भूटान के विदेश मंत्री की हालिया चीन यात्रा क्या है?

भूटान के विदेश मंत्री की हालिया चीन यात्रा क्या है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भूटान के विदेश मंत्री ने चीन का दौरा किया जिसे विभिन्न स्तरों पर अभूतपूर्व माना जा रहा है क्योंकि भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध नहीं हैं और यह यात्रा किसी भूटानी विदेश मंत्री की पहली चीन यात्रा थी।

चीन और भूटान ने बीजिंग में सीमा वार्ता के 25वें दौर का आयोजन किया और “भूटान-चीन सीमा के परिसीमन और सीमांकन पर संयुक्त तकनीकी टीम (JTT) के उत्तरदायित्व एवं  कार्य” (Responsibilities and Functions of the Joint Technical Team (JTT) on the Delimitation and Demarcation of the Bhutan-China Boundary) पर एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये। यह सीमा समाधान के लिये वर्ष 2021 में शुरू किये गए उनके त्रि-चरणीय रोडमैप को आगे बढ़ाता है जो वर्ष 2016 में उनकी अंतिम वार्ता के बाद से बने सकारात्मक माहौल पर आधारित है।

  • इस त्रि-चरणीय रोडमैप में सर्वप्रथम सीमा पर सहमति के विषय को विचारार्थ रखना; फिर ज़मीनी स्तर स्थलों का दौरा करना; और फिर औपचारिक रूप से सीमा का सीमांकन करना शामिल है।

इस यात्रा को लेकर भारत की क्या चिंताएँ हैं?

  • भूटान के साथ भारत के अद्वितीय संबंध ने उसे भूटान द्वारा चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने और सीमा समझौते पर हस्ताक्षर करने के बारे में सतर्क कर दिया है।
  • भारत की चिंताओं के बावजूद प्रतीत होता है कि भूटान और चीन के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने और सीमा समझौते पर हस्ताक्षर करने की प्रबल संभावना है।
    • हालाँकि, भूटान के प्रधानमंत्री ने हाल ही में भारत को आश्वस्त भी किया था कि चीन के साथ किसी भी समझौते से भारत के हितों को क्षति नहीं पहुँचेगी।
  • भारत पर भूटान की अद्वितीय निर्भरता को देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं है कि उसने चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के अपने प्रयासों में भारत को भरोसे में लिया होगा और भारत के सुरक्षा सुरक्षा हितों एवं ‘रेड लाइन’ (वह सीमा जिसके पार नहीं जाया जा सकता) का पालन करने की गारंटी दी होगी।
    • ऐसी एक रेड लाइन में चीन को दक्षिणी डोकलाम की चोटियों से दूर रखना शामिल है जो भारत के ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ के निकट है। उल्लेखनीय है कि भूटान और चीन उत्तर की घाटियों में और पश्चिम में डोकलाम पठार पर अपने क्षेत्रों के बीच अदला-बदली पर विचार कर रहे हैं।
    • एक दूसरी रेड लाइन यह है कि सीमा वार्ता को आगे बढ़ाने के क्रम में चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने और स्थायी चीनी राजनयिक उपस्थिति के लिये स्वयं को खोलने के मामले में भूटान सतर्कता से और धीरे-धीरे आगे बढ़े।

भूटान-चीन के बढ़ते संबंधों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?

  • सुरक्षा निहितार्थ:
    • भूटान में चीन की बढ़ती उपस्थिति और प्रभाव भारत के सुरक्षा हितों के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं, विशेष रूप से डोकलाम पठार क्षेत्र में जो भारत, भूटान और चीन के त्रि-बिंदु (tri-junction) पर स्थित एक रणनीतिक क्षेत्र है।
      • भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर वर्ष 2017 में तनावपूर्ण गतिरोध की स्थिति बनी थी, जब भारतीय सैनिकों ने भूटान के दावे वाले विवादित क्षेत्र में चीन द्वारा सड़क निर्माण को रोकने के लिये हस्तक्षेप किया था।
    • यदि चीन और भूटान एक सीमा समझौते पर पहुँचते हैं जिसमें डोकलाम भी शामिल होगा तो यह सिलीगुड़ी कॉरिडोरजिसे ‘चिकन नेक’ (Chicken’s Neck) के रूप में भी जाना जाता है, के माध्यम से अपने पूर्वोत्तर राज्यों तक भारत की पहुँच को खतरे में पहुँचा सकता है।
    • भारत एक बफ़र राज्य के रूप में भूटान पर अपना प्रभाव भी खो देगा और उसे चीन एवं पाकिस्तान के साथ संभावित दो-मोर्चा युद्ध परिदृश्य से निपटना होगा।
  • आर्थिक निहितार्थ:
    • भूटान और भारत के बीच एक सुदृढ़ आर्थिक साझेदारी मौजूद है, जो मुख्य रूप से जलविद्युत सहयोग पर आधारित है।
      • भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), सहायता (aid) और ऋण का सबसे बड़ा स्रोत है।
      • भारत भूटान की अधिकांश अधिशेष बिजली का भी आयात करता है, जो भूटान के राजस्व का लगभग 40% है।
    • यदि भूटान चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाता है तो इससे भारत पर उसकी निर्भरता कम हो सकती है और भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
  • कूटनीतिक निहितार्थ:
    • भूटान और भारत के बीच एक विशिष्ट संबंध है जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों पर आधारित है।
      • भारत वर्ष 1949 से ही भूटान का निकटतम सहयोगी और संरक्षक देश रहा है, जब दोनों देशों के बीच एक संधि (भारत-भूटान शांति एवं मित्रता संधि, 1949) पर हस्ताक्षर किये गए थे। इस संधि ने भारत को भूटान की विदेश नीति और रक्षा पर महत्त्वपूर्ण नियंत्रण प्रदान किया।
    • हालाँकि भूटान को अधिक स्वायत्तता देने के लिये वर्ष 2007 में इस संधि को संशोधित किया गया था, फिर भी भारत भूटान के विदेशी मामलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • यदि भूटान चीन के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करता है तो यह उसकी पारंपरिक भारत समर्थक विदेश नीति को प्रभावित कर सकता है और क्षेत्र में भारत के प्रभाव को चुनौती दे सकता है।
  • अवसंरचना और कनेक्टिविटी:
    • यदि भूटान चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) में भागीदारी करता है तो इसका क्षेत्रीय अवसंरचना विकास और कनेक्टिविटी पर प्रभाव पड़ सकता है। भारत BRI के रणनीतिक और सुरक्षा निहितार्थों को लेकर चिंता रखता है।
  • क्षेत्रीय संगठनों में प्रभाव:
    • चीन के साथ भूटान का संरेखण दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और  बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (BIMSTEC) जैसे क्षेत्रीय संगठनों में भारत के प्रभाव को प्रभावित कर सकता है।

भूटान और चीन के बीच बढ़ते संबंधों के बीच भारत को किस प्रकार आगे बढ़ना चाहिये?

  • कूटनीति में संलग्न होना: भारत को चीन के साथ भूटान के विकसित होते संबंधों को समझने के लिये भूटान के साथ कूटनीतिक संलग्नता बनाए रखनी चाहिये। भरोसा बनाए रखने और भूटान की किसी भी चिंता का समाधान करने के लिये खुला एवं पारदर्शी संचार महत्त्वपूर्ण है।
  • सीमा वार्ता पर सहयोग करना: भारत को सीमा वार्ता पर भूटान के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये। एक पारस्परिक रूप से स्वीकार्य सीमा समझौता जो उत्तर में भूटान की चिंताओं को संबोधित करे, जबकि पश्चिम में भारत के हितों को संरक्षित करे, दोनों पक्षों के लिये लाभप्रद स्थिति हो सकती है। यह सहयोगात्मक दृष्टिकोण दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही मित्रता को प्रगाढ़ करेगा।
  • भूटान के परिप्रेक्ष्य को समझना: चीन के साथ संबंधों के विकास में भूटान के तर्क और प्रेरणा को भारत द्वारा समझे जाने का प्रयास करना चाहिये। इसमें आर्थिक विकास एवं सुरक्षा के लिये भूटान की इच्छा को समझना और यह स्वीकार करना शामिल है कि वह अपने हितों के लिये चीन के साथ संलग्नता को बढ़ा सकता है।
  • विश्वास निर्माण: भारत को यह विश्वास होना चाहिये कि एक विश्वसनीय पड़ोसी के रूप में भूटान, चीन के साथ अपने संबंधों के बारे में निर्णय लेते समय अपने हितों के साथ-साथ भारत के हितों पर भी विचार करेगा। क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये इस परस्पर विश्वास का निर्माण आवश्यक है।
    • भूटान के प्रधानमंत्री पहले ही भारत को आश्वस्त कर चुके हैं कि चीन के साथ किसी भी समझौते में इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि भारत के हितों को क्षति न पहुँचे।
  • एक मज़बूत द्विपक्षीय संबंध बनाए रखना: भारत को विकास सहायता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सुरक्षा सहयोग के माध्यम से भूटान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना जारी रखना चाहिये। मित्रता के ये बंधन दोनों देशों के हितों को आगे और संरेखित करेंगे।
  • क्षेत्रीय सहयोग: भारत को पर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन और व्यापार जैसी आम क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने के लिये भूटान, भारत एवं चीन को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय या बहुपक्षीय सहयोग के रास्ते तलाशने चाहिये।

निष्कर्ष

चीन के साथ भूटान के बढ़ते संबंधों का भारत के रणनीतिक हितों, अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय प्रभाव के लिये जटिल निहितार्थ हैं। भारत की प्रतिक्रिया में सुरक्षा, आर्थिक विविधीकरण और क्षेत्रीय कूटनीति को प्राथमिकता देते हुए एक नाजुक संतुलन लाने की आवश्यकता है। भूटान के साथ सुदृढ़ संबंध बनाए रखकर, खुली बातचीत में शामिल होकर और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर, भारत अपने रणनीतिक पड़ोस में अपने हितों को संरक्षित करते हुए इन उभरती गतिशीलताओं के बीच प्रभावी ढंग से आगे बढ़ सकता है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!