भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
फ्राँस के राष्ट्रपति ने गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के अवसर पर भारत का दौरा किया, जहाँ दोनों देशों ने भारत-फ्राँस संयुक्त रक्षा अभ्यास की बढ़ती “सघनता तथा पारस्परिकता” पर संतोष व्यक्त करते हुए द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की।
भारत-फ्राँस द्विपक्षीय बैठक से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में सहयोग की गहनता:
- दोनों देशों ने वर्ष 2020 तथा वर्ष 2022 में फ्राँसीसी द्वीप ला रीयूनियन (La Reunion) से संचालित संयुक्त अनुवीक्षण मिशनों का विस्तार करते हुए दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई।
- यह सहयोग संचार के रणनीतिक समुद्री मार्गों के प्रतिभूतिकरण में सकारात्मक योगदान देता है।
- हिंद-प्रशांत साझेदारी:
- दोनों पक्षों ने अपने संप्रभु तथा रणनीतिक हितों के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्त्व पर बल दिया।
- उन्होंने अपने साझा दृष्टिकोण के आधार पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही साझेदारी को बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई तथा संबद्ध क्षेत्र में अपनी बढ़ती सहभागिता की प्रकृति पर संतोष व्यक्त किया।
- रक्षा तथा सुरक्षा साझेदारी:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और फ्राँस के बीच रक्षा तथा सुरक्षा साझेदारी को उनके सहयोग की आधारशिला के रूप में रेखांकित किया गया है।
- इस साझेदारी में विशेषकर हिंद महासागर क्षेत्र में, द्विपक्षीय, बहुराष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा संस्थागत पहलों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।
- नेताओं ने तीनों सेनाओं/त्रि-सेवा के संयुक्त अभ्यास तथा विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र में इसकी सहभागिता बढ़ाने पर चर्चा की।
- त्रिपक्षीय सहयोग:
- दोनों देशों ने ऑस्ट्रेलिया के साथ पुनः त्रिपक्षीय सहयोग शुरू करने, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ सहयोग को सघन करने तथा संबद्ध क्षेत्र में नई त्रिपक्षीय साझेदारी तलाशने के लिये प्रतिबद्धता जताई।
- जून 2023 में, भारत, फ्राँस तथा UAE समुद्री साझेदारी अभ्यास का पहला संस्करण ओमान की खाड़ी में आयोजित हुआ।
- दोनों देशों ने ऑस्ट्रेलिया के साथ पुनः त्रिपक्षीय सहयोग शुरू करने, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ सहयोग को सघन करने तथा संबद्ध क्षेत्र में नई त्रिपक्षीय साझेदारी तलाशने के लिये प्रतिबद्धता जताई।
- आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी:
- दोनों देशों ने संबद्ध क्षेत्र में सतत् आर्थिक विकास, मानव कल्याण, पर्यावरणीय स्थिरता, लचीले बुनियादी ढाँचे, नवाचार और कनेक्टिविटी का समर्थन करने के लिये संयुक्त एवं बहुपक्षीय पहल के महत्त्व को स्वीकार किया।
- उन्होंने हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने की सुविधा के लिये हिंद-प्रशांत त्रिपक्षीय विकास सहयोग कोष (Indo- Pacific Triangular Development Cooperation Fund) की शीघ्र शुरुआत करने का विचार रखा।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा (IMEC):
- नेताओं ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (India-Middle East-Europe Corridor- IMEC) के शुभारंभ को रेखांकित किया तथा इस बात पर सहमति व्यक्त की यह भारत, मध्य पूर्व तथा यूरोप के बीच वाणिज्य एवं ऊर्जा प्रवाह की क्षमता एवं लचीलेपन को बढ़ाने के लिये रणनीतिक रूप से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
- बहुपक्षवाद तथा संयुक्त राष्ट्र सुधार:
- दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) में तत्काल सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए सुधार एवं प्रभावी बहुपक्षवाद का आह्वान किया।
- फ्राँस ने UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये पुनः अपना समर्थन व्यक्त किया।
- दोनों पक्षों ने बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला तथा इस संबंध में प्रभावी सुझाव देने के लिये स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह (Independent Expert Group- IEG) की रिपोर्ट की सराहना की।
- उन्होंने आधिकारिक ऋण पुनर्गठन मामलों में पेरिस क्लब तथा भारत के बीच बढ़ते सहयोग के महत्त्व को उजागर किया।
- रक्षा उद्योग सहयोग:
- दोनों पक्षों ने दोनों देशों के रक्षा उद्योग के क्षेत्रों में एकीकरण को सघन करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने न केवल भारत के लिये बल्कि अन्य मित्र देशों के लिये भी रक्षा आपूर्ति के सह-डिज़ाइन, सह-विकास एवं सह-उत्पादन की संभावनाओं पर चर्चा की।
- टाटा ग्रुप तथा एयरबस समझौता:
- टाटा ग्रुप तथा एयरबस ने नागरिक हेलीकॉप्टरों के विकास तथा विनिर्माण के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- टाटा और एयरबस पहले से ही गुजरात में C-295 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट बनाने के लिये सहयोग कर रहे हैं।
- औद्योगिक साझेदारी का लक्ष्य महत्त्वपूर्ण स्वदेशी और स्थानीयकरण घटक के साथ H125 हेलीकॉप्टर का उत्पादन करना है।
- टाटा ग्रुप तथा एयरबस ने नागरिक हेलीकॉप्टरों के विकास तथा विनिर्माण के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- शक्ति जेट इंजन सौदा:
- शक्ति जेट इंजन सौदे को लेकर भारत और सफरान के बीच चल रहीं वार्ता पर प्रकाश डाला गया। ये वार्ताएँ भारत की भविष्य की लड़ाकू जेट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विनिर्माण प्रौद्योगिकी के सरल हस्तांतरण से परे विशिष्टताओं को विकसित करने पर केंद्रित हैं।
- CFM इंटरनेशनल और अकासा एयर:
- फ्राँसीसी जेट इंजन निर्माता CFM इंटरनेशनल ने भी 150 बोइंग ओपन नए टैब 737 मैक्स विमानों को बिजली देने के लिये अपने 300 से अधिक LEAP-1B इंजन खरीदने के लिये भारत की अकासा एयर के साथ एक समझौते की घोषणा की।
- टाटा ग्रुप तथा एयरबस समझौता:
- दोनों पक्षों ने दोनों देशों के रक्षा उद्योग के क्षेत्रों में एकीकरण को सघन करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने न केवल भारत के लिये बल्कि अन्य मित्र देशों के लिये भी रक्षा आपूर्ति के सह-डिज़ाइन, सह-विकास एवं सह-उत्पादन की संभावनाओं पर चर्चा की।
- अंतरिक्ष सहयोग:
- देशों ने रणनीतिक अंतरिक्ष वार्ता शुरू की, रक्षा अंतरिक्ष सहयोग पर एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किये और उपग्रह प्रक्षेपण मिशन के लिये इसरो के न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited – NSIL) और फ्राँस के एरियनस्पेस के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
- देशों ने संयुक्त उपग्रह अनुसंधान, उत्पादन और प्रक्षेपण सहित अंतरिक्ष सहयोग बढ़ाने का वादा किया।
भारत और फ्राँस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र क्या हैं?
- संबंध के स्तंभ:
- भारत और फ्राँस लंबे समय से सांस्कृतिक, व्यापारिक और आर्थिक संबंध साझा करते रहे हैं। वर्ष 1998 में हस्ताक्षरित ‘भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी’ (India-France strategic partnership) ने समय के साथ महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की है और वर्तमान में गहन निकट बहुआयामी संबंध में विकसित हो गया है जो सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों तक विस्तृत है।
- दोनों देशों ने अपने संबंध में तीन स्तंभों पर सुदृढ़ता बनाए रखी है:
- एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
- रणनीतिक स्वायत्तता और गुटनिरपेक्षता में दृढ़ विश्वास
- स्वयं की संधि और गठबंधन के दायरे में दूसरे को शामिल करने के मामले में संयम
- रक्षा साझेदारी:
- भारत-फ्राँस संबंधों के मूल में रक्षा साझेदारी है; अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में फ्राँस कहीं अधिक इच्छुक और उदार भागीदार के रूप में सामने आया है।
- राफेल सौदे से लेकर इस विमान के समुद्री संस्करण के 26 विमानों के नवीनतम अधिग्रहण तक, फ्राँस भारत को अपनी कुछ बेहतरीन रक्षा प्रणालियाँ सौंपने का इच्छुक बना रहा है।
- इस बीच, फ्राँस द्वारा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से पहले ही भारत को छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के निर्माण में मदद मिल चुकी है, जबकि नौसेना के लिये पनडुब्बियों की घटती संख्या को बढ़ाने के लिये तीन और पनडुब्बियाँ खरीदी जा रही हैं।
- संयुक्त अभ्यास: शक्ति (थल सेना), वरुण (नौसेना), गरुड़ (वायु सेना)।
- नाटो प्लस पर रुख में समानता:
- फ्राँस ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर रखी है कि वह नाटो प्लस ( North Atlantic Treaty Organisation- NATO+) भागीदारी योजनाओं को अस्वीकार करता है, जिसके तहत ट्राँस-अटलांटिक एलायंस का जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और यहाँ तक कि भारत के साथ प्रत्यक्ष संबंध बन जाएगा।
- भारत ने भी इस योजना को यह कहते हुए खारिज़ कर दिया है कि नाटो ‘‘ऐसा टेम्पलेट या खाका नहीं है जो भारत पर लागू होता है”।
- आर्थिक सहयोग:
- दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में भारत से निर्यात 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर, 13.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के नए शिखर पर पहुँच गया।
- अप्रैल 2000 से जून 2022 के बीच 10.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी निवेश (भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह का 1.70%) के साथ यह भारत का 11वाँ सबसे बड़ा विदेशी निवेशक रहा।
- अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहयोग:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के साथ-साथ परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) में प्रवेश के भारत के दावे का फ्राँस समर्थन करता है।
- जलवायु सहयोग:
- दोनों देश जलवायु परिवर्तन को लेकर साझा चिंता रखते हैं, जहाँ भारत ने पेरिस समझौते में फ्राँस का समर्थन करते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रति अपनी प्रबल प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- दोनों देशों ने जलवायु परिवर्तन पर अपने संयुक्त प्रयासों के तहत वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) की शुरुआत की।
भारत-फ्राँस संबंधों के बीच क्या चुनौतियाँ हैं?
- FTA और BTIA निष्क्रियता:
- फ्राँस और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) का अभाव उनकी व्यापार क्षमता को अधिकतम करने में बाधा डालता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत-EU व्यापक रूप से मुक्त व्यापार और निवेश समझौते (BTIA) पर धीमी प्रगति ने व्यापक आर्थिक सहयोग के लिये प्रोत्साहन की दिशा में चुनौतियों को और बढ़ा दिया है।
- भिन्न रक्षा एवं सुरक्षा प्राथमिकताएँ:
- एक मज़बूत रक्षा साझेदारी के बावजूद, प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण में अंतर रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को प्रभावित कर सकता है।
- भारत का क्षेत्रीय केंद्र-बिंदु और इसकी “गुटनिरपेक्ष” नीति कभी-कभी फ्राँस के वैश्विक हितों के विरुद्ध हो सकती है।
- एक मज़बूत रक्षा साझेदारी के बावजूद, प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण में अंतर रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को प्रभावित कर सकता है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी चिंताएँ:
- फ्राँस ने भारत के बौद्धिक संपदा अधिकारों की अपर्याप्त सुरक्षा के बारे में चिंता जताई है, जिससे भारत के भीतर काम करने वाले फ्राँसीसी व्यवसायों पर असर पड़ रहा है। यह द्विपक्षीय व्यापार के लिये अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने की चुनौती पेश करता है।
- व्यापार असंतुलन और रक्षा उत्पादों का प्रभुत्व:
- हालाँकि फ्राँस भारत का 11वाँ व्यापार भागीदार है, लेकिन वहाँ एक उल्लेखनीय व्यापार असंतुलन है।
- व्यापार संबंधों में रक्षा उत्पादों का प्रभुत्व विविधीकरण और अधिक संतुलित आर्थिक विनिमय प्राप्त करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
- फ्राँस में भारतीय उत्पादों के लिये बाधाएँ:
- भारत को फ्राँस को अपने उत्पाद निर्यात करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी (SPS) उपायों के संदर्भ में। यह फ्राँसीसी बाज़ार में प्रवेश करने वाले भारतीय उत्पादों को हतोत्साहित करने का कार्य कर सकता है।
- छात्र आवाजाही (Student Mobility):
- जबकि फ्राँसीसी राष्ट्रपति ने फ्राँस में 30,000 भारतीय छात्रों का स्वागत करने/प्रवेश देने की योजना की घोषणा की, वीज़ा प्रक्रियाओं और सांस्कृतिक एकीकरण सहित छात्रों की आवाजाही से संबंधित मुद्दे, इस लक्ष्य को साकार करने में चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
- मानव तस्करी की चिंताएँ:
- मानव तस्करी से जुड़े निकारागुआ उड्डयन मामले जैसे उदाहरण चिंताएँ बढ़ाते हैं और अंतर्राष्ट्रीय अपराधों को नियंत्रित करने एवं नागरिकों की सुरक्षा व भलाई सुनिश्चित करने में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
आगे की राह
- भारत और फ्राँस दोनों अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आयाम देने या यहाँ तक कि अन्य देशों को संतुलित करने में एक-दूसरे का समर्थन कर सकते हैं, जिन पर उनमें से एक बहुत अधिक निर्भर है।
- इंडो-पैसिफिक अवधारणा ने संपन्न फ्राँस-भारतीय संबंधों (Franco-Indian Relations) के लिये एक उपयोगी ढाँचा प्रदान किया है। हिंद महासागर में अपने विदेशी क्षेत्रों और सैन्य अड्डों/सीमाओं के कारण क्वाड साझेदारों की तुलना में फ्राँस की हिंद महासागर स्थिरता में अधिक प्रत्यक्ष रुचि है।
- दोनों के बीच इंडो-पैसिफिक फोरम रणनीतिक हितों और द्विपक्षीय सहयोग को सुनिश्चित करने के लिये सहायता करने में सक्षम होना चाहिये।
- निजी और विदेशी निवेश में वृद्धि के साथ घरेलू/स्वदेशी हथियार उत्पादन का विस्तार करने की भारत की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में फ्राँस महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- चर्चा में कनेक्टिविटी, जलवायु परिवर्तन, साइबर-सुरक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहित सहयोग के उभरते क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिये।
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