विश्वविद्यालयों में विकसित भारत के विशिष्ट मूलमंत्र 

विश्वविद्यालयों में विकसित भारत के विशिष्ट मूलमंत्र

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श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक (कुरूक्षेत्र):

डॉ. राज नेहरू
कुलपति, श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय।

विकसित भारत की परिकल्पना युवाओं के मस्तिष्क में नवाचार और अन्वेषण के समावेश में ब्रह्मास्त्र सिद्ध होगी। यही अद्भुत और महत्वाकांक्षी संकल्प आगामी 25 वर्षों में भारत के परिवर्तन के वाहक होंगे। विकसित भारत की इस यात्रा में शिक्षण संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी, विशेषकर विश्वविद्यालयों के ऊपर सबसे बड़ा दायित्व है। युवाओं में परिवर्तनकारी एवं रचनात्मक विचारों के सृजन हेतु विश्वविद्यालयों को विशेष रणनीति तैयार करनी होगी।

विश्वविद्यालयों द्वारा तैयार की गई बौद्धिक भूमि पर ही नवोन्मेषी विचारों का अंकुरण होगा। इसके लिए विद्यार्थियों को शिक्षा के विभिन्न आयामों को आत्मसात करने की स्वतंत्रता नितांत आवश्यक है। इसे सीधे तौर पर शिक्षा का लोकतांत्रीकरण कहा जा सकता है और इसी के माध्यम से विकसित भारत की दिशा में एक बड़ा कदम संभव है। शिक्षाविदों की उस मानसिकता को भी बदलने की आवश्यकता है कि वह शिक्षा को जिस तरीके से डिजाइन करेंगे, विद्यार्थी उसी रूप में उसे ग्रहण करेंगे। शिक्षा के प्रारूप और अवधारणा को विद्यार्थियों पर थोपने की अपेक्षा उन्हें अपनी प्राथमिकता और विकल्पों के अनुसार पाठ्यक्रमों में परिवर्तन करने और उसे एक प्रोग्राम के रूप में डिजाइन करने का विकल्प दिया जाना चाहिए। विद्यार्थी अपनी अभिरुचि और करियर में उपयोगिता के अनुसार प्रोग्राम का चयन कर सकें, इसकी व्यवस्था करना सबसे जरूरी है।

पारंपरिक रूप से चले आ रहे पाठ्यक्रम का दौर अब अपनी प्रासंगिकता खो चुका है। अब उद्योग, कारपोरेट और बाजार मांग पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार करने की आवश्यकता है। इसके लिए शिक्षाविदों को उद्योग, कारपोरेट, बाजार, शिक्षकों और विद्यार्थियों सहित सभी हितधारकों से परामर्श कर पाठ्यक्रमों का डिजाइन विकसित करना होगा। सभी हितधारकों की राय को समाहित करके बनाया गया पाठ्यक्रम सर्वाधिक व्यवहारिक और प्रासंगिक होगा।

शिक्षण संस्थानों में रचनात्मक और समावेशी वातावरण को प्रोत्साहित करना बहुत आवश्यक है। विद्यार्थियों को ऐसा रचनात्मक वातावरण दिया जाना चाहिए कि वह कल्पनाशील बनें। खुले दिमाग से सोचें और तल्लीन होकर उसके क्रियान्वयन में अपनी ऊर्जा का समावेश करें। विद्यार्थियों को लीक से हटकर सोचने के लिए प्रेरित करना होगा। इसी से उनके विविध दृष्टिकोण विकसित होंगे और इनका समर्थन करना होगा।

वास्तविक दुनिया की चुनौतियों का अध्ययन करते हुए विद्यार्थियों को उनसे अवगत करवाना जरूरी है। इंटर्नशिप, अनुसंधान परियोजनाओं और उद्योगों की भागीदारी के माध्यम से विद्यार्थियों को वास्तविक दुनिया की चुनौतियों से जोड़ा जाए। इन चुनौतियों से रूबरू करवाने के बाद विद्यार्थियों को समाधानमूलक वैचारिक सृजन के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। विद्यार्थी खुद उनमें प्रयत्नशील होकर आगे बढ़ें विद्यार्थियों के समक्ष इंटरडिसिप्लिनरी प्रोग्राम प्रस्तुत किए जाने चाहिएं। इसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों के विद्यार्थियों को एक मंच पर आकर एक साथ वैचारिक मंथन के अवसर मिलेंगे। वैचारिक वैविध्य से नवाचारी सोच प्रोत्साहित होगी। इसके सुखद परिणाम आएंगे।

नवाचार पर आधारित प्रतियोगिताओं और चुनौतियों का आयोजन कर विद्यार्थियों की व्यवहारिक सहभागिता बढ़ाई जानी चाहिए।
इन मंचों पर विद्यार्थी अपने नूतन विचार प्रदर्शित करने में सक्षम होंगे और साथ ही उन्हें अनुभव पर आधारित प्रतिक्रिया भी प्राप्त होगी। इन स्पर्धाओं से नए और अनोखे विचारों के सृजन का वातावरण बनेगा।

उच्च शिक्षण संस्थानों में उद्यमशीलता को प्रोन्नत करना होगा। उद्यमिता में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों के लिए संसाधन और सहायता प्रदान करनी आवश्यक है। उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देने और नए आइडिया को प्रोत्साहित करने के लिए मेंटरशिप, फंडिंग के अवसर और इनक्यूबेटर तक विद्यार्थियों की पहुंच सरल बनानी होगी। शिक्षण संस्थान उद्यमिता विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उद्यम के विकास में बहुत सी समस्याओं का समाधान छिपा हुआ है। रोजगार के नए अवसरों के सृजन का मार्ग भी उद्यमिता से प्रशस्त हो सकता है।

मस्तिष्क में विचार-मंथन की तकनीकों और डिजाइन थिंकिंग को लागू करना होगा। इन दोनों आयामों को पाठ्यक्रम में समाहित करना होगा। इससे विद्यार्थियों के मस्तिष्क में नए लाने, उन्हें क्रियान्वित करने और नवाचार के माध्यम से समाधान विकसित करने में सहायता मिलेगी।

शिक्षण संस्थानों में विशिष्ट विषयों पर वैचारिक मंथन सर्वथा सार्थक होता है। उच्च शिक्षण संस्थानों में नवाचारी वैचारिकता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के व्याख्यान बहुत आवश्यक हैं। नए प्रासंगिक विषयों पर कार्यशालाओं और संगोष्ठियों के आयोजन होने चाहिएं। छात्रों के साथ अपने अनुभव और अंतर्दृष्टि साझा करने के लिए विभिन्न उद्योगों से अतिथि वक्ताओं को आमंत्रित किया जाए। सफल उद्यमियों के व्याख्यान भी करवाएं जाएं। यह व्याख्यान रचनात्मकता के लिए प्रेरित करने, समस्या- समाधान तकनीकों और विचार निर्माण पर आधारित होने चाहिएं।

शिक्षण संस्थानों और विशेषकर विश्वविद्यालयों को विद्यार्थियों के लिए सशक्त मंच तैयार करने होंगे, जहां विद्यार्थी अपने आईडिया साझा कर सकें और उन पर खुल कर विमर्श कर सकें। यह मंच विद्यार्थियों के नेतृत्व में संचालित क्लब या ऑनलाइन कम्युनिटी के रूप में प्रभावी हो सकते हैं। विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करते हुए उनके लिए नेटवर्किंग के अवसरों को और अधिक सुविधाजनक बनाना होगा।

विकसित भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए ‘थिंक ग्लोबल एंड एक्ट लोकल के दृष्टिकोण को अपनाना होगा। विश्वविद्यालयों में ऐसे नेटवर्क प्लेटफ़ॉर्म विकसित करने की आवश्यकता है, जहां विद्यार्थी अन्य संस्थानों, विभिन्न राज्यों व विश्व के दूसरे देशों के विश्वविद्यालयों में भी क्लास ले सकें उनके साथ जुड़ सकें
मिलेनियल्स और ज़िलेनियल्स की रचनात्मक सीख की ललक अलग-अलग होती है। उभरती हुई प्रौद्योगिकी को समझने की उनकी क्षमता बहुत अधिक है। रिवर्स मेंटरिंग उन्हें उत्साहित कर सकती है और शिक्षाविदों को अपने छात्रों के माध्यम से नई चीजें सीखने में मदद करेगी। इससे अकादमिक जगत के ज्ञान में नूतन समावेश होगा। यह प्रयोग विद्यार्थियों और अकादमिक विभूतियों, दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा।

यह अविस्मरणीय है कि प्रत्येक विद्यार्थी अपने आप में अनोखा है, इसलिए ऐसे वातावरण का सृजन महत्वपूर्ण है, जो विचार निर्माण के लिए व्यक्तिगत दृष्टिकोण का समर्थन करता है। विद्यार्थी अपने जुनून को सही ढंग से पहचान कर उसे क्रियान्वित कर सकें, इसके लिए सार्थक और सकारात्मक वातावरण बनाना सभी उच्च शिक्षण संस्थानों का दायित्व है। शिक्षण संस्थानों के नीति नियंताओं को यह हमेशा ध्यान में रखना होगा कि विकसित भारत के संवाहक तैयार करना उनका परम ध्येय है।

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