सीवान के शिक्षाविद दाढ़ी बाबा अमर रहे।

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सीवान के मालवीय बैजनाथ प्रसाद उर्फ दाढ़ी बाबा की मनाई गई 141वीं जयंती।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

” न तन सेवा न मन-सेवा न जीवन और धन सेवा
मुझे है इष्ट जन-सेवा सदा सच्ची भुवन सेवा।”

सीवान नगर स्थित डी.ए.वी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में स्वर्गीय बैधनाथ प्रसाद उर्फ दाढ़ी बाबा की 141वीं जयंती बुधवार को मनायी गई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बिहार विधान परिषद के सदस्य प्रो. (डॉ.) वीरेंद्र नारायण यादव रहे।

सर्वप्रथम दीप प्रज्वलित कर दाढ़ी बाबा के तैल चित्र पर दीप प्रज्वलित करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया किया गया। सेवा निवृत्त जंतु विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. रविंद्र पाठक ने उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला और उनके बारे में विस्तार से बताया। जबकि सेवानिवृत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. प्रभुनाथ पाठक ने कहा कि उनकी कृति इतनी लंबी है जिसे कहा और सुनाया जाए तो वर्षों लगेंगे। विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने दाढ़ी बाबा के बारे में अपनी कृतियों में जिक्र किया है। दाढ़ी बाबा ने शिक्षा से ऐसे विभूतियां को जन्म दिया जो अपने-अपने क्षेत्र में चरम शिखर पर पहुंचे।

प्रभारी प्राचार्य प्रो. चंद्रभानु सिंह ने कहा की दाढ़ी बाबा सीवान के प्रथम स्नातक थे। वे कमजोर बच्चों के लिए अपने आवास पर वह पाठशाला की नींव रखीं जो आज वटवृक्ष के रूप में यहां स्थित है। जंतु विज्ञान की छात्राओं ने सोहर गीत प्रस्तुत करके सभी को मंत्र मुक्त कर दिया। इस अवसर पर महाविद्यालय में हुए खेल प्रतियोगिता में उत्तीर्ण छात्रों को पुरस्कार प्रदान किया गया।

बैधनाथ प्रसाद प्रेक्षागृह में हुए इस कार्यक्रम में अर्थशास्त्र की सेवानिवृत्ति विभागाध्यक्ष प्रो. रामानंद पाण्डेय, रसायन शास्त्र के विभागाध्यक्ष सेवानिवृत प्रो. रामचंद्र सिंह समेत कई विभागों के सहायक आचार्य, आचार्य एवं गैर शिक्षकेत्तर कर्मचारी उपस्थित रहे।

बिहार में सीवान के मालवीय दाढ़ी बाबा उर्फ बैधनाथ प्रसाद शिक्षा के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान देने वाले एक ऐसे पारस पत्थर थे, जिन्होंने जिसे भी छुआ वह कंचन होकर अपनी उपलब्धियों का पोषक पाषाण बना। दाढ़ी बाबा की शिक्षण शैली में एक आकर्षण था। वह अनगढ़े पत्थर को श्रेष्ठता के संस्कारों से इतना संवारते थे कि वह शिव बन जाता था। शैशवा अवस्था में वे ऐसा बीज प्रस्थापित कर
देते थे कि सहज ही वह पौधा आसमान की उँचाई छुने लग जाता था।

राहुल सांकृत्यायन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है की “दाढ़ी बाबा सीवान में आर्य समाज के अग्रदूत रहे। उनका जीवन तपोमय है सभी उनका सम्मान करते हैं उनका जीवन सचमुच त्याग और तपस्या का जीवन है।” विदित हो कि राहुल सांकृत्यायन 1920 से 1940 तक स्वाधीनता संघर्ष एवं किसान आंदोलन के दौरान सीवान में दाढ़ी बाबा के सानिध्य में रहे थे।

दाढ़ी बाबा के तपोमय जीवन, कर्मनिष्ठ, निस्पृह सेवा और अनासक्त कर्मयोग की नि:सृत सुरभि से आकर्षित होकर 1945 ईस्वी में बिहार के तत्कालीन गवर्नर रदरफोर्ड ने सीवान का परिदर्शन किया और दाढ़ी बाबा से अभिभूत होकर उन्हें ‘ग्रेट बेगर’ अर्थात महान भिक्षुक की संज्ञा दी डाली।

विधियों से सदा निर्लिप्त, परमार्थ, मानवता की सेवा और शिक्षा प्रचार में दाढ़ी बाबा ने अपनी आहुति दे दी। सीवान में उनके द्वारा स्थापित शिक्षा के मंदिर आज भी सुशोभित है जो हजारों व्यक्तियों के रोजगार का केंद्र होने के साथ-साथ विद्वता का भी केंद्र हैं। इन संस्थाओं के ईट, बालू, पत्थर में आज भी दाढ़ी बाबा के आत्मा में विद्यमान है।


अमेरिका से 1956 में नई दिल्ली पधारी शिक्षाविद मिस फॉक्स भारत सरकार द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने दिल्ली आई। परन्तु दाढ़ी बाबा की ख्याति से प्रभावित हो कर वह उनका दर्शन करने सीवान पहुंची। उन्होंने अपने नोट्स में लिखा कि “मैं मिस फॉक्स दाढ़ी बाबा की उपेक्षा कर मन ही मन रोईं। काश यह व्यक्ति अमेरिका में जन्म लिए होते तो उन्हें राष्ट्रीय सम्मान से विभूषित किया जाता, पर यहां तो लोग उन्हें जानते भी नहीं है, उनका जन्म दिवस मनाना तो बहुत दूर की बात है।” इसके बाद ही मिक्स फॉक्स की प्रेरणा से 1956 से दाढ़ी बाबा की जयंती मनाई जाने लगी।

कौन थे दाढ़ी बाबा उर्फ बैधनाथ प्रसाद।

दाढ़ी बाबा के उदानत व्यक्तित्व की कायिक संपदा मझोला कद, गौरांग धवल केश, लंबी दाढ़ी और मुछें, सदा चेहरे पर मुस्कुराहट सिर पर श्वेत गांधी टोपी, चुस्त पजामा या धोती और बंद गले का कोट उनके परिधान था। वह बातें संभल संभल कर प्रभावोत्पादक ढंग से किया करते थे।
दाढ़ी बाबा का जन्मदिन 03जनवरी 1884 को जगन्नाथ प्रसाद के पुत्र के रूप में हुआ था। परिवार मूलरूप से उत्तरप्रदेश के गाज़ीपुर से 17वीं शताब्दी में आया था। सीवान में शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें पढ़ाई के लिए दार्जिलिंग भेजा गया, जहां से उन्होंने 1903 में प्रवेशिका परीक्षा पास की, इसके बाद 1908 में पटना के बीएन कॉलेज से स्नातक हुए।

बी.एल.पार्ट- प्रथम के बाद उन्हें मुंसिफ मजिस्ट्रेट का पद दिया जा रहा था जिसे ठुकराते हुए उन्होंने कहा कि “मैं सीवान का प्रथम स्नातक हूं मैं शिक्षा के क्षेत्र में ही रहकर कितना और स्नातकों को पैदा कर सकता हूं।” दाढ़ी बाबा 1911 से 1927 तक सीवान नगर के वीएम हाईस्कूल में कार्यरत रहे। परन्तु इस दौरान वे अपने आवास पर ही डीएवी पाठशाला का संचालन करते रहे, जिसमें नैतिक शिक्षा के साथ-साथ स्वच्छता,नारायण सेवा की पाठ सिखाते थे।


दाढ़ी बाबा सीवान आर्य समाज के संस्थापक रास बिहारी लाल से प्रेरित होकर 1998 में आर्य समाज की ओर उन्मुख हुए। यही कारण है कि 1917- 18 में सीवान आर्य समाज भवन का निर्माण हुआ। जब बिहार-बंगाल आर्य प्रतिनिधि सभा का गठन हुआ तो दाढ़ी बाबा उसके प्रथम प्रधान चुने गए। दाढ़ी बाबा 1922 ई. से लगातार 1963 तक आर्य समाज बिहार के प्रधान, उप प्रधान, मंत्री, अंकेक्षक एवं अतरंग सदस्य के रूप में जुड़े रहे।

आर्य समाज मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पौराणिक धर्म, जाति- प्रथा, छुआछूत तथा बाल विवाह का विरोध कर वैदिक धर्म की आधारशिला पर एक स्वस्थ तथा सुंदर समाज का निर्माण करना चाहता है। स्त्री शिक्षा के प्रचार एवं विधवा विवाह के माध्यम से स्त्रियों की दशा सुधारने में भी आर्य समाज सतत प्रयत्नशील रहा। महान पुरुषों का हृदय ब्रज से भी कठोर एवं कुसुम से भी कोमल होता है। अनुशासन एवं ब्रजकठोर दाढ़ी बाबा हृदय से अत्यंत संवेदनशील एवं कोमल थे। उनका व्यक्तित्व प्राचीन एवं नवीन, परंपरा एवं प्रगति का संधि स्थल था।
युग पुरुष दाढ़ी बाबा कई शिक्षण संस्थानों के जन्मदाता और जीवन पर्यंत उनके संरक्षक रहे किंतु अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए इन्होंने इसका रंचमात्र भी उपयोग नहीं किया।
शिक्षक के रूप में दाढ़ी बाबा 1911 से अपना जीवन प्रारंभ किए। 1912 से लेकर 1926 तक वे वी. एम. उच्च विद्यालय सीवान के प्रधानाध्यापक रहे। अपने निवास पर ही वे 1912 ईस्वी में गुरुकुल शिक्षण पद्धति के आधार पर डी.ए.वी पाठशाला प्रारंभ किया, जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल तथा नेपाल के छात्र आते और रहते थे।

सीवान के मालवीय द्वारा स्थापित संस्थाएं-

– ओरमा लोअर प्राथमिक विद्यालय- 1927,
– डी.ए.वी. माध्यमिक व उच्च विद्यालय- 1931,
– आर्य कन्या माध्यमिक विद्यालय- 1932,
– डी.ए.वी महाविद्यालय -1941,
– इस्लामिया उच्च विद्यालय -1939,
– आर्य कन्या उच्च विद्यालय-1968,
– दयानंद आयुर्वेदिक महाविद्यालय,
– दार्जिलिंग में हिंदी हिमाचल उच्च विद्यालय,
– गोपालगंज में डी.ए.वी माध्यमिक उच्च विद्यालय,
– खाकी संगीत विद्यालय-1956,
– राजेंद्र स्टेडियम-1962 तथा
ब्रह्मानंद अनाथ विधवाश्रम।

कुशल प्रशासक के गुणों से भरपूर दाढ़ी बाबा लगातार दो बार निर्विरोध सीवान नगर पालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1912 से 1945 ईस्वी तक नगर पालिका के किसी न किसी महत्वपूर्ण पद पर रहकर वे अपनी सेवाएं दी।
आजीवन निर्माण कार्य में लगे रहने वाले दाढ़ी बाबा का भौतिक शरीर 27 अप्रैल 1968 में गंगा से मिलकर गंगा सागर का अंग बन गया। परन्तु उनकी कृति आज भी अजर-अमर है।जो जीवन मूल्य किसी भी युग में समाप्त नहीं होते हैं वह कालजयी है। स्वंय से ऊपर सेवा, और अवसरवादिता से ऊपर अखंडता, उस समाज का हिस्सा बनना चाहिए जिसमें आप रहते हैं।

सच ही कहा गया है कि “जब आप निर्लिप्त होकर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का प्रयत्न करते हैं तो यह आपकी व्यक्ति से व्यक्तित्व की यात्रा है।”
नि:स्पृह विरल कर्मयोगी को डी.ए.वी. के पूर्व छात्र व श्रीनारद मीडिया के संपादक राजेश पाण्डेय का शत-शत नमन।

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