पेलैगिक पक्षियों के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य क्या हैं?

पेलैगिक पक्षियों के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य क्या हैं?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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कर्नाटक के तट के आसपास, पक्षी प्रेमियों द्वारा 2023 में दुर्लभ “समुद्री  (pelagic)” पक्षियों को देखा गया।

  • समुद्री पक्षियों के अलावा, कर्नाटक ने भूमि आधारित प्रजातियों पर ध्यान आकर्षित किया है, न्यू मैंगलोर पोर्ट (New Mangalore Port- NMP) एक हरित पत्तन में बदल रहा है, जिससे पक्षियों की विविधता को बढ़ावा मिल रहा है।

पेलैगिक पक्षियों के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: 
    • पेलैगिक पक्षी वे पक्षी हैं जो अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा खुले समुद्र में व्यतीत करते हैं।
      • वे हज़ारों मील की दूरी पर पाए जा सकते हैं लेकिन तेज़ हवाओं और तूफानों के दौरान ज़मीन पर उड़ सकते हैं। जब वे अंतर्देशीय आते हैं तो उनका एकमात्र समय प्रजनन करना होता है।
  • विशेषताएँ:
    • ये पक्षी आकार और प्रकार में एक-दूसरे से काफी भिन्न होते हैं, लेकिन ये सभी खुले पानी वाले क्षेत्र में रहते हैं, भोजन के लिये गोता (dive) लगाते हैं एवं उत्कृष्ट तैराक होते हैं।
    • पेलैगिक पक्षियों के पंख उल्लेखनीय रूप से लंबे, पतले होते हैं, जिससे वे बिना आराम किये लंबी उड़ान भर सकते हैं।
      • कुछ पक्षी उड़ान के दौरान सोते हुए भी कई दिनों या हफ्तों तक हवा में रह सकते हैं।
    • इन पक्षियों में अद्वितीय नमक ग्रंथि होती है, जो समुद्री जल से नमक निकालती है, और इसे विषाक्त स्तर तक जमा होने से रोकती है।
    • वे सतह से दूर तक मछलियों का पीछा करते हैं और प्लवक के क्रस्टेशियंस खाते हैं, जो झींगा एवं केकड़ों से संबंधित हैं।
  • उदाहरण: 
    • प्रमुख पेलैगिक पक्षियों में से एक लेसन अल्बट्रॉस (Laysan Albatross) हैं, जो विशेष रूप से हवाई द्वीपों पर प्रजनन करते हैं लेकिन भोजन के लिये पोषक तत्त्वों से समृद्ध प्रशांत महासागर के क्षेत्र में विचरण करते हैं।
      • पेलैगिक पक्षियों में सूटी शीयरवाटर (Sooty Shearwater), ब्राउन स्कुआ (Brown Skua), ब्राउन बूबी (Brown Booby), स्ट्रीक्ड शीयरवाटर (Streaked Shearwater) और मास्क्ड बूबी, पोमेरिन स्कुआ, आर्कटिक स्कुआ, लॉन्ग टेल्ड स्कुआ, स्विनहोज़ स्टॉर्म-पेट्रेल, विल्सन स्टॉर्म-पेट्रेल और अन्य समुद्री वांडरर पेलैगिक भी शामिल हैं।
  • संकट: 
    • मानवीय गतिविधियाँ पक्षियों के लिये संकट उत्पन्न करती हैं, जिनमें महासागरों के दूरस्थ व उन्मुक्त वातावरण में रहने वाले पक्षी भी शामिल हैं।
    • विश्व स्तर पर समुद्री पक्षियों को बड़े संकट का सामना करना पड़ता है, जिसमें स्थलीय निवास और समुद्री कारकों दोनों से उत्पन्न होने वाले घटक शामिल हैं।
      • तेल रिसाव, जलवायु परिवर्तन जनित शिकार की उपलब्धता में बदलाव और मछली पकड़ने के जाल इन चुनौतियों में योगदान करते हैं।
    • पेलैगिक पक्षियों के जैव-घनत्व में कमी का कारण मछलियों की जीवसंख्या में गिरावट है, जो संभवतः समुद्री वर्षा जैसे कारक जो मछलियों को गहन जल में प्रवासन हेतु मजबूर करती है, से प्रभावित हुई है।
    • समुद्री पक्षियों के लिये प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि भारी मात्रा में प्लास्टिक महासागरों में निक्षेपित होता रहता है और सूक्ष्म भागों में विघटित हो जाता है।
      • पक्षी प्रायः प्लास्टिक के टुकड़ों को शिकार समझकर इसे निगल लेते हैं जिससे इन्हें संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
      • भारत में यह पक्षी उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों मुख्यत गुजरात में कच्छ व इसके आसपास काफी संख्या में आते हैं। ये मुख्यता साइबेरिया और पूर्वी यूरोप से जब यहां बर्फ पड़ने लगी है तो हजारों किलोमीटर उड़ान भरकर प्रजनन व भोजन के लिए भारत में आते हैं। शीत ऋतु की दस्तक के साथ ही इस पक्षी का भारत में आना आरंभ हो जाता है। यह पक्षी प्रवास के दौरान तीन हजार किलोमीटर की ऊंचाई तक ‘वी’ आकार में उड़ कर यहां आते है।
    • पेलिकन (Pelican), जिसका नाम पेलेकैनस (Pelecanus) है, बड़े आकार के जलीय पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है। इसका आठ ज्ञात जातियाँ हैं। पेलिकन अपनी लम्बी चोंच और बड़ी गले की थैली से पहचाने जाते हैं। इसकी सहायता से यह पानी की बड़ी मात्रा को मुँह में लेकर अपने ग्रास को पानी से अलग कर निगलते हैं और पानी बाहर आ जाता है। पेलिकन लगातार अंतर्देशीय और तटीय जल पर मछलियाँ पकड़ते है। वे पानी के सतह पर उड़ अपनी विशेष चोंच को पानी से टकराकर अपना शिकार पकड़ते हैं। ये विशाल पक्षी अक्सर झुंडो में यात्रा और शिकार करते हैं। इनका प्रजनन करने का माध्यम समूहों में होता है। नर पक्षी का वजन 9 से 15 किलोग्राम तक होता है। इतना वजन होने के बावजूद यह मजबूत व तेज उड़ने वाला पक्षी है
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