अनुच्छेद 370 पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का क्या मतलब है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन करने के केंद्र सरकार के वर्ष 2019 के कदम पर अपना निर्णय सुनाया। इस निरसन ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को प्रदत्त विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था। न्यायालय ने अनुच्छेद 370 को रद्द करने वाले संवैधानिक आदेश को वैध माना।
सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला क्या है?
- जम्मू-कश्मीर के पास संप्रभुता नहीं थी:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के संविधान में इस बात को दर्शाने के लिये बहुत सारे सबूत हैं कि कश्मीर के संबंध में अपनी संप्रभुता को छोड़ने के लिये विलय समझौता आवश्यक नहीं था।
- अनुच्छेद 370(1) भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 (जहाँ जम्मू-कश्मीर को भाग III राज्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया था) को बिना किसी संशोधन के लागू करता है।
- जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 3 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “जम्मू-कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा।”
- भारतीय संविधान की धारा 147 ने धारा 3 में किसी भी संशोधन पर रोक लगा दी, जिससे प्रावधान पूर्ण हो गया।
- इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि भारत का संविधान “देश का सर्वोच्च प्रशासकीय दस्तावेज़ है।” इसके अलावा जम्मू-कश्मीर संविधान की प्रस्तावना में “संप्रभुता के संदर्भ का स्पष्ट अभाव” दिखता है।
- अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है:
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर भरोसा किया कि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 370 को भाग XXI में निहित अस्थायी और संक्रमणकालीन प्रावधानों के साथ रखा था।
- फिर इसने बताया कि विलय पत्र (IoA) ने इसे “बहुत हद तक स्पष्ट” कर दिया है कि अनुच्छेद 1, जिसमें कहा गया है कि “इंडिया जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा”, पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है।
- राष्ट्रपति शासन के तहत उद्घोषणा की संवैधानिक वैधता:
- सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने सहमति व्यक्त की कि राष्ट्रपति के पास “राज्य विधानसभा के विघटन करने सहित अपरिवर्तनीय परिवर्तन” करने की शक्ति है एवं राष्ट्रपति की शक्तियों को “न्यायिक और संवैधानिक जाँच” द्वारा नियंत्रित रखा जाता है।
- जम्मू-कश्मीर का संविधान निष्क्रिय है:
- न्यायालय ने माना कि अब जम्मू-कश्मीर के संविधान का अस्तित्व में रहना आवश्यक नहीं है, इसके माध्यम से भारतीय संविधान के केवल कुछ प्रावधान ही जम्मू-कश्मीर पर लागू होते हैं।
- भारत के संविधान को संपूर्ण रूप से जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू करने का अंतर्निहित लेकिन आवश्यक परिणाम यह है कि राज्य का संविधान निष्क्रिय है।
- न्यायालय ने माना कि अब जम्मू-कश्मीर के संविधान का अस्तित्व में रहना आवश्यक नहीं है, इसके माध्यम से भारतीय संविधान के केवल कुछ प्रावधान ही जम्मू-कश्मीर पर लागू होते हैं।
- मानवाधिकारों के प्रावधान के लिये एक सत्य और सुलह आयोग का गठन:
- सर्वोच्च न्यायालय ने सिफारिश की कि संघ राज्य और गैर-राज्य दोनों अभिकर्त्ताओं द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच के लिये एक “सत्य और सुलह आयोग” स्थापित किया जाए, ठीक वैसे ही जैसे दक्षिण अफ्रीका ने रंगभेद के बाद राज्य और गैर-राज्य दोनों पक्षों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच की। इस आयोग का प्रयोग समयबद्ध होना चाहिये।
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा क्या था?
- परिचय:
- 5 अगस्त, 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 370(1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 जारी किया।
- इसके जरिये भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 में ही संशोधन किया है (उसे रद्द नहीं किया है)।
- इसके द्वारा भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य तथा भारतीय संघ के बीच संबंधों में नाटकीय रूप से बदल दिया है।
- 5 अगस्त, 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 370(1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 जारी किया।
- पृष्ठभूमि:
- जम्मू-कश्मीर को छूट प्रदान करते हुए 17 अक्तूबर, 1949 को एक ‘अस्थायी प्रावधान’ के रूप में अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में शामिल किया गया, इससे जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान बनाने की अनुमति प्राप्त हुई और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों के प्रयोग पर प्रतिबंधित लगा दिया गया।
- इसे एन गोपालस्वामी अय्यंगार ने संविधान के मसौदे में अनुच्छेद 306A के रूप में पेश किया था।
- जम्मू-कश्मीर को छूट प्रदान करते हुए 17 अक्तूबर, 1949 को एक ‘अस्थायी प्रावधान’ के रूप में अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में शामिल किया गया, इससे जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान बनाने की अनुमति प्राप्त हुई और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों के प्रयोग पर प्रतिबंधित लगा दिया गया।
- अनुच्छेद 370:
- भारतीय संविधान के कौन-से अनुच्छेद राज्य पर लागू होने चाहिये इसकी सिफारिश करने का अधिकार जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को प्रदान किया गया।
- राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के पश्चात् जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को भंग कर दिया गया था। अनुच्छेद 370 का खंड 3 भारत के राष्ट्रपति को इसके प्रावधानों और दायरे में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 35A का स्रोत अनुच्छेद 370 है और इसे जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश पर वर्ष 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से पेश किया गया था।
- अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेष अधिकारों तथा विशेष लाभों को परिभाषित करने का अधिकार देता है।
- यह भारत के संविधान के परिशिष्ट I में परिलक्षित होता है।
- कई राज्यों को अलग-अलग संवैधानिक गारंटी प्रदान की गई है। इन्हें आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और पूर्वोत्तर के राज्यों के लिये अनुच्छेद 371, 371A- I में संहिताबद्ध किया गया है।
- भारतीय संविधान के कौन-से अनुच्छेद राज्य पर लागू होने चाहिये इसकी सिफारिश करने का अधिकार जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को प्रदान किया गया।
नोट:
भारतीय संविधान शेष भारत के लिये संवैधानिक संशोधन के माध्यम से राज्य की शक्ति को बढ़ाने अथवा उस पर अंकुश लगाने के लिये अनुच्छेद 367 में एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करता है। हालाँकि जम्मू-कश्मीर के लिये संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि अनुच्छेद 370 के तहत केवल कार्यकारी कार्रवाई ही पर्याप्त होगी।
वर्ष 2019 के आदेश द्वारा किये गए प्रमुख परिवर्तन क्या हैं?
- संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019:
- वर्ष 1954 के राष्ट्रपति आदेश को संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- इसके बाद संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक (2019) जम्मू तथा कश्मीर राज्य को दो नए केंद्रशासित प्रदेशों (UT): जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित करता है।
- ऐसा पहली बार है कि किसी राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया गया है।
- वर्तमान में जम्मू-कश्मीर राज्य की छह लोकसभा सीटों में से पाँच केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पास रहेंगी, जबकि एक का आवंटन लद्दाख को किया जाएगा।
- दिल्ली और पुद्दुचेरी की तरह ही केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में एक विधानसभा होगी।
- लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा।
- कश्मीर में अब राज्यपाल नहीं, बल्कि दिल्ली अथवा पुद्दुचेरी की तरह एक उपराज्यपाल होगा।
- वर्ष 1954 के राष्ट्रपति आदेश को संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा:
- जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह वर्ष का नहीं, बल्कि पहले की ही तरह पाँच वर्ष का होगा।
- जम्मू-कश्मीर 2019 विधेयक की धारा 32 में प्रस्तावित है कि विधानसभा “सार्वजनिक व्यवस्था” और “पुलिस” से संबंधित राज्य के विषयों को छोड़कर राज्य तथा समवर्ती सूची के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है।
- यह संविधान के अनुच्छेद 239A के समान है जो केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी तथा दिल्ली पर लागू होता है।
- हालाँकि अनुच्छेद 239AAके सम्मिलन तथा 69वें संवैधानिक संशोधन के आधार पर दिल्ली विधानसभा राज्य सूची की प्रविष्टि 18 के मामलों, अर्थात् भूमि पर कानून नहीं बना सकती है।
- जम्मू-कश्मीर के मामले में विधानसभा भूमि पर कानून बना सकती है।
- जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त:
- जम्मू-कश्मीर का अब कोई अलग संविधान, झंडा अथवा राष्ट्रगान नहीं होगा।
- जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता नहीं होगी।
- चूँकि जम्मू-कश्मीर का नया केंद्रशासित प्रदेश भारतीय संविधान के अधीन होगा, इसलिये इसके नागरिकों को अब भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकार प्राप्त होंगे।
- अनुच्छेद 360, जिसका उपयोग वित्तीय आपातकाल घोषित करने के लिये किया जा सकता है, अब भी लागू होगा।
- संसद द्वारा पारित सभी कानून जम्मू-कश्मीर में लागू होंगे, जिनमें सूचना का अधिकार अधिनियम तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम भी शामिल हैं।
- भारतीय दंड संहिता, जम्मू-कश्मीर की रणबीर दंड संहिता की जगह लेगी।
- अनुच्छेद 35A, जो अनुच्छेद 370 के प्रावधानों से उत्पन्न हुआ है, अमान्य है।
नोट:
जम्मू-कश्मीर का संघ के साथ ऐतिहासिक रूप से एक अनोखा रिश्ता रहा है। जम्मू-कश्मीर तथा संघ के बीच कोई विलय समझौता नहीं हुआ था, बल्कि यह केवल विलय पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन- IoA) था, इसलिये संप्रभुता का कोई हस्तांतरण नहीं है एवं राज्य की स्वायत्तता का प्रावधान था। IoA बाह्य संप्रभुता से संबंधित है। कुछ अपवादों के अतिरिक्त बाह्य संप्रभुता समाप्त हो गई है। CJI ने हालिया निर्णय में कहा कि IoA पर हस्ताक्षर के बाद जम्मू-कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है।
अनुच्छेद 370 के निराकरण में विभिन्न विधिक चुनौतियाँ क्या थीं?
- सांविधानिक चुनौतियाँ:
- राष्ट्रपति के आदेश में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त करने की मांग की गई थी, अनुच्छेद 370 (3) के अनुसार, राष्ट्रपति को इस तरह के बदलाव के लिये जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुशंसा की आवश्यकता होगी।
- हालाँकि वर्ष 2019 के राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुच्छेद 367 में एक उप-खंड जोड़ा गया, जो निम्नलिखित पदों को प्रतिस्थापित करता है:
- “जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा” का आशय “जम्मू-कश्मीर की विधानसभा” से है।
- “जम्मू-कश्मीर सरकार” का तात्पर्य “जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह पर कार्य करने” से है।
- सरकार ने सांविधानिक संशोधन लाए बिना अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्तता को कम करने की मांग की, जिसके लिये संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
- इस प्रावधान को सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गई कि इसने केवल राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35A को जोड़ा।
- जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश में बदलना अनुच्छेद 3 का उल्लंघन है क्योंकि राज्य विधानसभा द्वारा विधेयक को राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया था।
- राज्य के पुनर्गठन में राष्ट्रपति के आदेश के लिये राज्य सरकार की सहमति की भी आवश्यकता होती है। चूँकि जम्मू-कश्मीर वर्तमान में राज्यपाल शासन के अधीन है, इसलिये राज्यपाल की सहमति को सरकार की सहमति माना जाता है।
- संघवाद का मुद्दा:
- विलय पत्र दो संप्रभु देशों के बीच संधि की तरह था, जिन्होंने एक साथ कार्य करने का निर्णय लिया था।
- संतोष कुमार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य एवं अन्य, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐतिहासिक कारणों से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।
- एसबीआई बनाम ज़फर उल्लाह नेहरू, 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जम्मू- कश्मीर की संविधान सभा की सहमति के बिना अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं किया जा सकता है।
- संतोष कुमार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य एवं अन्य, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐतिहासिक कारणों से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।
- विलय पत्र दो संप्रभु देशों के बीच संधि की तरह था, जिन्होंने एक साथ कार्य करने का निर्णय लिया था।
अनुच्छेद 370 हटने के पश्चात् जम्मू-कश्मीर में शांति और सुरक्षा के क्या हालात हैं?
- पथराव और उग्रवाद की घटनाओं में कमी:
- राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) जैसी केंद्रीय एजेंसियों की बढ़ती सुरक्षा उपस्थिति और कार्रवाई के कारण पथराव के मामलों में कमी आई।
- पथराव की घटनाओं की संख्या वर्ष 2019 के 618 से घटकर वर्ष 2020 में 222 हो गईं।
- सुरक्षा बलों के घायल होने की घटनाएँ 2019 के 64 से घटकर 2021 में 10 हो गईं।
- नागरिकों के घायल होने की घटनाओं में कमी:
- पेलेट गन और लाठीचार्ज से नागरिक के घायल होने की संख्या 339 (2019) से घटकर 25 (2021) हो गई।
- जम्मू-कश्मीर में कानून और व्यवस्था में भी सुधार हुआ क्योंकि 2022 में कानून और व्यवस्था की केवल 20 घटनाएँ दर्ज की गईं।
- उग्रवादियों और ओवर-ग्राउंड वर्करों की गिरफ्तारियाँ (OGWs):
- आतंकवादी समूहों के OGW की गिरफ्तारियाँ 2019 के 82 से बढ़कर 2021 में 178 हो गईं।
- पिछले 10 महीनों की तुलना में अगस्त 2019 से जून 2022 तक आतंकवादी कृत्यों में 32% की गिरावट आई है।
- कश्मीर के उत्थान के लिये 3E (शिक्षा, रोज़गार और नियोजनीयता) के लिये 10 साल की रणनीति लागू की जानी चाहिये।
- जम्मू-कश्मीर में ‘शून्य-आतंकवादी घटना‘ की योजना 2020 से लागू है और 2026 तक सफल होगी।
- कश्मीर में वैधता के संकट के समाधान के लिये अहिंसा और शांति का गांधीवादी मार्ग अपनाया जाना चाहिये।
- सरकार सभी कश्मीरियों तक एक व्यापक आउटरीच कार्यक्रम शुरू करके अनुच्छेद 370 पर कार्रवाई से उत्पन्न चुनौतियों को कम कर सकती है।
- इस संदर्भ में कश्मीर समाधान के लिये अटल बिहारी वाजपेयी का कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत (कश्मीर की समावेशी संस्कृति, मानवतावाद एवं लोकतंत्र) का संस्करण राज्य में सुलह की ताकतों की आधारशिला बनना चाहिये।
- यह भी पढ़े………….
- भू-राजनीति में भारत के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ मौजूद हैं?
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय से ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत किया है-पीएम मोदी
- पुस्तकें ही व्यक्ति की सच्ची मित्र होती हैं,कैसे?