लक्षद्वीप के लिए रवाना हो चुकी थी पाक सेना, फिर कैसे पलट गई बाजी?

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36 छोटे-छोटे द्वीपों को मिलकर बना लक्षद्वीप

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पीएम मोदी ने देश के खूबसूरत जगहों में से एक लक्षद्वीप का दौरा किया है। साथ ही, पीएम मोदी ने लक्षद्वीप की कई खूबसूरत तस्वीरें और वीडियो भी शेयर की, जिसके बाद से लक्षद्वीप काफी ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है। ऐसे में बहुत से लोगों के मन में सवाल आता होगा कि आखिर लक्षद्वीप का इतिहास क्या है और कैसे वह भारत का हिस्सा बना है। दरअसल, भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद लक्षद्वीप को भारत में विलय किया गया, जिसका किस्सा काफी दिलचस्प है। लक्षद्वीप आइलैंड का सबसे पुराना जिक्र ग्रीक टेक्स्ट Periplus of Erytharean Sea में मिलता है।

लक्षद्वीप का भूगोल

लक्षद्वीप भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश है, जो केवल 32.62 वर्ग किमी में फैला है। भारत के दक्षिण पश्चिम तट से लक्षद्वीप की दूरी 200-400 किमी है। इस खूबसूरत द्वीप की राजधानी कवरत्ती है। बता दें कि लक्षद्वीप कुल 36 छोटे-छोटे द्वीपों को मिलकर बना है, जिसमें से 10 टापुओं पर लोग रहते हैं, जिसकी अधिकतर आबादी मुस्लिम है।

लक्षद्वीप का भारत में विलय

1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान किसी भी देश का ध्यान लक्षद्वीप पर नहीं गया। उस दौरान बॉर्डर हिस्सों और मेन लैंड को खुद में जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। अपर सबसे ज्यादा फोकस किया जा रहा था। उस दौरान भी लक्षद्वीप पर अधिकतर आबादी मुस्लिमों की थी, तो ऐसे में पाकिस्तान के पहले और तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के मन में विचार आया कि इस मुस्लिम बहुल इलाके पर भारत अपना अधिकार नहीं करेगा, इसलिए इस पर कब्जा कर लिया जाना चाहिए।

पाकिस्तानियों की नापाक कोशिश

अभी देश को आजाद हुए एक महीना भी नहीं हुआ था कि लियाकत अली योजना बनाने लगे थे कि लक्षद्वीप को किस तरह से भारत का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। वहीं, दूसरी ओर कुछ इतिहासकारों का मानना है कि लक्षद्वीप को भारत में विलय करने के लिए भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों से बातचीत करनी शुरू कर दी थी।

लक्षद्वीप पर भेजे पाकिस्तानी जहाज

अभी चर्चा चल ही रही थी कि इसी बीच लियाकत अली खान ने लक्षद्वीप पर अपने युद्धपोत भेज दिए। इस बात की खबर तुरंत ही गृहमंत्री सरदार पटेल को लग गई, इसके बाद उन्होंने आरकोट रामास्वामी मुदालियर और आर्कोट लक्ष्मणस्वामी मुदालियर को सेना लेकर तुरंत लक्षद्वीप की ओर जाने के लिए कहा। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मुदालियर भाइयों को आदेश दिया कि जल्द-से -जल्द लक्षद्वीप निकले और वहां की सरजमीं पर तिरंगा लहराकर अपना आधिपत्य स्थापित करें।

चंद मिनटों में पलटा मामला

गृहमंत्री की इस बात को मुदालियर भाइयों ने काफी सख्ती से लिया और तुरंत अपनी टीम के साथ लक्षद्वीप निकल गए और लक्षद्वीप पर भारतीय तिरंगा फहराकर अपना हक जता लिया। इसी दौरान पाकिस्तान युद्धपोत भी द्वीप पर पहुंचा, लेकिन भारतीय तिरंगा देखकर वह दबे पांव वापस लौट गए थे।

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि चंद मिनटों की देरी होने से मामला पलट सकता था, लेकिन भारत की समझदारी और काबिलियत के कारण आज लक्षद्वीप जैसा खूबसूरत द्वीप भारत का अहम हिस्सा है।

1956 में भारत सरकार ने यहां के सभी द्वीपों को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया और 1973 में इन द्वीप समूह का नाम लक्षद्वीप कर दिया गया।

कौन थे मुदालियर भाई?

रामास्वामी मुदलियार और लक्ष्मणस्वामी मुदालियर का जन्म कुरनूल में एक तमिल भाषी परिवार में हुआ था। रामास्वामी मुदलियार मैसूर के 24वें और आखिरी दीवान थे और उनके भाई लक्ष्मणस्वामी मुदालियर एक प्रसिद्ध डॉक्टर थे। लक्ष्मणस्वामी मुदलियार लगभग 20 सालों तक मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके हैं।

 

भारत के लिए कितना जरूरी है लक्षद्वीप?

भारत की सुरक्षा के लिहाज से लक्षद्वीप काफी अहम है। लक्षद्वीप 32 स्क्वायर किलोमीटर में फैला है, लेकिन इसके कारण भारत को समुद्र के 20000 स्क्वायर किलोमीटर तक एक्सेस मिलता है। यहां से दूर-दूर तक किसी भी जहाज पर नजर रखी जा सकती है। ऐसे में भारत भी अब लक्षद्वीप पर एक मजबूत बेस तैयार कर रहा है, ताकि किसी भी देश के नाकाम समुद्री इरादों का पता लग सके।

लक्षद्वीप में नया एयरपोर्ट बनाने की तैयारी में भारत

लक्षद्वीप को भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाने के लिए केंद्र सरकार अब प्रयास में जुट गई है। इसी बीच, भारत अब वहां मिनिकॉय द्वीप समूह में एक नयाएयरपोर्ट विकसित करने की योजना बना रहा है, जो वाणिज्यिक विमानों के साथ-साथ लड़ाकू जेट सहित सैन्य विमानों को संचालित करने में सक्षम होगा।

सरकारी सूत्रों ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, “यहां एक संयुक्त हवाई क्षेत्र बनाने की योजना है, जो लड़ाकू जेट, सैन्य परिवहन विमानों और वाणिज्यिक विमानों को संचालित करने में सक्षम होगा।”

नए हवाई क्षेत्र विकसित करने की पहले भी बनी योजना

सूत्रों ने बताया कि पहले भी मिनिकॉय द्वीप समूह में इस नए हवाई क्षेत्र को विकसित करने के लिए सरकार के पास प्रस्ताव भेजे गए हैं। संयुक्त उपयोग वाले रक्षा हवाई क्षेत्र की इस योजना को हाल के दिनों में दोबारा शुरू किया गया है और अब तेजी से इसकी प्रगति की जा रही है।

सैन्य दृष्टिकोण से, हवाई क्षेत्र भारत को एक मजबूत क्षमता प्रदान करेगा, क्योंकि इसका उपयोग अरब सागर और हिंद महासागर क्षेत्र पर नजर रखने के लिए किया जा सकता है। भारतीय तटरक्षक, रक्षा मंत्रालय के अधीन पहला बल था, जिसने मिनिकॉय द्वीप समूह में हवाई पट्टी के विकास का सुझाव दिया था।

मिनिकॉय से एयरफोर्स को मिलेगी सुविधा

वर्तमान प्रस्ताव के मुताबिक, भारतीय वायु सेना मिनिकॉय से ऑपरेशन चलाने में अग्रणी होगी। मिनिकॉय का हवाई अड्डा रक्षा बलों को अरब सागर में अपने निगरानी क्षेत्र का विस्तार करने की क्षमता भी देगा। मिनिकॉय में हवाई अड्डा क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा देगा। इस समय द्वीप क्षेत्र में केवल एक हवाई पट्टी है, जो अगत्ती में है और यहां हर तरह के विमानों की लैंडिंग नहीं हो सकती है।

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