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भारत में सतत् कृषि क्या हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पश्चिम बंगाल में स्वदेशी बीज महोत्सव ने देशी बीज किस्मों को बचाने और पारंपरिक ज्ञान के आदान-प्रदान के लिये किसानों के उत्कृष्ट प्रयासों को प्रदर्शित किया, जो सतत् कृषि प्रथाओं की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।

  • यह महोत्सव एक्शनएड (ActionAid’s) के जलवायु न्याय अभियान का एक हिस्सा है, जो जलवायु परिवर्तन, जैविक खेती और स्वदेशी बीज पहुँच पर किसानों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • एक्शनएड का फोकस 22 भारतीय राज्यों में जलवायु लचीलेपन और सतत् कृषि पर है। गैर सरकारी संगठनों का लक्ष्य पूरे पश्चिम बंगाल में बीज बैंक स्थापित करना है।

सतत् कृषि क्या है?

  • परिचय:
    • सतत् कृषि का तात्पर्य कृषि और खाद्य उत्पादन के लिये एक समग्र दृष्टिकोण से है जिसका उद्देश्य कृषि प्रणालियों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करते हुए तथा भविष्य की पीढ़ियों के लिये प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करते हुए भोजन एवं फाइबर की वर्तमान ज़रूरतों को पूरा करना है।
    • इसमें फसल प्रतिरूपजैविक खेती, सामुदायिक सहायक कृषि आदि जैसी विभिन्न प्रथाओं और सिद्धांतों को शामिल किया गया है, जो पर्यावरणीय प्रबंधन, आर्थिक लाभप्रदता तथा सामाजिक समानता पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  •   लाभ:
    • पर्यावरण संरक्षण: ऐसी प्रथाएँ जो पारिस्थितिक तंत्र, मृदा, जल और जैवविविधता पर प्रभाव को कम करती हैं। इसमें ऐसी पद्धतियों का प्रयोग करना शामिल है जो मृदा-अपरदन को कम करते हैं, जल का संरक्षण करते हैं और रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग से बचते हैं या कम करते हैं।
      • मृदा की उर्वरता और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये फसल चक्र, कवर क्रॉपिंग और कृषि-वानिकी जैसी तकनीकों को नियोजित किया जाता है।
    • आर्थिक व्यवहार्यता: यह सुनिश्चित करना कि कृषि पद्धतियाँ किसानों के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य हों, जिससे वे अपनी आजीविका बनाए रखते हुए उचित आय अर्जित कर सकें।
      • इसमें ऐसी रणनीतियाँ शामिल हैं जो उत्पादकता बढ़ाती हैं, उत्पादन लागत कम करती हैं और स्थायी रूप से उत्पादित वस्तुओं के लिये बाज़ार खोलती हैं।
    • सामाजिक समता: किसानों, उपभोक्ताओं और खाद्य प्रणाली में अन्य हितधारकों के बीच निष्पक्ष एवं न्यायसंगत संबंधों को बढ़ावा देना।
      • इसमें खेतिहर मज़दूरों के लिये उचित वेतन और काम करने की स्थिति सुनिश्चित करना, ग्रामीण समुदायों का समर्थन करना एवं सभी के लिये स्वस्थ व पौष्टिक भोजन तक पहुँच को बढ़ावा देना शामिल है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति समुत्थानशीलता: ऐसी कृषि प्रणालियों का निर्माण करना जो जलवायु परिवर्तनशीलता और परिवर्तन के प्रति समुत्थानशील हों। सतत् कृषि पद्धतियों का लक्ष्य बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल ढलना, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और समग्र जलवायु समुत्थानशक्ति में योगदान करना है।
    • जैवविविधता संरक्षण: फसलों और पशुओं में विविध पारिस्थितिक तंत्र तथा आनुवंशिक विविधता का समर्थन करना। कीटों, बीमारियों और पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति समुत्थानशीलता के लिये जैवविविधता को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। इसमें स्थानीय और स्वदेशी फसल किस्मों को संरक्षित करना, साथ ही वन्यजीवों व परागणकों का समर्थन करने वाले विविध परिदृश्यों को बढ़ावा देना शामिल है।

भारत में सतत् कृषि की सीमाएँ क्या हैं?

  • उच्च श्रम मांग: सतत् कृषि के लिये प्रायः पारंपरिक कृषि की तुलना में अधिक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें फसल चक्रअंतर-फसलजैविक उर्वरक और कीट प्रबंधन जैसी प्रथाएँ शामिल होती हैं।
    • इससे उत्पादन लागत बढ़ सकती है और किसानों की लाभप्रदता कम हो सकती है।
  • समय की खपत: सतत् कृषि के कार्यान्वन में और उपज प्राप्त करने में पारंपरिक कृषि की तुलना में अधिक समय लगता है क्योंकि यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं तथा क्रमिक प्रगति पर निर्भर करती है।
    • यह उन किसानों को हतोत्साहित कर सकता है जिन्हें तत्काल उपज की आवश्यकता होती है तथा उन्हें मौसम, बाज़ार एवं नीति परिवर्तन जैसी अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है।
  • सीमित उत्पादन क्षमता: सतत् कृषि भारत में खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकती है क्योंकि विशेषकर अल्पावधि में इसमें पारंपरिक कृषि की तुलना में कम पैदावार होती है ।
    • यह विशेषकर एक बड़े तथा बढ़ती आबादी वाले देश में खाद्य सुरक्षा तथा गरीबी उन्मूलन के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है ।
    • हाल ही में श्रीलंकाई संकट जैविक कृषि की ओर स्थानांतरित करने के प्रयास के कारण उत्पन्न हुआ था।
      • इसके परिणामस्वरूप चावल, जो कि श्रीलंका का प्रमुख आहार है, की औसत पैदावार में लगभग 30% की कमी देखी गई।
  • उच्च पूंजी लागत: सतत् कृषि के लिये बुनियादी ढाँचे, उपकरण व इनपुट जैसे सिंचाई प्रणाली, सूक्ष्म सिंचाई उपकरण, जैविक उर्वरक एवं बीज में उच्च निवेश की आवश्यकता हो सकती है।
    • यह उन छोटे तथा सीमांत किसानों के लिये एक बाधा हो सकता है जिनके पास ऋण तथा सब्सिडी तक पहुँच नहीं है।
  • भंडारण और विपणन चुनौतियाँ: भारत में सतत् कृषि को भंडारण तथा विपणन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि यह खराब होने वाले तथा विविध उत्पादों का उत्पादन करती है जिनके लिये उचित प्रबंधन एवं पैकेजिंग की आवश्यकता होती है।
    • इससे फसल कटाई के बाद का नुकसान बढ़ सकता है तथा उपज की विपणन क्षमता कम हो सकती है, विशेष रूप से पर्याप्त प्रामाणीकरण एवं लेबलिंग प्रणालियों के अभाव में जो गुणवत्ता व उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती हैं।

सतत् कृषि से संबंधित हालिया सरकारी पहल क्या हैं?

  • सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
  • कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
  • उत्तर पूर्वी क्षेत्र हेतु मिशन जैविक मूल्य शृंखला विकास (MOVCDNER)

आगे की राह

  • किसानों को प्रत्यक्ष भुगतान, जैविक आदानों के लिये सब्सिडी और फसल बीमा जैसी स्थायी प्रथाओं को अपनाने हेतु वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • सतत् कृषि प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के अनुसंधान तथा विकास में निवेश करना।
  • किसानों को टिकाऊ कृषि पर प्रशिक्षण और जानकारी प्रदान करने के लिये कृषि विस्तार सेवाओं को मज़बूत करना।
  • बेहतर बुनियादी ढाँचे, विपणन सहायता और उपभोक्ता जागरूकता अभियानों के माध्यम से स्थायी रूप से उत्पादित भोजन के लिये बाज़ार पहुँच में सुधार करना
  • भूमि समेकन कार्यक्रमों के माध्यम से भूमि विखंडन को संबोधित करना और संयुक्त कृषि पहल को बढ़ावा देना।
  • पर्यावरण नियमों और उनके कार्यान्वयन को मज़बूत करना।
  • भूमि स्वामित्व अधिकार, ऋण और संसाधनों तक पहुँच तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भागीदारी के माध्यम से कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाना
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