भारत गाथा: गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी की दृष्टि में भिक्षावृत्ति

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पुस्तक में भिक्षावृत्ति और भिक्षावृत्ति आधारित समाज का विस्तृत परिचय है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

खण्ड 1: भिक्षावृत्ति

पिछले कई वर्षों में जिन किन्हीं लोगों ने विशुद्ध भारतीय मेधा के गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी को सुना है, वे उनकी बातचीत की साहित्य रूप में माँग करते रहे हैं। पर, गुरुजी तो ठहरे मौखिक परम्परा के। उनकी दृष्टि में लेखन से कहीं ज्यादा महत्व आपसी बातचीत का था। आश्रम में या अन्यत्र बैठकर, घण्टों और दिनों तक चलने वाली बातचीत का आनन्द और महत्व दोनों ही अलग हुआ करता था। इसके अलावा कुछ और भी कारण थे जिसके चलते वे उनकी बातचीत के लेखन को कम महत्त्व देते थे। ज्यादा आग्रह करने पर यही कहा करते कि ठीक है! मेरे जाने के बाद करते रहना।

यही कारण है कि उनके जाने के बाद, लोगों की वर्षों पुरानी माँग को पूरा करने और उनकी बातचीत को साहित्यिक, अकादमिक, आदि विभिन्न हलकों तक ले जाने के उद्देश्य से, पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया गया। हालाँकि, उनकी बातचीत को लिपिबद्ध करने का काम तो उनके रहते हुए ही आरम्भ कर दिया गया था।

गुरुजी की बातों को दो विभिन्न स्वरुपों में, दो विभिन्न पुस्तक-श्रृंखलाओं के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। ‘भारत गाथा’ नाम की पहली पुस्तक श्रृंखला में उनकी बातचीत को विषयवार 10 अलग खण्डों में प्रस्तुत किया जा रहा है। इस श्रृंखला की पहली पुस्तक ‘भिक्षावृत्ति’ खण्ड 1 के रूप में हम सभी के सामने है। आशा है, इसे सुधीजनों का अच्छा प्रतिसाद मिलेगा।

गुरुजी श्री रवीन्द्र शर्मा जी के अनुसार, ‘भिक्षावृत्ति’, आजकल प्रचलित ‘भिखमंगाई’ से बिल्कुल अलग संकल्पना है। किसी समय में, समाज ने ढेरों अन्य पेशों, धंधे, व्यवसायों, वृत्तियों की तरह, भिक्षा-वृत्ति के माध्यम से समाज में बहुत सी जातियों को व्यवस्थित किया था, क्योंकि समाज में उनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों की महती भूमिका थी। इस पुस्तक में भिक्षावृत्ति और भिक्षावृत्ति आधारित समाज का विस्तृत परिचय है, जिससे हम समाज की इस महत्वपूर्ण संकल्पना से परिचित हो सकते हैं

यह पुस्तक, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली से प्रकाशित है। और वर्तमान में यह वहीं पर एवं जीविका आश्रम, जबलपुर में उपलब्ध है।

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