हिमनद झील में बाढ़ का प्रकोप,कारण और प्रभाव
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सिक्किम के दक्षिण लोनाक झील का दक्षिणी तटबंध टूट गया, जिससे बर्फीले जल और मलबे का एक बड़ा मिश्रण बहकर बाहर आ गया। उत्पन्न बाढ़ ने चुंगथांग बाँध, NHPC जलविद्युत परियोजना और क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे को भारी नुकसान पहुँचाया। इस आपदा में 35 से अधिक लोगों की जान चली गई, 14 पुल क्षतिग्रस्त हो गए, 1320 घरों को गंभीर क्षति पहुँची और आवश्यक उपयोगिताओं में व्यवधान उत्पन्न हुआ। इस तबाही का असर उत्तरी सिक्किम, गंगटोक, पाक्योंग और नामची ज़िलों के राजमार्गों तक विस्तृत रहा तथा इससे राष्ट्रीय राजमार्ग 10 का एक भाग भी प्रभावित हुआ जो शेष भारत से संपर्क के लिये एक महत्त्वपूर्ण लिंक है।
- हिमनद झीलें (Glacial lakes) जल की ऐसी बड़ी निकाय हैं जो पिघलते ग्लेशियर के सामने, ऊपर या इसके नीचे स्थित होती हैं।
- इसके अलावा, हिमनद झीलों का निर्माण हिमनदों या ग्लेशियरों के मुहाने के पास पिघलते जल के संचय से होता है।
- जैसे-जैसे उनका आकार बढ़ता जाता है, वे और अधिक खतरनाक होती जाती हैं क्योंकि हिमनद झीलें अधिकांशतः अस्थिर बर्फ या ढीली चट्टानों एवं मलबे से बनी तलछट से घिरी होती हैं।
- यदि उनके चारों ओर की सीमा टूट जाती है तो जल की भारी मात्रा पहाड़ों की ओर से नीचे की ओर बहने लगती है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ आ सकती है।
- इसे हिमनद झील के फटने से बाढ़ (glacial lake outburst floods) या GLOF के रूप में जाना जाता है।
- GLOF कई कारणों से प्रेरित हो सकता है, जिनमें भूकंप, अत्यधिक भारी वर्षा और बर्फीले हिमस्खलन शामिल हैं।
GLOF के प्रमुख कारण
- जलवायु परिवर्तन और हिमनद का पिघलना: क्षोभमंडल (troposphere) का बढ़ता तापन (warming) जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष परिणाम है। इस तापन के कारण दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हिमनदों का तेज़ी से पिघलना शुरू हो गया है।
- हिमनदों के पिघलने से उत्पन्न जल गहरे क्षेत्रों में जमा होने लगता है, जिनसे झीलें बन सकती हैं। ये हिमनद झीलें अस्थायी होती हैं और उल्लेखनीय खतरे उत्पन्न कर सकती हैं।
- हिमनदों का पीछे हटना: जैसे-जैसे तापमान वृद्धि के कारण हिमनद पिघलते जाते हैं और पीछे हटते जाते हैं, वे अपने पीछे गर्त या बेसिन छोड़ते जाते हैं। ये गर्त पिघले जल और बर्फ से भर सकते हैं, जिससे हिमनद झीलों का निर्माण हो सकता है। जब ये झीलें आकार में बहुत बड़ी हो जाती हैं तो तटबंध पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे GLOF का खतरा बढ़ जाता है।
- हिमनद की वृद्धि: कुछ हिमनदों में वृद्धि या उफान की स्थिति बन सकती है, जो तेज़ी से आगे बढ़ने और पीछे हटने की अवधि है। इस वृद्धि के दौरान हिमनद पिघलते जल को अवरुद्ध कर सकता है, जिससे एक अस्थायी हिमनद झील का निर्माण हो सकता है। जब यह उफान समाप्त होता है तो तटबंध टूट सकता है, जिससे GLOF उत्पन्न हो सकता है।
- उच्च भेद्यता गुणांक (High Vulnerability Quotient): इन झीलों के तटबंधों में हिमोढ़ (moraine), शैल, बोल्डर, मिट्टी और बर्फ के ढीले जमाव होते हैं। चूँकि ये तटबंध उपयुक्त रूप से संकुचित (compacted) नहीं होते हैं, इसलिये वे उच्च भेद्यता गुणांक रखते हैं।
- हिमस्खलन या भूस्खलन: हिमस्खलन, शैल-स्खलन या भूस्खलन बाँध सामग्री (damming material) को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे यह दुर्बल हो जाता है या ढह जाता है और झील का जल अचानक बाहर निकल आता है।
- भूकंप: भूकंपीय गतिविधि बाँध सामग्री को खंडित या दुर्बल कर GLOF को उत्प्रेरित कर सकती है। कुछ मामलों में, भूकंप से बर्फ और मलबा खिसककर झील में पहुँच सकता है, जिससे जल स्तर में तेजी से वृद्धि हो सकती है और फिर बाढ़ की स्थिति बन सकती है।
- ज्वालामुखी गतिविधि: ज्वालामुखी विस्फोट से हिमनद पिघल सकते हैं और भारी मात्रा में जल का निकास कर सकते हैं, जो फिर GLOF का कारण बन सकता है।
- मानवीय गतिविधियाँ: हिमानी झीलों के आसपास खनन, निर्माण या वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियाँ प्राकृतिक अवरोधों को अस्थिर बना सकती हैं और GLOF के खतरे को बढ़ा सकती हैं।
- कृत्रिम झील निर्माण: जलविद्युत बाँध या खनन गतिविधियों जैसी निर्माण परियोजनाओं के परिणामस्वरूप कृत्रिम हिमानी झीलों का निर्माण हो सकता है। अकुशल रूप से डिज़ाइन किये गए बुनियादी ढाँचों और रखरखाव से GLOF का खतरा बढ़ सकता है।
GLOFs के प्रभाव
- जीवन और संपत्ति का नुकसान: GLOF जान-माल की क्षति का कारण बन सकता है और घरों, पुलों, सड़कों, वनों एवं फसलों को नष्ट कर सकता है।
- उदाहरण के लिये, अक्तूबर 2023 में भारत के सिक्किम में उत्पन्न GLOF ने कम से कम 18 लोगों की जान ले ली और 150 से अधिक लोग लापता हो गए। जून 2013 में भारत के उत्तराखंड में GLOF की एक अन्य घटना में 5,000 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई जलविद्युत परियोजनाओं को भारी नुकसान पहुँचा।
- आजीविका के लिये व्यवधान: GLOF संसाधनों, बाज़ारों, सेवाओं और अवसरों तक स्थानीय समुदायों की पहुँच को बाधित कर उनकी आजीविका को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित कर सकता है। GLOF पर्यटन उद्योग को भी नुकसान पहुँचा सकता है, जो कई पर्वतीय क्षेत्रों के लिये आय का एक प्रमुख स्रोत है।
- अवसंरचना और पर्यावरण को नुकसान: GLOFs जलविद्युत संयंत्रों को नुकसान पहुँचा सकते हैं या उन्हें नष्ट कर सकते हैं, जो बिजली प्रदान करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। GLOFs भूदृश्य को भी बदल सकते हैं, मृदा का अपरदन कर सकते हैं, नदियों में तलछट का भार बढ़ा सकते हैं और जल की गुणवत्ता एवं उपलब्धता को प्रभावित कर सकते हैं।
- सीमा-पार प्रभाव: GLOFs हिमाच्छादित मुख्य जलक्षेत्र से दूर निचले इलाकों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, ऊपरी सतलज नदी बेसिन (चीन) में उत्पन्न सीमा-पारीय GLOFs पूर्वी हिमाचल प्रदेश के निचले इलाकों के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
भारत GLOFs के प्रति कितना संवेदनशील है?
- इसरो का ‘ग्लेशियल लेक एटलस’: इसरो (ISRO) के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC)) ने हिमालयी नदी घाटियों के लिये एक ग्लेशियल लेक एटलस जारी किया है। यह एटलस वर्ष 2016-17 के दौरान रिसोर्ससैट-2 उपग्रह द्वारा प्राप्त छवियों का उपयोग करके तैयार किया गया है और इसमें 0.25 हेक्टेयर से बड़े आकार की 28,000 से अधिक हिमनद झीलों की पहचान की गई है।
- सिक्किम: सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने राज्य में 300 से अधिक हिमनद झीलों की पहचान की है। इनमें से 10 को GLOF के प्रति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। हालाँकि, NRSC के आकलन ने सिक्किम में 733 हिमनदी झीलों की पहचान की है।
- उत्तराखंड: भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) ने पाया है कि उत्तराखंड में 486 हिमनद झीलों में से 13 GLOFs के प्रति संवेदनशील हैं।
- जम्मू और कश्मीर: दिल्ली विश्वविद्यालय के एक वैज्ञानिक के नेतृत्व में आयोजित वर्ष 2021 के एक अध्ययन में पाया गया कि जम्मू और कश्मीर में संवेदनशील हिमनद झीलों की संख्या सबसे अधिक है; इसके बाद अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम हैं। इससे पता चलता है कि GLOF का खतरा किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है बल्कि हिमालय क्षेत्र में व्यापक रूप से मौजूद है।
GLOFs के प्रबंधन के लिये NDMA दिशा-निर्देश
- संभावित रूप से खतरनाक झीलों की पहचान करना:
- संभावित रूप से खतरनाक झीलों की पहचान करने में बहु-विषयक दृष्टिकोण शामिल होता है। क्षेत्र अवलोकन, ऐतिहासिक रिकॉर्ड और भू-आकृतिक एवं भू-तकनीकी विशेषताओं का विश्लेषण उच्च जोखिमयुक्त क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकता है।
- इस सूचना का उपयोग निगरानी और जोखिम शमन के प्रयासों को प्राथमिकता देने के लिये किया जा सकता है।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- सिंथेटिक-एपर्चर रडार इमेजरी’ का उपयोग पूर्व-चेतावनी प्रणालियों की क्षमता को व्यापक रूप से बढ़ा सकता है।
- यह प्रौद्योगिकी जल निकायों में परिवर्तन का पता लगा सकती है, हिमनद की गतिविधियों की निगरानी कर सकती है और विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान नई झील संरचनाओं की पहचान कर सकती है।
- अंतरिक्ष से दूरस्थ निगरानी एक व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान कर सकती है, जिससे समय के साथ झील की स्थिति में परिवर्तन को ट्रैक करने में मदद मिल सकती है।
- संभावित बाढ़ों का प्रबंधन:
- झीलों का संरचनात्मक प्रबंधन जोखिम न्यूनीकरण का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। नियंत्रित उल्लंघन (controlled breaching), जल को पंपिंग से बाहर निकालना और सुरंग निर्माण जैसी तकनीकें जल की मात्रा को कम करने में मदद कर सकती हैं, जिससे GLOF का खतरा कम हो सकता है।
- अनुप्रवाह प्रभावों को कम करने के लिये इन तरीकों को अच्छी तरह से नियोजित और क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
- निर्माण गतिविधि के लिये समान संहिता:
- GLOF-प्रवण क्षेत्रों में अवसंरचना और भूमि उपयोग योजना के लिये समान निर्माण संहिता का विकास किया जाना आवश्यक है। संहिता में भूवैज्ञानिक एवं जलवैज्ञानिक जोखिमों पर विचार किया जाना चाहिये और निर्माण परियोजनाओं में इन जोखिमों को कम करने के उपायों को शामिल किया जाना चाहिये।
- पूर्व-चेतावनी प्रणाली (EWS) को बेहतर बनाना:
- आपदा तैयारियों के लिये आरंभिक या पूर्व-चेतावनी प्रणालियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। GLOF की पूर्व-चेतावनी के लिये सेंसर और निगरानी-आधारित तकनीकी प्रणालियों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह जोखिम रखने वाले समुदायों को समय पर सूचना प्रदान कर सकती हैं।
- ऐसी प्रणालियों के दायरे का विस्तार करना आवश्यक है, विशेष रूप से ग्लोफ़ प्रवण क्षेत्रों में।
- स्थानीय जनशक्ति को प्रशिक्षण देना:
- स्थानीय समुदाय आपदा प्रतिक्रिया और तैयारियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्थानीय कार्मिकों को प्रशिक्षण देने से GLOFs पर त्वरित एवं प्रभावी प्रतिक्रिया देने में मदद मिल सकती है।
- आपदा के समय रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में ये प्रशिक्षित लोग खोज एवं बचाव अभियान में भागीदारी कर सकते हैं, आपातकालीन आश्रय स्थापित करने में सहायता कर सकते हैं और राहत आपूर्ति वितरण में भूमिका निभा सकते हैं।
- व्यापक अलार्म प्रणाली:
- सेल फोन और स्मार्टफोन जैसे आधुनिक संचार तकनीक पारंपरिक चेतावनी अवसंरचना को पूरकता प्रदान कर सकते हैं या उन्हें प्रतिस्थापित कर सकते हैं।
- व्यापक अधिसूचना प्रणालियों के लिये इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग व्यापक लोगों तक पहुँच प्रदान कर सकता है और आसन्न आपदाओं के मामले में समय पर सावधान कर सकता है।
GLOF आपदा को कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- निगरानी और डेटा संग्रह: संवेदनशील हिमनद झीलों के मुहाने के पास मौसम संबंधी घटनाओं की गहन निगरानी करना एक तात्कालिक आवश्यकता है। वेधशालाओं में डेटा एकत्र किया जाना चाहिये और इन्हें एक केंद्रीकृत कार्यालय को संप्रेषित किया जाना चाहिये। हिमनद झीलों के व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने और लोगों को सचेत करने के लिये इस डेटा को समयबद्ध रूप से संसाधित किया जाना चाहिये।
- संवेदनशील झीलों के अनुप्रवाह क्षेत्र की नदियों में जल स्तर की भी लगातार निगरानी की जानी चाहिये।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: उपग्रहों और ड्रोनों द्वारा संवेदनशील हिमनद झीलों की नियमित निगरानी के लिये एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये। यह प्रौद्योगिकी भू-अवस्थित वेधशालाओं को पूरकता प्रदान कर सकती है और GLOF की समग्र समझ एवं पूर्वानुमान को बेहतर बना सकती है।
- संशोधित सुरक्षा मानक: GLOFs से बढ़ते खतरों को देखते हुए, पर्वतीय क्षेत्रों में अवसंरचना परियोजनाओं के लिये सुरक्षा मानकों को संशोधित किया जाना चाहिये। इसमें बाँध, पुल और राजमार्ग जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं। ऐसी परियोजनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये गुणवत्ता नियंत्रण उपाय कठोर बनाए जाने चाहिये।
- निर्माण का विनियमन: पर्वतीय क्षेत्रों में बाँध, पुल और राजमार्ग जैसी अवसंरचना परियोजनाओं को कड़े गुणवत्ता नियंत्रण उपायों के अधीन किया जाना चाहिये। पर्वतीय क्षेत्रों में GLOF और बाढ़ की अन्य घटनाओं से उजागर होता है कि नदियों के निकट बनी इमारतें सबसे पहले और सबसे अधिक प्रभावित होती हैं।
- इसलिये, नदियों के निकट निर्माण कार्य को सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया जाना चाहिये।
- वैज्ञानिक अनुसंधान: देश में हिमनदों पर वैज्ञानिक अध्ययन को बढ़ाया जाना चाहिये। जलवायु अनुमानों से संकेत मिलता है कि हिमालय क्षेत्र में हिमनद घट रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि नई झीलों का निर्माण हो सकता है, जबकि मौजूदा झीलें विस्तारित हो सकती हैं।
- हिमनद जलवायु परिवर्तन के सर्वोत्तम संकेतकों में से एक हैं।
- इसलिये, यह समझना आवश्यक है कि ये हिम निकाय विभिन्न हिमालयी क्षेत्रों (जो देश के सबसे अधिक डेटा-दुर्लभ क्षेत्रों में से एक हैं) में जलवायु परिवर्तन पर किस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं।
- हिमनद जलवायु परिवर्तन के सर्वोत्तम संकेतकों में से एक हैं।
- व्यापक जोखिम मूल्यांकन: हिमालय क्षेत्र को एक व्यापक जोखिम मूल्यांकन की आवश्यकता है जो अनुमानित तापमान वृद्धि, वर्षा पैटर्न में परिवर्तन और भूमि-उपयोग/भू-आवरण परिवर्तन को ध्यान में रखे। इस मूल्यांकन से आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों के विकास में मदद मिल सकती है।
- जलविद्युत विकास को संतुलित करना: केंद्र की उत्तरवर्ती सरकारों ने जलविद्युत विकास में पूर्वोत्तर भारत को महत्त्वपूर्ण रूप से देखा है। चुंगथांग बांध 1,200 मेगावाट के तीस्ता चरण 3 जलविद्युत परियोजना का एक भाग है।
- सरकार का दावा है कि निम्न उत्सर्जन तीव्रता के कारण ऐसी परियोजनाएँ जलवायु-अनुकूल हैं।
- हालाँकि, पारिस्थितिकी विज्ञानी (Ecologists) बाँध निर्माण के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति आगाह करते हैं क्योंकि इससे हिमालय क्षेत्र में चट्टानों की अस्थिरता बढ़ जाती है।
- सिक्किम में आई आपदा एक चेतावनी है कि ऐसी आपदाओं की संभावनाओं पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए और मज़बूत सुरक्षा तंत्र स्थापित किया जाए।
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