Breaking

World Aids Day : एड्स पर नियंत्रण का लक्ष्य कब पूरा होगा ?

World Aids Day : एड्स पर नियंत्रण का लक्ष्य कब पूरा होगा ?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन’ ने समूचे हिंदुस्तान को ‘एड्स मुक्त’ बनाने की रणनीति बना ली है। सन् 2023 तक समाप्ति का लक्ष्य रखा है। वैसे, एकाध दशकों के मुकाबले बीते तीन-चार वर्षों में एड्स संक्रमण की संख्या में काफी कमी आई है। दरअसल, जनमानस इस बीमारी के प्रति गंभीर और जागरूक हो चुके हैं। लोग समय-समय पर अपना चैकअप करवाने लगे हैं। केंद्र व राज्य सरकारों ने भी सभी अस्पतालों में निशुल्क प्रसव या अन्य चिकित्सीय जांच से पूर्व एचआईवी को अनिवार्य किया हुआ। हुकूमत के इस कदम ने बेहतरीन काम किया है। देसवासियों में एड़स को लेकर जबरदस्त जागरूकता आ चुकी है।

यही इस बीमारी का मुख्य बचाव है। सिलसिला अगर यूं ही चलता रहा, तो केंद्र सरकार को एड्स की लक्ष्य प्राप्ति में ज्यादा कठिनाईयां नहीं सहनी पड़ेंगी। इस बीमारी का सबसे पहले पता 1983 में लगा था, उसके कुछ वर्षों बाद तो ये वायरस सामान्य खांसी-बुखार की तरह तेजी से फैला। पहला केस एक कैनेडियन नागरिक में मिला था जो फ्लाइट अटेंडेंट थे, उनका नाम गैटन दुगास था। उस पर आरोप था कि उसने जानबूझकर कई अमेरिकी महिलाओं से संबंध बनाए और उन्हें संक्रमित कर दिया। ऐसी घटनाएं और भी जगहों पर घटीं। कई वर्ष पहले केरल में भी एक विदेशी व्यक्ति को पुलिस ने रेड लाइट इलाके से पकड़ा था। जो एचआईवी पॉजिटिव था।

विश्व एड्स दिवस’ के मौके पर कुछ बातों पर मंथन करना जरूरी हो जाता है। वैसे, विश्व स्तर पर डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट पर गौर करें, तो एड्स संक्रमण की इस वक्त दर प्रति 17 हजार व्यक्तियों पर है। जबकि, हिंदुस्तान में ये दर 5 प्रतिशत के ही आसपास बताई गई है। भारत में एड्स-वायरस से सर्वाधिक संक्रमित व्यक्ति महाराष्ट्र में रहे हैं। वहीं, तमिलनाडु दूसरे पायदान पर रहा।

वैसे, हमारे यहां सन् 1985 से 1995 के बीच एड्स-विषाणु का संक्रमण बहुत तेज था। पर, उसके बाद हुकूमतों ने रोकथाम पर अच्छा कर बढ़ती दर को थाम लिया। प्रयास तब तक कम नहीं होने चाहिए, जब तक इस बीमारी का नामोनिशान न मिट जाए। एड्स को लेकर कुछ अति-जरूरी सावधानियां केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा बताई गई हैं, उन्हें सभी को फॉलो करते रहना हैं।

बहरहाल, एड्स बीमारी भी मात्र एक वायरस जैसी ही है, जो एकदम गंभीर नहीं होती? धीरे-धीरे अपना असर दिखाती है। अगर, शुरूआती दिनों में इलाज मिल जाए और पीड़ित जरूरी सावधानियां बरत लें, तो स्थिति एकाएक गंभीर नहीं बनती, काबू पा लिया जाता है। हिंदुस्तान में इस वक्त लाखों एड्स रोगी हैं जो सामान्य और लंबा जीवन जी रहे हैं। लेकिन फिर भी एड्स समाज की सबसे बड़ी कलंकित बीमारियों में से है।

कलंकित इसलिए क्योंकि इसको लेकर नकारात्मक बातें बहुत फैली हुई हैं। ऐसी बातें कि एड्स रोगियों के छूने या हाथ मिलाने मात्र से रोग फैलता है, जो सरासर तथ्यहीन है। दरअसल, ये रोग समाज में स्वीकार्य है। यही कारण है, एचआईवी के पता होने पर पॉजिटिव व्यक्ति से समाज दूरी बना लेता है, नकार देता है। यहां तक कि पारिवारिकजन, सगे-संबंधी मुंह मोड़ लेते हैं। तब, पीड़ित न चाहते हुए भी एकांत जीवन जीने को मजबूर हो जाता है।

गौरतलब है, चिकित्सा विज्ञान के अनुसार एड्स कोई बड़ी गंभीर बीमारी नहीं है। साथ खाने से या हाथ मिलाने से रोग फैल जाता है, ये कोरा मिथक मात्र है। एड्स इनमें से किसी भी कारण से नहीं फैलता। साथ ही यह एक ही टॉयलेट प्रयोग करने से, छींकने या खांसने या फिर गले मिलने से भी नहीं फैलता। एड्स के फैलने के दूसरे कारण होते हैं।

जैसे, संक्रमित खून चढ़ाना, एचआईवी पॉजिटिव महिला या पुरुष के साथ सेक्सुअल संबंध स्थापित करना, साथ ही एक से अधिक पार्टनरों के साथ सेक्स करना आदि मुख्य कारण होते हैं। आज पूरे संसार में विश्व एड्स वैक्सीन दिवस मनाया जा रहा है, जो एचआईवी वैक्सीन जागरूकता के तौर पर भी प्रचलित है। उसका असर कितना होता है, शायद बताने की जरूरत नहीं? केंद्र सरकार ने सन् 2030 तक एड्स के मामलों पर नियंत्रण पाने के लिए लक्ष्य बनाया है।

वहीं, एड्स कंट्रोल सोसायटी के अनुसार कोरोना वायरस की भांति जरूरी चिकित्सीय व्यवस्था का प्रबंध बनाया है। अगर ऐसा होता है तो काबिलेतारीफ होगा, बड़ी सफलताओं में गिना जाएगा। लेकिन, ऐसे में सवाल ये उठता है, क्या अगले 7 साल में सरकार ये लक्ष्य पूरा कर पाएगी या नहीं?

हिंदुस्तान में प्रति वर्ष अस्सी से नब्बे हजार केस सामने आते हैं पिछले साल 87,500 एचआईवी के मामले दर्ज हुए। वहीं, बीते तीन साल में 69,000 लोगों की जाने गईं। महाराष्ट्र और दिल्ली से प्रति वर्ष 3 से 4 हजार के बीच नए केस आते हैं। इन दो राज्यों में संक्रमितों की संख्या दूसरे राज्यों से कहीं ज्यादा है। रेड लाइट एरिया से इनमें बड़ी भूमिका निभाती हैं।

दुनिया में एड्स से मरने वालों का आंकड़ा तो भयभीत करता ही है। वायरस या बीमारी कोई भी हो उसे चिकित्सा तंत्र को गंभीरता से लेना चाहिए, हल्के में नहीं? क्योंकि चिकित्सा सिस्टम की जरा सी चूक या लापरवाही किसी के मौत का कारण बन सकती है। एड्स जैसी बीमारी की कोई दवा नहीं है, दवा है तो सिर्फ जागरूकता और स्वयं का बचाव, जिसमें हमें किसी तरह की कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए। लेकिन फिर भी एड्स का निवारण सिर्फ सतर्कता और जागरूकता नहीं होना चाहिए। खत्म करने के लिए वैक्सीन या टीके का निर्माण किया जाना चाहिए।

Leave a Reply

error: Content is protected !!