डार्क हॉर्स: अभ्यर्थी से अधिकारी बनने की कथा।
एक बार पुनः आप सभी के लिए नीलोत्पल मृणाल की पुस्तक डार्क हॉर्स की समीक्षा प्रस्तुत है।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
“कोई दुख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं।
हारा वही जो लड़ा नहीं”।।
दीपावली व छठ की छुट्टियों में मैं वेब सीरीज एसपिरेंट(Aspirant) देख रहा था। जब मैं इसके बारे में और समझना चाहा तो मैंने कई पोर्टल पेज पर इस सीरीज के कंटेंट(अन्तर्वस्तु) नीलोत्पल मृणाल की पुस्तक डार्क हॉर्स से लिए बताए गए। मैंने निर्णय लिया कि मैं नीलोत्पल मृणाल जी की पुस्तक डार्क हॉर्स को अवश्य पढ़ूंगा। इस पुस्तक को मैंने बहुत पहले खरीद लिया था लेकिन समयाभाव के कारण पढ़ नहीं पाया था। पुस्तक कुल 176 पृष्ठों में संकलित है। मृणाल जी ने इसकी भूमिका में उधृत किया है कि “इस पुस्तक को इसीलिए पढ़ा जाए कि यह जिस विषय को लेकर लिखा गया है वह कितना सच लिखा गया है”। वर्ष के 27 नक्षत्र की तरह यह पुस्तक भी अपने 176 पृष्ठों में विभक्त है। मृणाल जी खुद इस उपन्यास में एक पत्र के रूप में उपस्थित है। पुस्तक की अन्तर्वस्तु 2009-2010 की है।
कहते हैं पुस्तक वही उत्तम है जिसके दो चार पृष्ठ पढ़ने के बाद आप उस पुस्तक के एक पात्र से सम्बद्ध जाते हैं और उपन्यास के अंतिम शब्द तक आप उसे पढ़ते,गुनते और समझते रहते है। दरअसल यह पुस्तक मुझे 25 वर्ष पहले अपने अतीत में ले जाती है। इस पुस्तक के एक-एक पृष्ठ मेरे उस समय के दिनचर्या की याद दिलाती है।
मृणाल जी ने यह पुस्तक उन लाखों योद्धाओं के बारे में लिखा है जो इस परीक्षा से असफल होकर अपने जीवन के संघर्ष एवं अन्य परीक्षा में सफल है। यहां इस बात की भी चर्चा होनी चाहिए कि इस विषय को लेकर एक पुस्तक ’12th फेल हारा वही जो लड़ा नहीं’ आई जिसे अनुराग पाठक (IRS) ने अपने मित्र डॉ. मनोज कुमार शर्मा आईपीएस की जीवन के संघर्षों को चित्रित किया। इसका मार्मिक वर्णन लाखों मनोज की कहानी है जो परीक्षा से असफल होकर भी अपने जीवन को सफल कर रहे हैं।
सिविल सेवा की तैयारी करने वाले या कर चुके प्रत्येक छात्र की यह जीवन कथा है जिसकी शिल्प उसके संघर्ष की गाथा है। प्रेरणा, बौद्धिकता, सूचना, ज्ञान, संस्कार, सम्मान, तनाव और भटकाव की यह कहानी यूपीएससी की तैयारी की स्मृति है। यह पुस्तक दिल्ली के उन तंग गलियों के कमरे से परिश्रम कर यूपीएससी की सफलता प्राप्त किये उन अभ्यर्थियों की कहानी है जिन्होंने संघर्ष को अपने जीवन का हिस्सा बनाया है।
UPSC साध्य और साधन दोनों है, यही इसकी विशेषता है। अपनी इच्छा को यथार्थ में बदलने के द्वन्द की कहानी यूपीएससी है। लगभग 5 से 6 वर्षों तक अभ्यर्थी प्रत्येक पल जीतता और हारता है यानी होगा या नहीं होगा के द्वन्द में झूलता रहता है। यूपीएससी की माया नगरी का नाम है मुखर्जी नगर अर्थात दिल्ली का वह क्षेत्र जो तैयारी करने वालों के लिए मक्का-मदीना है मथुरा-काशी- कामरूप-कामाख्या है।
” अधिक सोचिए नहीं,आईएएस में हो गया तो तीन पुस्तक तार देगा, समझे ना। यानी बन जाएगा तो तीन पीढ़ी का कल्याण हो जाएगा, आपको इसके लिए बेटे को प्रत्येक महीने खर्च भेजना है और पिता को परिणाम की प्रतीक्षा करनी है”। यह तैयारी करने एवं कराने वालों का प्रथम अध्याय है।
जब अभ्यर्थी दिल्ली आता है तो उसके कई प्रकार के मित्र बनते है, इसे लेकर आपस में तर्क भी होता है। इसकी बानगी पुस्तक के पृष्ठों पर अंकित है। संतोष जी आदमी जैसी ही पेट का गुलाम होता है, उसकी मस्तिष्क के दरवाजे बंद हो जाते है। विचार आने समाप्त हो जाते है। भूख के अंधे को कुछ नहीं दिखता और सबसे बढ़कर जान लीजिए एक सिविल के छात्र के लिए दीजिए मस्तिष्क का खुला होना एवं विचारों का आना भोजन से कई गुना अधिक आवश्यक है।
‘द हिन्दू’ अखबार प्रत्येक हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए ज्ञान और जानकारी से अधिक प्रतिष्ठा का अखबार है। यह बौद्धिकता की गंभीरता और तार्किकता बड़ी निर्ममता से व्यंग्य करता है। देखिए हमारा धर्म पढ़ना है न कि हिंदू मुस्लिम या ईसाई करना। ये कर्म- कांड एवं पाखंड ने ही तो देश का बेड़ा गर्क किया है। क्या खाने-पीने से कुछ होता है! बस मन साफ होना चाहिए। दूसरों को खुशी देना सबसे बड़ा धर्म है, और मैं अगर चिकन खिला कर, दारू पिलाकर कई लोगों को खुश कर रहा हूं तो यही मानव धर्म है।
सामान्य तौर पर हिंदी भाषी क्षेत्र के परिवार और समाज के लिए अंग्रेजी तो पतित पावन धारा है,जो हर पाप धो देती है। अंग्रेजी जानने वाला वहां सियारों के बीच लकड़बग्घघे की तरह होता है। गांव से बाहर पढ़ने जाने वाले बच्चों की योग्यता भी इसी बात से मापी जाती थी कि इसने अंग्रेजी कितनी जानी। बार-बार असफल होने के बाद भी एक दूसरे का अगली परीक्षा की लिए हौसला बढ़ाते हुए यहां दिल्ली में टिके रहना अपने आप में अद्भुत है।” लगे रहिए लगे रहिये हो जाएगा।”
उपन्यास का मुख्य पात्र संतोष सोचने लगा, क्या पढ़ाई का माध्यम भी किसी को सांस्कृतिक रूप से ऊपर या नीचे कर सकता है। भाषा संवाद का माध्यम भर ही तो है। एक भाषा आपके द्वारा जाने और समझे गए बातों या ज्ञान को संप्रेषित करने, व्यक्त करने का माध्यम भर ही तो है। अंग्रेजी व्यापार एवं बाजार की भाषा है, उर्दू प्यार-गजल-शेरों-शायरी की भाषा है और हिंदी देश में व्यवहार और सम्पर्क की भाषा है। परन्तु दिल्ली के मुखर्जी नगर कुछ लोग तैयारी करने आते हैं और कुछ लोग तैयार होने के लिए।
आईएएस बनने के 100 नुस्खे वाली कई पुस्तक भी आ गई है,आप मदद ले सकते है। तैयारी के दौरान जन्मदिवस की पार्टी हो और उसमें महिला मित्र आ जाए तो पार्टी में चार चंद लग जाते है। कहने का तात्पर्य है कि फुल मस्ती की यहां व्यवस्था होती है। यह अक्सर दिल्ली में हुआ रहता है।
सिविल सेवा की तैयारी प्रत्येक बिहारी के लिए जिंदगी का जुआ है और इसके लिए मक्का-मदीना है दिल्ली का मुखर्जी नगर, जिया सराय, क्रिश्चन कॉलोनी, संत नगर, नेहरु विहार,इंद्रा विहार,तिमारपुर और वजीराबाद का क्षेत्र। आईएएस की परीक्षा निकाल मुर्गे का शुतुरमुर्ग का अंडा देने के बराबर है वही समुद्र में चूल्हा जलता दिखना है।
संग लोक सेवा आयोग द्वारा प्रारम्भिक परीक्षा का आवेदन आना दिल्ली में मुखर्जी नगर के अभ्यर्थियों के लिए एक उदघोष है। प्रत्येक छात्र के कमरे से ज्ञान का धुआं निकलने लगता है। और धीरे-धीरे पी.टी का दिन निकट आ ही जाता है। यह दिवस राष्ट्रीय पर्व की तरह आता है, किसी के लिए यह आखिरी अवसर होता है तो किसी के लिए अपने जिंदगी बदलने की शुरुआत।
तैयारी के दौरान भटकाव के पूरे प्रबंध होते है,कैसे ?
-देश की राजधानी दिल्ली में प्रवास,
-कोचिंग करना,कई बार करना,
-‘द हिंदू’ अखबार पढ़ना,
-लड़कियों से दोस्ती करना,
-क्लीन शेव में रहना,
-जन्मदिवस दिवस पर पार्टी करना इससे अपने व्यक्तित्व का तथाकथित विकास करना,
-सिगरेट,बियर, शराब के सेवन को विभिन्न आयामों से उसकी समीक्षा करते हुए उसे उचित ठहराना,
-चाय दूकान पर पुरे संसार भर की चर्चा करना,
-कभी भोजन खुद से बनाना, कभी बहादुर (कुक) से बनवाना, कभी टिफिन कमरे पर मंगवाना, कभी भोजनालय तक जाकर भोजन ग्रहण करना,
-इधर गांव घर में मां-पिताजी का पंडित जी से कुंडली दिखाना, तरह तरह के रत्न (मूंगा,मूर्ति,पन्ना,पुखराज,लहसुनिया) को धारण करना,
-समय समय पर मंत्र का जाप करना,
-पहले ही दिन upsc जाकर पी.टी का आवेदन भरना,
-कमरे पर लाल पीली सीडी लाकर भक्ति वीडियो देखना,
-घर से कोई आ जाए तो उसे पूरी दिल्ली (लाल किला, चाँदनी चौक,कनाॅड पैलेस, लोटस टेंपल, राजपथ (कर्तव्य पथ), इंडिया गेट, कुतुब मीनार, दक्षिणी दिल्ली घुमाना और उनकी सहानुभूति आशीर्वाद के रूप में प्राप्त करना,
– दुखी आत्मा यानी वर्षों से तैयारी करने वाले अभ्यर्थी से साक्षात्कार करना उनकी ज्ञान के चूरन को चाटना,
– सर्ट को छोड़कर टीशर्ट पहनना, पैंट छोड़कर जीन्स पहनना, दाढ़ी मूछें हटाकर सदैव क्लीन सेव में रहना,
-अपनी तरफ से ऐसा ज्ञान देना कि मित्र मंडली मान जाएगी यार बंदे में दम है, यह फोड़ सकता है,मैं भविष्य के आईएएस के साथ में बैठा हूँ,
-परीक्षा का माध्यम क्या हो: अंग्रेजी या हिन्दी, और मैं कौन सा लू,
– कभी आप दिल्ली विश्वविद्यालय में से लाॅ करने की सोचते हैं, कभी आप जेएनयू से विभिन्न प्रकार के कोर्स करने की सोचते हैं तो कभी आप प्रबंध का कोर्स करके नौकरी करने की सोचते हैं अर्थात मस्तिष्क का भटकाव निरंतर होता रहता है।
“कबहु मन रंग तुरंग चढ़े,कबहु मन सोचत है धन को।
कबहु तिय देखी चित्त चले,कबहु सोचत वन को।
कहे कबीर किस विधि समझाऊ इस कपटी मन को।।”
UPSC क्या है! वह यह नहीं बताती, शायद यही इसका रहस्य है। यह किसका चयन करेगी यह भविष्य के गर्त में है। अर्थात नगर का या ग्रामीण का, काले का या गोरे का,लंबे का या ठिगने का, बड़े-बड़े संस्थानों से पढ़ने वालों का या कस्बे के महाविद्यालय से निकले उसे निर्धन छात्र का। किसका चयन करेगी? यही इसकी गरिमा है, प्रासंगिकता है, निष्पक्षता है, तटस्थता है। सिविल सेवा में जाना हमारे समाज का आईकाॅन है,अर्थात इस्पाती चौखट को पार करना है।
ऐसी पुस्तकों को पढ़ना अपने जख्मों को कुरेदना नहीं है वरन अपने सुनहरे अतीत को याद करते हुए उसके विभिन्न आयामों को विश्लेषित करना है। सिविल सेवा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी से भयंकर आशावादी मनुष्य इस संसार में आपको नहीं मिल सकता है तभी तो मैं 1998 से लेकर 2003 तक दिल्ली में सिविल सेवा की तैयारी करता रहा। और अनत: मैं असफल हो गया। इसका मुझे गम नहीं लेकिन इसकी वेदना,टीस, संत्रास, कुंठा मुझे सदैव सलाती रहती है और हमेशा विश्लेषण करने पर मजबूर करती है कि आखिर तुम्हारे पास वह सब कुछ था अर्थात तुम सामाजिक,सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से इतने सम्पन्न थे कि सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण कर सकते थे लेकिन यह कर ना सके आखिर क्यों?
संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को उत्तीर्ण करना भारतवर्ष में प्रत्येक स्नातक का स्वप्न होता है। इसे लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश एवं दक्षिण के राज्यों में कहीं अधिक प्रतिस्पर्द्धा है। आंकड़े बताते हैं कि इस परीक्षा हेतु प्रत्येक वर्ष 11 से 12 लाख आवेदन भरे जाते हैं। इसमें से 5 से 6 लाख अभ्यर्थी परीक्षा देते हैं। इनमें से 10 से 12 हजार छात्र प्रारंभिक परीक्षा के लिए उत्तीर्ण होकर मुख्य परीक्षा हेतु तैयारी करते हैं। मुख्य परीक्षा से मात्र 3000 अभ्यर्थी ही सफल होकर साक्षात्कार हेतु उत्तीर्ण होते हैं। साक्षात्कार होने पर इन 3000 में से 1000 अभ्यर्थियों का ही अंतिम रूप से चयन होता है। इसमें 1000 में से 80 छात्र ही भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित होते हैं। अर्थात 12 लाख में से मात्र 80 ही आईएएस बन पाते हैं। यही इस परीक्षा के संघर्ष की कहानी है।
यह परीक्षा आपके धैर्य, निरंतरता, निर्णय क्षमता, आत्मविश्वास और दूरदर्शिता की गहन जांच करती है। आप 8 बाई10 के कमरे से उठकर सीधे 8000 वर्ग मीटर के अहाते वाले भव्य भवन में पहुंच जाते हैं। इस परीक्षा की प्रक्रिया डेढ वर्ष में पूरी होती है। आपका परिश्रम, लगन, निरंतरता और ईश्वर का आशीर्वाद आपको सफल बना सकता है। आपके जीवन का सबसे प्यारा, सफल मनमोहक और चमकदार क्षण इस यूपीएससी की परीक्षा को जाता है।
खैर, सूर्य की रोशनी जहां तक पहुंचे वहां तक यूपीएससी का पाठ्यक्रम है। इस पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए अभ्यर्थी 22 से 24 वर्ष की उम्र में दिल्ली आते हैं और 35 से 37 की उम्र में यहां से विदा होते हैं। लेकिन जिसकी लॉटरी लग गई तो समझिए वह जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्त हो गया। यहां जो जीता वही सिकंदर जो हारा वह फिर से एक वर्ष के लिए अपने कमरे के अंदर।
यूपीएससी एक बात यह भी सिखाती है कि आप पढ़ने में ठीक है, तेज है, लेकिन भाग्य भी कुछ होता है जिसके भाग्य में रहता है वही यूपीएससी करता है। काल का चक्र चलता रहता है लेकिन यूपीएससी करने वालों के लिए दिल्ली नगर में संपूर्ण कालचक्र पी.टी, मेंस और इंटरव्यू में घूमता रहता है। यहां अभ्यर्थी होली,दशहरा, दीपावली, छठ पूजा और पारिवारिक आयोजन सब भूल जाते हैं। सफलता और असफलता को लेकर यहां जुमले चलते हैं ‘जो सफल है उसे कहा जाता है इसमें तो कुछ अलग है और जो असफल हो जाता है उसके बारे में कहा जाता है इसमें कुछ तो कमी अवश्य है।”
सिविल सेवा की तैयारी करने वाले छात्रों में वर्ग चेतना अत्यधिक प्रबल हो जाती है क्योंकि वह ऐसा मान लेते हैं कि कुछ समय बाद में ‘कास्ट से क्लास’ में बदल जाऊंगा। भारत देश में दो वर्ग हैं एक ब्रेड खाता है दूसरा रोटी। रोटी खाने वाला सामान्य वर्ग का है। यह सिविल सेवा के अभ्यर्थी घर से पैसे मंगाकर ब्रेड तो खा रहे हैं लेकिन उनकी चिंता भविष्य की रोटी पर भी होती है।
तैयारी के दौरान प्रत्येक लड़के की यह तमन्ना होती है कि उसे किसी लड़की से मित्रता हो जाए, जो होती भी है। लेकिन कोचिंग में मिली लड़की को लड़का पहले प्रेमिका, फिर दुल्हन, फिर एक अच्छा दोस्त और अंत में बहन बनाकर समझौता कर इसे नियति मान लेता है।
डार्क हॉर्स से मतलब रेस में दौड़ता ऐसा घोड़ा जिस पर किसी ने भी दाव नहीं लगाया हो, जिससे किसी ने भी जीतने की उम्मीद न कि हो और वही घोड़ा सबको पछाड़कर आगे निकल जाए तो वही डार्क हॉर्स है। भाग्य को ठेंगा दिखाकर अपने परिश्रम से अपनी किस्मत स्वयं बना ले। वर्षो एकदम अंधेरे में रहा लेकिन जीवन के लिए उजाला कर गया सिविल सेवा का यह डार्क हॉर्स अभ्यर्थी।
बहरहाल जीवन व्यक्ति को दौड़ने के लिए कई मार्ग देती है, आवश्यक नहीं की सब एक ही रास्ते से दौड़े। आवश्यक है कि कोई एक मार्ग का चयन कर ले और उसे रास्ते पर दौड़ पड़े।
और अंततः ‘शीलम परम भूषणम’।
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