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भारत में सुनहरे गणतंत्र के 75 वर्ष।

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जन के बुनियादी सेवा के 75 वर्ष।
गण के प्रति तंत्र की संवेदनशीलता।

गणतंत्र दिवस पर विशेष आलेख@75

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

“गणतंत्र का संचालक संविधान
हम सभी के चित्वृत्तियों का पालक
गणतंत्र हमारा महान है, महान है।”

भारतीय समिति में लोकतंत्र की जड़ें गहरी है। भारत में 2700 वर्ष पूर्व वैशाली केलिच्छवि  गणराज में सभा एवं समिति की स्थापना हुई थी, जो आज तक कायम है। अंग्रेजी में गणतंत्र को रिपब्लिक कहा जाता है। इसका तात्पर्य है देश का राष्ट्राध्यक्ष जनता द्वारा निर्वाचित होगा।

हमारे देश में आम जनता अपने विधायकों एवं सांसदों को अपना मत देकर निर्वाचित करते हैं, और यही निर्वाचित प्रतिनिधि राष्ट्रपति जी के निर्वाचन के लिए अपना मत देते हैं। रिपब्लिक (गणतंत्र) में राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होता है।
भारतीय गणतंत्र में 75 वर्ष की यात्रा तय की है उसका विश्लेषण कई विद्वान व संस्था द्वारा किया जाएगा। गणतंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है ‘गण’ और ‘तंत्र’। ‘गण’ का मतलब जनमानस एवं ‘तंत्र’ वह व्यवस्था है जो सुचारु रूप से दिन-प्रतिदिन के समस्त प्रशासन को गतिमान करती रही है!

परन्तु यक्ष प्रश्न है कि ‘तंत्र’ अपने ‘गण’ के प्रति कितना संवेदनशील रहा है? क्या इसने आम जनता के जीवन के जीवन सुगम,सरल व सुचारू बनाया है। हमारे देश में आमजन के चित्वृत्तियों का दस्तावेज संविधान है। इसके प्रमुख तीन स्तंभ न्यायालपालिका, विधायिका एवं कार्यपालिका है। देश में तंत्र को संचालित करने का कार्य कार्यपालिका का है। जिसने पिछले 75 वर्षो में आम जनमानस के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन अवश्य लाया है। इसे निम्नलिखित बिन्दुओं में समझा जा सकता है—

1) एकता व अखण्डता की सुदृढ़ता-

भारतीय गणतंत्र के 75 वर्षों में देश की एकता व अखंडता को सुदृढ़ करने में तंत्र ने अहम भूमिका निभाई है। उत्तरपूर्व की मानसिक एवं भौगोलिक दूरी अब समाप्त हो गई है। यह अभिन्न भाग अपने को देश की मुख्य धारा में पाता है। उनके प्रति जनमानस का लगाव बढा है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का निर्मूलन करके उसका पूर्णत: भारतीयकरण किया गया है। अलगाववादी शक्तियों को
कठोरता के साथ दमित किया गया है,भ्रमित जन को मुख्य धारा में लाने का पुरज़ोर प्रयास किया जा रहा है।

नक्सलवादी आन्दोलनों को समाप्त करते हुए बेहतर शासन व्यवस्था एवं बातचीत के माध्यम से सुलझाने का प्रयास करते हुए उन्हें राष्ट्र के मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है। विकास की निर्वाध गति चहुंओर पहुँचे, ऐसा कार्य किया जा रहा है। कानून का शासन स्थापित किया गया है। तात्पर्य है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है सबसे ऊपर कानून है। कानून के चार नियम है- खुली सरकार, जवाबदेही, सुलभ एवं निष्पक्ष न्याय और न्यायपूर्ण कानून। इसे स्थापित करने में ‘तंत्र’ ने भूमिका निभाई है।

2) संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका-

संविधान में वर्णित एवं विधायिका द्वारा निर्मित संवैधानिक संस्थाओं ने भारतीय गणतंत्र को सुदृढ़ किया है।इसे क्रियान्वित करने में तंत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें निर्वाचन आयोग,संघ लोक सेवा आयोग, भारत के महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक, नीति आयोग, मानवाधिकार आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार एवं संरक्षण आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, विधि आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, मुख्य सतर्कता आयोग, निदेशालय, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण, जैसी संस्थाओं ने भारतीय जनमानस के जीवन स्तर को निश्चित तौर पर सुगम एवं सरल बनाया है।

3) जीवन स्तर में सुधार-

भारतीय गणतंत्र ने पिछले 75 वर्षों में तंत्र के माध्यम से आम व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार लाया है। मानव विकास सूचकांक में भारत ने छलांग लगाई है। देश की 80% जनसंख्या साक्षर है। सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध है। ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर महानगर के बड़े-बड़े चिकित्सालयों तक आम जनता की पहुंच है। असाध्य रोगों के उचित इलाज हेतु सरकार मदद कर रही है। प्रत्येक व्यक्ति के वार्षिक आय में बढ़ोतरी हुई है। आज हम विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था है। हमारी संस्कृति एवं परंपरा के सभी कायल है। इसकी बानगी हमारे अप्रवासी भारतीयों में दिखाई देती है। विदेश में प्रवास करने वाले प्रत्येक भारतीय भारत के सांस्कृतिक दूत है।

4) रोजगार की उपलब्धता-

भारतीय गणतंत्र में पिछले 75 वर्षों में सभी के लिए पर्याप्त तौर पर रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित किया है। इसमें केंद्र एवं राज्य सरकार के तंत्र द्वारा विकसित ‘सेवा आयोग’, कारखाने एवं निजी क्षेत्र के उद्योग प्रमुख है। खेती किसानी को भी लाभप्रद बनाया गया है। हरित क्रांति से लेकर इजरायल की तकनीक से कृषि को लाभप्रद बनाने हेतु ‘तंत्र’ अहर्निश कार्य कर रही है। मेक इन इंडिया,नई आर्थिक नीति ने अर्थव्यवस्था के नये द्वार खोले हैं। वे विनिर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार उपलब्ध करवाए गए हैं। कई प्रकार की योजनाओं से स्वरोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।

5) भोजन वस्त्र एवं आवास की पूर्ति-

आज देश की जनसंख्या एक अरब 42 करोड़ है परंतु सभी के लिए अनाज की भरपूर व्यवस्था है। भूख से मृत्यु अब अभिशाप माना जाता है। सरकार अपने तंत्र के द्वारा देश के 80 करोड़ जनता तक अनाज उपलब्ध करवा रही है। देश में विभिन्न तकनीक द्वारा भरपूर अनाज का उत्पादन हो रहा है। विभिन्न कारखानों द्वारा वस्त्रों की बुनाई,उत्पादन एवं बिक्री की व्यवस्था किया गया है। सरकार के तंत्र कई योजनाओं के द्वारा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में आवास की सुविधा उपलब्ध करवा रहे है।

6) परिवहन की समुचित व्यवस्था-

आज देश में कहीं भी आने-जाने के लिए परिवहन की उचित व्यवस्था है। पिछले 75 वर्षों में तंत्र द्वारा सड़क,रेल एवं हवाई यात्रा को सरल व सुगम बनाया गया है। केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने आधारभूत संरचना को विकसित करते हुए सड़क,रेल हवाई परिवहन का उत्तरोत्तर विकास किया गया है। ‘तंत्र’ द्वारा अभी और कार्य निरन्तर किया जा रहा है।

बहरहाल, भारतीय गणतंत्र ने वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को चरितार्थ करते हुए पूरे विश्व के सुख व समृद्धि की कामना की है। देश में भी ‘गण’ के प्रति तंत्र की संवेदनशीलता विगत वर्षों में कहीं अधिक बढ़ी है। देश ने विगत 75 वर्षों में जो उपलब्धियां हासिल की है इसमें तंत्र का बहुत बड़ा योगदान है। जवाबदेही और पारदर्शिता गणतंत्र के प्रमुख आधार है जिसे ‘तंत्र’ अक्षुण बनाए रखता है।’तंत्र’ निरंतर नागरिकों के अधिकारों के प्रति कार्य करते हुए गण के प्रति संवेदनशील हो सकता है।
और अतंत:
“सुंदर, सरल , अद्भुत है मेरा गणतंत्र
धैर्य, संस्कृति व परंपरा का है धोतक
सत्य, अहिंसा, दर्शन व धर्म का प्रतिपालक”

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