पटना हाईकोर्ट ने आरक्षण बढ़ने पर, रोक लगाने से किया इनकार,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार सरकार द्वारा राज्य के पिछड़ा, अति पिछड़ा, अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दी गई है. नीतीश सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए इसके खिलाफ पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. जिस पर चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने शुक्रवार को सुनवाई करते हुए फिलहाल नीतीश सरकार को राहत दी है. कोर्ट ने इस नए आरक्षण कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है. राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करना होगा.
जनवरी में होगी अगली सुनवाई
शुक्रवार को पटना हाई कोर्ट अधिवक्ता गौरव कुमार व अधिवक्ता नमन श्रेष्ठ द्वारा इस मामले को लेकर दायर लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया. कोर्ट ने कहा कि फिलहाल इस कानून पर रोक नहीं लगाई जा सकती. कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है. इसके बाद ही कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा. मामले में अगली सुनवाई 12 जनवरी 2024 को होगी.
आरक्षण की अधिकतम सीमा बहस का मुद्दा
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि यह एक तकनीकी मुद्दा है. याचिकाकर्ताओं को इस एक्ट की वैधता को चुनौती देनी चाहिए थी न कि लोकहित याचिका दायर करनी चाहिए. उनका यह भी कहना था कि 50 फीसदी आरक्षण की अधिकतम सीमा बहस का मुद्दा है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट का कहना था कि फिलहाल इस पर रोक नहीं लगाया जा सकता है. जो भी आदेश होगा वह सरकार द्वारा जवाब दिए जाने के बाद और सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में कोर्ट अपना फैसला सुनायेगा.
बिहार विधान मंडल द्वारा नई आरक्षण विधेयक को किया गया था पारित
मालूम हो कि बिहार विधान मंडल ने बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ी जाति) (संशोधन)अधिनियम, 2023 और बिहार ( शिक्षण संस्थानों में प्रवेश) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 पारित किया है . इसके तहत एससी के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 20 फीसदी, एसटी के लिए 2 फीसदी और पिछड़ी जाति (बीसी) और अत्यंत पिछड़ी जाति के लिए 43 फीसदी कर दी गई है.
जिसके बाद आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से बढ़कर 65 फीसदी हो गया. इसके अलावा ईडब्ल्यूएस के लिए 10 फीसदी आरक्षण अलग से है. इस तरह राज्य में कुल आरक्षण 75 फीसदी हो गया है. बिहार विधान मंडल द्वारा नई आरक्षण विधेयक को पारित किए जाने के बाद राज्यपाल ने इस मामले में 18 नवंबर, 2023 को अपनी सहमति दी थी. राज्य सरकार ने 21 नवंबर, 2023 को गजट में इस आशय की अधिसूचना को अधिसूचित भी कर दिया था.
तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के लिए याचिका
याचिकाकर्ता ने लोकहित याचिका दायर कर सरकार द्वारा आरक्षण को लेकर बनाए गए उक्त कानून को चुनौती देते हुए उसके अमल पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के लिए कोर्ट से अनुरोध किया गया था. याचिका में अन्य बातों के अलावा यह भी कहा गया है कि यह संशोधन जाति सर्वे के आधार पर किया गया है. अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़ा व अत्यंत पिछड़ा वर्ग जातियों का प्रतिशत जातिगत सर्वे में 63.13 प्रतिशत बताया गया जबकि इनके लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दिया गया है.
याचिका में और क्या कहा गया
याचिका में यह भी कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान था . आरोप लगाया गया कि राज्य सरकार द्वारा पारित संशोधित अधिनियम भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
कवच पहनाने की कोशिश में कैसे जुटी है नीतीश सरकार,क्यों?
बिहार में आरक्षण का दायरा अब 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया है. आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को पूर्व की तरह ही यथावत रखा गया है. राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद अब यह आरक्षण सूबे में लागू कर दिया गया है. वहीं राज्य सरकार ने प्रदेश की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन में 75 प्रतिशत आरक्षण से संबंधित दो संशोधित ताजा अधिनियमों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने की अनुशंसा केंद्र को भेजने का निर्णय लिया है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इससे जुड़े प्रस्तावों पर मंजूरी दी गयी है. वहीं अब डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी 75 प्रतिशत आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग केंद्र सरकार से की है. दरअसल, बिहार में लागू हुआ किए गए नयी आरक्षण नीति को कानूनी चुनौती से बचाने के लिए ये मांग की जा रही है.
बिहार के नए आरक्षण नीति को अब कवच पहनाने की तैयारी
बिहार में लागू किए गए 75 प्रतिशत आरक्षण नीति को अब कवच पहनाने की तैयारी शुरू की गयी है. नीतीश कुमार की सरकार ने तय किया है कि बिहार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन में 75 प्रतिशत आरक्षण से संबंधित दो संशोधित ताजा अधिनियम 2023 को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए केंद्र सरकार को अनुशंसा भेजेगी.
बिहार (शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन में ) आरक्षण संशोधन अधिनियम 2023 और बिहार पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (अनुसूचित जाति, जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) संशोधन अधिनियम 2023 को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने के पीछे के सरकार की मंशा यह है कि इसे कानूनी चुनौती से भविष्य में बचाया जा सके.
नीतीश-तेजस्वी ने की केंद्र से मांग
बिहार में लागू हुए 75% आरक्षण को केंद्र सरकार से 9वीं अनुसूची में डालने की मांग लगातार तेज हो रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बाद अब उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मोर्चा संभाल लिया है.उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार से बिना सोचे- विचारे इस मांग को तुरंत पूरा करने को कहा, ताकि आरक्षण के नये नियमों पर किसी तरह की अड़चन नहीं आ सके.
बिहार सरकार की क्या है मांग?
इससे पहले कैबिनेट विभाग के अपर मुख्य सचिव डा एस सिद्धार्थ ने यह बताया कि क्यों बिहार सरकार की ओर से यह मांग की जा रही है. उन्होंने तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए कहा कि तमिलनाडु की तर्ज पर बिहार सरकार ने भी आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से अधिक करने का निर्णय लिया. तमिलनाडु द्वारा दिये जा रहे 50 प्रतिशत से अधिक के आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया है. इसी तरह बिहार सरकार द्वारा मंजूर आरक्षण अधिनियमों को भारतीय संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार अनुशंसा भेजेगी, इस फैसले पर कैबिनेट ने सहमती दी है.
बिहार के 75% आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल करने के फायदे
कैबिनेट विभाग के अपर मुख्य सचिव डा एस सिद्धार्थ ने बताया कि बिहार में दो नये विधेयकों के प्रभावी होने से आरक्षण का दायरा अब 60 के बदले बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया है. अगर संसद द्वारा राज्य की अनुशंसा मान ली गयी और इन प्रस्तावों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाता है तो इस अधिनियम को न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा. उन्होंने बताया कि नौवीं अनुसूची में शामिल करने की शक्ति संसद के पास है.
क्यों कोशिश में लगी है सरकार..
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1992 में इंदिरा सहनी के एक मामले में सुनवाई करते हुए अदालत ने अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को तय किया था. लेकिन इसमें कहा गया था कि किसी असाधारण या अप्रत्याशित परिस्थिति में इसे तोड़ा जा सकता है. कानून के जानकार बताते हैं कि अगर बिहार में लागू किए गए 75 प्रतिशत आरक्षण को अदालत में चुनौती दी गयी तो सरकार को बताना हाेगा कि इसे किन असाधारण परिस्थिति में लागू किया गया.
बता दें कि जो 10 फीसदी आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय को दिया गया है उसमें आर्थिक आधार के तहत इसे लागू करने की मंजूरी मिली थी. कुछ राज्यों में लिए गए फैसले को अदालत से चुनौती भी मिल चुकी है. जिसे देखते हुए बिहार सरकार इसे मजबूत कवच पहनाने की कोशिश में लगी है.