लाॅकडाउन:व्यथा और आक्रोश का अभूतपूर्व विवरण।
लाॅकडाउन:कोराना के भय,भूख और सरकारी आदेश का आलेख।
लाॅकडाउन:सन्नाटे का मार्मिक वर्णन।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जी नमस्कार। मैं राजेश पाण्डेय श्रीनारद मीडिया की ओर से आप सभी को धन्यवाद व्यक्त करता हूँ कि आपको पुस्तक की यह समीक्षा अच्छी लग रही है। इस अंक में प्रस्तुत है मनोज कुमार वर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘लाॅकडाउन’।अभिधा प्रकाशन,मुजफ्फरपुर,बिहार से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य 250 रुपए है। इसका प्रथम संस्करण 2021 में आया था। आपसभी को पुस्तक ‘लाॅकडाउन’ अवश्य पढ़ना चाहिए।
कोराना की व्यथा से उपजा दर्द पुस्तक का प्रयोजन है। इस पुस्तक में कुल 128 पृष्ट है, जो 9 भाग में बंटे हुए है। लॉकडाउन-48 श्रृंखला में उधृत है। पुस्तक दिनांक 25 मार्च 2020 से प्रारंभ होकर 17 मई 2020 तक जाती है। अर्थात 54 दिनों की कारूणिक कथा का वृतांत इसमें सुरक्षित है।
बिहार के सीवान जैसे छोटे नगर से पूरे विश्व में कोरोना से उत्पन्न लॉकडाउन की स्थिति को देखने और समझने का प्रयास इस पुस्तक में हुआ है। रचनाकार मनोज जी ने अपने निजी जिन्दगी के बारे में बड़ी बेबाकी जो रचा है वह उनके यथार्थबोध को परिलक्षित करता है। अध्यात्म, प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन उस अज्ञात के प्रति जिज्ञासा आपके लेखन की प्रवृत्ति है।
कहते है कि समय आता है समय जाता है समय को संभाल कर रखो बनधुओं,यह समय समय पर काम आता है। जी हां आपने लॉकडाउन पुस्तक का आरंभ करते हुए लिखा है की लॉकडाउन में कुछ तो करो, करो ना!
बैठे-बैठे क्या करोगे करना है कुछ काम, एक पुरानी डायरी को लिखो प्रभु का नाम।और आपने पूरे कॉविड-19 की वृत्तांत को सामने रख दिया।
दरअसल 11 फरवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि कोराना वायरस डिजीज को कोविड-19 के नाम से जाना जाएगा। 2019 के अंतिम महीने से यह पूरे विश्व में के सामने आया तभी से भारत में इसे कोविड-19 कहा गया। ज्ञात हो कि अगर हम इसके इतिहास पर नजर दौड़ते हैं तो 1720 में प्लेग ऑफ मरसिले(Plague of Marscille) फैला था फिर 1820 में फ्रांस में कलरा नामक वायरस ने कहर मचाया, इसके बाद 1920 में स्पेनिश फ्लू नाम की वायरस ने स्पेन, अमेरिका, भारत और जर्मनी को जकड़ लिया, जिसमें लाखों लोग मारे गए और ठीक इसके 100 वर्ष बाद यानी 2020 में चीन के बुहान नगर से निकला कोराना वायरस भारत अमेरिका, इटली सहित पूरे विश्व को अपने चपेट में ले लिया। पिछले 100 वर्ष के अंतराल पर 400 वर्षों से यह महामारी हम मनुष्यों को अपना निवाला बना रहा है।
बहरहाल हम अतीत से निकलकर वर्तमान में चलते है,जहां लेखक का सामना कोराना से हो रहा है। कोराना के वायरस से तेज अफवाह का वायरस फैल रहा है। कोराना के कारण नगर वीरान था…..
” अजीब लगता है आज अपना ही शहर
लौट कर आया हूं आज बहुत दिनों के बाद।”
कोरोना से बचने के लिए केंद्र की मोदी सरकार पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया है। कहा जाता है कि जिस तरह नोटबंदी बिना तैयारी की हुई थी उसी तरह लॉकडाउन भी कर दिया गया है। कोरोना से बचाव के लिए मोदी सरकार परामर्श जारी कर सकती है, लेकिन जनता इसमें अपना काम बनाने में लगी है। कोरोना के बहाने सीवान में आतंक का वह दृश्य भी उभर आता है जिसमें एक खास वर्ग का सरकार के साथ न होने का संदेश देती सुनाई-दिखाई देता है। जिसे सीवान में 2005 के बाद वाली पीढ़ी, नगर के उस खौंफ को नहीं समझ पाएगी!
कोरोना के इस दौर में मस्तिष्क की इम्युनिटी का ख्याल करना सबसे अधिक आवश्यक है, क्योंकि एक खास समुदाय को कोराना से कहीं अधिक मोदी से शिकायत है। कोरोना को लेकर एक खास वर्ग में संदेह, अविश्वास एवं नफरत ने इस प्रकार अपनी जगह बनाई है कि बंटवारे वाले वर्ष 1947 की याद आ रही है। एक बड़ा वर्ग कोरोना को लेकर सरकार के सारे परामर्श को मानता है, समझता है, विश्लेषण करता है लेकिन एक दूसरा वर्ग भी है जो इसे मोदी की साजिश,अल्पसंख्यक वर्ग के प्रति उनका दोहरा चरित्र, ईर्ष्या व द्वेष वाला फरमान बताकर अपने समाज में अलगाव फैला रहा है, इसलिए दबी जुबान से लोग कहते है कि अगर कोराना से बचाना है तो व्यक्ति एक मीटर की दूरी और मुसलमान से दस मीटर की दूरी पर रहे।
पुस्तक लाॅकडाउन में रचनाकार उन दिनों दूरदर्शन पर आ रहे रामायण और महाभारत के एपीसोड से इस महामारी को जोड़ा है। मोदी जी का आग्रह है कि 05 अप्रैल को रात में 9 बजे 9 मिनट के लिए घरों की बतियां बुझा दें और अपने सदन में दीप जलाएं। इस प्रकार का प्रयास आम लोगों में एक स्फूर्ति और ऊर्जा प्रदान करतेगा और 5 अप्रैल की रात में दीप जलाकर जैसे पूरा देश उत्सव मनाया गया।
“शुभ कुरूतवं कल्याणं आरोग्यं धन संपदा।
शत्रु बुद्धि बिनाशाय दीप ज्योति नमोस्तुते।”
एक समय इंदिरा गांधी ने भी आपातकाल का अर्थ समझाया था और अब मोदी जी लॉकडाउन का पाठ पढ़ा रहे है।
लॉकडाउन में संयुक्त परिवार की संस्कृति लौट रही है। लॉकडाउन में अपना गांव याद आ गया है, हम भी अपने पूरे परिवार के साथ 40 दिन तक गांव में रहे। आज 10 अप्रैल 2020 है और आज की सबसे बड़ी खबर है कि चीन का बुहान बना सीवान का पंजवार गांव। हां यह वही गांव है जहां केजी से लेकर पीजी तक के शिक्षा की व्यवस्था है। यहां आखर के द्वारा भोजपुरी भाषा को बढ़ावा देने हेतु प्रत्येक वर्ष देश के प्रथम राष्ट्रपति एवं सीवान के लाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जन्मदिवस के अवसर पर प्रत्येक 03दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन का आयोजन होता है।
भय ने हमें जकड़ कर रखा है और बहुत मुश्किल है उससे उबर पाना। महामारी से कहीं अधिक भय का साम्राज्य फैल रहा है। कोरानासुर राक्षस का तांडव नृत्य चल रहा है। कोराना के भय से जुझने में दूरदर्शन, इंटरनेट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन कुछ अखबार एवं यूट्यूब चैनल वाले ने मौत की खबर को ऐसा बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया है की डर के साए में व्यक्ति जीने को मजबूर हो उठा है।
प्रत्येक परिवार किसी न किसी रूप में कोराना के भय से ग्रस्त रहा। ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ जब नोएडा स्थित मेरे छोटे भाई के फ्लैट में उनका परिवार कोराना से ग्रसित हो गया सभी सामाजिक दूरी पर रहे। एक घर में बंद रहे। हम सभी यहां सीवान में उनके स्वास्थ्य एवं जीवन को लेकर चिंताग्रस्त थे।इतने में पिताजी अपनी जिद्दी स्वभाव के अनुसार होली उत्सव में नोएडा चले गए। पूरे फ्लैट वाले उनके 80 वर्ष की अवस्था को देखते हुए बैरन होली के दिन ही इनको बलपूर्वक संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से सीवान लौटा दिए। पिताजी को कुछ नहीं हुआ, वह लगातार करते रहे “जहिया मरे को होई केहुना बचाई, जब ले जिंदगी बा तबले जियतानी।”
कोरोना में करूणा का दृश्य उत्पन्न हो गया है।गरीब के बच्चे स्कूल चले जाते थे तो एक समय की खिचड़ी भी उन्हें मिल जाती थी अब तो उन्हें घर पर ही रहना पड़ रहा है और वह घर पर ही भोजन कर रहे है। लॉकडाउन के कारण सब बंद है। ऐसे में ईश्वर को याद करने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है।
डॉक्टरों ने भी इस घड़ी में अपने क्लीनिक को बंद करके रखा है कहते हैं ‘जान है तो जहान है’। साथ ही डॉक्टर साहब लोगों का कहना है कि मरीजों को बीमारी का वहम है बीमारी नहीं क्योंकि बीमारियों का संबंध हमारे जीवन शैली के साथ दिमाग से भी है।
प्रत्येक व्यक्ति का अपना अनुभव संसार होता है लेकिन दूसरों के पाप गिनाने से अपने पाप कम नहीं हो जाते। कोरोना से लड़ाई में सबसे बड़ी ताकत है, लोक और तंत्र की एकजूटता। धर्म जाति और राजनीति से ऊपर उठकर यह केवल एकजुटता का काल है। इन सभी बातों से स्पष्ट है कि रचनाकार का तत्कालीन सरकार पर अटूट विश्वास है और उनके मष्तिष्क में यह विश्वास भी है कि मोदी सरकार कोरोना पर अवश्य काबू पाएगी। उनका यह भी कहना है कि हमारे पाठ्यक्रम में आपदा अध्याय का नहीं होना कोरोना की भयवहता को और बढ़ाया है। अगर कोराना जैसे महामारियों का वर्णन हमारी पाठ्य पुस्तकों में होता तो हम कम भयभीत होते और इससे लड़ने के लिए हमसभी शिक्षित भी हो चुके होते, क्योंकि सुनामी, भूकंप, बाढ़, सुखाड़, दुर्घटना (ट्रेन, बस) आज का लगना, भूसंखलन और महामारी जैसी आपदाओं का वर्णन हमारी पाठ पुस्तकों में अवश्य होना चाहिए। अब इस पर ध्यान दिया गया है।
महाराष्ट्र के पालघर में 19 अप्रैल 2020 को दो साधुओं की पीट- पीट कर हत्या कर देने पर लेखक का मन द्रवित हो जाता है। वह कहते हैं कि इसके विरुद्ध किसी ने आवाज नहीं उठाई जबकि लिबरल+सेकुलर+ वामपंथी+ अवार्ड वापसी गैंग+ रंगा बिल्ला गाइड+ शहरी नक्सली+ बुद्धिजीवी+नागरिक समाज+ सही सोच वाले भारतीय सभी मोबाइल पर कुछ न कुछ अवश्य वमन करते रहते है।कोरोना में अपराध कम नहीं हुए। घरेलू हिंसा बढ़ गई, चोर-उचक्के मास्क लगाए रहते, जिससे उन्हें पहचान में परेशानी होती,वे पूरा किट पहनकर एटीएम का ताला तोड़ते, घरों में चोरियां करते, शराब की तस्करी करना जैसे अपराध लगातार हो रहे थे।
कोराना में दाढ़ी तो घर पर ही बन जाती थी लेकिन बाल कैसे बने? अब देश के प्रधानमंत्री मोदी जी की तरह सब बाल और दाढ़ी तो नहीं बढ़ा लेंगे। नाई जल्दी तैयार नहीं होते थे, कई गुना अधिक शुल्क लेकर नाई चोरी छिपे बाल (हजामत) बनाते थे।
कई स्थान पर कोराना फाइटरस का स्वागत होता रहा। इसमें डॉक्टर, नर्स, मेडिकल स्टाफ,पत्रकार,पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ता प्रमुख रूप से थे। कहीं संस्थाओं ने मुफ्त राशन, साबुन, माचिस, तेल, बांटना भी प्रारंभ किया था। विदेश से भी मदद के तौर पर कई प्रकार की सहायता निरन्तर मिल रही थी। मास्क, सैनिटाइजर, गुलपस, साबुन व्यक्ति के दैनिक उपयोग में बढ़ गए थे।
कोराना काल में बेचारे बच्चों की सारी मस्ती समाप्त हो गई थी। घर की दीवारों में कैद रहना अब उनकी नियति बन चुकी थी।
कोराना से बड़ा है कोराना का डर। लॉकडाउन में जिलों को तीन जोन में बांटा गया था- रेड,ऑरेंज और ग्रीन। लॉकडाउन-4 में दो और जोन बढ़ गए- कॉन्टनमेंट और बफर जोन।
लेखक बड़े ही धार्मिक व्यक्ति है,अर्थात उनहें अपने ईश्वर की अनूभूतियों से साक्षात्कार है। यही कारण है कि ईश्वर पर आपका पूरा विश्वास है। वह पहाड़ों की यात्रा को अपने ईष्ट से मिलने का माध्यम बनाते है। यात्रा करते हुए जीवन के अनुभव को जीना रचनाकार मनोज जी का प्रिय स्वभाव है।सफल व्यक्ति की कथा दूसरे लोग कहते और सुनते हैं पर प्रत्येक असफल व्यक्ति के पास कुछ कहने- सुनने के लिए उसकी अपनी कथायें होती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का जीवन एक रोचक कहानी का प्लॉट होता है।
रचनाकार मनोज कुमार वर्मा जी ने रामायण-महाभारत से लॉकडाउन को जोड़ा है। वे कहते है कि “रामायण में राम का चरित्र दूध की तरह निर्मल,स्वच्छ और उज्जवल है तो भरत उसे दूध से निकल गए मक्खन की तरह है। मतलब यह है कि मनोज जी ने रामायण और महाभारत के प्रत्येक पत्रों से इस आपदा में व्यक्ति को धैर्यवान बनाने और विपत्तियां पर काबू पाने का एक नया माध्यम भी देते है।
यह पुस्तक अपने नाम के अनुसार लॉकडाउन की पूरी याद को तरोताजा तो करती ही है साथ ही कोराना काल में आपदा के भय को भी रेखांकित करने के साथ-साथ महामारी से निपटने में सरकारी आदेश का पालन,अपने धैर्य,अनुशासित दिनचर्या का पाठ भी पढ़ाती है।
सीवान में कोराना के विषय को लेकर जब भी चर्चा होगी उसमें मनोज कुमार वर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘लाॅकडाउन’ का संदर्भ अवश्य उद्धृत किया जायेगा।
पुस्तक रचना के लिए मनोज कुमार वर्मा जी को आभार।
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