Breaking

क्या मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम में बदलाव होना चाहिए?

क्या मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम में बदलाव होना चाहिए?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अन्य शक्तियां मुख्य रूप से सामान्य हैं। इस संबंध में केवल एक महत्वपूर्ण सिफारिश है कि अध्ययन विभाग को स्वायत्त विभाग बनाया जाए। विजिटर की शक्तियां वही होंगी, जो अधिकांश विश्वविद्यालयों में हैं। उनमें केवल एक परिवर्तन अब किया जा रहा और वह यह कि विजिटर जांच समिति नियुक्त करने से पहले विश्वविद्यालय को एक अवसर देगा, ताकि वह उस संबंध में अभ्यावेदन भेज सके।

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल विश्वविद्यालय के चीफ रेक्टर बने रहेंगे। कोषाध्यक्ष का पद समाप्त करने का प्रस्ताव है। कोषाध्यक्ष के स्थान पर अब वित्त अधिकारी होगा। विश्वविद्यालय का 99 प्रतिशत राजस्व सरकारी खजाने से आता है, अत: वित्त संबंधी मामलों पर नियंत्रण रखने के लिए नियमित रूप से नियुक्ति करना अत्यावश्यक है। …बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी कोषाध्यक्ष के स्थान पर वित्त अधिकारी नियुक्त किया गया है।

पहले विश्वविद्यालय का कोर्ट कुलपति का चुनाव करता था। अब हम प्रस्ताव कर रहे हैं कि विधान में व्यवस्था के अनुसार, विजिटर कुलपति को नियुक्ति करेगा। …सर्वप्रथम विश्वविद्यालय में विद्यार्थी परिषद बनाने का प्रस्ताव है। …हमने विश्वविद्यालय को जरूरी अध्यादेश बनाने का हक दिया है। आशा है, विश्वविद्यालय इन निकायों के विधान को ध्यान में रखेगा और उनका उल्लेख अध्यादेशों में करेगा। …यह मांग की गई है कि इस विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्था घोषित कर दिया जाए। यह मांग न राष्ट्रीय हित में है और न ही विश्वविद्यालय के हित में और मेरे विचार में यह मुस्लिम समुदाय के हित में भी नहीं है।

जनता के प्रत्येक वर्ग के शैक्षणिक विकास की जिम्मेदारी राज्य की है। केंद्र या सरकार किसी समुदाय विशेष के लिए पृथक संस्था नहीं चला सकती । सरकार इस विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक स्वरूप को नहीं बदलना चाहती। प्रत्येक विश्वविद्यालय का एक अपना सांस्कृतिक वातावरण बन जाता है। अलीगढ़ विश्वविद्यालय का एक अपना विशिष्ट वातावरण है और हम उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, पर परंपरा के नाम पर प्रगति नहीं रुक जानी चाहिए।

…एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठाया गया है कि विधेयक को प्रवर समिति को क्यों न सौंप दिया जाए? मैं आपको ऐसे कारण बताना चाहता हूं, जिनके आधार पर हमने इसे प्रवर समिति को न सौंपने का निर्णय किया है। सबसे पहली बात यह है कि इस विषय पर सदस्यों के विचार इतने भिन्न हैं कि प्रवर समिति के सदस्यों में मतैक्य होना कठिन है। दूसरी बात यह कि लगभग छह माह पूर्व गजेंद्र गड़कर समिति का प्रतिवेदन सभा के सामने प्रस्तुत किया गया था और बताया गया था कि सरकार ने उसकी सिफारिशों को मान लिया है।

कोई भी सदस्य उस समय उस पर विचार करने का प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता था। …संसद ने यह ठीक निर्णय किया है कि शिक्षा संबंधी मामलों में शिक्षण संस्थाओं को स्वतंत्र छोड़ दिया जाए। संसद ने इन बातों का दायित्व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग पर छोड़ा है। …यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि मजदूर संघों के प्रतिनिधियों का विश्वविद्यालयों में कोई काम नहीं। उच्च शिक्षा के विकास में मजदूरों का अहम योग होता है। …

विश्वविद्यालय का स्वरूप राष्ट्रीय होना चाहिए। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को प्रतिक्रियावादी तथा प्रगतिशील दृष्टिकोणों का सामना करना पड़ रहा है। प्रगतिशील दृष्टिकोण को प्रोत्साहन देना हमारा कर्तव्य होना चाहिए। मुसलमानों के हितों की भी चर्चा हुई है। मुसलमान शिक्षा के क्षेत्र में देश के साथ-साथ ही आगे बढ़ सकते हैं। जब तक सामान्य विकास नहीं हो जाता, उस समय तक हम विभिन्न क्षेत्रों में दृष्टिगत भेदभाव को दूर नहीं कर सकते। इस विधेयक का मकसद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का विकास करना है। मुझे आशा है कि इस विधेयक द्वारा यह विश्वविद्यालय आगे बढ़ेगा।

यह कहना गलत है कि गजेंद्र गड़कर समिति के प्रतिवेदन में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के बारे में विशिष्ट उल्लेख नहीं है। …पंडित नेहरू के समय में भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के नाम बदलने संबंधी योजना तैयार की गई थी, मगर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय इसके लिए सहमत न हुआ, अत: यह योजना छोड़ दी गई।

वस्तुत: इस विधेयक के माध्यम से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का संपूर्ण विनाश उन लोगों द्वारा किया जा रहा है, जो देश में स्वयं को धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र के एकमात्र रक्षक तथा जन्मदाता समझते हैं। यह विश्वविद्यालय केवल एक मुस्लिम विश्वविद्यालय ही नहीं, बल्कि अपने किस्म का एक केंद्रीय राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी है और हमें इस सत्य को स्वीकार करना है तथा हमें इसी रूप में घोषित भी करना है।

इस विधेयक के पारित होते ही हमारे संविधान में अल्पसंख्यकों को दी गई सभी गारंटी व अधिकार समाप्त हो जाते हैं और इस देश के आठ करोड़ मुसलमानों व इस विश्वविद्यालय के छात्रों की सभी आशाओं पर पानी फिर जाता है। साथ ही, शिक्षा के क्षेत्र के महान उपासक तथा हमारे देश के एकमात्र महान राष्ट्रवादी, जो कि हिंदू और मुसलमान को भारत की दो आंखें समझा करते थे, के सभी प्रयास धूल-धूसरित हो गए।

…यह  (अलीगढ़) विश्वविद्यालय भारत के अन्य सामान्य विश्वविद्यालयों के समान नहीं है, बल्कि इसकी मूलत: एक विभिन्न तथा विशिष्ट स्थिति है। …अत: इसके मूल रूप को परिवर्तित करना देश के अल्पसंख्यकों की भावनाओं की हत्या करना होगा तथा उनके दिल में एक संदेह की भावना उत्पन्न करना होगा। …इसके फलस्वरूप कुछ ऐसी गंभीर क्रियाएं तथा प्रतिक्रियाएं भी होंगी, जो बाद में भीषण और विकराल रूप भी धारण कर सकती हैं।

मगर खेद है कि फिर भी बड़ी गंभीरता से ऐसा करने या प्रयास किया जा रहा है और इस विधेयक को यहां पेश किया गया है, जिसके पारित होते ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय वस्तुत: एक मृत संस्था रह जाएगी। यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है कि यह संशोधन विधेयक गजेंद्र गड़कर समिति की सिफारिश से प्रकाश में लाया गया है, जबकि उन सिफारिशों में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का विशिष्ट रूप से कोई उल्लेख ही नहीं है।

वस्तुत: समिति ने इस विश्वविद्यालय के इतिहास, उद्देश्यों, लक्ष्यों की ओर देखा तक नहीं है और न ही यह विचार किया है कि वर्ष 1920 में किस करार के चलते और किस मकसद को लेकर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी तथा इस संबंध में अल्पसंख्यक समुदाय को क्या-क्या गारंटियां व आश्वासन दिए गए थे। यह भी नहीं सोचा गया कि पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर जाकिर हुसैन व स्वयं कांग्रेस ने क्या-क्या घोषणाएं की थीं। डॉक्टर जाकिर हुसैन ने कहा था, गणतंत्र भारत में शत-प्रतिशत हिंदू तथा शत-प्रतिशत मुस्लिम संस्थानों की स्थापना हो सकती है और संविधान कहीं इसका विरोध नहीं करता है।

…यह तर्क दिया जाता है कि उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को इस समुदाय ने नहीं, बल्कि सरकार ने स्थापित किया था, पर मेरे विचार से इस न्यायालय ने बड़ा ही संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाया है। फिर संसद इस न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के प्रस्ताव को हटा भी तो सकती है। संसद तो सर्वोच्च है। जब संसद प्रसिद्ध गोलकनाथ मामले तथा केरल भूमि सुधार विधेयक के प्रभावों को रद्द कर सकती है, तो फिर संसद इसी विधेयक में यह भी तो व्यवस्था कर सकती है कि किसी भी निर्णय अथवा आदेश के होते हुए भी यह माना जाएगा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय ने की थी?

हमारे देश के मुसलमान हमारी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रति बडे़ मान और श्रद्धा की भावना रखते हैं और हमने उन्हें गत चुनाव में भरपूर समर्थन दिया था, ताकि देश में धर्मनिरपेक्षता तथा लोकतंत्र की रक्षा हो सके, परंतु हमें प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से बड़ा ही कष्ट पहुंचा है कि देश में किसी भी विश्वविद्यालय को किसी अल्पसंख्यक समुदाय का ही और उसके द्वारा धन प्राप्त करने वाली संस्था न मानना सरकार के लिए संभव नहीं है।

यह बड़ा ही दुखदायी वक्तव्य है और यह संविधान… में निहित मूलभूत अधिकारों का सरासर उल्लंघन करता है। …अत: इस विश्वविद्यालय में मुस्लिम शब्द के रहने से इस समुदाय के हितों की कोई रक्षा नहीं होती। वास्तविक स्थिति में तो यह एक सामान्य केंद्रीय विश्वविद्यालय रह गया है, इससे अधिक कुछ नहीं। …अत: यह विधेयक बड़े संदेह उत्पन्न करने वाला तथा लोकतंत्र विरोधी है। …अत: मेरा अनुरोध है कि इस विधेयक को प्रवर समिति को सौंपा जाए।

Leave a Reply

error: Content is protected !!