भारत का जनसांख्यिकीय परिवर्तन और वृद्धि का क्या महत्त्व है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
संयुक्त राष्ट्र (UN) के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, भारत की जनसंख्या वर्ष 2030 तक 1.46 बिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है, जो विश्व की अनुमानित आबादी की 17% होगी। जबकि भारत में 1970 के दशक तक अभूतपूर्व जनसंख्या वृद्धि का अनुभव हुआ, उसके बाद से इसकी विकास दर सुस्त हुई है और प्रजनन स्तर में लगातार गिरावट आ रही है।
- यह गिरावट, जो कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) में परिलक्षित होती है, भारत के जनसांख्यिकीय प्रक्षेपपथ को आकार देने में सहायक रही है। TFR के वर्ष 2009-11 में 2.5 से घटकर वर्ष 2031-35 में 1.73 तक पहुँचने के अनुमान के साथ, भारत एक जनसांख्यिकीय संक्रमण (demographic transition) का साक्षी बनेगा, जहाँ यह बच्चों की आबादी के घटते अनुपात और कार्यशील आयु आबादी के बढ़ते अनुपात से चिह्नित होगा।
भारत में वर्तमान जनसंख्या वृद्धि के रुझान क्या हैं?
- जनसंख्या वृद्धि में गिरावट:
- अखिल भारतीय स्तर पर 1971-81 के बाद से जनसंख्या की प्रतिशत दशकीय वृद्धि दर में गिरावट आ रही है।
- EAG राज्यों (Empowered Action Group states)—उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और उड़ीसा के मामले में उल्लेखनीय गिरावट पहली बार वर्ष 2011 की जनगणना के दौरान देखी गई थी।
- भारत की TFR में गिरावट:
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 4 और 5 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर TFR 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है।
- भारत में केवल पाँच राज्य ऐसे हैं जो प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से ऊपर हैं। ये राज्य हैं- बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर।
- प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता (Replacement level fertility) कुल प्रजनन दर को इंगित करती है, यानी प्रति महिला पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या जिस पर आबादी बिना किसी प्रवासन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्वयं को प्रतिस्थापित करती है।
- मृत्यु दर संकेतकों में सुधार:
- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है, जो वर्ष 1947 के 32 वर्ष से बढ़कर वर्ष 2019 में 70 वर्ष हो गया।
- NFHS-5 के अनुसार, शिशु मृत्यु दर (IMR) 32 प्रति 1000 जीवित जन्म है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के लिये औसतन 36 और शहरी क्षेत्रों के लिये 23 के स्तर पर है।
- परिवार नियोजन में वृद्धि:
- NFHS-5 के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर और पंजाब को छोड़कर लगभग सभी चरण-II राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर (Contraceptive Prevalence Rate- CPR) 54% से बढ़कर 67% हो गई है।
- जीवन प्रत्याशा में सुधार:
- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNFPA) की विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट (State of World Population report), 2023’ के अनुसार:
- भारतीय पुरुष के लिये औसत जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष और महिलाओं के लिये 74 वर्ष अनुमानित की गई।
- विकसित भूभागों के मामले में, पुरुषों के लिये औसत जीवन प्रत्याशा 77 वर्ष और महिलाओं के लिये 83 वर्ष (जो सब में सर्वाधिक है) होने का अनुमान लगाया गया।
- कम विकसित भूभागों के मामले में यह आयु पुरुषों के लिये 70 वर्ष और महिलाओं के लिये 74 वर्ष है, जबकि कम विकसित देशों में यह पुरुषों के लिये 63 वर्ष और महिलाओं के लिये 68 वर्ष है।
- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNFPA) की विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट (State of World Population report), 2023’ के अनुसार:
- प्रबल जनसांख्यिकीय लाभांश:
- भारत की जनसंख्या बड़े कार्यबल के मामले में एक महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है, जो आर्थिक विकास को गति देने में मदद कर सकती है।
- भारत की 68% आबादी 15 से 64 वर्ष के आयु वर्ग में है, जो कार्यशील या कार्य करने में सक्षम आबादी में उल्लेखनीय योगदान प्रदान करती है।
- वृद्धशील विश्व में भारत के पास सबसे युवा आबादी मौजूद है। वर्ष 2022 तक, भारत में औसत आयु मात्र 29 वर्ष थी, जबकि यह चीन एवं अमेरिका में 38, पश्चिमी यूरोप में 46 और जापान में 51 वर्ष थी।
भारत में जनसंख्या समिति (Population Committee) का गठन क्यों आवश्यक था?
- व्यापक अनुमानित जनसंख्या:
- संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, इस दशक के अंत तक भारत की जनसंख्या 1.5 बिलियन का स्तर पार कर जाएगी और वर्ष 2064 तक धीरे-धीरे बढ़ती रहेगी जब यह 1.7 बिलियन तक पहुँच जाएगी।
- जनसंख्या वृद्धि दर में सुस्ती के बावजूद जनसांख्यिकीय संक्रमण जारी है जो भारत के आयु वितरण और आर्थिक विकास क्षमता के लिये निहितार्थ रखता है।
- जनसांख्यिकीय लाभांश और आर्थिक विकास का दोहन करना:
- भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश प्रति व्यक्ति त्वरित आर्थिक विकास का अवसर प्रस्तुत करता है, यदि स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास में उपयुक्त निवेश किया जाए।
- इस लाभांश का लाभ उठाने के लिये मानव पूंजी को बढ़ाने और हाशिये पर स्थित समूहों को कार्यबल में एकीकृत करने की पहल की आवश्यकता है। परिकल्पित जनसंख्या समिति इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार क्षेत्र में विद्यमान चुनौतियों को संबोधित करना:
- स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 1% पर स्थिर बना हुआ है, जो ऐसी नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है जो स्वास्थ्य संवर्द्धन को प्राथमिकता दें और स्वास्थ्य अवसंरचना अधिक वित्त आवंटित करें।
- यूनिसेफ के अनुसार, वर्ष 2030 तक लगभग 47% भारतीय युवाओं में रोज़गार के लिये आवश्यक शिक्षा एवं कौशल की कमी प्रदर्शित हो सकती है।
- कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न व्यवधानों ने इन चुनौतियों को और बढ़ा दिया है, जहाँ 250 मिलियन से अधिक बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा, जिससे अधिगम प्रतिफलों (लर्निंग आउटकम) को उल्लेखनीय आघात लगा।
- जनसंख्या समिति सुव्यवस्थित और व्यापक तरीके से इन क्षेत्रों में लक्षित दृष्टिकोण को बढ़ाने में मदद करेगी।
- स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 1% पर स्थिर बना हुआ है, जो ऐसी नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है जो स्वास्थ्य संवर्द्धन को प्राथमिकता दें और स्वास्थ्य अवसंरचना अधिक वित्त आवंटित करें।
- साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने का महत्त्व:
- साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के लिये सटीक एवं समयबद्ध डेटा आवश्यक है। भारत को आँकड़ों की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिये अनुमान संग्रह पद्धतियों में सुधार, प्रौद्योगिकी अंगीकरण और हितधारकों के साथ सहयोग की आवश्यकता है।
- उच्चाधिकार प्राप्त समिति राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO) और NFHS द्वारा प्रदान किये गए पिछड़े डेटा के लिये एक व्यवहार्य विकल्प पेश कर सकती है।
- डेटा अवसंरचना को आधुनिक बनाने की आवश्यकता:
- सटीक जनसांख्यिकीय डेटा संग्रह और विश्लेषण के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों और सुदृढ़ प्रणालियों के माध्यम से डेटा अवसंरचना को आधुनिक बनाया जाना महत्त्वपूर्ण है।
- विश्वसनीय जनसंख्या आँकड़ों के लिये डेटा संग्रह विधियों, डेटा प्रोसेसिंग प्रौद्योगिकियों और डेटा सुरक्षा में निवेश अनिवार्य है।
- समावेशी और सतत् विकास को साकार करना:
- जनसंख्या प्रबंधन के लिये समग्र दृष्टिकोण अपनाकर तथा स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार एवं सांख्यिकीय प्रणालियों में निवेश को प्राथमिकता देकर भारत अपनी विकास क्षमता को साकार कर सकता है और समावेशी एवं सतत विकास प्राप्त कर सकता है।
- भारत के परिवर्तन को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने के लिये रणनीतिक योजना, प्रभावी कार्यान्वयन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग महत्त्वपूर्ण हैं जो प्रस्तावित जनसंख्या समिति के स्तर पर सफलतापूर्वक पूरे किये जा सकते हैं।
जनसंख्या समिति के गठन में शामिल किये जाने वाले विभिन्न बिंदु क्या होने चाहिये?
- बहु-क्षेत्रीय रणनीति अपनाना:
- अंतरिम बजट में इस महत्त्वपूर्ण पहल की शुरूआत ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य के अनुरूप होनी चाहिये। इस समिति को परिवार नियोजन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक-आर्थिक विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति अपनानी चाहिये, जैसे कि:
- खेल-आधारित लचीला पाठ्यक्रम तैयार करना और आरंभिक बाल्यावस्था की शिक्षा की मांग उत्पन्न करने के लिये माता-पिता, समुदायों और हितधारकों को शामिल करना परिणामों में सुधार के अन्य उपाय हो सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त, बेरोज़गारी को कम करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिये मौजूदा कौशल विकास पहल और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच के अंतर को पाटने के प्रयास आवश्यक हैं।
- अंतरिम बजट में इस महत्त्वपूर्ण पहल की शुरूआत ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य के अनुरूप होनी चाहिये। इस समिति को परिवार नियोजन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक-आर्थिक विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति अपनानी चाहिये, जैसे कि:
- जनसंख्या प्रबंधन के लिये अंतःविषयक दृष्टिकोण:
- जनसंख्या समिति की सफलता उसके अंतःविषयक दृष्टिकोण पर निर्भर करती है, जो जनसांख्यिकी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और शासन से विशेषज्ञता प्राप्त करेगी।
- समिति को विविध दृष्टिकोणों का लाभ उठाते हुए उभरते मुद्दों की पहचान करनी चाहिये और कठोर अनुसंधान एवं डेटा विश्लेषण के माध्यम से मौजूदा हस्तक्षेपों की प्रभावकारिता का आकलन करना चाहिये।
- जनसंख्या समिति की सफलता उसके अंतःविषयक दृष्टिकोण पर निर्भर करती है, जो जनसांख्यिकी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और शासन से विशेषज्ञता प्राप्त करेगी।
- प्रभावी कार्यान्वयन के लिये सहक्रियात्मक प्रयास:
- राष्ट्रीय और ज़मीनी स्तर, दोनों स्तरों पर प्रभावी नीति कार्यान्वयन के लिये सरकारी एजेंसियों, ग़ैर-सरकारी संगठनों, नागरिक समाज, शिक्षा जगत और निजी क्षेत्र सहित विविध हितधारकों के साथ सहकार्यता आवश्यक है।
- ये साझेदारियाँ सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देंगी और जनसंख्या-संबंधित कार्यक्रमों की सफलता सुनिश्चित करेंगी।
- जन जागरूकता और शिक्षा पर बल देना:
- समिति को नीति निर्माण के अलावा जन जागरूकता और शिक्षा अभियान पर भी बल देना चाहिये। सटीक जानकारी के साथ व्यक्तियों और समुदायों को सशक्त बनाकर, यह उत्तरदायी परिवार नियोजन अभ्यासों को बढ़ावा देने और स्वास्थ्य परिणामों को उन्नत करने का लक्ष्य रखता है।
- जनसंख्या प्रबंधन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- जनसंख्या प्रबंधन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सर्वोत्तम अभ्यासों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाना महत्त्वपूर्ण है। वैश्विक अनुभवों से सीखना और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने में भारत की रणनीतियों को समृद्ध कर सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग, विश्व बैंक और शैक्षणिक संस्थानों जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग जनसंख्या डेटा संग्रहण एवं विश्लेषण के लिये वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यासों, तकनीकी विशेषज्ञता एवं वित्तपोषण के अवसरों तक पहुँच प्रदान कर सकता है।
- जनसंख्या प्रबंधन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सर्वोत्तम अभ्यासों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाना महत्त्वपूर्ण है। वैश्विक अनुभवों से सीखना और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने में भारत की रणनीतियों को समृद्ध कर सकता है।
- भारत के विकसित होते जनसांख्यिकीय परिदृश्य को एकीकृत करना:
- भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य में पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं, जिनमें प्रजनन दर में गिरावट, कार्यशील आयु आबादी की वृद्धि और बढ़ती वृद्ध आबादी शामिल है।
- परिकल्पित समिति के माध्यम से इन परिवर्तनों को समझना भविष्य के आर्थिक और जनसांख्यिकीय प्रक्षेपपथ को आकार देने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य में पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं, जिनमें प्रजनन दर में गिरावट, कार्यशील आयु आबादी की वृद्धि और बढ़ती वृद्ध आबादी शामिल है।
- डेटा विश्वसनीयता के लिये गुणवत्ता आश्वासन तंत्र अपनाना:
- कठोर सत्यापन और गुणवत्ता आश्वासन तंत्र को लागू करने से जनसंख्या डेटा की विश्वसनीयता एवं सटीकता सुनिश्चित होती है। स्वतंत्र ऑडिट, डेटा सत्यापन अभ्यास एवं सहकर्मी समीक्षा प्रक्रियाएँ डेटा त्रुटियों की पहचान करने और उनमें सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।
- शोधकर्त्ताओं को डेटा तक पहुँच की सुविधा प्रदान करना:
- खुली डेटा पहल को बढ़ावा देने और डेटा साझाकरण में पारदर्शिता से शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और आम लोगों के लिये जनसंख्या डेटा तक पहुँच बढ़ेगी।
- अनुसंधान प्रक्रिया में डेटा के पुन: उपयोग, पारदर्शिता और जवाबदेही को सुगम बनाने के लिये मानकीकृत प्रारूपों और डेटा साझाकरण प्रोटोकॉल को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
तीव्र जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की स्थापना प्रभावी नीतियों एवं रणनीतियों को तैयार करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इस समिति को जनसंख्या वृद्धि को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये अंतःविषयक दृष्टिकोण अपनाना चाहिये,
हितधारकों के साथ सहयोग करना चाहिये और सार्वजनिक जागरूकता एवं शिक्षा अभियानों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। भारत का जनसांख्यिकीय परिदृश्य अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करता है। यदि स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोज़गार के क्षेत्र में उपयुक्त निवेश किया जाए तो इससे द्रुत आर्थिक विकास की संभावना बनेगी।
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