिये जीवनशैली एवं बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार जैसे विषयों तक और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना एवं एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) जैसे क्षेत्र में भारत के योगदान को उजागर करने तक—जारी घोषणापत्र G20 के इस ‘मूड’ को प्रकट करता नज़र आया कि वह संघर्ष के बजाय समझौते के और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ (One Earth, One Family, One Future) के सिद्धांत का पूर्ण समर्थन करने के पक्ष में है।

G20 शिखर सम्मेलन, नई दिल्ली की प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • अफ्रीकी संघ (African Union) को G20 संगठन में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया गया।
  • ‘नई दिल्ली लीडर्स डिक्लेरेशन’ पर सदस्य देशों के प्रमुखों द्वारा हस्ताक्षर किया गया, जहाँ तय किया गया है कि समावेशी विकास पर बल दिया जाएगा।
  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEC) की स्थापना के लिये भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, संयुक्त अरब अमीरात, फ्राँस, जर्मनी और इटली की सरकारों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
  • वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuel Alliance- GBA) का निर्माण किया गया जिसमें भारत, अमेरिका, ब्राज़ील, अर्जेंटीना, बांग्लादेश, इटली, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। यह गठबंधन जैव ईंधन के अधिकतम उपयोग पर बल देगा।
  • इसके अलावा ‘वन फ्यूचर अलायंस’ का शुभारंभ किया गया और एक ‘ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिपॉजिटरी’ की स्थापना की गई।
  • G20 नेताओं ने वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने पर सहमति व्यक्त की और अनियंत्रित कोयला ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से कम करने की आवश्यकता को स्वीकार किया।

विश्व व्यवस्था की वर्तमान स्थिति:

  • उभरते हुए गुट: विश्व व्यवस्था में दो उभरते हुए गुट नज़र आ रहे हैं। एक का नेतृत्व पश्चिमी देशों द्वारा किया जा रहा है, जबकि दूसरे का नेतृत्व चीन और रूस द्वारा किया जा रहा है। इन दोनों गुटों को प्रायः ‘स्थायी प्रतिद्वंद्वी’ (enduring rivals) के रूप में देखा जाता है और ये वैश्विक वर्चस्व की लड़ाई में संलग्न हैं। यह प्रतिद्वंद्विता वैश्विक मंच पर शक्ति संतुलन में बदलाव का संकेत देती है।
  • नियम-आधारित व्यवस्था को चुनौतियाँ: ‘नियम-आधारित विश्व व्यवस्था’ (rules-based world order) की अवधारणा को चुनौती दी गई है और यह अब एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत ढाँचा नहीं रह गया है। इसके बजाय, दुनिया अब वह अनुभव कर रही है जिसे कुछ लोग ‘उभरती हुई विश्व अव्यवस्था’ (emerging world disorder) के रूप में वर्णित करते हैं। यह अव्यवस्था विरोधी गुटों के पुनरुत्थान और गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की घटती भूमिका से चिह्नित हो रही है।
  • ‘नाटो’ की भूमिका: यूक्रेन संघर्ष में गतिरोध और रूसी विस्तारवाद को लेकर जारी चिंताओं ने अमेरिका को नाटो (NATO) को सुदृढ़ करने और इसका विस्तार करने के लिये प्रेरित किया है। इससे यूक्रेन में अमेरिकी हथियारों से सुसज्जित क्षेत्रीय बल की संभावना और अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन में गैर-नाटो सहयोगियों को शामिल करने की संभावना उत्पन्न हुई है, जिसका उद्देश्य सत्तावाद (authoritarianism) का मुक़ाबला करना है, जिसका प्रतिनिधित्व मुख्य रूप से रूस और चीन करते हैं।
  • G20 का उभार: G20 की भूमिका गुज़रते समय के साथ विकसित हुई है। आरंभ में वर्ष 2008-09 के आर्थिक संकट के दौरान इसने आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने और वैश्विक आर्थिक मंदी को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालाँकि, हाल के वर्षों में G-20 का ध्यान आर्थिक चिंताओं के बजाय वैश्विक राजनीतिक संघर्षों को संबोधित करने की ओर अधिक केंद्रित हो गया है।
  • रूस-चीन रणनीतिक संरेखण: रूस और चीन अपने रणनीतिक संरेखण को गहरा कर रहे हैं तथा कूटनीति और व्यापार सहित विभिन्न क्षेत्रों में घनिष्ठ साझेदारी का निर्माण कर रहे हैं। इस संरेखण का वैश्विक शक्ति गतिशीलता के लिये कुछ निहितार्थ हैं और यह पश्चिमी प्रभाव के लिये चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
  • वैश्विक प्रभाव: चीन प्रशांत महासागर में अमेरिकी नौसैनिक शक्ति को सक्रिय रूप से चुनौती दे रहा है, जबकि रूस अफ्रीकी राज्यों को रियायती कीमतों पर खाद्यान्न की आपूर्ति कर अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यह प्रमुख शक्तियों द्वारा नियंत्रण के अपने पारंपरिक क्षेत्रों से परे अपनी पहुँच और प्रभाव बढ़ाने की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है।

 भारत को क्या करना चाहिये? 

  • गठबंधनों और साझेदारियों में विविधता लाना: भारत कई देशों के साथ अपने गठबंधनों और साझेदारियों का विस्तार करने के रूप में विविधीकरण (diversification) की रणनीति अपना सकता है। इसमें पारंपरिक सहयोगियों और उभरती शक्तियों, दोनों के साथ संबंधों को मज़बूत करना शामिल है। भारत पहले ही संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय संघ के देशों के साथ संबंधों को गहरा करने के रूप में इस दिशा में कदम उठा चुका है।
  • सक्रिय कूटनीति: भारत अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में सक्रिय भूमिका निभा सकता है, संघर्षों में मध्यस्थता कर सकता है और वैश्विक शासन में योगदान दे सकता है। संयुक्त राष्ट्रG20 और ब्रिक्स जैसे क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों में सक्रिय भागीदार के रूप में भारत को महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर अपना प्रभाव दिखाने में मदद मिल सकती है।
  • आर्थिक एकीकरण: विभिन्न देशों के साथ आर्थिक एकीकरण और व्यापार गठबंधन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में प्रमुख भागीदारों के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। व्यापार नेटवर्क का विस्तार भारत के आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
  • रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना: गठबंधनों में विविधता लाने के साथ ही भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता भी बनाए रखनी चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उसके सभी निर्णय राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हों। विदेश नीति में लचीलापन बनाए रखने के लिये किसी एक शक्ति या गुट पर अत्यधिक निर्भरता से बचना महत्त्वपूर्ण है।
  • रक्षा और सुरक्षा में निवेश करना: क्षेत्र में उभरती सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए, भारत को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिये अपनी रक्षा क्षमताओं में निवेश करना जारी रखना चाहिये। समान विचारधारा वाले देशों के साथ अपनी सैन्य साझेदारी को मज़बूत करने से इसकी सुरक्षा स्थिति बेहतर बन सकती है।
  • बहुपक्षीयता में संलग्न होना: वैश्विक मानदंडों और नीतियों को आकार देने के लिये बहुपक्षीय संस्थानों और मंचों में सक्रिय रूप से संलग्न होना आवश्यक है। भारत विश्व की उभरती शक्तियों का अधिक न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसी संस्थाओं में सुधार की वकालत कर सकता है।
  • विकास और कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करना: भारत पड़ोसी देशों और रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भू-भागों में अवसंरचना परियोजनाओं, कनेक्टिविटी पहल और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में निवेश कर विकास-केंद्रित विदेश नीति दृष्टिकोण अपना सकता है। इससे सद्भावना को बढ़ावा मिल सकता है और क्षेत्रीय प्रभाव सुदृढ़ हो सकता है।
  • अनुकूलनशीलता और व्यावहारिकता: भारत को अपने विदेश नीति निर्णयों में अनुकूलनशील और व्यावहारिक बने रहना चाहिये। उसे बदलती परिस्थितियों और उत्पन्न होते अवसरों पर प्रतिक्रिया देने के लिये तैयार रहना चाहिये।

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