हमें आतंकी हमले के विरुद्ध क्यों खड़े होना चाहिए?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सबकी निगाह फिर पश्चिम एशिया की ओर उठ गई है, जहां बाकायदे जंग छिड़ गई है, सैकड़ों मासूम मारे गए हैं। वैसे आतंकी संगठन हमास ने इजरायल पर कोई अचानक हमला नहीं किया है, छह महीने पहले भी उसने हमला किया था और इजरायल की ओर से जवाबी कार्रवाई भी बहुत दिनों तक चली थी।
आज यह भी गौर करने की बात है कि फलस्तीन दो भागों में बंट गया है। वेस्ट बैंक में जहां पीएलओ, यानी फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन की सरकार है, तो गाजा पट्टी पर हमास का कब्जा है। हमास 1980 के दशक में पैदा हुआ कट्टरपंथी इस्लामिक मूवमेंट है। यह इस क्षेत्र में किसी भी तरह से इजरायल या उसके कब्जे को मंजूर नहीं करता है।
जबसे फलस्तीन में अलगाव हुआ, उसके बाद से ही हमास का यह मकसद रहा है कि वह इजरायल के कब्जे वाले इलाकों को बलपूर्वक वापस ले ले। यह पहलू भी सब जानते हैं कि हमास एक घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन है। उसके साथ किसी भी देश का सीधे रिश्ता नहीं है, मगर परोक्ष रूप से उसे समर्थन मिलता रहा है। खासकर ईरान समर्थन करता है, कतर भी धन देता है, इसलिए हमास के पास हथियार आ जाते हैं। अभी हमास ने जो हमला किया है, इसमें कोई शक नहीं कि यह हमला उसने पूरी तैयारी से किया है, ताकि पश्चिम एशिया में इजरायल के जमे पैरों को उखाड़ा जा सके।
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वेस्ट बैंक फलस्तीन में शासन कर रहा पीएलओ सेकुलर है, जिसके नेता याशर अराफात हुआ करते थे। हमास सांप्रदायिक रूप बहुत कट्टर संगठन है। अब हमास के पास मिसाइल भी है, जिससे वह इजरायल पर हमले करता है। उसने बहुत योजना के साथ दक्षिणी इजरायल क्षेत्र से घुसपैठ की है, जल, हवा और जमीन, तीनों ही स्तरों पर हमास ने हमला बोला है। ऐसा नहीं है कि हमास इजरायल के किसी क्षेत्र पर कब्जा कर लेगा। पर वह शायद यह संदेश देना चाहता है कि उसके इलाके पर जो कब्जा करेगा, उसके खिलाफ वह लड़ेगा।
हमास दुनिया को दिखाना चाहता है कि उसके पास इतनी ताकत है कि वह शक्तिशाली इजरायल में भी घुसपैठ कर सकता है। यह एक तरह से इजरायल की शान पर हमला है। हमास फलस्तीन के खैरख्वाह देशों को यह भी दिखाने की कोशिश में है कि पीएलओ कुछ नहीं कर रहा, केवल वही फलस्तीनियों के लिए लड़ रहा है।
अरब दुनिया में बड़े क्षेत्र को अगर हम देखें, तो ईरान एक बड़ी ताकत होने का दावा पेश करता है। वह शुरू से ही हमास का समर्थक है, तो जाहिर है, हम ईरान और इजरायल के बीच लंबे समय से तनाव देखते आए हैं। कतर एक छोटा देश है, मगर उसके पास पेट्रोलियम की वजह से बहुत पैसा है। सऊदी अरब की बात करें, तो वह मानता है कि फलस्तीनियों को लड़ने का अधिकार है, पर वह अंदर से हमास को नहीं चाहता है। मिस्र भी उसे नहीं चाहता, क्योंकि हमास इस्लामिक ब्रदरहुड से जुड़ा है। ऐसे में, वह हमेशा यही जताने की फिराक में लगा रहता कि वह अकेला संगठन है, जो फलस्तीनियों की आवाज उठाता है।
हमास और इजरायल के बीच लड़ाई पुरानी है, पर यह पहली बार ऐसा हुआ है कि हमास ने इजरायल के अंदर घुसकर ऐसी कार्रवाई की है। घुसकर इजरायलियों को मारा है, उन्हें बंधक बनाया है। इजरायल के लिए यह बहुत बड़ा बदलाव है, इसलिए उसने बिना देरी किए युद्ध की घोषणा कर दी है। फिर भी ऐसा लगता है कि कुछ दिनों तक युद्ध चलेगा और फिर समझौते के लिए प्रयास होंगे। दोनों पक्षों पर दबाव बनेगा।
बहरहाल, दुनिया पर इसका असर तय है। पश्चिमी देश इजरायल के साथ खड़े होंगे और अमेरिका तो उसकी मदद करेगा ही। भारत भी इजरायल के साथ है। भारत खुद लंबे समय से आतंकी संगठनों से जूझ रहा है। इजरायल नैतिक, कूटनीतिक और राजनीतिक रूप से भारत की हमेशा मदद करता रहा है, वहीं हमास को नई दिल्ली ने आतंकी संगठन के रूप में ही देखा है। हमास के पक्ष में हम कभी खडे़ नहीं हो सकते। हां, केंद्र में कोई दूसरी सरकार होती, तो शायद वह तटस्थ रुख अपनाती। चूंकि यह सरकार अनेक आतंकी संगठनों से आगे बढ़कर लड़ रही है, सीमापार जाकर भी कार्रवाई की है, तो इजरायल का समर्थन करना स्वाभाविक है। वैसे भी समग्रता में यह हमारा कर्तव्य है कि इस मौके पर हम इजराइल के साथ खड़े हों।
आज चिंता बड़ी है, पर युद्ध का क्षेत्र छोटा है। आकार में अगर देखें, तो इजरायल या फलस्तीन का क्षेत्र बड़ा नहीं है। पश्चिम एशिया में छोटे-छोटे देश हैं, जिनके बीच भयानक खूनी संघर्ष चलता रहा है। इजरायल ने गाजा क्षेत्र से अपना कब्जा हटा लिया था, क्योंकि गाजा को नियंत्रित करना कठिन है, वहां घनी आबादी है, पिछड़ापन है। अब जब गाजा पर कब्जा किए बैठे हमास और इजरायल के बीच युद्ध छिड़ गया है, तब सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की हो रही है कि इजरायल का खुफिया तंत्र इतना कमजोर कैसे पड़ गया? हमास ने यह तो दिखा ही दिया कि वह जब भी चाहे, इजरायल पर हमले कर सकता है।
यह इजरायल में असुरक्षा का भाव पैदा करने की साजिश है। अभी तक वह दुश्मनों या प्रतिकूल देशों से घिरे होने के बावजूद खुद को बहुत सुरक्षित समझ रहा था, मगर हमास ने हमला करके बता दिया कि अगर गाजा सुकून से नहीं है, तो इजरायल भी चैन से नहीं रह सकता। शायद इजरायल की तरक्की भी चुभ रही है। हमने देखा है कि पिछले दिनों में सऊदी अरब ने भी इजरायल से संबंध बनाने की रुचि दिखाई है। हमास यह नहीं चाहता, इसलिए अगर उसकी मंशा बड़े युद्ध की हो, तो आश्चर्य नहीं।
रही बात इजरायल को परास्त करने की, तो उसे हराया नहीं जा सकता। शायद हमास यह भी चाहता होगा कि सीधे हमला करके वह बाकी अरब देशों की सहानुभूति व समर्थन बटोर लेगा। उसे लगा होगा कि अरब देश उसके साथ खड़े हो जाएंगे, पर ऐसा होने की संभावना नहीं है। यह रूस-यूक्रेन युद्ध जैसा मामला नहीं है। अरब दुनिया बहुधु्रवीय है, ऐसा नहीं है कि सारे अरब देश फलस्तीन के लिए लड़ना शुरू कर देंगे। अभी भारत का आधिकारिक पक्ष सही है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि हम इजरायली कब्जे के पक्षधर बन जाएं। हमें आतंकी हमले के खिलाफ खड़े रहना चाहिए।
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