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प्रेस, नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

प्रेस, नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोकसभा ने प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867 के औपनिवेशिक युग के कानून को निरस्त करते हुए प्रेस, नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023 पारित किया।

  • यह विधेयक अगस्त 2023 में राज्यसभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है।

प्रेस, नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • पत्रिकाओं का रजिस्ट्रीकरण: यह विधेयक पत्रिकाओं के रजिस्ट्रीकरण का प्रावधान करता है, जिसमें सार्वजनिक समाचार या सार्वजनिक समाचार पर टिप्पणियों वाला कोई भी प्रकाशन शामिल है।
    • पत्रिकाओं में किताबें या विज्ञान से संबंधित और अकादमिक पत्रिकाएँ शामिल नहीं हैं।
      • जबकि अधिनियम समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और पुस्तकों के रजिस्ट्रीकरण का प्रावधान करता है। इसने पुस्तकों की सूचीकरण की भी व्यवस्था की।
    • पुस्तकों को विधेयक के दायरे से बाहर कर दिया गया है, क्योंकि एक विषय के रूप में पुस्तकों का प्रबंधन मानव संसाधन और विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • प्रकाशनों हेतु रजिस्ट्रीकरण प्रोटोकॉल: विधेयक आवधिक प्रकाशकों को प्रेस रजिस्ट्रार जनरल और निर्दिष्ट स्थानीय प्राधिकरण के माध्यम से ऑनलाइन रजिस्ट्रीकरण करने में सक्षम बनाता है।
    • इसके अलावा आतंकवाद या राज्य सुरक्षा के खिलाफ कार्रवाई के दोषी व्यक्तियों के लिये किसी पत्रिका का प्रकाशन निषिद्ध है।
    • जबकि अधिनियम में ज़िला मजिस्ट्रेट को एक घोषणा पत्र देना अनिवार्य था, जिसे इसे समाचार पत्र प्रकाशन के लिये प्रेस रजिस्ट्रार के पास भेजना था।
  • विदेशी पत्रिकाएँ: भारत के भीतर विदेशी पत्रिकाओं के मुद्रण के लिये केंद्र सरकार से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होती है। ऐसी पत्रिकाओं के पंजीयन के लिये विशिष्ट प्रोटोकॉल की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
  • प्रेस महा-रजिस्ट्रार: यह विधेयक भारत के प्रेस महा-रजिस्ट्रार की भूमिका की व्याख्या करता है, जो सभी पत्रिकाओं के लिये रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करने हेतु उत्तरदायी है।
    • इसके अतिरिक्त उसके कर्त्तव्यों में पत्र-पत्रिकाओं के रजिस्टर बनाए रखना, पत्र-पत्रिकाओं के शीर्षकों के लिये दिशा-निर्देश स्थापित करना, परिचालन आँकड़ों की पुष्टि करना तथा रजिस्ट्रीकरण संशोधन, निलंबन एवं रद्दीकरण का प्रबंधन करना शामिल है।
  • मुद्रण प्रेस रजिस्ट्रीकरण: प्रिंटिंग प्रेस से संबंधित घोषणाएँ अब ज़िला मजिस्ट्रेट के समक्ष की गई घोषणाओं की आवश्यकता से हटकर प्रेस महारजिस्ट्रार को ऑनलाइन जमा की जा सकती हैं।
  • रजिस्ट्रीकरण का निलंबन तथा रद्द करना: प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के पास भ्रामक सूचना प्रस्तुत करने, प्रकाशन में रुकावट अथवा अनुचित वार्षिक विवरण प्रदान करने सहित विभिन्न कारणों से किसी पत्रिका के रजिस्ट्रीकरण को न्यूनतम 30 दिनों (180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है) के लिये निलंबित करने का अधिकार है।
    • इन मुद्दों को हाल करने में विफलता के परिणामस्वरूप रजिस्ट्रीकरण रद्द किया जा सकता है।
    • रद्द करने के अन्य आधारों में अन्य पत्रिकाओं के साथ शीर्षकों की समानता अथवा स्वामी/प्रकाशक द्वारा आतंकवाद अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध कृत्यों से संबंधित दोषसिद्धि शामिल है।
  • दंड और अपील: यह विधेयक महारजिस्ट्रार को अपंजीकृत पत्र-पत्रिका प्रकाशन अथवा निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर वार्षिक विवरण प्रस्तुत करने में विफलता के लिये ज़ुर्माना लगाने का अधिकार देता है।
    • इन निर्देशों का पालन न करने पर छह महीने तक की कैद हो सकती है।
    • इसके अतिरिक्त रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्रों को अस्वीकार करने, रजिस्ट्रीकरण के निलंबन/रद्दीकरण अथवा लगाए गए दंड के विरुद्ध अपील के प्रावधान प्रेस और रजिस्ट्रीकरण अपीलीय बोर्ड के समक्ष अपील दायर करने के लिये 60 दिनों की अवधि के साथ उपलब्ध हैं।

प्रेस विनियमन से संबंधित अन्य स्वतंत्रता-पूर्व कानून क्या हैं?

  • लॉर्ड वेलेज़ली (वर्ष 1799) के तहत सेंसरशिप: फ्राँसीसी आक्रमण की आशंकाओं के कारण पूर्व-सेंसरशिप सहित सख्त युद्धकालीन प्रेस नियंत्रण लागू किया गया।
    • बाद में सन् 1818 में लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा प्री-सेंसरशिप हटाकर इसमें ढील/छूट दी गई।
  • जॉन एडम्स द्वारा लाइसेंसिंग विनियम (1823): बिना लाइसेंस के प्रेस शुरू करने या संचालित करने के लिये दंड का प्रावधान किया गया, जिसे बाद में बढ़ाते हुए विभिन्न प्रकाशनों पर लागू कर दिया गया।
    • मुख्य रूप से भारतीय भाषा के समाचार पत्रों या भारतीयों के नेतृत्व वाले समाचार पत्रों को निशाना बनाया गया, जिसके कारण राममोहन राय का मिरात-उल-अकबर बंद हो गया।
  • प्रेस अधिनियम, 1835 (मेटकाफ अधिनियम): प्रतिबंधात्मक 1823 अध्यादेश को निरस्त कर दिया गया, जिससे मेटकाफ को “भारतीय प्रेस के मुक्तिदाता” की उपाधि मिली।
    • मुद्रकों/प्रकाशकों द्वारा अपने परिसर के बारे में सटीक घोषणाएँ करना अनिवार्य की गईं और आवश्यकतानुसार समाप्ति की अनुमति दी गई।
  • वर्ष 1857 के विद्रोह के दौरान लाइसेंसिंग अधिनियम: 1857 के आपातकाल के कारण आगे लाइसेंसिंग प्रतिबंध लगाए गए।
    • मौजूदा रजिस्ट्रीकरण प्रक्रियाओं को संवर्द्धित किया गया, जिससे सरकार को किसी भी मुद्रित सामग्री के प्रसार को रोकने की शक्ति मिल गई।
  • वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम, 1878: इसे वर्नाक्यूलर प्रेस को विनियमित करने, राजद्रोह से संबंधित लेखन को प्रतिबंधित करने और विभिन्न समुदायों के बीच कलह को रोकने के लिये डिज़ाइन किया गया।
    • स्थानीय समाचार पत्रों के मुद्रकों और प्रकाशकों को सरकार विरोधी या विभाजनकारी विषयों का प्रसार करने से परहेज के लिये एक बॉण्ड पर हस्ताक्षर करने की मांग की गई।
    • मजिस्ट्रेट द्वारा लिये गए निर्णय न्यायालय में अपील के किसी भी अवसर के बिना अंतिम होते थे।
  • समाचार पत्र (अपराधों को उकसाना) अधिनियम, 1908: हिंसा या हत्या को उकसाने, आपत्तिजनक विषय-वस्तुओं को प्रकाशित करने वाली प्रेस संपत्तियों को ज़ब्त करने के लिये मजिस्ट्रेटों को अधिकार दिया गया।
    • उग्र राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक को राजद्रोह के आरोपों का सामना करना पड़ा और उन्हें मांडले ले जाया गया, जिससे व्यापक विरोध और हड़ताल के घटनाएँ हुईं।
  • भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910: स्थानीय सरकार रजिस्ट्रीकरण के समय सुरक्षा की मांग कर सकती थी, उल्लंघन करने वाले समाचार पत्रों को दंडित कर सकती थी और जाँच के लिये निशुल्क प्रतियों की मांग कर सकती थी।

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