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अनुसंधान में डेटा हेर-फेर के नैतिक पहलू क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 व्यवहार विज्ञान में धोखाधड़ी के आरोप सामने आए क्योंकि स्वतंत्र जाँचकर्त्ताओं ने हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल के प्रोफेसर फ्रांसेस्का गिनो से जुड़े डेटा हेर-फेर का खुलासा किया है, जिसे ईमानदारी और अनैतिक व्यवहार पर अध्ययन के लिये अनुसंधान कदाचार का दोषी पाया गया।

  • ऐसा ही एक उदाहरण तमिलनाडु में अन्नामलाई विश्वविद्यालय का मामला है, जहाँ शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रकाशित कम-से-कम 200 अकादमिक पत्रों में साहित्यिक चोरी, हेर-फेर की गई छवियाँ  और अन्य डेटा शामिल है, जिसमें लेखक के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति भी शामिल थे।

शोधकर्त्ताओं द्वारा कदाचार का कारण: 

  • कदाचार का मूल कारण अनुसंधान:
    • शोधकर्त्ताओं के पास वैकल्पिक परिकल्पनाओं का समर्थन करने वाले अभूतपूर्व निष्कर्ष और परिणाम उत्पन्न करने के लिये मज़बूत कारण हैं, जो मुख्य रूप से प्रोत्साहन का कारण है। हालाँकि इन पर्याप्त प्रोत्साहनों के कारण कुछ मामलों में निम्न स्तर का और यहाँ तक कि मनगढ़ंत कार्य भी हुआ है।
      • वर्ष 1912 में कुख्यात पिल्टडाउन मैन धोखाधड़ी से लेकर हाल के डिडेरिक स्टेपेल जैसे मामलों तक वैज्ञानिक कदाचार का एक लंबा इतिहास रहा है। यह वर्तमान में भी विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में विद्यमान है।
  • कदाचार में योगदान के लिये प्रेरित करने वाले कारक:
    • समीक्षकों द्वारा इसका पता न लगा पाना और अनुसंधान पर्यवेक्षकों की मेंटरिंग शैली की कदाचार में भूमिका हो सकती है। कदाचार के मामले में दंडित करने के लिये राष्ट्रीय और संस्थागत स्तर पर व्यापक नीतियों की कमी को भी समस्या में योगदानकर्ता के रूप में उद्धृत किया गया है।
  • कदाचार के व्यवस्थित कारण:
    • फंडिंग और दबाव राहत:
      • एक दृष्टिकोण पर्याप्त धन सुनिश्चित करना और शोधकर्त्ताओं पर दबाव कम करना है। इसमें गुणवत्ता-नियंत्रण गतिविधियों के लिये अनुसंधान अनुदान का एक हिस्सा आवंटित करना शामिल हो सकता है, ताकि अनुसंधानकर्त्ताओं को अधिक व्यापक और कुशल अनुसंधान करने की अनुमति मिल सके।
    • प्रतिकृति अध्ययन का समर्थन: 
      • प्रतिकृति अध्ययनों का समर्थन करना, जो अन्य अध्ययनों के परिणामों को सत्यापित करता है, एक और मूल्यवान तरीका है। प्रतिकृति अध्ययन के लिये नकद पुरस्कार के रूप में वित्तीय सहायता, शोधकर्त्ताओं को ऐसे अध्ययन करने हेतु प्रोत्साहित कर सकती है।

कदाचार के नैतिक प्रभाव: 

  • दीर्घकालिक परिणाम:
    • वैज्ञानिक कदाचार के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं, विशेषकर जब कदाचार में किसी क्षेत्र के प्रभावशाली लोग या प्रमुख वैज्ञानिक शामिल हों।
      • उदाहरण के लिये, डॉ. गीनो जैसे प्रमुख वैज्ञानिक का काम दूसरों के लिये आधार का कार्य करता है, लेकिन उनके कदाचार के उजागर होने पर संभावित रूप से वर्षों के शोध को हानि पहँच सकती है।
  • कदाचार के व्यापक प्रभाव:
    • यह किसी एक मामले तक सीमित नहीं है; इसके बदले यह कई कागज़ात और निष्कर्षों को भी प्रभावित कर सकता है जो समझौता किये गए कार्य पर निर्भर थे, जिससे वर्षों की वैज्ञानिक जाँच की अखंडता खतरे में पड़ सकती है।
  • वैज्ञानिक प्रकाशन में पारदर्शिता का अभाव:
    • वैज्ञानिक प्रकाशन, प्रायः प्रकाशित पत्रों में कदाचार के संकेतों की पर्याप्त जाँच या सुधार के बिना अनुसंधान और शिक्षा में अपनी भूमिका से परे, अनुसंधान कदाचार को स्थिर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • उदाहरण के लिये, हाल की घटनाएँ जैसे नेचर ने प्रकाशन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को उजागर करते हुए डेटा विसंगतियों के कारण एक पेपर को वापस ले लिया।

कदाचार से निपटने के उपाय:

  • OSF के साथ वैज्ञानिक कदाचार से निपटना:
    • ओपन साइंस फ्रेमवर्क (OSF) वैज्ञानिक कदाचार से निपटने के लिये एक अभिनव दृष्टिकोण है। इस ढाँचे का उद्देश्य पूर्व-पंजीकरण जैसी प्रथाओं का समर्थन कर वैज्ञानिक अखंडता को बनाए रखना है, जिसमें किसी अध्ययन को संचालित करने से पूर्व उसकी परिकल्पना, तरीके और विश्लेषण स्थापित करना शामिल है।
      • OSF एक गैर-लाभकारी संगठन, सेंटर फॉर ओपन साइंस (COS) द्वारा स्थापित अनुसंधान का समर्थन करने और सहयोग को सक्षम करने के लिये एक स्वतंत्र, खुला मंच है।
  • महत्त्वाकांक्षी ‘स्कोर’ (SCORE) परियोजना:
    • इसके अतिरिक्त, OSF टीम द्वारा ‘सिस्टमेटाइज़िंग कॉन्फिडेंस इन ओपन रिसर्च एंड एविडेंस (Systematizing Confidence in Open Research and Evidence- SCORE)’ प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया है जिसका उद्देश्य स्वचालित उपकरणों की सहायता से अनुसंधान विश्वसनीयता को बढ़ाना है जो अध्ययन के दावों के लिये त्वरित और सटीक कॉन्फिडेंस स्कोर प्रदान करते हैं।
  • अधिक हितधारकों को शामिल करना:
    • वर्तमान वैज्ञानिक विश्व में धोखाधड़ी से निपटने के विभिन्न तरीके शामिल हैं। हालाँकि ये तकनीकें संस्थानों में असंगत हो सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप, सहयोगकर्ता शोधकर्ताओं को सज़ा के अनौपचारिक रूपों का सामना करना पड़ सकता है, इस मामले को कई हितधारकों को शामिल करके सुलझाने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • छ वैज्ञानिकों ने संस्थागत प्रयासों के अभाव में सहयोगात्मक कार्य की जाँच करने, विश्वसनीय और त्रुटिपूर्ण अनुसंधान के बीच अंतर करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली है ताकि उनके संपूर्ण कार्य को पर सवाल न किये जा सकें।
    • हालाँकि इसका एक व्यापक पुनर्मूल्यांकन होना चाहिये, विशेष रूप से जाने-माने वैज्ञानिकों की ओर से। इसकी जटिलता और बेहतर प्रक्रियाओं एवं मानदंडों की आवश्यकता को पहचानते हुए इस आदर्श धारणा को संशोधित करने की आवश्यकता है कि विज्ञान स्वाभाविक रूप से जटिल और स्वयं-सुधार करने वाला है।
  • इसमें निरंतर स्व-मूल्यांकन और सुधार को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी व प्रोत्साहन को शामिल करने की आवश्यकता है, जिससे इसे ‘विशेष’ परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया के बजाय एक मानक अभ्यास में बदला जा सके।
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