अडानी-हिंडनबर्ग मामले पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसले का क्या मतलब है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में अडानी समूह के खिलाफ अमेरिका स्थित फर्म, हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों से संबंधित याचिकाओं की एक शृंखला पर अपना फैसला सुनाया।

  • शीर्ष अदालत ने मामले को संभालने में SEBI के प्रति अपने विश्वास की पुष्टि करते हुए जाँच को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) से अन्य निकायों में स्थानांतरित करने से इनकार कर दिया।
  • साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने सेबी को यह निर्धारित करने के लिये अपने जाँच अधिकार का उपयोग करने का निर्देश दिया कि क्या हिंडनबर्ग रिपोर्ट की कम बिक्री वाली कार्रवाइयों ने कानूनों का उल्लंघन किया है, जिसके परिणामस्वरूप निवेशकों को नुकसान हुआ है।

अडानी-हिंडनबर्ग विवाद और सेबी की जाँच के संबंध में  सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति क्या है?

  • पृष्ठभूमि: 
    • हिंडनबर्ग के आरोप: जनवरी 2023 में, हिंडनबर्ग रिसर्च ने अदानी समूह पर स्टॉक हेराफेरी लेखांकन धोखाधड़ी और फंड के प्रबंधन के लिये अनुचित टैक्स हेवन तथा शेल कंपनियों का उपयोग करने का आरोप लगाया, जिससे शेयर बाज़ार पर काफी प्रभाव पड़ा।
  • याचिकाएँ और तर्क:
    • दायर की गई याचिकाएँ: राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का हवाला देते हुए अदालत की निगरानी में जाँच की मांग करते हुए विभिन्न याचिकाएँ दायर की गईं।
      • उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बाज़ार नियामक सेबी निष्पक्ष जाँच करने के लिये पर्याप्त सक्षम या स्वतंत्र नहीं है।
    • विपक्ष में तर्क: अडानी समूह ने आरोपों का खंडन किया और इसके लिये गलत सूचना तथा निहित स्वार्थों को ज़िम्मेदार ठहराया।
      • सेबी ने जाँच से निपटने में अपनी क्षमता और स्वतंत्रता का बचाव किया।
  • हालिया निर्णय: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच को अन्य निकायों को स्थानांतरित करने से इनकार करते हुए अडानी समूह और सेबी के पक्ष में फैसला सुनाया।
      • अदालत ने माना कि जाँच स्थानांतरित करने की शक्तियों का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिये, न कि संज्ञान के लिये तर्क (cogent justifications) के अभाव में।
    • न्यायालय ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट को अविश्वसनीय माना और इसका उद्देश्य चयनात्मक तथा विकृत जानकारी के माध्यम से बाज़ार को प्रभावित करना था।
      • सेबी की सत्यनिष्ठा को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने सेबी की जाँच को तीन महीने के भीतर तेज़ी से पूरा करने का निर्देश दिया।

नोट: शेयर मूल्य में हेरफेर तथा लेखांकन धोखाधड़ी के लिये अडानी समूह के विरुद्ध हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के बाद बाज़ार में अस्थिरता के कारण निवेशकों को नुकसान होने के बाद संभावित नियामक विफलताओं की जाँच के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च 2023 में न्यायमूर्ति सप्रे समिति का गठन किया।

शॉर्ट सेलिंग क्या है?

  • परिचय: 
    • शॉर्ट सेलिंग वह प्रक्रिया है जिसमें एक निवेशक किसी स्टॉक अथवा प्रतिभूति को उधार लेता है तथा उसका विक्रय खुले बाज़ार में करता है एवं भविष्य में कीमत में संभावित गिरावट का अनुमान लगाते हुए बाद में उसी परिसंपत्ति को कम कीमत पर पुनर्खरीद करने का लक्ष्य रखता है।
      • SEBI शॉर्ट सेलिंग को उस स्टॉक का विक्रय करने के रूप में परिभाषित करता है जिस पर व्यापार के समय विक्रेता का स्वामित्व नहीं होता है।
  • भारत में शॉर्ट-सेलिंग का विनियमन:
    • SEBI ने हाल ही में कहा है कि सभी श्रेणियों के निवेशकों को शॉर्ट-सेलिंग की अनुमति दी जाएगी हालाँकि नेकेड शॉर्ट-सेलिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी।
      • नतीजतन सभी निवेशकों को निपटान अवधि के दौरान प्रतिभूतियाँ वितरित करने के अपने कर्त्तव्य को पूरा करना आवश्यक है।
      • जब कोई निवेशक स्टॉक अथवा प्रतिभूतियों को उधार लेने की व्यवस्था किये बिना अथवा यह सुनिश्चित किये बिना बेचता है कि उन्हें उधार लिया जा सकता है तो इसे नेकेड शॉर्ट सेलिंग के रूप में जाना जाता है।
    • खुदरा निवेशकों के पास दिन के समापन से पहले लेनदेन की शॉर्ट-सेल स्थिति का विवरण देने का विकल्प होता है जबकि संस्थागत निवेशकों को पहले से ही यह सूचित करना आवश्यक होता है कि लेनदेन शॉर्ट-सेल है अथवा नहीं।
    • इसके अलावा, सेबी द्वारा पात्र शेयरों की आवधिक समीक्षा के अधीन, F&O (वायदा और विकल्प) खंड में कारोबार की जाने वाली प्रतिभूतियों के लिये शॉर्ट सेलिंग की अनुमति है।
      • वायदा और विकल्प ( F&O) व्युत्पन्न उपकरण हैं। वायदा में असीमित जोखिम के साथ एक निर्धारित तिथि पर सहमत मूल्य पर संपत्ति खरीदने/बेचने का दायित्व शामिल होता है।
        • विकल्प एक निश्चित तिथि तक संपत्ति खरीदने/बेचने का अधिकार (लेकिन दायित्व नहीं) देते हैं, जिसमें प्रीमियम का अग्रिम भुगतान संभावित नुकसान को सीमित करता है।
भविष्य विकल्प
एक खरीदार को डिलीवरी के समय स्टॉक खरीदना होगा चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो (भले ही वह कम हो रही हो)स्टॉक में गिरावट होने पर खरीदार स्टॉक खरीदने का निर्णय छोड़ सकता है या बिल्कुल भी नहीं खरीद सकता है।
विकल्पों की तुलना में अधिक मार्जिन भुगतान की आवश्यकता होती है।वायदा की तुलना में कम मार्जिन का भुगतान होता है।
इसमें असीमित लाभ है और जोखिम भी अधिक है।उक्त तिथि पर स्टॉक खरीदने या न खरीदने के फ्लेक्सीबिलिटी के कारण नुकसान की सीमित संभावना और असीमित लाभ होते हैं।
कमीशन के अलावा किसी अग्रिम लागत की आवश्यकता नहीं है।भुगतान करने के लिये एक प्रीमियम आवश्यक है।
वायदा में अंतर्निहित स्थिति विकल्पों से कहीं अधिक होता है।अंतर्निहित स्थिति वायदा से कम होती है।

 

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