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अपने ग्यारह प्रस्तावों को अनुमोदित करने के साथ ही सम्पन्न हुआ 27वां अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन। - श्रीनारद मीडिया

अपने ग्यारह प्रस्तावों को अनुमोदित करने के साथ ही सम्पन्न हुआ 27वां अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन।

अपने ग्यारह प्रस्तावों को अनुमोदित करने के साथ ही सम्पन्न हुआ 27वां अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन।

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स्वर्ण जयंती वर्ष (1973-2023)के सम्मेलन में रखे गए ग्यारह प्रस्ताव।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का 27 वां अधिवेशन जमशेदपुर के तुलसी भवन में 16 और 17 दिसंबर 2023 को संपन्न हुआ। अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य संगम में सर्वप्रथम स्थाई समिति की बैठक हुई, जिसमें वर्तमान अध्यक्ष ने निवर्तमान अध्यक्ष डॉ. बृजभूषण मिश्रा को अध्यक्षीय कार्य भार दिया।

सम्मेलन के 50 वर्षों की रूपरेखा महामंत्री प्रो. जयकांत सिंह ने लिखित रूप से प्रस्तुत करते हुए सभी सदस्यों के बीच इसे वितरित किया, तत्पश्चात कोषाध्यक्ष जितेंद्र जी ने पिछले वर्ष के आय-व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत किया। महामंत्री ने बताया कि 1973 में बने इस सम्मेलन के संविधान पर यह संगठन खड़ा है। सितंबर 1973 में इसका पंजीकरण कराया गया। सम्मेलन की जागृत करने का कार्य मोतिहारी के गुलरेज शहजाद ने किया। यही कारण था कि 2013 के बाद संगठन का 26 वां अधिवेशन फरवरी 2022 के मोतिहारी में सम्पन्न हुआ। सभी के सहयोग से कार्यक्रम होता रहे ऐसी कामना की जाती है,

क्योंकि शरीर सुदृढ़ होता है योग से और संगठन सुदृढ़ होता है सहयोग से।

जमशेदपुर में अखिल भारतीय भोजपुरी सहित सम्मेलन का तीसरी बार अधिवेशन होने की सार्थकता इसलिए है भी है कि यह नगर कारखाना में अयस्क व लोहा पिघलाकर तरह-तरह के वस्तुओं का ही निर्माण नहीं करता है वरन यहां काम करने वाले भोजपुरी प्रदेश की जनता अपना कलेजा पिघलाकर तरह-तरह के साहित्य की रचना की करती है। ऐसे में भोजपुरी भाषा व साहित्य के विकास में इस पुण्य भूमि का अहम योगदान है जिसका साक्ष्य यह अधिवेशन बना है।

अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में स्मारिकता ‘अकियान’ का लोकार्पण किया गया। संस्था की पत्रिका भोजपुरी सम्मेलन अधिवेशन अंक को भी प्रस्तुत किया गया। इस सत्र में भोजपुरी की सेवा करने वाले 21 गणमान्य व्यक्तियों को पुरस्कृत किया गया।
इनमें सर्वप्रथम माधव सिंह पुरस्कार से सम्मानित शिवपूजन लाल विद्यार्थी, कन्हैया सिंह ‘सदय’, गंगा प्रसाद अरुण, और अरविंद विद्रोही रहे।
वही चित्रलेखा पुरस्कार से सम्मानित डॉ. शारदा पाण्डेय,
हरिशंकर वर्मा पुरस्कार से डॉ.भगवती प्रसाद द्विवेदी की पुस्तक जैसे अमवा के मोजरा से रस चुवेला,

जगन्नाथ सिंह पुरस्कार से पुसकृत सुरेश कांटक के नाटक ‘दरद न जाने कोई’,
पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय पुरस्कार से सम्मानित डॉ. रंजन विकास,
पाण्डेय जगन्नाथ प्रसाद पुरस्कार से सम्मानित तुषार कांत उपाध्याय की कहानी संग्रह कुछ हमार कुछ राउर,

अभय आनंद पुरस्कार से पुरस्कृत मंगा लाल शास्त्री का उपन्यास के ‘हम गुरु दक्षिणा हई’,
नर्मदेश्वर सहाय पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित जयशंकर प्रसाद द्विवेदी,
चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह पुरस्कार से पुषकृत प्रमोद कुमार तिवारी की पुस्तक भोजपुरिया के थाती,
राम नगीना राय पुरस्कार से पुरस्कृत कनक किशोर जी की पुस्तक ‘धधकल सूरज पियासल धरती’,


हरिशंकर वर्मा पुरस्कार से पुष्कृत इंजीनियर राजेश्वर सिंह की पुस्तक ‘श्याम प्यारा साधु संत’,
महेंद्र शास्त्री पुरस्कार से पुषकृत डॉ. मधुबाला सिंह की पुस्तक ‘अखुआईल शब्द’,
राम नगीना राय पुरस्कार से पुषकृत सूरज प्रसाद उपाध्याय की पुस्तक ‘गीत कवन गाई हम’,
चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह पुरस्कार से पुरस्कृत डॉ. विक्रम कुमार सिंह की पुस्तक भोजपुरी के विश्वकोश पंडित गणेश चौबे’,
महंत लाल दास पुरस्कार से सम्मानित प्रेम रंजन,
बृज किशोर दुबे नवोदय गायक/ गायिका पुरस्कार से सम्मानित प्रति कुमारी और कीर्ति कुमारी प्रमुख रहे।

अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन में कुल ग्यारह प्रस्ताव पारित किए गए।

जिसमें प्रस्ताव संख्या 1(एक) में कहा गया कि अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का 27 वां अधिवेशन भारत सरकार की गृह मंत्रालय से यह मांग करता है कि भोजपुरी भाषा को भारतीय संविधान के अष्टम सूची में शामिल किया जाए।

प्रस्ताव संख्या 2– अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का 27 वां अधिवेशन भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय से यह मांग करता है की प्रथम वर्ग से अष्टम वर्ग तक भोजपुरी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने का प्रबंध करें और आठवीं कक्षा तक भोजपुरी भाषा साहित्य की शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।

प्रस्ताव संख्या 3-अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का 27 वां अधिवेशन बिहार सरकार से यह मांग करता है कि बिहार के जिस विद्यालय में भोजपुरी की पढ़ाई हो रही है वहां समुचित संख्या में अध्यापक का पद सृजित किया जाए साथ ही उस पद पर नियुक्ति करके पठन-पाठन की सुचारू व्यवस्था की जाए।

प्रस्ताव संख्या 4– अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का 27 वां अधिवेशन उत्तर प्रदेश,बिहार और झारखंड राज्य सरकार से यह मांग करता है कि भोजपुरी क्षेत्र के सारे विद्यालय एवं विश्वविद्यालय में भोजपुरी भाषा साहित्य के अध्ययन अध्यापन की अनिवार्य रूप से व्यवस्था की जाए।

प्रस्ताव संख्या 5– अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का यह 27 वां अधिवेशन बिहार सरकार से मांग करता है कि नालंदा खुला विश्वविद्यालय में एम.ए (भोजपुरी) की स्थगित अध्ययन को फिर से प्रारंभ किया जाए।

प्रस्ताव संख्या 6– अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का यह 27 वां अधिवेशन झारखंड सरकार से मांग करता है कि झारखंड में भोजपुरी के गढ़वा और पलामू जिला तक सीमित नहीं करते हुए इसे धनबाद,बोकारो, रांची,जमशेदपुर,साहिबगंज, गोड्डा और पाकुड़ आदि जिलों को भी भोजपुरी भाषी जिला में शामिल किया जाए।

प्रस्ताव संख्या 7– अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का यह 27 वां अधिवेशन उत्तर प्रदेश,झारखंड और बिहार सरकार से मांग करता है कि भोजपुरी भाषा को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता दी जाए।

प्रस्ताव संख्या 8– अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का यह 27 वां अधिवेशन बिहार सरकार से मांग करता है कि 50 वर्ष पुराने निबंधित संस्था अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के कार्यालय हेतु भूमि या भवन पटना में आवंटित या बंदोबस्त किया जाए।

प्रस्ताव संख्या 9– अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का यह 27 वां अधिवेशन बिहार सरकार से मांग करता है कि भोजपुरी अकादमी के खाली पदों पर भोजपुरी भाषा साहित्य के जानकार विद्वान सुधी जनों की नियुक्ति की जाए तथा भोजपुरी के विद्वान जन को ही अकादमी के पुनर्गठन में शामिल किया जाए।

प्रस्ताव संख्या 10– अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का यह 27 वां अधिवेशन उत्तर प्रदेश और झारखंड सरकार से मांग करता है कि अपने-अपने राज्य में भोजपुरी अकादमी का अविलंब गठन किया जाए।

प्रस्ताव संख्या 11-अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन का यह 27 वां अधिवेशन उत्तर प्रदेश,बिहार और झारखंड सरकार से विभिन्न स्तर पर होने वाली नियुक्ति हेतु प्रतियोगिता परीक्षा में भोजपुरी भाषा एवं साहित्य को विषय के रूप में शामिल किया जाए।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अधिवेशन का सार संक्षेप यह है कि भोजपुरी को कब संवैधानिक मानयता मिलेगी?
भोजपुरी से अश्लीलता कब समाप्त होगी? भोजपुरी जो अपने अंगना से लुप्त हो रही है वह कब तक घर आंगन में लौटेगी?
अगली पीढ़ी का भोजपुरी से रुझान कैसे होगा और जो मां-बहनें भोजपुरी से दूर हो गई है उस भोजपुरी को सलिलता से कैसे प्राप्त किया जा सकता है? भोजपुरी में केवल लिखा ही नहीं जाए बल्कि भोजपुरी में अच्छे स्तर का साहित्य सृजन किया जाए।
भोजपुरी में निरंतर लेखन कार्य हो। निरंतर विद्वान सुधी जनों का सम्मेलन होता रहे ताकि इसमें निरन्तरता बनी रही और हम सब अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके।

अंतत: कवि मोती बी.ए. की ये चार पंक्तियाँ हमारे आत्मवलोकन के लिए पर्याप्त है कि—
“अपना चिजुइया के जेही नाहीं बूझी
दुनिया में ओकरा के केहू नाहीं पूछी
अपने चिजुइया से होई अपने बेगाना
चारों ओर खोज अइले पवले ना ठेकाना।”

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