कृषि क्षेत्र में संकर बीज को लेकर क्या चिंताएँ है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारतीय किसानों के बीच पारंपरिक अथवा खुले-परागित किस्मों (Open-Pollinated Variety- OPV) वाले बीजों की तुलना में कटाई के लिये त्वरित रूप से तैयार होकर फसल प्रदान करने वाले संकर बीजों की लोकप्रियता में पिछले दशकों में काफी वृद्धि हुई है।
- OPV आमतौर पर आनुवंशिक रूप से अधिक विविधतापूर्ण होते हैं, जिस कारण पौधों में भी अत्यधिक भिन्नता होती है, अंततः यह उन्हें स्थानीय परिस्थितियों और जलवायु के अनुकूल होने तथा उत्तरोत्तर रूप से बढ़ने व विकसित होने में मदद करता है।
संकर बीज:
- परिचय:
- एक ही पौधे की विभिन्न किस्मों के बीच नियंत्रित पर-परागण (Cross-Pollination) करके एक संकर बीज का उत्पादन किया जाता है।
- एक पौधे के परागकोष से दूसरे भिन्न पौधे के वर्तिकाग्र तक परागकणों के स्थानांतरण को पर-परागण कहा जाता है।
- इस विधि का उपयोग बेहतर उपज, अधिक एकरूपता और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले पौधे विकसित करने में किया जाता है।
- चूँकि एक पैकेट में सभी संकर बीज एक ही मूल/पैरेंट पौधे के होते हैं, ऐसे में वे सभी पौधे एक समान रूप से विकसित होते हैं।
- इन्हें प्रमाणिक बीजों (Heirloom Seeds) की तुलना में आसानी और तेज़ी से उगाया जा सकता है।
- प्रमाणिक बीज खुले-परागित पौधों से प्राप्त होते हैं, जिसका अर्थ है कि पौधों को नियंत्रित पादप-प्रजनन अथवा संकरण के बजाय वायु, कीड़े या पक्षियों जैसे प्राकृतिक तंत्र द्वारा परागित किया गया था।
- एक ही पौधे की विभिन्न किस्मों के बीच नियंत्रित पर-परागण (Cross-Pollination) करके एक संकर बीज का उत्पादन किया जाता है।
- लाभ:
- इनके प्रयोग से किसान अपनी फसल की पैदावार में सुधार कर सकते हैं और इसके विभिन्न लाभों, जैसे सूखा लचीलापन, कीट प्रतिरोध एवं प्रजनन में तेज़ी से सुधार के माध्यम से फल की परिपक्वता का अनुमान लगा सकते हैं।
- संकर बीजों के आगमन, गुणवत्तापूर्ण बीजों के उपयोग, मशीनीकरण और उन्नत प्रौद्योगिकी ने कृषि परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय के साथ-साथ सभी बोई गई फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई, जिससे सरकार को संकर तथा बेहतर उपज देने वाली किस्मों के बीजों को बढ़ावा देना पड़ा।
- आवश्यकता:
- जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि किसानों को संकर बीज अपनाने और उत्पादन बढ़ाने के लिये प्रेरित कर रही है।
- संकरण का उद्देश्य अनाज की गुणवत्ता में सुधार करना, कीटों की घटनाओं को कम करना, समग्र फसल उत्पादकता में वृद्धि करना, खाद्य सुरक्षा तथा पोषण के सतत् विकास लक्ष्यों में योगदान करना है।
- पौधों के प्रजनन द्वारा संचालित अनुकूलन और आनुवंशिक सुधार की यह क्षमता वर्तमान चुनौतियों से निपटने में सहायता कर सकती है।
- उत्पत्ति:
- संकर बीजों की उत्पत्ति का पता 1960 के दशक में भारत की हरित क्रांति से लगाया जा सकता है, जब सरकार का प्रयास मुख्य रूप से कृषि उत्पादकता बढ़ाना था। इसके लिये अधिक उपज वाले किस्म के बीजों के विकास, भंडारण और वितरण के लिये वर्ष 1963 में राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना की गई थी।
- भारत में बाज़ार की स्थिति:
- वर्ष 2021 में कृषि पर स्थायी समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के बीज बाज़ार में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2017-18 में 57.3% से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 64.5% हो गई।
- भारतीय खाद्य और कृषि परिषद की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय बीज बाज़ार वर्ष 2018 में 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य तक पहुँच गया और सत्र 2019-24 के दौरान इसके 13.6% की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो वर्ष 2024 तक 9.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य तक पहुँच जाएगा।
- भारत में धान की कुल खेती (लगभग 44 मिलियन हेक्टेयर) में संकर बीज की हिस्सेदारी केवल 6% ही है।
- धान (चावल) की खेती के लिये भारत में प्राथमिक प्रकार के संकर बीज उपलब्ध हैं।
- भारत के अधिकांश बीज बाज़ार पर गेहूँ और धान (चावल) का प्रभुत्व है, जो कुल बीज बाज़ार का लगभग 85% है।
संकर बीज अपनाने को लेकर चिंताएँ:
- फसल विविधता पर प्रभाव:
- संकर बीज तापमान और बारिश के प्रति संवेदनशील होते हैं, जो भारत की फसल विविधता के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
- स्थानीय जलवायु के अनुकूल पारंपरिक किस्मों के विपरीत, संकरों को इष्टतम विकास के लिये विशिष्ट परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण के लिये, धान की एक संकर किस्म को बुआई के 15-20 दिनों के भीतर वर्षा की आवश्यकता होती है।
- चिंताएँ और विफलताएँ:
- किसानों ने विशेष रूप से मक्का की फसल में संकर किस्मों के साथ फसल की विफलता और उपज में कमी के मामलों की सूचना दी है। संकर बीज संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जिससे उपज प्रभावित होती है।
- वर्ष 2022 में हरियाणा के एक किसान को फिजी वायरस संक्रमण के कारण चावल की उपज में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा।
- किसानों ने विशेष रूप से मक्का की फसल में संकर किस्मों के साथ फसल की विफलता और उपज में कमी के मामलों की सूचना दी है। संकर बीज संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जिससे उपज प्रभावित होती है।
- मूल्य वृद्धि और उपलब्धता:
- पारंपरिक बीजों की सीमित उपलब्धता के कारण, विशेषकर सरकारी बीज बैंकों से, किसान कभी-कभी संकर बीज खरीदने के लिये मजबूर होते हैं। जिससे मांग बढ़ने पर संकर बीजों के निर्माता भी कीमतें बढ़ा देते हैं।
- पारंपरिक किस्मों में गिरावट:
- संकर बीजों के प्रभुत्व के कारण फसलों की पारंपरिक और स्थानीय किस्मों में गिरावट आई है। इस गिरावट से फसलों की विविधता और प्रतिकूल परिस्थितियों में उनके लचीलेपन को खतरा है।
- आनुवंशिक क्षरण और फसल प्रतिस्थापन:
- फसल के संकर बीजों और आधुनिक समान किस्मों की ओर बदलाव से आनुवंशिक क्षरण हुआ है, जिन्होंने स्वदेशी फसल किस्मों की जगह ले ली है। यह संकीर्ण आनुवंशिक सीमा स्थानीय प्रजातियों की व्यापक विविधता को संरक्षित करने के बजाय लाभ पर केंद्रित है।
आगे की राह
- ऐसे संकर बीज जो विभिन्न जलवायु के लिये लचीले हों और संक्रमण के प्रति कम संवेदनशील हों, को विकसित करने के लिये अनुसंधान में निवेश करने की आवश्यकता है। यह फसल विविधता से समझौता किये बिना अधिक उपज सुनिश्चित करता है।
- किसानों को इन फसलों के लिये प्रोत्साहन, तकनीकी सहायता और बाज़ार बनाकर पारंपरिक और स्थानीय किस्मों की कृषि जारी रखने के लिये प्रोत्साहित करना अनिवार्य है।
- टिकाऊ कृषि पद्धतियों और स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप संकर बीजों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार एवं निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी को सुविधाजनक बनाने की भी आवश्यकता है।
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