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संसद सदस्यों का निलंबन क्यों किया गया?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संसद के शीतकालीन सत्र 2023 के दौरान 146 संसद सदस्यों (सांसद) को निलंबित कर दिया गया है।

  • संसद में हाल ही में सुरक्षा उल्लंघन के विरोध में संसदीय कार्यवाही में बाधा डालने के कारण दोनों सदनों के सांसदों को निलंबन का सामना करना पड़ा।

सांसद संसद को बाधित क्यों करते हैं?

  • राजनेताओं और पीठासीन अधिकारियों द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार व्यवधान उत्पन्न करने वाले चार मुख्य कारण हैं:
    • सांसदों के पास महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाने के लिये पर्याप्त समय नहीं है।
    • सरकार में जवाबदेही की कमी।
    • राजनीतिक या प्रचार कारणों से पार्टियाँ जानबूझकर अशांति उत्पन्न करती हैं।
    • संसदीय कार्यवाही में व्यवधान डालने वाले सांसदों के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई करने में विफलता।

संसद के किसी मंत्री को कौन निलंबित कर सकता है?

  • सामान्य सिद्धांत यह है कि व्यवस्था बनाए रखना पीठासीन अधिकारी अर्थात् लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति की भूमिका तथा कर्त्तव्य है ताकि सदन का सुचारू रूप से संचालन हो सके।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये कि कार्यवाही उचित तरीके से संचालित हो, अध्यक्ष/सभापति को किसी सदस्य को सदन से बाहर जाने के लिये बाध्य करने का अधिकार है।

वे कौन से नियम हैं जिनके तहत पीठासीन अधिकारी सांसदों को निलंबित करते हैं?

  • लोक सभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियम :
    • नियम 373: यदि अध्यक्ष को किसी सदस्य का आचरण अव्यवस्थित लगता है तो वह उस सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाने का निर्देश दे सकता है।
      • जिन सदस्यों को वापस लेने का आदेश दिया गया है वे तुरंत ऐसा करेंगे और शेष दिनों की बैठक के दौरान अनुपस्थित रहेंगे।
    • नियम 374: अध्यक्ष ऐसे सदस्य का नाम ले सकता है जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या लगातार और जानबूझकर सदन के कामकाज में बाधा डालकर सदन के नियमों का दुरुपयोग करता है।
      • और नामित सदस्य को सत्र के शेष भाग से अधिक की अवधि के लिये सदन से निलंबित कर दिया जाएगा।
      • इस नियम के तहत निलंबित सदस्य को तुरंत सदन के परिसर से हट जाना होगा।
    • नियम 374A: नियम 374A को दिसंबर 2001 में नियम पुस्तिका में शामिल किया गया था।
      • अध्यक्ष द्वारा नामित किये जाने पर गंभीर उल्लंघन या गंभीर आरोपों के मामले में सदस्य को लगातार पाँच बैठकों या सत्र के शेष भाग, जो भी कम हो, के लिये सदन की सेवा से स्वचालित रूप से निलंबित कर दिया जाता है।
  • राज्यसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के नियम: 
    • नियम 255: 
      • राज्यसभा के सभापति को नियम पुस्तिका के नियम 255 के तहत यह अधिकार है कि वह किसी भी सदस्य को, जिसका आचरण उनकी राय में घोर अव्यवस्थित हो, तुरंत सदन से बाहर जाने का निर्देश दे सकते हैं।
    • नियम 256: 
      • इस नियम के तहत अध्यक्ष “उस सदस्य का नाम बता सकता है जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या लगातार और जानबूझकर कार्य में बाधा डालकर परिषद के नियमों का दुरुपयोग करता है”।
      • ऐसी स्थिति में सदन सदस्य को शेष सत्र से अधिक की अवधि के लिये सदन की सेवा से निलंबित करने का निर्णय ले सकता है।

सांसदों के निलंबन के क्या नुकसान हैं?

  • संसद में सांसदों का निलंबन एक कठोर कदम है जो सदन की व्यवस्था और मर्यादा को बनाए रखने के लिये उठाया जाता है। हालाँकि लोकतंत्र के कामकाज हेतु इसके कई नुकसान भी हैं, जैसे:
    • यह निलंबित सांसदों को चुनने वाले लोगों की आवाज़ और प्रतिनिधित्व पर अंकुश लगाता है। यह उन्हें जनहित के मुद्दे उठाने और सरकार को जवाबदेह ठहराने के उनके अधिकार से वंचित करता है।
    • यह कानून और नीति के महत्त्वपूर्ण मामलों पर बहस एवं चर्चा के दायरे व गुणवत्ता को कम कर देता है।
    • यह संसदीय प्रक्रिया में एक रचनात्मक और ज़िम्मेदार भागीदार के रूप में विपक्ष की भूमिका को कमज़ोर करता है।
    • यह सत्तारूढ़ एवं विपक्षी दलों के बीच विश्वास की कमी और शत्रुता उत्पन्न करता है।
    • यह सहयोग और सर्वसम्मति निर्माण की भावना को नष्ट करता है जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये आवश्यक है।
    • यह एक अनुपयुक्त मिसाल कायम करता है और बहुमत दल द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को प्रोत्साहित करता है।
    • यह संसदीय लोकतंत्र के मानदंडों और परंपराओं का उल्लंघन करता है तथा संसद की संस्था को कमज़ोर करता है।
    • निलंबन संघीय ढाँचे और देश की विविधता के लिये खतरा है, क्योंकि वे विभिन्न क्षेत्रों एवं पार्टियों के सांसदों को प्रभावित करते हैं।

आगे की राह

  • यह सुनिश्चित करना कि सरकार विपक्ष की चिंताओं एवं मांगों का समय पर और सम्मानजनक तरीके से जवाब दे तथा असहमति या आलोचना से बचने के लिये निलंबन को एक उपकरण के रूप में उपयोग करने से बचे।
  • सदन में व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने के लिये पीठासीन अधिकारियों की भूमिका तथा अधिकार को मज़बूत करना एवं संसदीय आचरण के नियमों व मानदंडों का उल्लंघन करने वाले सांसदों पर कठोर दंड लगाना।
  • प्रमुख मुद्दों पर विभिन्न दलों तथा समूहों के बीच वार्ता एवं आम सहमति बनाने को प्रोत्साहित करना तथा विरोध अथवा दबाव के साधन के रूप में टकराव और व्यवधान से बचना।
  • सांसदों की उनके संवैधानिक कर्त्तव्यों तथा ज़िम्मेदारियों के प्रति जागरूकता एवं जवाबदेही बढ़ाना एवं सदन की पवित्रता व गरिमा का सम्मान करना।
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