क्या पश्चिम बंगाल में बाल विवाह में वृद्धि हो रही है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में बाल विवाह पर हाल ही में किये गए लैंसेट अध्ययन में देश भर में बाल विवाह में समग्र कमी पर प्रकाश डाला गया। हालाँकि इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि कुछ राज्यों, विशेष रूप से बिहार (16.7%), पश्चिम बंगाल (15.2%), उत्तर प्रदेश (12.5%) और महाराष्ट्र (8.2%) ने सामूहिक रूप से लड़कियों में बाल विवाह के कुल बोझ में आधे से अधिक का योगदान दिया।

  • बाल विवाह पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से पश्चिम बंगाल में कई नीतिगत हस्तक्षेपों के कार्यान्वयन के बावजूद, इस क्षेत्र में बाल विवाह की घटनाओं में 32.3% की पर्याप्त वृद्धि देखी गई है। यह वृद्धि 5,00,000 से अधिक अतिरिक्त लड़कियों की बचपन में ही शादी के अनुरूप है।

नोट:

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 ( 2019-21): 
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 इंगित करता है कि 18 वर्ष से पहले शादी करने वाली 20-24 वर्ष की महिलाओं की व्यापकता पश्चिम बंगाल में 41.6% के उच्च स्तर पर बनी हुई है, जबकि राष्ट्रीय आँकड़ा 23.3% है।

क्या पश्चिम बंगाल में नीतिगत हस्तक्षेप से बाल विवाह पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगा है?

  • पश्चिम बंगाल में बाल विवाह रोकने के लिये नीतिगत हस्तक्षेप:
    • कन्याश्री प्रकल्प योजना:
      • वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया, कन्याश्री प्रकल्प 13 से 18 वर्ष की किशोर लड़कियों की स्कूली शिक्षा को प्रोत्साहित करता है और साथ ही बाल विवाह को हतोत्साहित करता है। वर्ष 2023-24 के पश्चिम बंगाल बजट के अनुसार, इस योजना में 81 लाख लड़कियों को शामिल किया गया है।
        • इस योजना को वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार से अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली।
      • जबकि राज्य में लड़कियों का स्कूल नामांकन बढ़ा है, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों और लैंसेट अध्ययन के आधार पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या योजना ने बाल विवाह को रोकने के अपने वादे को हासिल किया है।
    • रूपश्री प्रकल्प:
      • कन्याश्री के अलावा, राज्य सरकार रूपश्री प्रकल्प चलाती है, जो लड़कियों की शादी के लिये नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है।
        • कुछ परिवार दोनों योजनाओं से लाभ उठाते हैं, स्कूल योजना का लाभ उठाने के तुरंत बाद विवाह का आयोजन करते हैं।
  • शैक्षिक प्रगति और बाल विवाह दरें:
    • पिछले कुछ वर्षों में स्कूलों में लड़कियों के नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, फिर भी पश्चिम बंगाल में बाल विवाह की घटनाएँ अधिक बनी हुई हैं।
      • वर्ष 2020-21 के लिये उच्च शिक्षा के अखिल भारतीय सर्वेक्षण में पश्चिम बंगाल में लड़कियों के नामांकन की अनुमानित संख्या 9.29 लाख बताई गई है, जो लड़कों के नामांकन से अधिक है जो 8.63 लाख थी।
    • NFHS-5 के अनुसार, 88% से अधिक साक्षरता दर वाले पूर्व मेदिनीपुर ज़िले में बाल विवाह की सबसे अधिक घटनाएँ 57.6% से अधिक हैं।
    • विशेषज्ञों ने कहा कि पश्चिम बंगाल में प्रवासन से बाल विवाह को बढ़ावा मिलता है क्योंकि सामाजिक मानदंडों और आर्थिक कारकों के कारण परिवार अविवाहित बेटियों को छोड़ने से डरते हैं।
      • यह एक ऐसे चक्र को कायम रखता है जहाँ सांस्कृतिक अपेक्षाएँ पुरुषों के काम करने के दौरान पत्नियों द्वारा बच्चे पैदा करने के लिये जल्दी विवाह को प्राथमिकता देती हैं।
  • कानून कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
    • सामाजिक मुद्दों के अलावा, कानून कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बाल विवाह के बने रहने में योगदान करती हैं।
      • पश्चिम बंगाल में बाल विवाह निषेध अधिनियम (The Prohibition of Child Marriage Act – PCMA), 2006 के तहत वर्ष 2021 में 105 मामले चिंताजनक स्थिति उत्पन्न करते हैं। क्योंकि तुलनात्मक रूप से, कम आबादी वाले राज्यों में अधिक मामले दर्ज किये गए।
    • मंत्रालय ने बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया, जिसमें महिलाओं के लिये विवाह की आयु बढ़ाकर 21 करने का प्रस्ताव है, जो वर्तमान में संसदीय समीक्षा के अधीन है।
      • डेटा कानून प्रवर्तन में कमियों को दर्शाता है और व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

बाल विवाह के प्रभाव क्या हैं?

  • बचपन खत्म होना:
    • बाल विवाह एक वैश्विक समस्या है तथा गरीबी के कारण यह और भी जटिल हो गई है। यह किसी लड़के/लड़की का बचपन अचानक समाप्त कर देता है, उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होने से पहले ही वयस्कता में धकेल देता है।
      • घरवालों की सहमति से हुए विवाहों में अक्सर लड़कियाँ काफी उम्रदराज पुरुषों से शादी करती हैं, जिससे उनके सामने आने वाली चुनौतियाँ और बढ़ जाती हैं।
      • कम उम्र में शादी करने से लड़कियों के स्कूल में बने रहने की संभावना काफी कम हो जाती है, जिससे आजीवन आर्थिक प्रभाव पड़ता है।
      • बाल विवाह के कारण बचपन में दूल्हे को स्कूल छोड़ना पड़ता है और वे अक्सर अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिये कम वेतन वाली नौकरियों में संलिप्त हो जाते हैं।
      • बाल दुल्हन और दूल्हे अक्सर अलगाव का अनुभव करते हैं तथा उनकी स्वतंत्रता कम हो जाती है, जिससे उनकी सामाजिक वार्ता एवं व्यक्तिगत स्वायत्तता सीमित हो जाती है।
  • मानवाधिकार का उल्लंघन:
    • बाल विवाह को मानवाधिकारों का उल्लंघन और यौन तथा लिंग आधारित हिंसा का एक स्वीकृत रूप माना जाता है; बाल विवाह का नकारात्मक प्रभाव राज्य में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर दिखाई देता है।
    • बाल वधुओं को अक्सर उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है, जिनमें स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा और सक्रिय भागीदारी के अवसर शामिल हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund – UNICEF) बाल विवाह को लड़कियों और लड़कों दोनों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में वर्गीकृत करता है।
      • प्रत्येक वर्ष, लगभग 12 मिलियन से अधिक लड़कियों की विवाह 18 वर्ष की उम्र से पूर्व हो जाएगी और उनमें से, 4 मिलियन 15 वर्ष से कम उम्र की हैं।
      • सेव द चिल्ड्रेन की ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2020 और वर्ष 2025 के दौरान वैश्विक स्तर पर अतिरिक्त 2.5 मिलियन लड़कियों को बाल विवाह का खतरा है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण सभी प्रकार की लिंग-आधारित हिंसा में वृद्धि दर्ज की गई है।
  • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य निहितार्थ:
    • बाल विवाह का प्रतिकूल प्रभाव मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य तक पर पड़ता है।
      • बाल वधुएँ प्रायः किशोरावस्था के दौरान गर्भवती हो जाती हैं, जिससे गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त यह प्रथा लड़कियों को परिवार और मित्रों से अलग कर देती है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी असर पड़ सकता है।
    • बाल वधुओं में भी ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) होने की आशंका अधिक होती है।

बाल विवाह से निपटने के लिये क्या पहल हैं?

  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA)
  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (BBBP) योजना
  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012
  • CHILDLINE

आगे की राह

  • विधायी उपायों के माध्यम से बाल विवाह उन्मूलन को प्राथमिकता देने के लिये राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर राजनीतिक इच्छाशक्ति का समन्वय आवश्यक है।
    • पंचायतों, स्कूलों और स्थानीय समुदायों सहित सभी हितधारकों को शामिल करते हुए सामाजिक अभियान चलाए जाएँ क्योंकि मौजूदा कानूनों को लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना ज़मीनी स्तर पर स्थिति में उतनी तेज़ी से सुधार संभव नहीं होगा जितना देश के अन्य हिस्सों में हुआ है।
  • PCMA 2006 के तहत बाल विवाह मामलों पर नियमित रूप से अद्यतन तथा विस्तृत जानकारी प्रदान कर रिपोर्टिंग व पारदर्शिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • प्रवर्तन में सुधार के लिये खामियों तथा आवश्यक क्षेत्रों की पहचान करने के लिये PCMA 2006 की व्यापक समीक्षा की सुविधा प्रदान करना।
  • संसदीय स्थायी समिति द्वारा बाल-विवाह प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 को शीघ्र मंज़ूरी देने का समर्थन करना।
    • यह विधेयक महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 21 वर्ष करने के लिये PCMA 2006 में संशोधन करता है। इसके अतिरिक्त यह विधेयक किसी भी अन्य कानून, प्रथा को समाप्त करने का प्रावधान करता है।
  • स्वायत्तता तथा निर्णय लेने के लिये लड़कियों को जागरूकता, कौशल एवं समर्थन व्यवस्था के साथ सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
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