Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
नव वर्ष कैसा होना चाहिए? - श्रीनारद मीडिया
Breaking

नव वर्ष कैसा होना चाहिए?

नव वर्ष कैसा होना चाहिए?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार अंग्रेजी नव वर्ष प्रारंभ हो गया है| जो बीत गया वह कल था और जो आने वाला है वह भी कल होगा| चिंतन करने पर ज्ञात होता है कि भारतीय दर्शन में समय को एक अविछिन्न प्रवाह के सिद्धांत के रूप में स्थापित किया गया है| इसके लिए भूत-भविष्य दोनों एक ही है और वर्तमान इन दोनों को जोड़ने वाला एक सेतु है|

‘कल’ शब्द अतीत और भविष्य दोनों के लिये एक ही है,इन दोनों को जोड़ने के लिये वर्तमान हैं| यह ‘कल’ मुख्यता काल से बना है जो समय का धोतक है| जो इस काल के प्रभाव से परे हो जाता है, उसे महाकाल अर्थात भगवान शिव कहा गया है| इसी से जुड़ा शब्द है ‘सत श्री अकाल! वाह! क्या बात है| इसमें हम गति का अनुभव करते हैं यानी कि अनवरत प्रवाह, जिसे हम समय में उसी तरह से देखते हैं, जैसे की नदी के उद्गम से लेकर किसी अन्य में विलीन हो जाने की उसकी संपूर्ण यात्रा को| यह यात्रा एक ही होती है, यात्रा में बहने वाला जल भी एक ही होता है, लेकिन उसके स्थान एक नहीं होते|

यहाँ हम पाते हैं कि जो बात एक राष्ट्र व एक समुदाय के लिए सत्य है, वही बात एक व्यक्ति के लिए भी सत्य है| ऐसे में हमारा जीवन निरंतर कर्म एवं अनुभव के कई पड़ाव होकर गुजरता है| इससे हमारी चेतना विकसित होती है, जो हमें ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय’ को इंगित करती है जिसमें गति का प्रावधान है|

महान चिंतक, विचारक, साहित्यकार, व कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अपनी कविता ‘एकला चलो रे’ में कहा है कि…

“हे मनुष्य! चलना ही जीवन है|

आगे बढ़ना ही जिंदगी की निशानी है|

अतः तू चलता चल, जीवन भर बढ़ता चल|……”

भविष्य उन्हीं के कदमों को चुमेगा, जो निरंतर अपने अंदर नई चेतना का आह्वाहन कर अपने को नया रूप देते रहेंगे| यही नवीन चेतना हमारी दृष्टि को भी बदलेगी और जैसे ही दृष्टि बदलती है वैसे ही दृश्य भी बदल जाते हैं| क्योंकि अज्ञानता से ज्ञान की यात्रा करते समय हम प्राचीन व नवीन का विचार करने लगते हैं| वस्तुत: देखा जाए तो पिछला नष्ट नहीं होता वरन वह नवीनता में परिवर्तित हो जाता है| हमारी सनातन परंपरा में यह ‘काल’ स्थिरता व स्वाभिमान का प्रतीक है जो नित्य नूतन रूप ग्रहण करने का अवसर देता है|

अगर आप इसे ही नववर्ष मानते हैं तो अपने चित्त का स्वागत करिए जो आपको वर्षभर सत्य, सुंदर, सरल, सुगम, निर्मल बनाए रखेंगा| यह दिवस आपके संकल्प के स्वागत का दिन है|

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!