भारत में सड़क दुर्घटनाएँ क्या प्रभाव डालती हैं?

भारत में सड़क दुर्घटनाएँ क्या प्रभाव डालती हैं?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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भारत का सड़क नेटवर्क एक विरोधाभासी स्थिति रखता है। एक ओर यह आवागमन, संपर्क, परिवहन एवं यात्रा के लिये एक महत्त्वपूर्ण एवं विस्तारित अवसर प्रस्तुत करता है, जो देश के आधुनिकीकरण और उल्लेखनीय आर्थिक विकास के अनुरूप है, तो दूसरी ओर कई अन्य देशों की तरह भारत की सड़कें भी एक मूक लेकिन घातक संकट उत्पन्न करती हैं।

भारत में सड़क दुर्घटनाएँ कितनी घातक?

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा प्रकाशित ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएँ-2022’ (Road Accidents in India-2022) रिपोर्ट के अनुसार कैलेंडर वर्ष 2022 के दौरान राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सड़क दुर्घटनाओं के कुल 4,61,312 मामले दर्ज किये गए जिसमें 1, 68,491 लोगों की जान गई, जबकि 4,43,366 लोग घायल हुए।
    • यह पिछले वर्ष (2021) की तुलना में दुर्घटनाओं में 11.9%, मृत्यु में 9.4% और आघातों में 15.3% की वृद्धि को प्रकट करता है।
  • WHO द्वारा प्रकाशित एक अन्य आँकड़े के अनुसार अनुमानित रूप से भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 3,00,000 लोगों की मृत्यु होती है।
    • यह प्रत्येक दिन के प्रत्येक घंटे में 34 से अधिक लोगों की मौत के बराबर है। यह एक सामान्य अनुमान है, वास्तविक संख्या इससे अधिक भी हो सकती है।
    • सड़क दुर्घटनाओं में जीवन-परिवर्तनकारी आघातों का सामना करने वाले लोगों की संख्या इससे भी कहीं अधिक है।
  • सड़क सुरक्षा एक वैश्विक समस्या है, जहाँ हर साल सड़क दुर्घटनाओं में 13 लाख लोग मारे जाते हैं। चिंताजनक है कि दुनिया भर में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली प्रत्येक चार मौत में से लगभग एक भारत में घटित होती है

भारत में सड़क दुर्घटनाओं के पीछे के प्राथमिक कारण 

  • ओवरस्पीडिंग (Overspeeding): निर्धारित गति सीमा से अधिक गति रखने वाले वाहन चालक उल्लेखनीय जोखिम पैदा करते हैं। गति सीमा के संबंध में जागरूकता की कमी और अपर्याप्त प्रवर्तन इस समस्या में योगदान करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत में सड़क दुर्घटनाएँ-2022 रिपोर्ट के अनुसार ओवरस्पीडिंग या निर्धारित गति सीमा से अधिक गति से वाहन चालन दुर्घटना का सर्वप्रमुख कारण बना हुआ है जो भारत भर में कुल दुर्घटनाओं में 72.3% और सभी मौतों एवं आघातों में लगभग दो-तिहाई की हिस्सेदारी रखता है।
  • ड्रंक ड्राइविंग (Drunk Driving): शराब या नशीले पदार्थों के प्रभाव में वाहन चालन के दौरान चालक निर्णय और समन्वय की गलतियाँ करते हैं।
    • भारत में सड़क दुर्घटनाएँ-2022 रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में भारत में घटित सड़क दुर्घटनाओं में 2.2% ड्रंक ड्राइविंग के कारण हुईं।
  • डिस्ट्रैक्टेड ड्राइविंग (Distracted Driving): गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल, खाना-पीना या अन्य गतिविधियों में संलग्नता के कारण चालक का ध्यान भटक जाता है और दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है।
    • आईआईटी बॉम्बे के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि अध्ययन में शामिल सभी प्रतिभागियों में से लगभग 60% चालक गाड़ी चलाते समय फोन का उपयोग करते थे।
  • कमज़ोर अवसंरचना और सड़क डिज़ाइन: अवसंरचना और सड़क डिज़ाइन की गुणवत्ता सड़क सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में सड़कों के गड्ढे, रोड लेन्स का उपयुक्त रूप से मार्किंग नहीं होना, सड़क संकेतों की अपर्याप्ततासड़क पर रोशनी की कमी और पैदल यात्री सुविधाओं के अभाव जैसे कई कारक दुर्घटनाओं में योगदान करते हैं।
  • चरम मौसम दशाएँ: चरम मौसम दशाओं में भी दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। घना कोहरा, अत्यधिक वर्षा, तेज़ हवाएँ और इस तरह की अन्य स्थितियाँ ड्राइविंग को व्यापक रूप से चुनौतीपूर्ण बना देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप यदि ड्राइवर अतिरिक्त सावधानी नहीं बरतते हैं तो भयानक दुर्घटनाओं की संभावना बनती है।
  • यांत्रिक विफलताएँ: मानवीय त्रुटियों और प्रतिकूल मौसम दशाओं के अलावा सड़क दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण वाहन का खराब होना भी है। दोषपूर्ण ब्रेक, टायर, स्टीयरिंग, लाइट या अन्य घटक वाहन की सुरक्षा एवं कार्य निष्पादन को कमज़ोर कर सकते हैं।
  • यातायात नियमों और विनियमों का अनुपालन न करना: यातायात नियमों और विनियमों का पालन न करना सड़क दुर्घटनाओं में उल्लेखनीय योगदान देता है।
    • सीट बेल्ट और हेलमेट का उपयोग न करना: सीट बेल्ट और हेलमेट का उपयोग नहीं करने से गंभीर चोटों और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
      • केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में देश भर में दुर्घटनाओं में मारे गए प्रत्येक 10 कार सवारों में से कम से कम आठ (लगभग 83%) ने सीट बेल्ट नहीं लगा रखा था।
    • ट्रैफिक सिग्नल का उल्लंघन: ट्रैफिक सिग्नल की अवहेलना, चौराहों पर ओवरटेक करना और लाल बत्ती पर नहीं रुकना गंभीर जोखिम उत्पन्न करते हैं।
      • एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में हुई कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 919 ट्रैफिक सिग्नल की अवहेलना के कारण हुईं, जिनमें 476 लोगों की मौत हुई।
    • वाहनों की ओवरलोडिंग: ओवरलोडेड वाणिज्यिक वाहन स्थिरता और कुशल गतिशीलता की स्थिति को कमज़ोर करते हैं, जो फिर दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं।
      • वर्ष 2020 में भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों पर ओवरलोड ट्रकों के कारण कम से कम 10,000 लोग मारे गए और 25,000 घायल हुए।
  • कमज़ोर प्रवर्तन और शासन: यातायात प्रवर्तन और शासन की प्रभावशीलता का सड़क सुरक्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
    • ट्रैफिक पुलिस की पर्याप्त उपस्थिति का अभाव: सड़कों पर ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की अपर्याप्त उपस्थिति प्रवर्तन प्रयासों को बाधित करती है। ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की संख्या और उनकी दृश्यता में वृद्धि से प्रवर्तन की स्थिति बेहतर बन सकती है।
      • उल्लेखनीय है कि भारत में 20 करोड़ वाहनों के यातायात को प्रबंधित करने के लिये महज 72,000 ट्रैफिक पुलिसकर्मी मौजूद हैं।
    • भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी: ट्रैफिक पुलिसकर्मियों के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार सड़क सुरक्षा प्रयासों को कमज़ोर करता है।
      • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (Transparency International) के अनुसार वर्ष 2022 में भ्रष्टाचार बोध सूचकांक (Corruption Perceptions Index) में भारत 180 देशों की सूची में 85वें स्थान पर था।
  • जागरूकता की कमी: सेवलाइफ (SaveLIFE) के वर्ष 2019-20 के एक अध्ययन के अनुसार 37.8% लोगों ने कहा कि उन्हें लगता था कि पीछे की सीट पर बैठे यात्रियों के लिये सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य नहीं है। जबकि कानून द्वारा पिछली सीटों पर भी सीट बेल्ट के उपयोग को अनिवार्य बनाया गया है, केवल 27.7% उत्तरदाताओं को इस कानून के बारे में पता था।

भारत में सड़क दुर्घटनाएँ क्या प्रभाव डालती हैं?

  • आघात और अपंगता: सड़क दुर्घटनाएँ गंभीर शारीरिक आघातों और अपंगता का कारण बन सकती हैं, जैसे हड्डी टूटना, शरीर का जलना, अंग-विच्छेदन, रीढ़ की हड्डी पर चोटें और मस्तिष्क पर लगी चोटें। ये पीड़ितों और उनके परिवारों के जीवन की गुणवत्ता एवं कल्याण को प्रभावित कर सकते हैं।
    • WHO के अनुसार भारत में 15-29 आयु वर्ग के लोगों में विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years- (DALYs) की हानि का एक प्रमुख कारण सड़क यातायात संबंधी चोटें हैं।
  • मनोवैज्ञानिक आघात और तनाव: सड़क दुर्घटनाएँ मनोवैज्ञानिक आघात और तनाव का कारण भी बन सकती हैं, जैसे पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), दुश्चिंता (anxiety), अवसाद (depression) और पीड़ा (grief)। ये पीड़ितों और उनके परिवारों के मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • प्रियजनों की मृत्यु और हानि: सड़क दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप प्रियजनों की मृत्यु और हानि की स्थिति बन सकती है, जिसका पीड़ितों और उनके परिवारों के लिये विनाशकारी एवं अपरिवर्तनीय परिणाम उत्पन्न हो सकता है।
  • सामाजिक असमानता और अपवर्जन: सड़क दुर्घटनाएँ सामाजिक असमानता और अपवर्जन की स्थिति को बढ़ा सकती हैं, क्योंकि वे पैदल यात्री, साइकिल चालक, मोटरसाइकिल चालक और सार्वजनिक परिवहन के उपयोगकर्त्ता जैसे गरीब एवं कमज़ोर समूहों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं। इन समूहों के पास प्रायः सुरक्षित एवं किफायती परिवहन, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच का अभाव होता है।
    • संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (Vulnerable road users)—जिनमें पैदल यात्री, साइकिल चालक और दोपहिया वाहन सवार शामिल हैं, भारत में सड़क पर होने वाली मौतों में लगभग तीन-चौथाई हिस्सेदारी रखते हैं।
  • उत्पादकता और आय का नुकसान: सड़क दुर्घटनाओं से उत्पादकता और आय का नुकसान हो सकता है, क्योंकि वे कार्यबल की क्षमता एवं उपलब्धता को प्रभावित करते हैं और पीड़ितों एवं उनके परिवारों की कमाई की क्षमता एवं बचत को कम करते हैं।
    • भारत में सड़क दुर्घटनाओं की लागत सकल घरेलू उत्पाद का 5-7% होने का अनुमान है।
  • स्वास्थ्य देखभाल और कानूनी लागत में वृद्धि: सड़क दुर्घटनाएँ स्वास्थ्य देखभाल और कानूनी लागत में भी वृद्धि कर सकती हैं, क्योंकि उन्हें चिकित्सा उपचार, पुनर्वास, मुआवजा और मुकदमेबाजी की आवश्यकता होती है। ये सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों तथा पीड़ितों और उनके परिवारों पर भारी बोझ डाल सकते हैं।
    • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा कराये गए एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में सड़क दुर्घटना की औसत सामाजिक-आर्थिक लागत थी:
      • मृत्यु के लिये: 91 लाख रुपए
      • गंभीर आघात/घायलावास्ता: 3.6 लाख रुपए

सड़क दुर्घटनाओं की मूक महामारी से निपटने के लिये क्या किया जाना चाहिये?

  • सीटबेल्ट और हेलमेट के उपयोग का कठोरता से प्रवर्तन:
    • WHO की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि सीट-बेल्ट लगाने से ड्राइवरों और आगे की सीट पर बैठे लोगों के लिये मृत्यु का जोखिम 45-50% तक कम हो जाता है, जबकि पीछे की सीट पर बैठे लोगों के लिये मृत्यु एवं गंभीर चोटों का जोखिम 25% तक कम हो जाता है।
  • जागरूकता अभियान:
    • सड़क सुरक्षा के महत्त्व के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के #MakeASafetyStatement जैसे बड़े पैमाने पर जन जागरूकता अभियान शुरू किये जाएँ।
  • गति सीमा प्रवर्तन और ड्रंक-ड्राइविंग विरोधी उपाय:
    • बेहतर यातायात प्रबंधन प्रणाली और निगरानी सहित वाहनों की ओवरस्पीडिंग को कम करने के उपाय लागू किये जाएँ।
    • ड्रंक ड्राइविंग के प्रति शून्य सहनशीलता हो जहाँ उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये सख्त दंड का प्रावधान हो।
  • अवसंरचनात्मक सुधार:
    • दुर्घटनाओं में योगदान देने वाले मुद्दों को संबोधित करते हुए सुरक्षित दशाएँ सुनिश्चित करने के लिये सड़क अवसंरचना को बेहतर बनाया जाए।
    • सड़क सुरक्षा में तेज़ी से सुधार के लिये क्रियान्वित सरकारी कार्यक्रमों में निवेश किया जाए।
  • संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ताओं पर ध्यान केंद्रित करना:
    • पैदल चलने वालों, साइकिल चालकों और दोपहिया सवारों सहित संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ताओं की सुरक्षा को प्राथमिकता दें, जो सड़क पर होने वाली मौतों में एक उल्लेखनीय हिस्सेदारी रखते हैं।
    • ऐसे अवसंरचनात्मक और जागरूकता कार्यक्रम विकसित किये जाएँ जो इन उपयोगकर्त्ताओं के लिये विशेष रूप से अनुकूलित हों।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यासों को अपनाना:
    • सफल अंतर्राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा अभ्यासों का अध्ययन किया जाए और भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों के अनुसार उन्हें अनुकूल बनाया जाए।
      • नीदरलैंड का ‘सस्टेनेबल सेफ्टी विज़न’ एक सुरक्षित सड़क प्रणाली का निर्माण कर दुर्घटनाओं को रोकने और दुर्घटना की गंभीरता को कम करने पर केंद्रित है।
        • यह पाँच सिद्धांतों पर आधारित है: कार्यक्षमता, एकरूपता, पूर्वानुमेयता, क्षमाशीलता और राज्य जागरूकता।
        • इस विज़न के तहत लागू किये गए कुछ उपाय हैं: सड़क वर्गीकरण, गोल चक्कर का निर्माण, साइकिल पथ और यातायात को सुगम रखना (traffic calming)।
      • जापान ने सड़क यातायात से होने वाली मौतों में उल्लेखनीय कमी की स्थिति प्राप्त की है, जो वर्ष 1990 में 16,765 से घटकर वर्ष 2019 में 3,215 रह गई।
        • इसने विभिन्न उपायों को लागू किया है, जैसे यातायात कानूनों को सख्ती से लागू करनासड़क अवसंरचना में सुधारसीट बेल्ट एवं हेलमेट के उपयोग को बढ़ावा देना और वाहनों में उन्नत सुरक्षा प्रौद्योगिकियों की शुरूआत करना।
        • जापान में एक व्यापक सड़क सुरक्षा शिक्षा प्रणाली भी मौजूद है, जो प्री-स्कूल से लेकर वरिष्ठ नागरिकों के स्तर तक जीवन के सभी चरणों को कवर करती है।
  • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 का कार्यान्वयन:
    • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए, जिसमें सड़क सुरक्षा बढ़ाने के उपाय शामिल हैं।
  • आपातकालीन देखभाल सेवाएँ:
    • सड़क दुर्घटना के पीड़ितों के लिये उच्च गुणवत्तायुक्त आपातकालीन देखभाल सेवाओं और उचित उत्तर देखभाल (after-care) तक पहुँच में सुधार करें।
    • विभिन्न राज्यों में समान उत्तरजीविता संभावना सुनिश्चित करने के लिये आपातकालीन देखभाल में व्याप्त क्षेत्रीय असमानताओं को संबोधित किया जाए।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग:
    • सड़क सुरक्षा के लिये अभिनव समाधान विकसित करने और कार्यान्वित करने के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करें।
    • निजी क्षेत्र की कपनियों के उन पहलों को समर्थन प्रदान किया जाए जो सड़क सुरक्षा सुधार में योगदान करती हैं। ऐसी कुछ पहलों में शामिल हैं:
      • मारुति सुजुकी द्वारा क्रियान्वित ‘ड्राइव सेफ इंडिया कैम्पेन’
      • महिंद्रा एंड महिंद्रा द्वारा क्रियान्वित ‘ड्राइव सेफ, ड्राइव स्मार्ट कैम्पेन’
  • वैश्विक पहलों के साथ संरेखण:
    • एक व्यापक सुरक्षित-प्रणाली दृष्टिकोण अपनाने के लिये वैश्विक पहलों, जैसे कि ‘सड़क सुरक्षा के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्रवाई का दूसरा दशक 2021-2030’ (UN’s Second Decade of Action for Road Safety 2021-2030) के साथ संरेखित हुआ जाए।

सड़क सुरक्षा पर सुंदर समिति की अनुशंसाएँ

  • राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन बोर्ड (National Road Safety & Traffic Management Board) का गठन किया जाए जो देश में सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष निकाय होगा। इसका गठन संसद के एक अधिनियम के माध्यम से किया जाए और इसमें रोड इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, यातायात कानून, चिकित्सा देखभाल आदि विभिन्न क्षेत्रों के सदस्य और विशेषज्ञ शामिल किये जाएँ।
  • इस राष्ट्रीय बोर्ड के समान कार्यों एवं शक्तियों के साथ प्रत्येक राज्य में राज्य सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन बोर्ड की स्थापना की जाए जो सड़क सुरक्षा एवं यातायात प्रबंधन के मुद्दों पर राज्य सरकारों और स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय का निर्माण करे।
  • सड़क दुर्घटनाओं और मौतों को कम करने तथा सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिये विशिष्ट लक्ष्यों, रणनीतियों और कार्य योजनाओं के साथ एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा योजना (National Road Safety Plan) का विकास किया जाए।
  • दुर्घटना उत्तर देखभाल और आघात प्रबंधन में सुधार किया जाए और डेटा संग्रह, विश्लेषण एवं प्रसार के लिये मानकीकृत प्रारूपों एवं प्रोटोकॉल के साथ एक राष्ट्रीय सड़क दुर्घटना डेटाबेस एवं सूचना प्रणाली की स्थापना की जाए।
  • समिति ने वित्तपोषण सुनिश्चित करने के लिये सड़क सुरक्षा कोष (Road Safety Fund) हेतु डीजल एवं पेट्रोल पर उपकर की कुल आय का 1% निर्धारित करने का सुझाव दिया है।
  • समिति ने अन्य विभिन्न मुद्दों—जैसे सड़क दुर्घटनाओं को अपराधमुक्त करना, बीमा और समर्पित राजमार्ग पुलिस आदि पर भी विचार किया है।

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