वामपंथी उग्रवाद के पीछे कौन-से प्रमुख कारण क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
छत्तीसगढ़ में हाल ही में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए जहाँ मुख्य ध्यान जनजाति/आदिवासी मतों पर केंद्रित रहा। विभिन्न राजनीतिक दलों ने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण जनजातीय आबादी पर ध्यान केंद्रित किया जो राज्य के कुल मतों में 34% की हिस्सेदारी रखते हैं और इस क्षेत्र में सरकार के गठन के लिये उनका समर्थन पाना प्रायः निर्णायक सिद्ध होता है।
छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्रों, विशेष रूप से बस्तर में, वर्तमान में माओवादी विद्रोह की समस्या पाई जाती है जहाँ जनजातीय आबादी इस आंदोलन के लिये प्राथमिक आधार के रूप में कार्य करती है। पाँचवी अनुसूची के क्षेत्रों (Schedule Five areas) के रूप में वर्गीकृत इन माओवादी गढ़ों में चुनावों में लगातार हिंसा की घटनाएँ होती रही हैं जिनकी गंभीरता माओवादियों द्वारा चुनाव बहिष्कार के आह्वान से और बढ़ जाती है। इस वर्ष के चुनावों में भी यही प्रवृत्ति नज़र आई जो इन क्षेत्रों में माओवादी विद्रोह द्वारा उत्पन्न जारी चुनौतियों को परिलक्षित करती है।
वामपंथी उग्रवाद:
- परिचय:
- वामपंथी उग्रवाद (Left Wing Extremism- LWE), जिसे वामपंथी आतंकवाद या कट्टरपंथी वामपंथी आंदोलनों के रूप में भी जाना जाता है, उन राजनीतिक विचारधाराओं और समूहों को संदर्भित करता है जो क्रांतिकारी तरीकों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन की वकालत करते हैं।
- LWE समूह अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये सरकारी संस्थानों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों या निजी संपत्ति को निशाना बनाने जैसे कदम उठाते हैं।
- भारत में वामपंथी उग्रवादी आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1967 के पश्चिम बंगाल में नक्सलबाड़ी (Naxalbari) के उदय के साथ हुई।
- भारत में LWE की उपस्थिति: गृह मंत्रालय के अनुसार देश के 10 राज्यों के 90 ज़िले LWE से प्रभावित हैं, हालाँकि अलग-अलग ज़िलों में उनका स्तर भिन्न-भिन्न है।
- ये 10 राज्य हैं: आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल।
- इनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और बिहार सर्वाधिक प्रभावित हैं, जहाँ वामपंथी समूहों की प्रबल उपस्थिति है और वे सुरक्षा बलों एवं नागरिकों पर लगातार हमले करते रहे हैं।
- ये 10 राज्य हैं: आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल।
वामपंथी उग्रवाद के पीछे कौन-से प्रमुख कारण:
- असमान विकास: वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित कई क्षेत्र देश के सबसे कम विकसित क्षेत्रों में शामिल हैं, जहाँ उच्च स्तर की गरीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा, कुपोषण और सामाजिक अपवर्जन जैसी स्थितियाँ पाई जाती हैं।
- वामपंथी उग्रवादी समूह समाज के हाशिये पर स्थित वर्गों, विशेष रूप से जनजातीय समुदाय की शिकायतों या असंतोष का फायदा उठाते हैं, जिन्हें राज्य और निजी अभिकर्ताओं द्वारा उनकी भूमि, वन और खनिज अधिकारों से वंचित कर दिया गया है।
- शासन की कमी: वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्र प्रभावी शासन, प्रशासन और सेवा वितरण की कमी से पीड़ित हैं। यहाँ सरकारी संस्थाएँ प्रायः अक्षम, भ्रष्ट या अनुपस्थित होती हैं, जिससे एक रिक्तता या निर्वात का निर्माण होता है जिसे फिर LWE समूहों द्वारा भरा जाता है।
- LWE समूह चुनाव, पंचायती कार्यकरण और विकास योजनाओं जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित करने के लिये हिंसा एवं भयादोहन का भी उपयोग करते हैं।
- वैचारिक अपील: LWE समूह उत्पीड़ित और शोषित वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं और एक ऐसी कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार करते हैं जो संसदीय लोकतंत्र को अस्वीकार करती है तथा सशस्त्र क्रांति की वकालत करती है।
- वे चीनी कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग (Mao Zedong) की शिक्षाओं और वर्ष 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के नेतृत्व में उभरे नक्सलबाड़ी विद्रोह से प्रेरणा ग्रहण करते हैं।
- वामपंथी उग्रवाद से जुड़े कुछ समूहों के भारत और भारत के बाहर अन्य चरमपंथी एवं अलगाववादी आंदोलनों से भी संबंध हैं।
- वैश्वीकरण और सांस्कृतिक विस्थापन: वैश्वीकरण के प्रभाव, जिनमें सांस्कृतिक परिवर्तन एवं विस्थापन शामिल हैं, विस्थापन और अलगाव की भावना में योगदान कर सकते हैं।
- वामपंथी उग्रवादी आंदोलन उन व्यक्तियों को अस्मिता एवं उद्देश्य की एक भावना प्रदान कर सकते हैं जो इन वैश्विक शक्तियों द्वारा हाशिये की ओर धकेले जाना महसूस करते हैं।
- सुरक्षा उपाय:
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की तैनाती: सरकार ने उग्रवाद विरोधी अभियान चलाने और पुलिस उपस्थिति को सुदृढ़ करने के लिये वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में CRPF, BSF और ITBP जैसे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (Central Armed Police Forces- CAPFs) की तैनाती की है।
- राज्य पुलिस को सबल करना: केंद्र सरकार राज्यों को उनके पुलिस बलों के आधुनिकीकरण, खुफिया जानकारी संग्रहण में सुधार और उग्रवाद विरोधी रणनीति में कर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये वित्तीय एवं लॉजिस्टिकल सहायता प्रदान करती है।
- विशेष इकाइयों की स्थापना: नक्सली नेताओं और कैंपों के विरुद्ध लक्षित अभियान चलाने के लिये ‘कोबरा कमांडो’ और ‘ग्रेहाउंड’ जैसी विशेष इकाइयाँ बनाई गई हैं।
- विकास पहल:
- एकीकृत विकास परियोजनाएँ: सरकार ने LWE प्रभावित क्षेत्रों में अवसंरचना सुधार, आजीविका के अवसर प्रदान करने और शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने के लिये एकीकृत जनजातीय विकास कार्यक्रम (ITDP) और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) जैसी विभिन्न योजनाएँ शुरू की हैं।
- कौशल विकास कार्यक्रम: सरकार वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं को रोज़गार के योग्य बनाने और नक्सली भर्ती के प्रति उनकी भेद्यता को कम करने के लिये कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।
- स्थायी आजीविका को बढ़ावा देना: वन धन विकास केंद्र और मनरेगा (MGNREGA) जैसी योजनाओं का लक्ष्य वन-आधारित गतिविधियों एवं ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रमों के माध्यम से जनजातीय समुदायों के लिये सतत आजीविका के अवसर पैदा करना है।
- अधिकार और हक़दारी सुनिश्चित करना:
- भूमि अधिकार: सरकार जनजातीय समुदायों के समक्ष विद्यमान भूमि अलगाव (land alienation) की समस्या के समाधान के लिये भी कदम उठा रही है, जो नक्सली असंतोष का एक प्रमुख कारण रहा है।
- वन अधिकार: वन अधिकार अधिनियम 2006 वन संसाधनों पर जनजातीय समुदायों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है और सामुदायिक वन प्रबंधन के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाने का लक्ष्य रखता है।
- शिकायत निवारण तंत्र: सरकार ने स्थानीय समुदायों की चिंताओं को दूर करने और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिये शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किये हैं।
- अन्य उपाय:
- सिविक एक्शन प्रोग्राम (CAP): वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न सिविक एक्शन कार्यक्रम के संचालन के लिये केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को वित्तीय अनुदान आवंटित किया जाता है।
- आत्म-समर्पण और पुनर्वास नीति: पुनर्वास पैकेज के तहत उच्च रैंक के LWE कैडरों के लिये 2.5 लाख रुपए और मध्यम/निचली रैंक के कैडरों के लिये 1.5 लाख रुपए उनके नाम पर सावधि जमा के रूप में रखे जाते हैं जिन्हें अच्छा आचरण प्रकट करने पर 3 वर्ष पूरा होने के बाद निकाला जा सकता है।
- उन्हें उनकी पसंद के व्यापार/व्यवसाय में प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है और तीन वर्षों के लिये 4000 रुपए प्रति माह की वृत्ति प्रदान की जाती है।
- ‘समाधान’ सिद्धांत: वामपंथी उग्रवाद की समस्या का कोई रामबाण समाधान संभव नहीं है। इसके लिये अलग-अलग स्तरों पर अल्पावधिक, मध्यम आवधिक और दीर्घावधिक नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है। ‘समाधान’ (SAMADHAN) का पूर्ण रूप है:
- S- स्मार्ट लीडरशिप
- A- एग्रेसिव स्ट्रेटेजी
- M- मोटिवेशन एंड ट्रेनिंग
- A- एक्शनेबल इंटेलिजेंस
- D- डैशबोर्ड-बेस्ड KPIs (Key Performance Indicators) और KRAs (Key Result Areas)
- H- हार्नेसिंग टेक्नोलॉजी
- A- एक्शन प्लान फॉर इच थिएटर
- N- नो एक्सेस टू फाइनेंसिंग
- स्मार्ट पुलिस: ‘स्मार्ट’ रणनीतिक प्रबंधन और वैकल्पिक प्रतिक्रिया रणनीति (SMART- Strategic Management & Alternative Response Tactics) का संक्षिप्त रूप है, जो पुलिस प्राधिकारों द्वारा डेटा-संचालित दृष्टिकोण के अनुप्रयोग को संदर्भित करता है।
- स्मार्ट पुलिस का लक्ष्य सूचना-संपन्न निर्णयन एवं संसाधन आवंटन के लिये डेटा के विभिन्न स्रोतों—जैसे अपराध के आँकड़े, नागरिक प्रतिक्रिया, सोशल मीडिया आदि का उपयोग कर पुलिस कार्य की गुणवत्ता एवं दक्षता में सुधार करना है।
- स्मार्ट पुलिस में पुलिस प्रेषण के विकल्प भी शामिल हैं, जैसे ऑनलाइन रिपोर्ट, टेलीफोन रिपोर्टिंग इकाइयाँ और फाल्स अलार्म में कमी लाना।
सरकार को और क्या करना चाहिये?
- पेसा अधिनियम का प्रभावी कार्यान्वयन:
- पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम [Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act- PESA], 1996 का उचित और पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए। इसमें अधिनियम की मंशा के अनुरूप ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने के लिये स्पष्ट नीति निर्देश जारी करना शामिल है।
- कार्यान्वयन में उन कमियों को दूर किया जाए जिन्होंने माओवादियों को स्थिति का गलत लाभ उठाने की अनुमति दी है और अधिनियम को ऐतिहासिक एवं पारंपरिक जनजातीय जीवन शैली के साथ संरेखित करने की दिशा में कार्य किया जाए।
- जनजातीय सशक्तीकरण और प्रतिनिधित्व:
- जनजातीय नेतृत्व को उनकी आवाज़ सुनने के लिये मंच प्रदान करने के माध्यम से सक्रिय रूप से संपोषित किया जाए। इसे स्थानीय शासन संरचनाओं और राजनीतिक प्रक्रियाओं में प्रतिनिधित्व बढ़ाकर हासिल किया जा सकता है।
- जनजातीय समुदायों की आकांक्षाओं को चिह्नित किया जाए और उन्हें संबोधित किया जाए। सुनिश्चित किया जाए कि सरकार की नीतियाँ एवं पहल उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और दृष्टिकोणों को समायोजित करने के लिये डिज़ाइन की गई हैं।
- विकास कार्यक्रम:
- ऐसे लक्षित विकास कार्यक्रम लागू करने चाहिये जो जनजातीय समुदायों के समक्ष विद्यमान सामाजिक-आर्थिक मुद्दों का समाधान कर सकें। इसमें अवसंरचना विकास, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और रोज़गार के अवसर जैसे विषय शामिल हो सकते हैं।
- सुनिश्चित किया जाए कि विकास पहल सहभागितापूर्ण हो और निर्णयन प्रक्रियाओं में स्थानीय समुदायों को संलग्न किया जाए।
- माओवादी प्रोपेगेंडा का प्रतिकार:
- माओवादी प्रोपेगेंडा का मुक़ाबला करने और उनकी बयानबाजी एवं वास्तविक कार्यों के बीच के अंतर को उजागर करने के लिये संचार रणनीतियाँ शुरू की जाएँ। ऐसे उदाहरणों को उजागर किया जाए जहाँ माओवादियों का एजेंडा स्थानीय आबादी के कल्याण से असंगत सिद्ध होता है।
- सटीक सूचना के प्रसार और गलत सूचना पर नियंत्रण के लिये स्थानीय मीडिया, सामुदायिक नेताओं और प्रभावशाली लोगों के साथ सहयोग स्थापित किया जाए।
- सुलह वार्ता और संघर्ष समाधान:
- माओवादी समूहों के भीतर उदारवादी गुटों के साथ शांतिपूर्ण संवाद के अवसरों की तलाश की जानी चाहिये। स्थायी समाधान पाने के लिये उनके असंतोष के मूल कारणों को चिह्नित करना और उन्हें संबोधित करना आवश्यक है।
- शांति निर्माण प्रयासों में तटस्थ मध्यस्थों, नागरिक समाज संगठनों और समुदाय के प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।
- मानवाधिकार संरक्षण:
- मानवाधिकारों की सुरक्षा, विशेषकर संघर्ष क्षेत्रों में, सुनिश्चित की जानी चाहिये। आजमाया जा रहा कोई भी सुरक्षा उपाय विधि के शासन के अनुरूप हो और संपार्श्विक क्षति एवं नागरिक क्षति को कम करने के प्रयास किये जाने चाहिये।
- दीर्घकालिक रणनीतिक योजना:
- एक व्यापक, दीर्घकालिक रणनीति विकसित की जाए जो सतत विकास, सामाजिक न्याय और समावेशी शासन पर केंद्रित हो। इस तरह के दृष्टिकोण का उद्देश्य उन अंतर्निहित मुद्दों का समाधान करना होगा जो विद्रोह में योगदान करते हैं।
सरकार वामपंथी उग्रवाद के उन्मूलन के लिये सक्रिय रूप से विभिन्न रणनीतियाँ लागू कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, भारत में वामपंथी उग्रवाद अपने अंतिम दिन देख रहा है और अगले दो वर्षों में इसके पूर्ण उन्मूलन की उम्मीद है। प्रमुख सरकारी प्राथमिकताओं में माओवादियों का मुक़ाबला करने के लिये केंद्रीय बलों को तैनात करना, विकास प्रयासों को सुव्यवस्थित करना और उन क्षेत्रों में सुरक्षा शिविर स्थापित करना शामिल है जहाँ प्रशासनिक पैठ चुनौतीपूर्ण रही है।
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