बिहार में किस-किस के पास हैं चार पहिया वाहन?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार की राजधानी पटना समेत प्रदेश के सभी 38 जिलों में सड़कों पर चार पहिया वाहनों की संख्या भले ही बढ़ रही हो, लेकिन यह जानकर आश्चर्य होगा कि 13.7 करोड़ की आबादी में महज 5.72 लाख लोगों के पास ही अपने चार पहिया वाहन हैं। इसके अलावा, 1.67 लाख लोगों के पास ट्रैक्टर है।
बिहार विधानसभा में मंगलवार को जाति आधारित गणना 2022- 23 को सरकार ने पेश किया। इसमें यह जानकारी दी गई। आंकड़ों के अनुसार, सामान्य वर्ग के 2.64 लाख यानी 1.31 प्रतिशत लोगों के पास अपने चार पहिया वाहन हैं।
वहीं, अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कुल आबादी में 95 हजार 57 लोगों के पास चार पहिया वाहन है यानी 0. 20 प्रतिशत ही चार पहिया वाहन का मालिक है। इसी प्रकार अनुसूचित जाति की कुल आबादी 2 करोड़ 56 लाख से अधिक होने के बावजूद मात्र 31,145 लोगों ने चार पहिया वाहन रखा है।
हालांकि अनुसूचित जनजाति में हालात थोड़े बेहतर हैं। आंकड़ों के अनुसार 21.99 लाख लोग राज्य में अनुसूचित जनजाति में आते हैं। इनमें से अब तक 4101 लोगों के पास अपने चार पहिया वाहन हैं।
ट्रैक्टर रखने वालों की संख्या
अगर ट्रैक्टर की चर्चा करें तो सामान्य वर्ग में 37,296, पिछड़ा वर्ग में 80,049, अत्यंत पिछड़ा वर्ग में 39,728, अनुसूचित जाति में 7495, जनजाति में 2356 और अन्य प्रतिवेदन जातियों में 138 लोगों के पास ही ट्रैक्टर हैं।आंकड़े बताते हैं कि 13.7 करोड़ में आज भी 12.48 करोड़ लोगों ने कोई वाहन नहीं रखा है।
बिहार में साढ़े 27 प्रतिशत भूमिहार, 25 प्रतिशत ब्राह्मण, 13 प्रतिशत कायस्थ और करीब 25 प्रतिशत राजपूत आर्थिक रूप से कमजोर हैं। बिहार में कराई गई जाति आधरित गणना के आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं।
बिहार विधानसभा मे मंगलवार को सरकार जाति आधारित गणना की रिपोर्ट पेश की गई। विधानसभा परिसर में जाति आधरित गणना के आंकड़ो पर पहले चर्चा शुरू हुई थी। इसके बाद गणना के कुछ आंकड़े सार्वजनिक हो गए।
9.53 लाख राजपूत आर्थिक रूप से कमजोर
सार्वजनिक आंकड़ों के मुताबिक बिहार में आर्थिक रूप से कमजोर भूमिहार परिवार की कुल आबादी 8.36 लाख बताई गई है। यानी भूमिहारों की कुल आबादी में 27.58 प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर है। इसी प्रकार राजपूत परिवार की कुल आबादी में करीब 9.53 लाख आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
इस हिसाब से 24.89 प्रतिशत राजपूत परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हैं। सामान्य वर्ग में कायस्थ परिवारों में आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की आबादी 1.70 लाख बताई गई है, अर्थात कायस्थों की कुल पारिवारिक आबादी में 13.89 प्रतिशत की माली हालत ठीक नहीं।
25 प्रतिशत शेख परिवार आर्थिक रूप से कमजोर
वहीं, शेख परिवार की कुल आबादी करीब 11 लाख है। इसमे 2.68 लाख यानी 25.84 प्रतिशत परिवार आर्थिक रूप से कमजोर बताए गए हैं।
गौरतलब है कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की मासिक आय छह हजार रुपये और उससे कम है। वहीं, बिहार में सभी जातियों को मिलाकर कुल 34 प्रतिशत परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है।
बिहार में जातीय गणना की आर्थिक रिपोर्ट विधानसभा में पेश कर दिया गया है। इससे पता चला है कि राज्य में गरीबों की कुल संख्या 94,42,786 है। इन लोगों की मासिक आय केवल छह हजार रुपये तक है।
इस बीच, पटना में आंगनबाडी कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों को लेकर बिहार विधानसभा का कर दिया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पानी की बौछारें कीं। वहीं, प्रदर्शन के दौरान एक कार्यकर्ता बेहोश हो गई, जिसके बाद उसे अस्पताल ले जाया गया।
सामान्य और पिछड़े वर्ग के पास चार पहिया वाहन
आंकड़े बताते हैं कि सामान्य वर्ग के 2.64 लाख यानी 1.31 प्रतिशत लोगों के पास अपने चार पहिया वाहन हैं। इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कुल आबादी में 95 हजार 57 लोगों के पास चार पहिया वाहन है यानी 0.20 प्रतिशत ही चार पहिया वाहन के मालिक हैं।
इसी प्रकार अनुसूचित जाति की कुल आबादी 2 करोड़ 56 लाख से अधिक होने के बावजूद मात्र 31,145 लोग ही चार पहिया वाहन रखते हैं। हालांकि अनुसूचित जनजाति में हालात थोड़े बेहतर हैं।
पिछड़ा वर्ग में यादवों के बाद कुशवाहा परिवार गरीब
बिहार में पिछड़ा वर्ग के आंकड़ों पर नजर डालें तो यादवों के बाद कुशवाहा और कुर्मी समाज के परिवार गरीब हैं। इनके बाद बनिया हैं।
वहीं, कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन पर राजद सांसद मनोज झा ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में हर किसी को सरकार के सामने अपनी बात रखने का अधिकार है। सरकार को उनकी मांगों पर ध्यान भी देना चाहिए…वर्तमान बिहार सरकार में लोगों की मांगों को गंभीरता से लिया जाता है और उस पर चर्चा की जाती है…’
फलीस्तीन पर हमले बंद करने की मांग को लेकर हंगामा
गौरतलब है कि बिहार विधानमंडल की कार्यवाही प्रारंभ होने के पूर्व सोमवार को विधानसभा परिसर में भाकपा (माले) ने गाजा (फलीस्तीन) पर हमले बंद करने की मांग को लेकर पोस्टरों के साथ प्रदर्शन किया। माले नेताओं ने केंद्र सरकार पर भी हमला बोला।
पोस्टर पर लिखा गया था- भारत की विदेश नीति को इजरायल-अमेरिका धुरी के समक्ष गिरवी रखना बंद करो। प्रदर्शन के दौरान माले विधायक महबूब आलम ने पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के पुराने बयान का हवाला देकर कहा कि उन्होंने कहा था कि भारत परंपरागत रूप से फलस्तीन की जनता की आजादी के साथ है।
वाजपेयी जी ने कहा था कि फलस्तीन की कब्जाई जमीन इजरायल को छोड़नी होगी। अगर ऐसा नहीं होता है तो फलस्तीन की जनता को जंग का एलान करने का हक है। वहीं, विधानसभा में पहली बार शोक प्रकाश के बाद दो मिनट के मौन के दौरान नारेबाजी हुई। नारेबाजी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर हुई।
मौन के दौरान नारेबाजी
सोमवार को जब विधानसभा का शीतकालीन सत्र आरंभ हुआ तो परंपरा के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष ने जननायकों को आसन से श्रद्धांजलि दी।
इसके बाद उन्होंने दो मिनट के मौन के लिए सदस्यों से कहा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित पक्ष और विपक्ष के सभी सदस्य खड़े हो गए। इसी दौरान नारेबाजी होने लगी। जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को महसूस हुआ कि शायद किसी का नाम छूट गया है।
उन्होंने अपने अधिकारी से इस बारे में पूछा। तब उन्हें स्पष्ट हुआ कि मामला कुछ अलग है। दरअसल, भाकपा (माले) विधायक दल के नेता महबूब आलम मांग कर रहे थे कि इजरायल के आक्रमण में फलस्तीन में जो बच्चे, महिलाएं व निर्दोष मारे गए उनके लिए भी विधानसभा में शोक प्रस्ताव पढ़ा जाए।
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