मनरेगा के तहत सामाजिक लेखा परीक्षा तंत्र और इससे संबंधित मुद्दे क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), भारत में सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का एक मूलभूत घटक है, हालिया समय में इस योजना में भ्रष्टाचार की उच्च दर योजना की सार्थकता को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करती है।

  • हालाँकि इस कार्यक्रम में सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयाँ जैसे तंत्र शामिल हैं, फिर भी फंड रिकवरी और समग्र प्रभावशीलता के संदर्भ में हालिया आँकड़े निराशाजनक हैं।

हालिया आँकड़े:

  • वर्तमान वित्तीय वर्ष (2023-24) में मनरेगा के सामाजिक लेखा परीक्षा के परिणामों में इस योजना के तहत ₹27.5 करोड़ की राशि की हेराफेरी की जानकारी दी गई है
    • सुधारात्मक कार्रवाई करने के बाद यह राशि घटकर ₹9.5 करोड़ हो गई लेकिन अभी तक इसका केवल ₹1.31 करोड़ (कुल का राशि का 13.8%) ही रिकवर किया जा सका है।
    • पिछले वित्तीय वर्षों में रिकवरी की दरों में रिकवरी संबंधी अक्षमता की समान प्रवृत्ति थी:
      • वित्तीय वर्ष 2022-23 में रिकवरी योग्य राशि ₹86.2 करोड़ थी, लेकिन केवल ₹18 करोड़ (कुल राशि का 20.8%) ही रिकवर की गई।
      • वित्तीय वर्ष 2021-22 में, ₹171 करोड़ का लक्ष्य रखा गया था, फिर भी मात्र ₹26 करोड़ (कुल राशि का 15%) की रिकवर की जा सकी।
  • रिकवरी दरों में लगातार गिरावट भ्रष्टाचार से निपटने में योजना की प्रभावशीलता के लिये चिंता का विषय है।
    • रिकवरी दरों में नितन्तर गिरावट पूरी लेखा परीक्षा प्रक्रिया की विश्वसनीयता के लिये भी जोखिम उत्पन्न करती है। इससे मनरेगा की विश्वसनीयता और इसके उद्देश्य के संबंध में आमजन का विश्वास कम होने का एक अन्य खतरा है।

मनरेगा योजना:

  • परिचय: मनरेगा ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किया गया था, यह विश्व के सबसे बड़े रोज़गार गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
    • यह वैधानिक न्यूनतम वेतन पर सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
    • सक्रिय कर्मचारी: 14.32 करोड़ (2023-24)
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • मनरेगा की कानूनी गारंटी है कि प्रत्येक ग्रामीण वयस्क कार्य का अनुरोध कर सकता है और उसे 15 दिनों के अंतर्गत रोज़गार मिलना चाहिये।
    • यदि यह प्रतिबद्धता पूरी नहीं होती है, तो “बेरोज़गारी भत्ता” प्रदान किया जाना चाहिये।
    • इसके अंतर्गत महिलाओं को इस तरह से प्राथमिकता दी जाए कि कम से कम एक-तिहाई लाभार्थी पंजीकृत और रोज़गार चाहने वाली महिलाएँ हों।
    • मनरेगा की धारा 17 के तहत निष्पादित सभी कार्यों का सामाजिक लेखा-परीक्षण अनिवार्य है।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: भारत सरकार का ग्रामीण विकास मंत्रालय (MRD) राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस योजना के संपूर्ण कार्यान्वयन की निगरानी कर रहा है।
  • उद्देश्य: यह अधिनियम मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्तियों को अर्ध या अकुशल कार्य प्रदान कर ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति में सुधार लाने के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया था।
    • यह देश में अमीर और निर्धन के बीच के अंतर को कम करने का प्रयास करता है।

सामाजिक लेखापरीक्षा तंत्र:

  • परिचय:
    • सामाजिक लेखापरीक्षा लोगों की सक्रिय भागीदारी के साथ आयोजित कार्यक्रम/योजना की जाँच और मूल्यांकन है तथा वास्तविक स्थिति के साथ आधिकारिक रिकॉर्ड की तुलना करता है।
      • यह सामाजिक परिवर्तन, सामुदायिक भागीदारी और सरकारी जवाबदेही के लिये एक शक्तिशाली उपकरण है।
      • यह वित्तीय लेखापरीक्षा से भिन्न है। वित्तीय ऑडिट किसी संगठन के वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन करने के लिये वित्तीय रिकॉर्ड की जाँच करते हैं, सामाजिक ऑडिट हितधारकों को शामिल करके अपने सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में कार्यक्रम की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • MGNREGA के तहत सामाजिक लेखापरीक्षा तंत्र:
  • प्रावधान:
    • MGNREGA की धारा 17 में MGNREGA के तहत निष्पादित सभी कार्यों का सामाजिक ऑडिट अनिवार्य किया गया है।
    • योजना नियमों की लेखापरीक्षा, 2011, जिसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजनाओं की लेखापरीक्षा नियम, 2011 के रूप में भी जाना जाता है, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के सहयोग से ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा विकसित किये गए थे।
      • ये नियम देश भर में पालन किये जाने वाले सामाजिक ऑडिट की प्रक्रियाओं और सोशल ऑडिट यूनिट (Social Audit Unit- SAU), राज्य सरकार एवं MGNREGA के फील्ड कार्यकर्त्ताओं सहित विभिन्न संस्थाओं के कर्त्तव्यों की रूपरेखा तैयार करते हैं।
  • संबंधित मुद्दे:
    • फंड की कमी से जूझ रही इकाइयाँ: सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयाँ अपर्याप्त वित्तपोषण से जूझ रही हैं, जिससे उनकी प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता बाधित हो रही है।
      • केंद्र सरकार राज्यों से उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयों को धन प्रदान करती है।
      • हालाँकि समय पर धन आवंटन न होने के कारण कर्नाटक और बिहार जैसे राज्यों में इकाइयाँ लगभग दो वर्षों तक बिना धन के रहीं।
    • प्रशिक्षण की कमी: अपर्याप्त प्रशिक्षण और संसाधन कदाचार की पहचान करने में उनकी प्रभावशीलता में बाधा डालते हैं।
    • कार्मिक की कमी: अपर्याप्त नियुक्तिकरण के कारण सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों के लिये अपने कर्त्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करना कठिन हो जाता है।
    • कम रिकवरी दरगुजरातगोवा, मेघालय, पुडुचेरी व लद्दाख सहित कई राज्यों ने पिछले तीन वर्षों में लगातार “शून्य मामले” और “शून्य रिकवरी” की सूचना दी है। इससे इन क्षेत्रों में निगरानी की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े होते हैं।
      • तेलंगाना जैसे राज्य, सक्रिय सामाजिक लेखा परीक्षा इकाइयाँ होने के बावजूद, कम वसूली दर से जूझ रहे हैं।

आगे की राह

  • हितधारक जुड़ाव: सामाजिक लेखा परीक्षा प्रक्रिया के मूल्यांकन और पुन: डिज़ाइन में लाभार्थियों, नागरिक समाज संगठनों, सरकारी अधिकारियों एवं लेखा परीक्षकों सहित सभी हितधारकों को शामिल करना।
  • साथ ही सामाजिक लेखा परीक्षा हेतु ज़िम्मेदार लेखा परीक्षकों के लिये प्रशिक्षण और क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता है।
  • मुखबिर संरक्षण: MGNREGA परियोजनाओं में अनियमितताओं या भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने वाले मुखबिरों की सुरक्षा के लिये एक सुदृढ़ तंत्र स्थापित करना। व्यक्तियों को प्रतिशोध के भय के बिना आगे आने के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • सामुदायिक भागीदारी: लेखा परीक्षा प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना। उन्हें परियोजना की प्रगति और निधि उपयोग की निगरानी तथा रिपोर्ट करने के लिये सशक्त बनाना आवश्यक है।
    • साथ ही समस्याओं के त्वरित समाधान के लिये ग्राम स्तर पर शिकायत निवारण समितियाँ स्थापित करने की भी आवश्यकता है।
  • फीडबैक तंत्र: एक फीडबैक लूप स्थापित करना जहाँ लेखा परीक्षा निष्कर्षों का उपयोग MGNREGA कार्यक्रम को बेहतर बनाने के लिये किया जाता है। प्रणालीगत मुद्दों की पहचान करना और निरंतर सुधार की दिशा में कार्य करना।
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