मेक इन इंडिया की सफलताएँ और विफलताएँ क्या हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘मेक इन इंडिया’ पहल 1970 के दशक में आजमाई गई भारत की आत्मनिर्भरता की नीति (policy of self-sufficiency) से प्रस्थान का प्रतिनिधित्व करती है। अतीत के दृष्टिकोण के विपरीत, मेक इन इंडिया पहल लाइसेंस राज, आत्मनिर्भरता या आयात-प्रतिस्थापनकारी औद्योगीकरण की स्मृतियाँ नहीं उत्पन्न करती। यह व्यापक रूप से अलग है, हालाँकि कुछ क्षेत्रों में मेक इन इंडिया के कार्यान्वयन को लेकर चिंताएँ जताई गई हैं।

मेक इन इंडिया नीति क्या है? 

  • नीति: 
    • मेक इन इंडिया पहल घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिये वर्ष 2014 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक प्रमुख कार्यक्रम है।
    • यह अभियान निवेश को सुविधाजनक बनाने, नवाचार को बढ़ावा देने, कौशल विकास को संवृद्ध करने, बौद्धिक संपदा की रक्षा करने और श्रेणी विनिर्माण अवसंरचना में सर्वोत्कृष्ट का निर्माण करने के लिये लॉन्च किया गया।
  • उद्देश्य: 
    • विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर को बढ़ाकर 12-14% प्रतिवर्ष करना।
    • वर्ष 2022 तक (बाद में इसे संशोधित कर 2025 कर दिया गया) विनिर्माण क्षेत्र में 100 मिलियन अतिरिक्त रोज़गार अवसर सृजित करना)।
    • वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 25% तक बढ़ाना।
  • रणनीतियाँ: 
    • व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: कंपनियों के लिये भारत में व्यापार करना सुगम बनाने के लिये नौकरशाही बाधाओं को कम करना और नियमों को सरल बनाना।
    • अवसंरचना का विकास करना: उद्योगों के लिये विश्वसनीय एवं सक्षम अवसंरचना प्रदान करने के लिये बंदरगाहों, सड़कों, रेलवे और बिजली उत्पादन का उन्नयन करना।
    • कार्यबल को कुशल बनाना: विनिर्माण क्षेत्र के लिये कुशल श्रमिकों के पूल के निर्माण के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश करना।
    • निवेश को प्रोत्साहन देना: विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी एवं घरेलू निवेश को आकर्षित करने के लिये कर छूट, सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहनों की पेशकश करना।
    • प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: विकास के लिये विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित करना, जैसे ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स।
  • डेरिवेटिव: मेक इन इंडिया के कम से कम दो अन्य डेरिवेटिव भी हैं: ‘मेड इन इंडिया’ और ‘मेक फॉर इंडिया’।
    • मेड इन इंडिया (Made in India) से तात्पर्य है भारत में उत्पादों की असेंबलिंग या विनिर्माण, भले ही उनके घटक विदेश में विनिर्मित किये गए हों।
      • यह मूलतः श्रम, पूंजी, उद्यमिता, प्रौद्योगिकी आदि भारतीय उत्पादन पहलुओं का उपयोग करने वाले विनिर्माताओं को बढ़ावा देने के लिये एक ब्रांडिंग रणनीति है।
    • मेक फॉर इंडिया (Make for India) से तात्पर्य ऐसे उत्पादों के उत्पादन से है जिनका भारत में ही उपभोग किया जाना है और जहाँ घरेलू बाज़ार के लिये विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

मेक इन इंडिया की शुरूआत के पीछे क्या तर्क था?

  • मेक इन इंडिया को वर्ष 2014 में एक सुदृढ़ एवं प्रतिस्पर्द्धी विनिर्माण क्षेत्र का निर्माण करने के लिये डिज़ाइन की गई पिछली पहलों (जैसे NIP 2011, अर्थव्यवस्था का उदारीकरण आदि) की अगली कड़ी के रूप में लॉन्च किया गया।
  • भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि अपर्याप्त भौतिक अवसंरचना, एक जटिल एवं भ्रष्ट नियामक वातावरण और कुशल श्रमबल की अपर्याप्त उपलब्धता जैसे कारकों से बाधित थी।
  • मेक इन इंडिया को सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को 1980 के दशक की शुरुआत से ही गतिहीन 15% से बढ़ाकर कम से कम 25% करने और 100 मिलियन अतिरिक्त रोज़गार अवसर सृजित करने के लिये लॉन्च किया गया।
    • हालाँकि, स्पष्ट है कि यह इस दृष्टिकोण से सफल नहीं हुआ।
  • राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP) 2011 के गतिशील उद्देश्यों के अलावा, इसका उद्देश्य “भारत को एक वैश्विक डिज़ाइन और विनिर्माण निर्यात केंद्र में बदलना” था। दूसरे शब्दों में, विश्व के लिये मेक इन इंडिया का लक्ष्य रखा गया था।

मेक इन इंडिया की सफलताएँ और विफलताएँ क्या रही हैं? 

  • सफलताएँ:
    • भारत ने विश्व बैंक के कारोबार सुगमता सूचकांक (Ease of Doing Business Index) में अपनी रैंकिंग में सुधार किया है जहाँ वर्ष 2014 में 142वें से वर्ष 2020 में 63वें स्थान पर पहुँच गया।
    • भारत ने रक्षा, रेलवे, नागरिक उड्डयन जैसे विभिन्न क्षेत्रों को निजी एवं विदेशी निवेश के लिये खोल दिया।
    • भारत ने ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा, कपड़ा जैसे कुछ क्षेत्रों में वृद्धि देखी है।
    • भारत मोबाइल फोन विनिर्माण में अग्रणी देश बन गया जहाँ वर्ष 2017-18 में 200 से अधिक इकाइयों ने 225 मिलियन से अधिक हैंडसेट का उत्पादन किया।
  • विफलताएँ: 
    • भारत अपने उत्पादों और सेवाओं के लिये एक अंतरराष्ट्रीय विशिष्ट बाज़ार का निर्माण कर सकने में विफल रहा।
    • भारत वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाने, 100 मिलियन अतिरिक्त रोज़गार अवसर सृजित करने और विनिर्माण विकास को 12-14% प्रति वर्ष तक बढ़ाने के अपने लक्ष्य को पूरा कर सकने में विफल रहा।
    • भारत को नीतिगत गतिहीनता (policy paralysis), प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ की कमी, निवेश संकट, व्यापार संरक्षणवाद, अवसंरचनागत बाधाएँ, श्रम संबंधी मुद्दे जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

मेक इन इंडिया अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल क्यों रहा?

  • मेक इन इंडिया के एक भाग के रूप में प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना लागू की गई जिसका उद्देश्य था प्रमुख क्षेत्रों एवं अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी में निवेश आकर्षित करना; दक्षता सुनिश्चित करना और विनिर्माण क्षेत्र में आकारिक एवं मितव्ययी लाभ (economies of size and scale) का निर्माण करना तथा भारतीय कंपनियों एवं विनिर्माताओं को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना।
    • अतिरिक्त लक्ष्य सोने पर सुहागा की तरह होते हैं, लेकिन हमारे वृहत कार्यबल, विशेषकर महिलाओं के लिये, रोज़गार पैदा करने का प्राथमिक लक्ष्य पूरा नहीं हो सका।
      • यह केवल श्रम-गहन विनिर्माण के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। चीन का उदाहरण बतलाता है कि अधिकाधिक रोज़गार सृजन के लिये विनिर्माण में ‘स्केल’ का प्रभाव महत्त्वपूर्ण है।

क्या MSMEs रोज़गार की समस्या का समाधान कर सकते हैं? 

  • भारत का श्रम बाज़ार अनुसंधान असंगठित क्षेत्र में कम वेतन, निम्न उत्पादकता और मुख्यतः अनौपचारिक नौकरियों की उपस्थिति की ओर इंगित करता है।
  • भारत के 63 मिलियन सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) में से 99% से अधिक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं, जिनमें उत्पादक रोज़गार सृजन के लिये बहुत कम लचीलापन पाया जाता है।
    • उनका महज निर्वाहकारी अस्तित्व (hand-to-mouth existence) रोज़गार या स्केल के लिये कोई नुस्खा सिद्ध नहीं हो सकता।

रोज़गार सृजन के लिये क्या करने की आवश्यकता है? 

  • खिलौने, रेडीमेड परिधान और जूते जैसे क्षेत्रों के लिये PLI के अलावा एक सुविचारित राष्ट्रीय औद्योगिक नीति की आवश्यकता है।
    • PLI उच्च-स्तरीय विनिर्माण के लिये अच्छा है, लेकिन बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन के लिये औद्योगिक नीति सबसे अच्छा विकल्प होगा।
  • औसत शैक्षिक उपलब्धियों एवं कौशल वाले एक श्रम प्रचुर देश (labour abundant country) में वृहत उत्पादक रोज़गार सृजन को आकार देने के लिये औद्योगिकी नीति आवश्यक है।

राष्ट्रीय औद्योगिक नीति रोज़गार सृजन में किस प्रकार मदद कर सकती है?

  • पहले से मौजूद और नए उद्योगों को उनके उत्पादन, निर्यात एवं नवाचार का विस्तार करने के लिये प्रोत्साहन और सहायता प्रदान करना। इससे औद्योगिक क्षेत्र में श्रम एवं कौशल की मांग बढ़ सकती है और रोज़गार के अधिक अवसर पैदा हो सकते हैं।
  • सड़क, बंदरगाह, बिजली एवं डिजिटल नेटवर्क जैसी अवसंरचना एवं कनेक्टिविटी का विकास करना, जो वस्तुओं, सेवाओं और लोगों की आवाजाही को सुविधाजनक बना सके। इससे उद्योगों की दक्षता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हो सकता है और निर्माण एवं रखरखाव संबंधी क्षेत्रों में अधिक रोज़गार अवसर सृजित हो सकते हैं।
  • शिक्षा, प्रशिक्षण और आजीवन अधिगम कार्यक्रमों के माध्यम से कार्यबल के कौशल एवं क्षमताओं को बढ़ाना, जो उद्योगों की ज़रूरतों और मांगों से संगत हो सकें। इससे श्रम बल की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और ज्ञान-आधारित एवं उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों में अधिक नौकरियाँ पैदा हो सकती हैं।
  • स्टार्ट-अप, छोटे एवं मध्यम उद्यमों और सामाजिक उद्यमों के निर्माण एवं विकास को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से उद्यमिता एवं नवाचार को बढ़ावा देना। यह नवाचार एवं रचनात्मकता की संस्कृति को बढ़ावा दे सकता है और उभरते हुए एवं गतिशील क्षेत्रों में अधिक नौकरियाँ पैदा कर सकता है।
  • औद्योगिक नीति को निर्धनता उन्मूलन, लैंगिक समानता और जलवायु परिवर्तन शमन जैसे सामाजिक एवं पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ संरेखित करना। यह सुनिश्चित कर सकता है कि औद्योगिक विकास समावेशी, संवहनीय एवं उत्तरदायी है और यह हरित एवं सामाजिक क्षेत्रों में अधिक रोज़गार उत्पन्न करता है।

भारत की प्रचुर श्रम शक्ति के लिये उत्पादक रोज़गार के अवसरों के निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिये एक राष्ट्रीय औद्योगिक नीति आवश्यक है। हालाँकि सरकार ने नई औद्योगिक नीति (NIP 23) को फिलहाल स्थगित कर रखा है, जिस पर दो वर्षों से अधिक समय से कार्य चल रहा था।

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