Acharya Vidyasagar Maharaj: विद्यासागर महाराज ने ली समाधि, पीएम ने दी श्रद्धांजलि
जैन समाज के लिए यह बेहद दुखद खबर
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
जाने-माने जैनमुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ स्थित ‘चंद्रगिरि तीर्थ’ में ‘सल्लेखना’ करके रविवार को देह त्याग दी. जैन समाज के लिए यह बेहद दुखद खबर है. चंद्रगिरि तीर्थ की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, ‘सल्लेखना’ जैन धर्म में एक प्रथा है, जिसमें देह त्यागने के लिए स्वेच्छा से अन्न-जल का त्याग किया जाता है.
आचार्य विद्यासागर महाराज जैन समाज के सबसे प्रसिद्ध संत थे. वह आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य थे. आचार्य ज्ञानसागर ने समाधि लेते समय अपना ‘आचार्य’ मुनि विद्यासागर को सौंप दिया था. 22 नवंबर 1972 में आचार्य बनते वक्त मुनि विद्यासागर की उम्र सिर्फ 26 साल थी. उनका जन्म 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक के बेलगांव जिले के चिक्कोड़ी गांव में हुआ था.
इंदौर ऐसा एकमात्र शहर है जहां आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज (Acharya Vidyasagar Maharaj ) ने अपने साधु जीवन का सबसे अधिक वक्त बिताया है। 56 साल के साधु जीवन में उन्होंने 10 महीने से ज्यादा का समय इंदौर में बिताया। 19 साल के लंबे इंतजार के बाद साल 2020 में उनका आगमन अहिल्या की नगरी इंदौर में हुआ। इस दौरान इंदौर के भक्तों का सौभाग्य ऐसा जागा कि गुरु का सानिध्य 300 दिन से ज्यादा का मिल गया।
पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने एक्स कर लिखा- “मुझे वर्षों तक उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का सम्मान मिला। मैं पिछले साल के अंत में छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में चंद्रगिरि जैन मंदिर की अपनी यात्रा को कभी नहीं भूल सकता। उस समय, मैंने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी के साथ समय बिताया था।
आधे दिन का शोक घोषित
आचार्य विद्यासागर महाराज के देहावसान पर मध्य प्रदेश सरकार की ओर से रविवार को आधे दिन का अवकाश घोषित किया गया। इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहा। इस दौरान राजकीय समारोह व कार्यक्रम नहीं किए गए।
कोरोना संक्रमण की वजह से इंदौर को मिला सौभाग्य
साल 2020 में जब आचार्य विद्यासागर इंदौर आए तो कोरोना की वजह से लाकडाउन लगा। इस वजह से इंदौर की जनता को गुरु का यह प्रेम मिल पाया। जैन समाजजन कहते हैं कि गुरु के प्रति अपार स्नेह की वजह से इंदौर को यह सौभाग्य मिला।
चन्द्रगिरि तीर्थ में देह त्यागी
छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ (chandragiri dongargarh jain temple) में शनिवार देर रात 2:35 बजे श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपना शरीर त्याग दिया। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य ने पूर्ण जागृतावस्था में आचार्य पद का त्याग किया। इसके बाद तीन दिन का उपवास लिया और अखंड मौन धारण कर लिया। इसके बाद उन्होंने प्राण त्याग दिए। उनके शरीर त्यागने की खबर मिलने के बाद जैन समाज के लोग डोंगरगढ़ में जुटना शुरू हो गए हैं। आज दोपहर 1 बजे उनकी अंतिम संस्कार विधि होगी।
पीएम मोदी मिलने पहुंचे थे
पिछले साल 5 नवंबर को पीएम मोदी (pm modi) ने डोंगरगढ़ पहुंचकर मुनि श्री का आशीर्वाद लिया था। तब उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था कि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी का आशीर्वाद पाकर धन्य महसूस कर रहा हूं।
पहली फिल्म भी इंदौर में आई
आचार्य विद्यासागर महाराज (Acharya Vidyasagar Maharaj) के जीवन पर बनी फिल्म ‘अंतर्यात्री महापुरुष-द वाकिंग गॉड’ का पहला शो भी इंदौर में रखा गया। इसके बाद इसका देशव्यापी प्रदर्शन हुआ। शिरोमणि क्रिएशंस के बैनर तले निर्मित इस फिल्म का पहला शो इंदौर के कस्तूर सिनेमा में लगा। फिल्म का प्रीमियर जयपुर के प्रसिद्ध राजमंदिर सिनेमाघर में हुआ था। इंदौर में फिल्म के तीन दिन के सभी शो हाउसफुल रहे थे।
अवतरण दिवस पर मनाते हैं दिवाली
दिगंबर जैन समाज के सबसे बड़े संत आचार्य विद्यासागर महाराज का अवतरण दिवस शरद पूर्णिमा पर होता है। इस दिन को इंदौर में भक्त हर्षोल्लास से मनाते हैं। इस अवसर पर शहरभर में कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। नेमीनगर जैन कॉलोनी में इस दिन दीपावली मनाई जाती है। कॉलोनी में आकर्षक दीप और विद्युत सज्जा कर घर के आंगन में रांगोली बनाई जाती है।
माता-पिता को भी दी थी दीक्षा
आचार्य विद्यासागर के पिता का नाम मल्लप्पाजी अष्टगे और माता का नाम श्रीमती अष्टगे था. बचपन में घर पर सभी उन्हें नीलू कहकर पुकारते थे. आचार्य विद्यासागर के बारे में कई बातें ऐसी हैं जो हैरान कर देने वाली हैं. उन्होंने अपने जीवन में 500 से अधिक लोगों को दीक्षा दी. खुद आचार्य विद्यासागर के माता और पिता ने भी उन्हीं से दीक्षा ली थी और बाद में उन्होंने समाधि ले ली.
22 साल की उम्र में ली ‘दिगंबर साधु’ की दीक्षा
आचार्य विद्यासागर को लोग उनके गहन आध्यात्मिक ज्ञान के लिए जानते थे. साल 1968 में सिर्फ 22 साल की उम्र में आचार्य ज्ञानसागर ने मुनि विद्यासागर को ‘दिगंबर साधु’ के रूप में दीक्षा दी और चार साल बाद उन्हें ‘आचार्य’ का पद प्राप्त हुआ. उन्होंने अपना जीवन जैन धर्मग्रंथों और दर्शन के अध्ययन और अनुप्रयोगों में समर्पित कर दिया. संस्कृत और अन्य भाषाओं पर उनकी अद्भुत पकड़ थी. उन्होंने खुद भी कई आध्यात्मिक ग्रंथ लिखे हैं.
‘ब्रह्मांड के देवता’ के रूप में सम्मानित
जैन समुदाय में उनके कुछ व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त कार्यों में निरंजन शतक, भावना शतक, परीष जया शतक, सुनीति शतक और श्रमण शतक शामिल हैं. उन्होंने हिंदी को बढ़ावा देने और किसी भी राज्य में न्याय प्रणाली को उसकी आधिकारिक भाषा में बनाने के अभियान का भी नेतृत्व किया था. 11 फरवरी को आचार्य विद्यासागर महाराज को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में ‘ब्रह्मांड के देवता’ के रूप में सम्मानित किया गया था.
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